स्वप्न मेरे: जुलाई 2009

रविवार, 26 जुलाई 2009

भोर का स्पंदन....

आलिंगन को व्याकुल
अलसाई सी रात
सिन्दूरी कम्बल ओढे
आ रहा प्रभात ........
प्रकाश में समां जाने का उन्माद
अस्तित्व खो देने की चाह
छाने लगे हैं देखो
प्रकृति के अद्भुद रंग
प्रारंभ होता है
साँसों का इक प्रवाह ......
चिडियों का चहचहाना
भंवरों का गुनगुनाना
लहरों का ठहर जाना
बेताब तितलियों का
आँगन में खिलखिलाना ......
चलने लगी है श्रृष्टि
सुबह की पगली किरण
उतर आई है तेरे सिरहाने
आ मिल कर करें
नव रश्मि का अभिनंदन
वो आ रहा है देखो
भोर का स्पंदन.........

सोमवार, 20 जुलाई 2009

चाहत

महसूस किया है
झुर्मुट की आड़ से
पीले समुंद्र के उस पार से
कोई तो गुज़रा है
इस रेत के पहाड़ से
ताज़ा है अभी
कुछ कदमों की आहट
रेत के समुंदर में
उड़ रही है चाहत
वो चाँद है पूनम का
या खुश्बू तेरे एहसास की
जन्म-जन्मांतर की प्यास है
या बात है इक रात की
सोच लेंगे कभी फ़ुर्सत में
अभी तो जी लेने दो ये लम्हा

सोमवार, 13 जुलाई 2009

मौन आमंत्रण

1)

पूनम का चाँद
तुम्हें पा लेने का
मौन आमंत्रण
उष्रंखल होती मुक्त लहरें
तुझमे समा जाने का पागलपन
किनारों से टूट कर बिखरने का उन्माद
अपने अस्तित्व को खो देने की चाहत

पानी की बिखरी बूँदों में
मेरा अक्स चमकने लगा है

2)

तपती दोपहरी
पिघलता रेगिस्तान
पानी की स्याही से
रेत पर लिखा
मौन आमंत्रण
कतरा कतरा जागती प्यास
तू करीब हो कर भी कितना दूर
दहकती रेत पर
उतरने लगी है सुरमई चादर

आ दो पल बिता लें
जुदा होने से पहले

मंगलवार, 7 जुलाई 2009

अनबुझी प्यास

1)

अचानक बोलते हुवे
तेरा रुक जाना
दांतों में दुपट्टा दबाये
हौले हौले दीवार खुरचते
मेरी आगोश में सिमिट आना
मेरा पूर्ण से सम्पूर्ण हो जाना
सत्य शिवम् में खो जाना
देखो .................
प्रेम के उन्मुक्त गगन में
इन्द्रधनुष के रंग बिखर आये हैं

2)

नीले सागर के साथ
मीलों चलता रेत का सागर
किनारे तोड़ कर आती
उन्मुक्त सागर की लहरें
सूखी रेत को लील लेने की
अनबुझी प्यास
लहरों के नर्तन में
शामिल है शायद
मेरी अनंत चाहत का जवाब