स्वप्न मेरे: समानांतर रेखाएं

गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

समानांतर रेखाएं

याद है वो तमाम मसले
समाजवाद और पूंजीवाद की लंबी बहस
कार्ल मार्क्स के आर्थिक सिद्धांत
मानव अधिकारों को लेकर आपसी मतभेद
फ्रायड का विवादित मनोविज्ञान
मैकाले की शिक्षा पद्धति
कितनी आसानी से एकमत हो गये
इन विवादित मुद्दों पर

मेरे आई. ऐ. एस. के सपने
तुम्हारे समाज सेवा के ख्वाब
बहस समाप्त होते होते
इस मुद्दे पर भी एकमत हो गये थे

याद है उन दिनों
दिन पंख लगा कर उड़ जाते थे
रात पलक झपकते बीत जाती थी
एस एम एस का लंबा सिलसिला
थमता नही था

गुलज़ार की नज़मों में जीने लगे थे हम

फिर वक़्त के थपेड़ों ने
हालात की खुरदरी सतह पर
जाने कब खड़ी कर दी
अहम की हल्की दीवार

हमारे बीच आ गया
ईगो का पतला आवरण
पता नहीं कब खिंच गयी हम दोनों के बीच
कभी न मिलने वाली दो समानांतर रेखाएं

मैं तो आज भी निरंतर दौड़ रहा हूँ
अपनी रेखा पर

सुना है समानांतर रेखाएं
अनंत पर जा कर मिल जाती हैं

75 टिप्‍पणियां:

  1. मैं तो आज भी निरंतर दौड़ रहा हूँ
    अपनी रेखा पर

    सुना है समानांतर रेखाएं
    अनंत पर जा कर मिल जाती हैं..

    बहुत सार्थक और भावपूर्ण प्रस्तुति...पता नहीं चलता संबंधों में कब रेखाएं खीच जाती हैं..अंतिम पंक्ति बहुत सुन्दर ...मिलन की एक आशा..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

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  2. khubsurat ji.....
    gehre bhaav prastut kiye aapne naasva ji,

    kunwar ji,

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  3. सुना है समानांतर रेखाएं
    अनंत पर जा कर मिल जाती हैं

    यह विश्वास ही दौड़ते रहने के लिए काफी है
    कविता के भाव बहुत ही जाने-पहचाने से लगे...

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  4. ये मिलने की चाह अंतहीन न हो जाए ......

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  5. Ahh ...mind blowing ...
    क्या प्रवाह है और क्या भाव..बहुत बहुत बढ़िया..

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  6. सुना है समानांतर रेखाएं
    अनंत पर जा कर मिल जाती हैं..
    kitne ashavan hai aap, badhai

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  7. हमारे बीच आ गया
    ईगो का पतला आवरण
    पता नहीं कब खिंच गयी हम दोनों के बीच
    कभी न मिलने वाली दो समानांतर रेखाएं


    हाँ यही तो जिन्दगी में विरोधाभास है ..पर दोनों साथ साथ रहते हैं ...एक के साथ दुसरे का अस्तित्व भी है ...वर्ना सब शून्य और इस शून्य पर आकर दो समानांतर चलने वाली रेखाएं भी मिल जाती हैं ...बहुत सुंदर

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  8. याद है उन दिनों
    दिन पंख लगा कर उड़ जाते थे
    रात पलक झपकते बीत जाती थी
    एस एम एस का लंबा सिलसिला
    थमता नही था

    गुलज़ार की नज़मों में जीने लगे थे हम
    ...

    फिर वक़्त के थपेड़ों ने
    हालात की खुरदरी सतह पर
    जाने कब खड़ी कर दी
    अहम की हल्की दीवार
    kyun ? kyun hum nazmon se alag aham me jeene lagte hain ...
    bahut achhi rachna

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  9. समय के साथ रिश्ते भी बदलते हैं ... सुन्दर रचना !

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  10. जरुर मिलेंगी यह रेखायें कहीं न कहीं.

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  11. फिर वक़्त के थपेड़ों ने
    हालात की खुरदरी सतह पर
    जाने कब खड़ी कर दी
    अहम की हल्की दीवार

    हमारे बीच आ गया
    ईगो का पतला आवरण
    पता नहीं कब खिंच गयी हम दोनों के बीच
    कभी न मिलने वाली दो समानांतर रेखाएं

    मैं तो आज भी निरंतर दौड़ रहा हूँ
    अपनी रेखा पर

    सुना है समानांतर रेखाएं
    अनंत पर जा कर मिल जाती हैं
    waah bahut khoob .is sundar rachna ke liye badhai .

    जवाब देंहटाएं
  12. 'सुना है सामानांतर रेखाएं

    अनंत पर जाकर मिल जाती हैं '

    भावपूर्ण ...सुन्दर रचना |

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  13. नासवा जी ,बहुत ख़ूबसूरत नज़्म है ,मैं कुछ पंक्तियां चुन नहीं पा रही हूं ,
    हर पंक्ति स्वयं अपनी पहचान करवा रही है ,
    बहुत सुंदर !
    बहुत बढ़िया और सच्ची भावाभिव्यक्ति !

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  14. फिर वक़्त के थपेड़ों ने
    हालात की खुरदरी सतह पर
    जाने कब खड़ी कर दी
    अहम की हल्की दीवार ..

    मैं तो आज भी निरंतर दौड़ रहा हूँ
    अपनी रेखा पर

    सुना है समानांतर रेखाएं
    अनंत पर जा कर मिल जाती हैं

    Bahut khoob, bahut sundar !

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत ही सुन्दर.....शुक्रिया

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  16. नासवा जी ,बहुत ही अच्छी कविता.
    वह समानांतर भी चलता रहे.
    यह भी तो कम नहीं.
    सलाम.

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  17. सुना है समानांतर रेखाएं
    अनंत पर जा कर मिल जाती हैं

    यह आशावादी विचार उत्तम है ।
    इगो ही मानव की शत्रु है ।
    सुन्दर सार्थक रचना भाई जी ।

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  18. ये रेखाएँ समानांतर समझ ली गई हैं, हैं नहीं। जो पीछे तो मिलती हैं, आगे दूर-दूर हो जाती हैं। कुछ कदम वापस चलो। मिल जाएँ तो वहां से साथ-साथ चला जा सकता है।

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  19. बहुत ही वेहतरीन रचना लिखी है आपने!
    सच ही कहा गया है-
    यहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि!

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  20. नासवा साहब...... बहुत ही भाव पूर्ण और सुंदर प्रस्तुति. .........

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  21. प्रतीकों और विम्बों में कही गई कविता विशेष प्रभाव छोड़ रही है... रेखाओं से जीवन दर्शन दे रही है कविता...

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  22. अहं सबसे बड़ी बाधा है दो रेखाओं के मिलन में।

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  23. अहम् की समान दूरी बनाकर चलने वाली रेखाएँ अनंत पर मिलती प्रतीत होती हैं, पर वहाँ एक और अनंत खड़ा होता है..
    बहुत ख़ूबसूरत भाव!!

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  24. उस अनंत के इंतजार में ही जीवन कटता है.... बेमिसाल रचना

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  25. सुना है समानांतर रेखाएं
    अनंत पर जा कर मिल जाती हैं
    बहुत से लोग इसी वहम मे जिन्दगी भर चलते रहते हे....
    बहुत सुंदर रचना जी धन्यवाद

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  26. प्रेम सारी असहमतियां मिटाता है और किंचित अप्रेम सहमतियों से फिसलन यानि कि समानांतर दौडाने की व्यवस्था करता है ! कविता के ख्याल से बस एक शब्द 'बेमिसाल' !

    इगो के सवाल पर द्विवेदी जी की राय नेक लग रही है :)

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  27. सुना है समानांतर रेखाएं
    अनंत पर जा कर मिल जाती हैं ...।

    भावमय करती यह पंक्तियां ...।

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  28. नासवाजी
    इस बार बहुत दिनों बाद आपको पढ़ा आज ही मै सोच रही थी और आपकी टिप्पणी मिली |
    सामानांतर रेखाओं के प्रतिक का बहुत खूबसूरत प्रयोग हुआ किया है आपने |
    मंजिल मिलने के बाद अपनों की ही तो याद आती है |

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  29. dharaprawah bhavmayi rachna ko mera salam....
    http://amrendra-shukla.blogspot.com

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  30. दृष्टिभ्रम मात्र है...दूर से देखने पर प्रतीत होता है कि सामानांतर रेखाएं मिल रही हैं...अनंत में भी सामानांतर रेखाएं कभी नहीं मिलतीं...हाँ यदि कहीं वे अपना पथ बदल एक दुसरे की ओर झुक जाएँ तो और बात है..

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  31. हमारे बीच आ गया
    ईगो का पतला आवरण
    पता नहीं कब खिंच गयी हम दोनों के बीच
    कभी न मिलने वाली दो समानांतर रेखाएं

    नसावा जी,
    अंदाज़े बयां कमाल का। प्यार के कई रंग रे,साथी रे!

    जवाब देंहटाएं
  32. हमारे बीच आ गया
    ईगो का पतला आवरण
    पता नहीं कब खिंच गयी हम दोनों के बीच
    कभी न मिलने वाली दो समानांतर रेखाएं

    सुना है समानांतर रेखाएं
    अनंत पर जा कर मिल जाती हैं



    Bahut khoob ....Rachna Bahut achhi lagi.


    Andaje vayan......Behad achha lagaa.

    जवाब देंहटाएं
  33. "पता नहीं कब खिंच गयी हम दोनों के बीच
    कभी न मिलने वाली दो समानांतर रेखाएं

    मैं तो आज भी निरंतर दौड़ रहा हूँ
    अपनी रेखा पर ..."

    बेहतरीन कविता है
    आभार

    शुभ कामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  34. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार ०५.०२.२०११ को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

    जवाब देंहटाएं
  35. हमारे बीच आ गया
    ईगो का पतला आवरण
    पता नहीं कब खिंच गयी हम दोनों के बीच
    कभी न मिलने वाली दो समानांतर रेखाएं
    मैं तो आज भी निरंतर दौड़ रहा हूँ
    अपनी रेखा पर
    सुना है समानांतर रेखाएं
    अनंत पर जा कर मिल जाती हैं
    ..सच में अनंत पर सबको एक हो जाना है! कुछ नहीं रह जाता हाथ में! फिर भी जाने किस बात का गुमाँ रहता हैं इंसान को!! एक छोटी सी आवरण रेखा कब दीवार बन सामने खड़ी हो जाती हैं..बेहद दुखप्रद स्थिति है यह सब.......
    गहरे भाव लिए आपकी रचना जीवन के उतार-चड़ाव के बीच झूलते डूबता इन्सान की दास्ताँ बयां कर मन आंदोलित करती हैं ..आभार

    जवाब देंहटाएं
  36. हमारे बीच आ गया
    ईगो का पतला आवरण
    पता नहीं कब खिंच गयी हम दोनों के बीच
    कभी न मिलने वाली दो समानांतर रेखाएं

    मैं तो आज भी निरंतर दौड़ रहा हूँ
    अपनी रेखा पर

    बड़ी सुन्दर भावपूर्ण रचना.
    अंतिम पंक्तियों में cilmax बहुत प्रभावी है.

    सुना है समानांतर रेखाएं
    अनंत पर जा कर मिल जाती हैं

    वाह वाह, क्या बात है, नासवा जी

    जवाब देंहटाएं
  37. हमारे बीच आ गया
    ईगो का पतला आवरण
    पता नहीं कब खिंच गयी हम दोनों के बीच
    कभी न मिलने वाली दो समानांतर रेखाएं

    मैं तो आज भी निरंतर दौड़ रहा हूँ
    अपनी रेखा पर

    सुना है समानांतर रेखाएं
    अनंत पर जा कर मिल जाती हैं .....

    हर शब्द में गहराई, .. सुंदर भावाभिव्यक्ति...सुंदर रचना के लिए साधुवाद, ढ़ेर सारी बधाईयाँ .

    जवाब देंहटाएं
  38. दिगम्बरजी,

    अपनी कुछ उधेडबुन में ऐसा फंसा हूं कि मन-मस्तिष्क इत्यादि सबकुछ मानों ठीट सा हो गया है। न पढना हो पा रहा है न लिखना..। कभी कुछ लिखता भी हूं तो न गहरे सोच पाता हूं, न गहरे उतर पाता हूं..पढने के लिये पर्याप्त समय भी मिल नहीं पाता। जीविकोपार्जन की समस्यायें व्यक्ति को काफी हद तक हिला दिया करती है। खैर...। बहुत दिनों बाद नहीं कहूंगा..आपके ब्लॉग पर आता हूं, पढता हूं किंतु टिप्पणी देने के लिये कुछ सूझता ही नहीं...।

    वैसे सच कहूं तो 'मुहब्बत' की 'समानांतर रेखायें' ही खींची हुई है, आप और मुझ में..। इसे कोई बेध या इसमें खलल नहीं डाल सकता...।
    जब मुद्दे अंतरराष्ट्रीय स्तर से होते हुए जीवन के क्षितिज पर जाकर मिलते हैं तो सुख की बयार तरोताजा कर दिया करती हैं..चाहे फिर हम यह सोचें कि 'पता नहीं कब खिंच गयी हम दोनों के बीच,
    कभी न मिलने वाली दो समानांतर रेखाएं" और अनंत पर मिलने का एक भरोसा तो है ही।
    हालात ठीक वैसे हैं जैसा आपका शे'र- "फटेहाल जेबों ने धीरे से बोला
    चलो आज कर लो उधारी मुहब्बत।"
    बहुत सुन्दर रचनायें हैं और अक्सर जीवन की नाजुक स्थितियों को बयां करती है...। मेरी पठन प्यास बुझाती रही हैं आपकी रचनायें।


    -शेष संघर्ष है..कुशल पूर्वक, मुझे आप याद करते रहते हैं यह जानकर..सूकुन मिलता है.., ऐसे समय जब जीवन रेगिस्तान से होकर गुजर रहा हो..।

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  39. नासवा जी बहुत सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया आपने जीवन दर्शन. बहुत सुंदर कविता के माध्यम से. बधाईयां.

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  40. बहुत सारे भाव समेटे हैं आपकी रचना ने...
    इगो बहुत ख़राब होता है... सतीष सक्सेना जी की एक पोस्ट याद आ गयी जिसमें conversation की महत्वता बताई गयी थी...
    नियमों के अनुसार सामानांतर रेखाएं कभी नहीं मिलतीं परन्तु इंसानी प्रकृति में नियम-कानून कुछ अलग होते हैं...

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  41. पता नहीं कब खिंच गयी हम दोनों के बीच
    कभी न मिलने वाली दो समानांतर रेखाएं
    मैं तो आज भी निरंतर दौड़ रहा हूँ
    अपनी रेखा पर
    सुना है समानांतर रेखाएं
    अनंत पर जा कर मिल जाती हैं

    वाह, नासवा जी, वाह..क्या खूब लिखा है आपने।
    गणित से बिम्ब लेकर काव्य में अनूठा प्रयोग।
    ऐसी सुंदर कल्पना सब के बस की नहीं।

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  42. समानांतर रेखाएं कभी नहीं मिलतीं |अच्छी मन को छूती रचना |बधाई
    आशा

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  43. puri ki puri kavita hamesha ki tarah lajawaab. aur kavita ka end bahut hi prabhaavshali ban gaya hai.

    badhayi.

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  44. याद है उन दिनों
    दिन पंख लगा कर उड़ जाते थे
    रात पलक झपकते बीत जाती थी
    एस एम एस का लंबा सिलसिला
    थमता नही था

    गुलज़ार की नज़मों में जीने लगे थे हम ....
    .क्या खूब लिखा है आपने।.
    बेहतरीन भावपूर्ण रचना के लिए बधाई।

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  45. हमारे बीच आ गया
    ईगो का पतला आवरण
    पता नहीं कब खिंच गयी हम दोनों के बीच
    कभी न मिलने वाली दो समानांतर रेखाएं

    मैं तो आज भी निरंतर दौड़ रहा हूँ
    अपनी रेखा पर

    सुना है समानांतर रेखाएं
    अनंत पर जा कर मिल जाती हैं
    क्या कहूं दिगम्बर जी. तारीफ़ के लिये श्ब्द नहीं हैं मेरे पास, सचमुच.

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  46. बहुत ही भाव पूर्ण और सुंदर प्रस्तुति|ढ़ेर सारी बधाईयाँ |

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  47. ये तो कयामत तक इन्तजार वाली बात हो गयी..

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  48. Dua karti hun ki wo din aaye aur ye do samantar rekhayen mil jayen!

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  49. एक वो भी ज़माना था! वैसे साथ-साथ (समांतर) चल पाना भी बडी तपस्या है।

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  50. क्या खूब लिखा है आपने।.
    तारीफ़ के लिये श्ब्द नहीं हैं मेरे पास,
    बेहतरीन भावपूर्ण रचना के लिए बधाई।

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  51. वसंत पंचमी की ढेरो शुभकामनाए

    कुछ दिनों से बाहर होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
    माफ़ी चाहता हूँ

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  52. प्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति. मेरी बधाई स्वीकारें- अवनीश सिंह चौहान

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  53. बहुत सुन्दर कविता भाई दिगंबर नासवा जी आपको कविता और बसंत दोनों के लिए बधाई |

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  54. मैं तो आज भी निरंतर दौड़ रहा हूँ
    अपनी रेखा पर

    सुना है समानांतर रेखाएं
    अनंत पर जा कर मिल जाती हैं

    खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    आप को वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
    सादर,
    डोरोथी.

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  55. सुना है समानांतर रेखाएं
    अनंत पर जा कर मिल जाती हैं ...........
    i hope aisa hota hai.........

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  56. सुना है समानांतर रेखाएं
    अनंत पर जा कर मिल जाती हैं............. वाह बहुत खूब कहा आपने.

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  57. बहुत खूब .....!शायद यही जीवन है ...
    शुभकामनायें !

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  58. आद.दिगंबर जी,
    अभिव्यक्ति की गहराई में जीवन के साँसों की अनुगूँज साफ़ सुनाई देती है !
    जीवन की समानांतर रेखाएं अगर विश्वास भरे उम्मीद के साथ चलें तो मिलना निश्चित है

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  59. सामानांतर रेखाए मिलेगी तो अनंत पर ही लेकिन अनंत असीम का इन्तजार दुर्भेद्य .सुन्दर रचना .

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  60. आपके ब्लॉग पर आ कर हमेशा की तरह एक खूबसूरत रचना से मुलाकात हुई । ये अहम ही तो है हमें झुकने नही देता वरना तो चीजें कितनी आसान हो जातीं, पर फिर भी अनंत में मिलने की आस तो है ।

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  61. एक मत हो गये है सब जैसे स्वयं का वेतन भत्ता बढाने पर पक्ष विपक्ष के सांसद सब एक मत हो जाते हेै

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है