स्वप्न मेरे: माँ का साया ...

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

माँ का साया ...


धूप तब भी नहीं चुभी 
की साया था तेरी घनी छाँव का 
मेरे आसमान पर  

ओर धूप तेरे जाने के बाद भी नहीं चुभी 
की तेरी यादों की धुंध   
बादलों की घनी छाँव बन के 
डटी रही सूरज के आगे   

जानता हूं 
समय की बेलगाम रफ़्तार ने 
सांसों के प्रवाह से 
तुझे मुक्त कर दिया   

पर मेरे वजूद में शामिल तेरा अंश 

मेरे रहते 
आसान तो न होगा 
उसे मुक्त करना ...    

79 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया -
    माँ रोम रोम में -

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  2. असंभव - अंश कभी नहीं मिट सकता

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  3. जानता हूं
    समय की बेलगाम रफ़्तार ने
    सांसों के प्रवाह से
    तुझे मुक्त कर दिया

    पर मेरे वजूद में शामिल तेरा अंश

    मेरे रहते
    आसान तो न होगा
    उसे मुक्त करना
    बिलकुल सच कहा अपने - समय को मात देती रचना:
    New post बिल पास हो गया
    New postअनुभूति : चाल,चलन,चरित्र

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  4. पर मेरे वजूद में शामिल तेरा अंश

    मेरे रहते
    आसान तो न होगा
    उसे मुक्त करना ...

    वजूद वजूद से कैसे जुदा हो सकता है वो तो साँसें रहते तक साथ ही रहता है

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  5. उम्मीद करते है की धुप आगे भे न चुभेगी क्योंकि मा का आशीर्वाद हमेशा साथ जो रहता है !

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  6. यादें भी क्या चीज है,बहुत ही सुन्दर

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  7. माता के ऋण से कोई भी उऋण नहीं हो सकता!
    सुन्दर और सार्थक लेखन!

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  8. जानता हूं
    समय की बेलगाम रफ़्तार ने
    सांसों के प्रवाह से
    तुझे मुक्त कर दिया

    पर मेरे वजूद में शामिल तेरा अंश

    मेरे रहते
    आसान तो न होगा
    उसे मुक्त करना ...

    अति सुंदर।।।

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  9. हाँ मैं मानता हूँ और अच्छी तरह से जानता हूँ वही अंश तो तेरा साया है .शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी के लिए .आपकी टिपण्णी हमारी उत्प्रेरक बनती है .

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  10. जानती हूँ ये महज कविता नहीं.....

    भावनाओं पर क्या टिप्पणी करूँ..
    सादर
    अनु

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  11. तभी तो बच्चे माँ के कलेजे के टुकड़े कहलाते हैं... नामुमकिन है, अपने वजूद में शामिल उसके अंश को मुक्त कर पाना..

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  12. मां तो मां ही है. शब्दों में प्यार उतर आया है.

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  13. हम जाते कहाँ हैं? पुश्त दर पुश्त अपने में जाते रहते हैं कितनी पीढ़ियाँ धड़क रही हैं हमें। माँ इतनी अभिन्न होती हैं हमसे सदा हमारे साथ रहती हैं हममें भौतिक रूप से और यादों में आत्मा के सूक्ष्म अंश के रूप में

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  14. माँ

    हर पल औलाद के खातिर दुआ करती है माँ,
    और माँ होने का हक ऐसे अदा करती है माँ!

    जिंदगी की धूप में खुद को खड़ा करती है वो,
    और बच्चों के लिये साया घना करती है माँ!

    घर में बूढ़े बाप से अक्सर उलझ जाती है वो,
    लड़कर भी बेटों के हक् में फैसला कराती माँ!

    जब तलक बाहर से बेटा लौट कर आता नही,
    आँख चौखट पर लगाए जगा करती है वो माँ!

    उम्र काफी हो चली मेरी याद आती है मेंरी माँ,
    आज भी नजरें उतारती"धीर"की होती जो माँ!


    RECENT POST बदनसीबी,

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  15. jo wazood ka hissa ho use kaise bhulaya jaa sakta hai..

    har pal /har kshn uske paas hone ka ahsaas rahega.

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  16. ओर धूप तेरे जाने के बाद भी नहीं चुभी
    की तेरी यादों की धुंध
    बादलों की घनी छाँव बन के
    डटी रही सूरज के आगे

    बहुत सुन्दर भाव

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  17. समय की बेलगाम रफ़्तार ने
    सांसों के प्रवाह से
    तुझे मुक्त कर दिया

    पर मेरे वजूद में शामिल तेरा अंश

    मेरे रहते
    आसान तो न होगा
    उसे मुक्त करना ...

    मां हमेशा हमारे साथ ही होती है ...
    आपकी रचना भाव-विह्वल कर रही है ...

    आदरणीय भाई दिगम्बर नासवा जी
    सितंबर-अक्तूबर-नवंबर में आपके ब्लॉग के कई चक्कर लगाता रहा ...
    फिर कुछ अव्यवस्थाओं के चलते , नेट की समस्या के कारण आपके यहां बहुत विलंब से पहुंच पाया ...
    पिछली तमाम पोस्ट्स पढ़ कर ... आपकी माता जी के स्वर्गवास के बारे में जान कर मन भर आया ... अश्रुपूरित श्रद्धांजलि !
    परमपिता परमात्मा आप अब को यह अपूरणीय क्षति और आघात सहने की सामर्थ्य दे ...
    भाईजी स्वयं को सम्हालें , सबको एक दिन चले ही जाना है ...
    आप इस मनःस्थिति से उबरने का यत्न करें , कृपया !


    राजेन्द्र स्वर्णकार

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  18. माँ को नमन !

    ब्लॉग बुलेटिन: ताकि आपकी गैस न निकले - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  19. ...माँ की जगह कोई नही ले सकता...बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

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  20. ओर धूप तेरे जाने के बाद भी नहीं चुभी
    की तेरी यादों की धुंध
    बादलों की घनी छाँव बन के
    डटी रही सूरज के आगे

    बेहद खूबसूरत

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  21. ओर धूप तेरे जाने के बाद भी नहीं चुभी
    की तेरी यादों की धुंध
    बादलों की घनी छाँव बन के
    डटी रही सूरज के आगे

    मन यादों से कभी मुक्त नहीं होगा ...

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  22. हाँ! कुछ ऐसी भी बातें होती है जिसे असंभव कहा जता है ..आखिरी सांस तक..

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  23. पर मेरे वजूद में शामिल तेरा अंश

    मेरे रहते
    आसान तो न होगा
    उसे मुक्त करना ...
    बहुत मार्मिक पंक्तियाँ है !

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  24. मां से लगाव
    की आपकी गति

    सचमुच यही जीवन की सद्गति

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  25. शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .

    तुझे ढूंढते नैन बाँवरे ,

    तू है नैनों की परिभाषा .

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  26. ओर धूप तेरे जाने के बाद भी नहीं चुभी
    की तेरी यादों की धुंध
    बादलों की घनी छाँव बन के
    डटी रही सूरज के आगे

    बेहद खूबसूरत ....माँ की जगह कोई नही ले सकता....... नासवा जी

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  27. ममतामयी आँचल की छाया सी कविता .

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  28. ओर धूप तेरे जाने के बाद भी नहीं चुभी
    की तेरी यादों की धुंध
    बादलों की घनी छाँव बन के
    डटी रही सूरज के आगे khuubsurat panktiya

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  29. माघ, मूसलाधार, मैं पोस्‍ट पर आपकी महत्‍वपूर्ण टिप्‍पणी स्‍पैम में चली गई। ऐसा जुल्‍म न करें।

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  30. पर मेरे वजूद में शामिल तेरा अंश
    मेरे रहते
    आसान तो न होगा
    उसे मुक्त करना ...

    बहुत बहुत बहुत ही खूबसूरत एवं भावपूर्ण रचना ! शरीर का रोम रोम माँ का ही अंश तो है उसे अपने से दूर करना कभी संभव ही नहीं ! बहुत उम्दा प्रस्तुति !

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  31. मेरे रहते
    आसान तो न होगा
    उसे मुक्त करना ...
    भावमय करते शब्‍द ... मन को छूती पोस्‍ट

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  32. माता के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पण करने का बेहतरीन प्रयास ,माँ के मातृत्व का पावन सानिध्य परोक्ष रूप से आज भी आप के साथ है ,अच्छी रचना के लिए साधुवाद

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  33. शुक्रिया भाई साहब आपकी जनउपयोगी टिपण्णी का .

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  34. गहन एवं मर्मस्पर्शी ...बहुत सुंदर रचना ....

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  35. धूप तब भी नहीं चुभी
    की साया था तेरी घनी छाँव का
    मेरे आसमान पर.

    गहरे भाव लिए रचना.

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  36. माँ की ममता की छांव सदा ऐसे ही रंग दिखलाती है ....

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  37. बहुत भावपूर्ण गहन शब्द वाह शानदार रचना हार्दिक बधाई

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  38. सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति

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  39. मर्मस्पर्शी रचना! हमारे अपने हमें कभी नहीं छोड़ते, अशरीरी रूप मे भी सदा साथ रहते हैं।

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  40. आज तलक वह मद्धम स्वर
    कुछ याद दिलाये, कानों में !
    मीठी मीठी धुन लोरी की ,
    आज भी आये , कानों में !
    आज मुझे जब नींद न आये,कौन सुनाये आ के गीत ?
    काश कहीं से,मना के लायें,मेरी माँ को, मेरे गीत !

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  41. पर मेरे वजूद में शामिल तेरा अंश
    मेरे रहते
    आसान तो न होगा.....वाह बहुत शानदार भाव पिरोये हैं आपने रचना मे।

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  42. शुक्रिया आपकी टिपण्णी के लिए .हमारी महत्वपूर्ण धरोहर बन जातीं हैं आपकी टिप्पणियाँ .उत्प्रेरक का काम करतीं हैं आपकी टिप्पणियाँ .नव सृजन की आंच बनतीं हैं .

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  43. माँ पर लिखी सुन्दर कविता |माँ का चरित्र ही किसी अच्छी कविता से भी उपर होता है बहुत उपर |आभार

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  44. बेहद खूबसूरत ....
    http://ehsaasmere.blogspot.in/2013/02/blog-post_11.html

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  45. लाजवाब अभिव्यक्ति ...

    हर पंक्ति, हर शब्द बेजोड़
    बहुत खूब ..

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  46. शुक्रिया भाई जान आपकी सद्य टिपण्णी का .

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  47. बहुत ही खूबसूरत लिखा है बॉस....सांसों की डोर टूट सकती है पर जो अंदर रक्त मज्जा में बसा है उसे कौन अलग कर सकता है हमसे। मां पिता इसी तरह होते हैं आप उन्हें नश्वर संसार में देख नहीं सकते पर अपने अंदर अपनी रगों में हर वक्त हर अच्छे बुरे काम को करते वक्त महसूस जरुर करत हैं।

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  48. bahut sundar rachna hai, maa ka sath duniya ka sabse behtar aur surakshit saath hai, maa ki jagah koi nahi le sakta...aap pi kavitaon me maa ke liye itna sthaan dekhkar achhchha lagta hai!

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  49. मुबारक बाद. ऐसे ही लिखते रहें .

    बहुत सुन्दर और मर्मिक.

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  50. माँ पर आपकी रचनाएँ यूं ही पढने को मिलती रहे ..यही शुभकामनाएं हैं

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है