स्वप्न मेरे: जनवरी 2014

सोमवार, 27 जनवरी 2014

मेरा हर लफ्ज़ मेरे नाम की तस्वीर हो जाए ...

इकट्ठा हो गए हैं लोग तो तक़रीर हो जाए
करो इतनी मेहरबानी जुबां शमशीर हो जाए

जो दिल की आग है इतना जले की रौशनी बनके
मेरा चेहरा मेरे ज़ज़्बात की तहरीर हो जाए

सभी के हाथ में होती है किस्मत की भी इक रेखा
जो किस्मत में नहीं क्यों चाहते जागीर हो जाए

इनायत हो तेरी मुझको सिफत इतनी अता कर दे
लिखूँ जो हूबहू वैसी मेरी तकदीर हो जाए

कहाँ बनते हैं राँझा आज के इस दौर में आशिक
मगर सब चाहते माशूक उनकी हीर हो जाए

गज़ल कहता हूँ पर मेरे खुदा इतनी इनायत कर
मेरा हर लफ्ज़ मेरे नाम की तस्वीर हो जाए

सोमवार, 20 जनवरी 2014

कायनात का ये कौन चित्रकार है ...

इक हसीन हादसे का वो शिकार है
कह रहे हैं लोग सब की वो बीमार है

शाल ओढ़ के ज़मीं पे चाँद आ गया
आज हुस्न पे तेरे गज़ब निखार है

जल तरंग बज रही है खिल रही हिना
वादियों में गुनगुना रहा ये प्यार है

चाँद की शरारतों का हो रहा असर
बिन पिए नशा है छा रहा ख़ुमार है

तू ही तू है, तू ही तू है, तू ही हर कहीं
जिस्मों जाँ पे अब तेरा ही इख्तियार है

हर कली, नदी, फिजाँ, बहार कह रही
कायनात का ये कौन चित्रकार है 

सोमवार, 13 जनवरी 2014

होता है डूबते को, तिनके का ही सहारा ...

मौका नहीं है देती, ये ज़िंदगी दुबारा
जो चल पड़े सफर पे, उनको मिला किनारा

ज्ञानी हकीम सूफी, सब कह गए हकीकत
सपनों से उम्र भर फिर, होता नहीं गुज़ारा

देती है साथ तब तक, जब तक ये रौशनी है
परछाई कह रही है, समझो ज़रा इशारा

तिनका उछाल देना, जो बस में है तुम्हारे
होता है डूबते को, तिनके का ही सहारा

बापू हैं याद आते, हैरत में हों कभी तो
मुश्किल जो सामने हो, बस माँ को ही पुकारा

बचपन के चंद किस्से, बाकी थे बस ज़हन में
गुज़रे हुए समय को, कागज़ पे जब उतारा  

सोमवार, 6 जनवरी 2014

सिर किसी की आँख फोड़ कर गया ...

राह में चिराग छोड़ कर गया
जो हवा के रुख को मोड़ कर गया

क्योंकि तय है आज रात का मिलन
जुगनुओं के पँख तोड़ कर गया

बेलगाम भीड़ का वो अंग था
सिर किसी की आँख फोड़ कर गया

जुड़ नहीं सका किसी की प्रीत में
दिल से दर्द जो निचोड़ कर गया

गुनगुना रहें हैं उसके गीत सब
जो ज़मीं से साथ जोड़ कर गया

मखमली लिबास में वो तंग था
सूत का कफ़न जो ओढ़ कर गया