स्वप्न मेरे: कुछ एहसास ...

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

कुछ एहसास ...

खुद से बातें करते हुए कई बार सोचा प्रेम क्या है ... अंजान पगडंडी पे हाथों में हाथ डाले यूँ ही चलते रहना ... या किसी खूबसूरत बे-शक्ल के साथ कल्पना की लंबी उड़ान पे सात समुंदर पार निकल जाना ... किसी शांत नदी के मुहाने कस के इक दूजे का हाथ थामे सूरज को धीरे धीरे पानी में पिघलते देखना ... या बिना कुछ कहे इक दूजे के हर दर्द को हँसते हुए पी लेना ... बिना आवाज़ कभी उस जगह पे खड़े मिलना जहाँ शिद्दत से किसी के साथ की ज़रूरत हो ... कुछ ऐसे ही तो था अपना रिश्ता जहाँ ये समझने की चाहत नहीं थी की प्रेम क्या है ...

लिख तो लेता कितने ही ग्रन्थ
जो महसूस कर पाता कुछ दिन का तेरा जाना

कह देता कविता हर रोज़ तुझ पर
जो सोच पाता खुद को तेरे से अलग

शब्द उग आते अपने आप
जो गूंजती न होती तेरी जादुई आवाज़
मेरे एहसास के इर्द-गिर्द

तुम पूछती हो हर बार
क्यों नहीं लिखी कविता मेरे पे, बस मेरे पे

चलो आज लिख देता हूँ वो कविता
बंद करके अपनी आखें, देखो मन की आँखों से मेरी ओर
और पढ़ लो ज़िंदगी की सजीव कविता
तुम्हारी और मेरी सम्पूर्ण कविता

सुनो ...
अब न कहना तुम पे कविता नहीं लिखता

10 टिप्‍पणियां:

  1. जिस पर लिखी गई है ये कविता
    वो भाग्यवान है

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  2. जब शब्द भाव वहन करने में सक्षम हो जाते हैं, स्वत बहने लगते हैं।

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  3. सच तो यह शायद प्रेम की अपनी कोई परिभाषा ही नहीं होती। यह सिर्फ एक एहसास है जिसे केवल महसूस किया जा सकता है मगर शब्दों में कभी लिखा या बताया नहीं जा सकता। नहीं ? प्रेम के कोमल भाव लिए बहुत ही सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।

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  4. बहुत सुंदर कविता !
    जो लिखा न जाये कहा न जाये शब्दों में वही तो बहुमूल्य है..जो सदा आसपास हो जो हर वक्त छाया मन में बन कर उल्लास हो..

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  5. इससे बढ़कर,
    इससे सुन्दर,
    इससे सच्ची कोई कविता नहीं होगी

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  6. एकदम साहित्यिक, आध्‍यात्मिक प्रेमाभिव्‍यक्ति के उद्गार प्रस्‍तुत किए हैं।

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (08-02-2014) को "विध्वंसों के बाद नया निर्माण सामने आता" (चर्चा मंच-1517) पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  8. भाव लिखने की जरुरत नहीं यदि एक दूजे के मन को पढ़ लिया जाए
    बेहद सुन्दर !
    सादर !

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है