स्वप्न मेरे: मौन ...

मंगलवार, 1 अप्रैल 2014

मौन ...

मौन क्या है ... दूरियाँ पाटने वाला संवाद या समय के साथ चौड़ी होती खाई ... और संवाद ... वो क्या है ... महज़ एक वार्तालाप ... समझने समझाने का माध्यम ... या आने वाले सन्नाटे की और बढता एक कदम ... शायद अती में होने वाली हर स्थिति की तरह मौन और संवाद की सीमा भी ज़रूरी है वर्ना गिट भर की दूरी उम्र भर के फाँसले से भी तय नहीं हो पाती ...

चादर तान के नींद का बहाना ...

तुम भी तो यही कर रही थीं

छै बाई छै के बिस्तर के बीच मीलों लंबी सड़क
मिलते भी तो कैसे
उलटे पाँव चलना आसान कहाँ होता है

कभी कभी मौन गहरे से गहरा खड्डा भर देता है
पर जब संवाद तोड़ रहा हो दरवाज़े
पड़ोस कि खिड़कियाँ
तो शब्द वापस नहीं लौटते

सर पे चोट लगनी ज़रूरी होती है
हवा में तैरते लम्हे दफ़न करने के लिए
और सच पूछो तो ये चोट
खुद ही मारनी होती है अपने सर

ज़िंदगी बर्फ नहीं होती कि पिघली और खत्म
अपने अपने शून्य के तापमान से
खुद ही बाहर आना होता है ...

मौन की गहरी खाई
आपस के संवाद से ही पाटनी पड़ती है ...

16 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते भैया ....बहुत खुबसुरत रचना ..सही कहें आप आपसी संवाद से खाई पाटनी होती है

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  2. कभी कभी मौन गहरे से गहरा खड्डा भर देता है
    पर जब संवाद तोड़ रहा हो दरवाज़े
    पड़ोस कि खिड़कियाँ
    तो शब्द वापस नहीं लौटते......
    बहुत खुब ...

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  3. 'तुम भी तो यही कर रही थीं'
    इसका तो यही संभाव्य उत्तर लगता है,'फिर क्या करती?और तो मैं कुछ कर नहीं पाती...'

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  4. मौन की गहरी खाई
    आपस के संवाद से ही पाटनी पड़ती है ...
    बहुत सुन्दर रचना.
    नई पोस्ट : हंसती है चांदनी

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  5. तू मै से परे
    मौन भी तो
    मधुर क्षण है !
    सार्थक रचना !

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  6. मौन को संवाद से तोडा जा सकता है. बहुत सुंदर रचना.मौन का एक और पहलू है जब आत्मिक प्यार होता है तो मौन ही संवाद हो जाता है.

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  7. ----शायद अति में होने वाली हर स्थिति की तरह मौंन की सीमा भी जरूरी है---
    जिंदगी बर्फ़ नहीं होती कि पिघली और खत्म---खुद ही बाहर आना होता है--
    बहुत ही गहन अभिव्यक्ति,कुछ पंक्तियां---अपनी पछाइयां सी छोडती नजर आतीं हैं.

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  8. इतना आसान भी कहाँ होता है मौन तोड़ पाना.

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  9. अपने अपने शून्य के तापमान से
    खुद ही बाहर आना होता है ...
    क्या खूबसूरत गढ़ा है आपने
    ऐसी अभिव्यक्ति जो बरबस ही घर कर गयी!

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  10. ज़िंदगी बर्फ नहीं होती कि पिघली और खत्म
    अपने अपने शून्य के तापमान से
    खुद ही बाहर आना होता है
    संवाद भी इतना आसान कहाँ है मौन की गहरी खाई को पाटने को.बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  11. ओह। ………… गहरी संवेदना समेटे है आपकी ये रचना।

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  12. जब साथ-साथ चलते हुये सिर्फ पास-पास रह जाते हैं तो पसर जाता है मौन एक क़फन की तरह!
    हर बार की तरह एक सहज और सार्थक अभिव्यक्ति!!

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  13. मौन में अपने भीतर अपने अपने संवाद होते हैं और उन संवादों को जब तक बाहर न निकालें पिघलते नहीं . सार्थक अभिव्यक्ति .

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  14. कभी कभी मौन तोड़कर बाहर आना भी ज़रूरी हो जाता है वरना हमेशा के लिए शून्य डिग्री में बर्फ की तरह जड़ होकर रहजाना भी ज़िंदगी नहीं होती।

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  15. हाँ तोड़ता ज़रूर है मौन। लेकिन संवाद कायम करके इसे भरना क्या हरेक के साथ ज़रूरी है या फिर ये चंद रिश्तों के लिए ही महदूद रखा जाए।

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  16. शुक्रिया नासवा साहब आपकी टिप्पणियों का।

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