स्वप्न मेरे: ख़बरें परोसता हुआ अखबार मैं नहीं ...

मंगलवार, 9 सितंबर 2014

ख़बरें परोसता हुआ अखबार मैं नहीं ...

शामिल हूँ खेल में अभी बीमार मैं नहीं
हारा अनेक बार पर इस बार मैं नही

माना हजूम है तो क्या कुछ कायदे तो हैं
झंडा भले है हाथ में सरदार मैं नहीं

हूँ आज भी टिका हुआ सच के ही जोर पर
ख़बरें परोसता हुआ अखबार मैं नहीं

माना ये ज़िंदगी, ख़ुशी, ये गम तुझी से है
ये दोस्ती ही है तुम्हारा प्यार मैं नहीं

खुद चल के ही मुकाम पाना चाहता हूँ मैं
घुटनों में दर्द है तो क्या लाचार मैं नहीं

सीने में दर्द है तो है, रोने में हर्ज क्या
चुपचाप गम को सह सकूँ किरदार मैं नहीं

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