स्वप्न मेरे: हैंग-ओवर ...

रविवार, 15 मार्च 2015

हैंग-ओवर ...

अजीब बिमारी है प्रेम ... न लगे तो छटपटाता है दिल ... लग जाये तो ठीक होने का मन नहीं करता ... समुंदर जिसमें बस तैरते रहो ... आग जिसमें जलते रहो ... शराब जिसको बस पीते रहो ...

आँखों के काले पपोटों के सामने
टांग दिए तेरी यादों के झक्क काले पर्दे
बंद कर दिए इन्द्रियों के सभी रास्ते
जेब कर दिए तुझे छूने वाले दो खुरदरे हाथ

कि नहीं मिलना ज़िन्दगी की धूप से
चमक में जिसकी नज़र न आए तेरा अक्स
कि नहीं सुनना वो सच
जो होता है दरअसल सबसे बड़ा झूठ, तेरे ज़िक्र के बिना
नहीं छूनी हर वो शै, जिसमें तेरा एहसास न हो

हाँ खींचना चाहता हूँ तुझे हर काश के साथ
की रह सके देर तक तू
फेफड़ों में मेरे दिल के बहुत करीब

पीना चाहता हूँ तुझे टल्ली हो जाने तक
की उतरे न नशा सुबह होने तक

कि चाहता हूँ रहना
तेरे ख़्वाबों के हैंग-ओवर में उम्र भर 

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