tag:blogger.com,1999:blog-1407525739260276743.post2142096008450946098..comments2024-03-28T14:28:13.874+05:30Comments on स्वप्न मेरे: लुट गए हैं रंग सारी कायनात केदिगम्बर नासवाhttp://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-1407525739260276743.post-58551417881666863762008-10-13T13:59:00.000+05:302008-10-13T13:59:00.000+05:30योगेन्द्र जी आप का मार्गदर्शन मिलता रहेगा सुधार तो...योगेन्द्र जी <BR/>आप का मार्गदर्शन मिलता रहेगा <BR/>सुधार तो स्वयं ही होता रहेगा <BR/><BR/>आप भी हरियाणा से और मैं भी हरियाणा से <BR/>(मूल रूप से मैं फरीदाबाद का निवासी हूँ)<BR/>आप का अधिकार तो सहज ही बनता है<BR/><BR/>आगे भी स्नेह-वर्षा करते रहेंदिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1407525739260276743.post-54433812830214208062008-10-12T21:34:00.000+05:302008-10-12T21:34:00.000+05:30बहुत ही बढिया रचना लिखी है।बधाई स्वीकारें।क दिन मै...बहुत ही बढिया रचना लिखी है।बधाई स्वीकारें।<BR/><BR/>क दिन मैं तुझको आईना दिखला दूँगा<BR/>तोड़ कर दीवारों दर इस हवालात के<BR/><BR/>लहू तो बस लाल रंग का हि गिरेगा<BR/>पत्थर संभालो दोस्तों तुम अपने हाथ के<BR/><BR/>है सोचने पर भी यहाँ पहरा लगा हुआ<BR/>पंछी उड़ाते रह गया मैं ख़यालात के<BR/><BR/>फ़िर नए इक हादसे का इंतज़ार<BR/>पन्ने पलटते रह गया अख़बार केपरमजीत सिहँ बालीhttps://www.blogger.com/profile/01811121663402170102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1407525739260276743.post-4161569969833422162008-10-12T21:22:00.000+05:302008-10-12T21:22:00.000+05:30दिगंबर जी बहुत सरल और भावपूर्ण ग़ज़ल आनंदाप्रदायान...दिगंबर जी बहुत सरल और भावपूर्ण ग़ज़ल आनंदाप्रदायानी बहुत बधिय्या आपके मेरे ब्लॉग पर पधारने हेतु बहुत धन्यबादप्रदीप मानोरियाhttps://www.blogger.com/profile/07696747698463381865noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1407525739260276743.post-76753512039881844992008-10-12T20:54:00.001+05:302008-10-12T20:54:00.001+05:30इससे पहले वाली आपकी गज़ल पढ़ीवह गज़ल नहीं हैपर थोड...इससे पहले वाली आपकी गज़ल पढ़ी<BR/>वह गज़ल नहीं है<BR/>पर थोड़े से ध्यान से उसे गज़ल बनाया जा सकता है<BR/>आप अपनी पंक्तियां और मेरी पंक्तियां समक्ष रख कर स्वयं जांचे<BR/>आपको अच्छी लगे तो ठीक वरना मुझे क्षमा करें<BR/><BR/>नोट करें<BR/><BR/>आ लौटें बचपन में<BR/>क्या रक्खा यौवन में<BR/><BR/>खेल है दो सांसों का<BR/>पांच तत्व इस तन में<BR/><BR/>लोरी कंचे अर लट्टू<BR/>बचपन धड़के मन में<BR/><BR/>रात का आंचल उतरा<BR/>धीरे से आंगन में<BR/><BR/>घड़ी की टिकटिक जैसी<BR/>धड़कन है धड़कन में<BR/><BR/>रुत बरखा की आई<BR/>हम प्यासे सावन में<BR/><BR/>चुपके-चुपके रोये<BR/>जख्म रिसे जब मन में<BR/><BR/>थे सारे संगी-साथी<BR/>कौन बसा जीवन में<BR/><BR/>तेरा-मेरा जीवन<BR/>है सांसों के बंधन में<BR/><BR/>मौत झटक कर आया<BR/>वो तेरे आंगन में<BR/><BR/>सपने तुम्हें खलेंगें<BR/>मत खेलो मधुबन में<BR/><BR/>ये अंतिम सफर दिगम्बर<BR/>है मिट्टी या चंदन में<BR/><BR/>बंधुवर<BR/>शब्द आपके हैं प्रयास आपका है<BR/>मैंने सिर्फ रास्ते की तरफ इशारा भर किया है<BR/>इस गज़ल में यदि छूट होती तो बहुत बेहतर शेर निकल सकते थे<BR/>आप विचार करें<BR/>शेष शुभ<BR/>अन्यथा न लें<BR/>आपके उत्तर की प्रतीक्षा रहेगीयोगेन्द्र मौदगिलhttps://www.blogger.com/profile/14778289379036332242noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1407525739260276743.post-68766015439595504182008-10-12T20:54:00.000+05:302008-10-12T20:54:00.000+05:30इससे पहले वाली आपकी गज़ल पढ़ीवह गज़ल नहीं हैपर थोड...इससे पहले वाली आपकी गज़ल पढ़ी<BR/>वह गज़ल नहीं है<BR/>पर थोड़े से ध्यान से उसे गज़ल बनाया जा सकता है<BR/>आप अपनी पंक्तियां और मेरी पंक्तियां समक्ष रख कर स्वयं जांचे<BR/>आपको अच्छी लगे तो ठीक वरना मुझे क्षमा करें<BR/><BR/>नोट करें<BR/><BR/>आ लौटें बचपन में<BR/>क्या रक्खा यौवन में<BR/><BR/>खेल है दो सांसों का<BR/>पांच तत्व इस तन में<BR/><BR/>लोरी कंचे अर लट्टू<BR/>बचपन धड़के मन में<BR/><BR/>रात का आंचल उतरा<BR/>धीरे से आंगन में<BR/><BR/>घड़ी की टिकटिक जैसी<BR/>धड़कन है धड़कन में<BR/><BR/>रुत बरखा की आई<BR/>हम प्यासे सावन में<BR/><BR/>चुपके-चुपके रोये<BR/>जख्म रिसे जब मन में<BR/><BR/>थे सारे संगी-साथी<BR/>कौन बसा जीवन में<BR/><BR/>तेरा-मेरा जीवन<BR/>है सांसों के बंधन में<BR/><BR/>मौत झटक कर आया<BR/>वो तेरे आंगन में<BR/><BR/>सपने तुम्हें खलेंगें<BR/>मत खेलो मधुबन में<BR/><BR/>ये अंतिम सफर 'दिगम्बर'<BR/>है मिट्टी या चंदन में<BR/><BR/>बंधुवर<BR/>शब्द आपके हैं, प्रयास आपका है.<BR/>मैंने सिर्फ रास्ते की तरफ इशारा भर किया है<BR/>इस गज़ल में यदि छूट होती तो बहुत बेहतर शेर निकल सकते थे.<BR/>आप विचार करें.<BR/>शेष शुभ.<BR/>अन्यथा न लें.<BR/>आपके उत्तर की प्रतीक्षा रहेगी.योगेन्द्र मौदगिलhttps://www.blogger.com/profile/14778289379036332242noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1407525739260276743.post-41580437898098768252008-10-12T20:51:00.000+05:302008-10-12T20:51:00.000+05:30bahut khoob, likhate rahein...bahut khoob, likhate rahein...Vinayhttps://www.blogger.com/profile/08734830206267994994noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1407525739260276743.post-77878822251832393702008-10-12T20:27:00.000+05:302008-10-12T20:27:00.000+05:30भाई, जारी रखें.निरन्तरता स्वयं में शोध है.आपका भाव...भाई, <BR/>जारी रखें.<BR/>निरन्तरता स्वयं में शोध है.<BR/>आपका भावबोध अच्छा.<BR/>शिल्प धीरे-धीरे हो ही जायेगा.<BR/>साधुवाद एवं शुभकामनाएं.योगेन्द्र मौदगिलhttps://www.blogger.com/profile/14778289379036332242noreply@blogger.com