स्वप्न मेरे
स्वप्न स्वप्न स्वप्न, सपनो के बिना भी कोई जीवन है
बुधवार, 24 फ़रवरी 2021
हम नई कहानी सबको पेलते रहे ...
लोग तो चले गए
मगर पते रहे.
गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021
सुर्ख होठों पे आग़ सी ना हो ...
गम न हो गम ख़ुशी
ख़ुशी ना हो.
रब करे ऐसी ज़िन्दगी
ना हो.
रेत पर लिख दिया
तुझे उस दिन,
ख्वाहिशों की वहाँ
नदी ना हो.
चुप से आँसू हँसी में क्यों छलके,
मुसकराहट ये
खोखली ना हो.
नींद कमबख्त दूर
है बैठी,
रात पहलू में
जागती ना हो.
खुशबुओं से महक
उठा मौसम,
तू कहीं पास ही
खड़ी ना हो.
कितने सपने हैं बन्द
बस्तों में,
परवरिश में कहीं
कमी ना हो.
लफ्ज़ दर लफ्ज़ जल
गया लम्हा,
सुर्ख होठों पे आग़
सी ना हो.
शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021
नाचती लहरों से मैं ऊँचाइयाँ ले जाऊँगा ...
आपका गम आपकी रुस्वाइयाँ ले जाऊँगा.
देखते ही देखते परछाइयाँ ले जाऊंगा .
आपने मुझको कभी माना नहीं अपना मगर,
ज़िन्दगी से आपकी कठिनाइयाँ ले जाऊँगा.
हाथ से
छू कर कभी महसूस तो कर लो हमें,
आपके सर
की कसम तन्हाइयाँ ले जाऊँगा.
आपकी महफ़िल में आकर आपके पहलू से
में,
शोख नज़रों से
सभी अमराइयाँ ले जाऊँगा.
प्रेम की
बगिया कभी खिलने नहीं देते हें जो,
वक़्त के
पन्नों से वो सच्चाइयाँ ले जाऊँगा.
साहिलों पे डर न जाना देख कर लहरों को तुम,
नाचती लहरों से मैं ऊँचाइयाँ ले जाऊँगा.
मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021
कैसे कह दूँ की अब घात होगी नही ...
तुम झुकोगे नहीं बात होगी नही.
ज़िन्दगी भर मुलाक़ात होगी नही.
थाम लो हाथ किस्मत से मिलता है ये,
उम्र भर फिर ये सौगात होगी नही.
आज मौका मिला है तो दामन भरो,
फिर ये खुशियों की बरात होगी नहीं.
धूप ने है बनाया अँधेरों में घर,
देखना अब कभी रात होगी नही.
दिल में नफरत के दीपक जो जलते रहे,
मीठे पानी की बरसात होगी नही.
सच के साहस के आगे टिके रह सके,
झूठ की इतनी औकात होगी नही.
घर के बाहर है दुश्मन तो अन्दर भी है,
कैसे कह दूँ की अब घात होगी नही.
बुधवार, 27 जनवरी 2021
कुछ हैं तेरी याद से जुड़े हुए ...
गिर गए हैं और
कुछ खड़े हुए.
पेड़ आँधियों में हैं
डटे हुए.
बंट रहा है मुफ़्त
में ही कुछ कहीं,
आदमी पे आदमी चढ़े
हुए.
दूध तो नसीब में
नहीं है अब,
हम तो छाछ से भी
हैं जले हुए.
रोज एक इम्तिहान
है नया,
हम भी इस तरह से
कुछ बड़े हुए.
बादलों का साथ दे
रही हवा,
सामने हैं सूर्य
के अड़े हुए.
चुप थे पैरवी में
चश्म-दीद सब,
नोट कह रहे थे
कुछ मुड़े हुए.
कुछ निकल गए बना
के हम-सफ़र,
कुछ हैं तेरी याद
से जुड़े हुए.
सोमवार, 18 जनवरी 2021
ज़िन्दगी भी रेत सी फिसल गई ...
पीठ तेरी नज्र से जो जल गई.
ज़िन्दगी तब से ही हमको छल गई.
रौशनी आई सुबह ने कह दिया,
कुफ्र की जो रात थी वो ढल गई.
मुस्कुराए हम भी वो भी हंस दिए,
मोम की दीवार थी पिघल गई.
रात भर कश्ती संभाले थी लहर,
दिन में अपना रास्ता बदल गई.
इस तरफ कूआं तो खाई उस तरफ,
बच के किस्मत बीच से निकल गई.
जब तलक ये दाड़ अक्ल का उगा,
ज़िन्दगी भी रेत सी फिसल गई.
बुधवार, 6 जनवरी 2021
आम सा ये आदमी जो अड़ गया ...
सच के लिए हर किसी से लड़ गया.
नाम का झन्डा उसी का गढ़ गया.
ठीक है मिलती रहे जो दूर से,
धूप में ज्यादा टिका जो सड़ गया.
हाथ बढ़ाया न शब्द दो कहे,
मार के ठोकर उसे वो बढ़ गया.
प्रेम के नगमों से थकेगा नहीं,
आप का जादू कभी जो चढ़ गया.
होश ठिकाने पे आ गए सभी,
वक़्त तमाचा कभी जो जड़ गया.
बाल पके, एड़ियाँ भी घिस गईं,
कोर्ट से पाला कभी जो पड़ गया.
जो न सितम मौसमों के सह सका,
फूल कभी पत्तियों सा झड़ गया.
तन्त्र की हिलने लगेंगी कुर्सियाँ,
आम सा ये आदमी जो अड़ गया.
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