स्वप्न मेरे: स्वप्न

बुधवार, 27 दिसंबर 2006

स्वप्न

स्वप्न मेरे कुछ भूले बिसरे
कागज को तरसे बरसों

4 टिप्‍पणियां:

  1. स्वप्न मेरे जो कभी न बिसरे
    सच होने को हर पल तरसे !

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  2. बहुत सुन्दर सर..
    आपकी पहली पोस्ट भी लाजवाब थी..
    सादर.

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  3. नमस्ते.....
    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की ये रचना लिंक की गयी है......
    दिनांक 26/02/2023 को.......
    पांच लिंकों का आनंद पर....
    आप भी अवश्य पधारें....

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