स्वप्न मेरे: चंद टुकड़े कांच के

मंगलवार, 7 अक्तूबर 2008

चंद टुकड़े कांच के

लूटने वाले को मेरे घर से क्या मिल पाएगा
चंद टुकड़े कांच के और सिसकता दिल पाएगा

इक फ़ूल का इज़हार था इकरार या इन्कार था
बंद हैं अब कागजों में फूल क्या खिल पाएगा

गाँव की पगडंडियों को छोड़ कर जो आ गया
शहर की तन्हाईयो में ख़ुद को शामिल पाएगा

ओस की एक बूँद ने प्यासे के होठों को छुआ
देखना अब जुस्तुजू को होंसला मिल जाएगा

जिंदगी की कशमकश का जहर जो पीता रहा
होंसले की इन्तहा को शिव के काबिल पाएगा

14 टिप्‍पणियां:

  1. गाँव की पगडंडियों को छोड़ कर जो आ गया
    शहर की तन्हाईयो में ख़ुद को शामिल पाएगा

    kya kahna hai.

    bahut khoob!

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  2. दिगम्बर जी,

    जिंदगी की कशमकश का जहर जो पीता रहा
    होंसले की इन्तहा को शिव के काबिल पाएगा

    क्या बात है? बहुत अच्छी पंक्तियाँ। बधाई। किसी की पंक्तियों के माध्यम से मैं कहना चाहता हूँ कि-

    तल्ख वो शीरी बेतकल्लुफ जिसको पीना आ गया।
    मैकशो पीना तो पीना उसको जीना आ गया।।

    साथ ही एक सलाह देने का मन कर रहा है। मानना न मानना पूर्णतया आपकी मर्जी। जब मैं

    "चंद टुकड़े कांच के और सिसकता दिल पाएगा"

    पढ रहा था तो लगा कुछ कट रहा है। क्या आप इसको

    "चंद टुकड़े कांच के, रोता हुआ दिल पाएगा"

    या और कुछ जो आपको अच्छा लगे। लेकिन मुझे लगता है कि कुछ सुधार की गुँजाईश है। कृपया अन्यथा न लें।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  3. जिंदगी की कशमकश का जहर जो पीता रहा
    होंसले की इन्तहा को शिव के काबिल पाएगा
    Wah..Wah
    खूब कहते हैं आप..
    निरन्तरता बरक़रार रखें..
    निखार आता ही रहेगा..
    Shubhkamnaen....

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  4. ओस की एक बूँद ने प्यासे के होठों को छुआ
    देखना अब जुस्तुजू को होंसला मिल जाएगा
    सुंदर शब्दों से सजी मार्मिक भावाभिव्यक्ति बधाई इस कविता के लिए मेरे ब्लॉग पर पधारने का बहुत धन्यबाद मेरी नई हाइकु कविता पढने आप सादर आमंत्रित हैं

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  5. आप का दृष्टिकोण और कहन का अपना अनूठा अंदाज़ बरबस खींचता है.
    समय मिले तो पढिये:
    पत्रकार निशाने पर , क्लिक कीजिये
    http://hamzabaan.blogspot.com/2008/10/blog-post.html

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  6. शयामल जी
    आपका सुझाव सुंदर है, बहुत बहुत धन्यवाद,
    उम्मीद है एसे ही मार्ग दर्शन देते रहेंगे

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  7. इक फ़ूल का इज़हार था इकरार या इन्कार था
    बंद हैं अब कागजों में फूल क्या खिल पाएगा

    bahut sunder likha hai ...
    badhai ..

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  8. जिंदगी की कशमकश का जहर जो पीता रहा
    होंसले की इन्तहा को शिव के काबिल पाएगा
    ........बेहतरीन !

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  9. ओस की एक बूँद ने प्यासे के होठों को छुआ
    देखना अब जुस्तुजू को होंसला मिल जाएगा

    बहुत सुन्दर भाव और बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति है दिगंबर जी ! पूरी गज़ल ही बेमिसाल है ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  10. जिंदगी की कशमकश का जहर जो पीता रहा
    होंसले की इन्तहा को शिव के काबिल पाएगा

    ekdam katu satya.

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