स्वप्न मेरे: एक ख्वाहिश

गुरुवार, 6 नवंबर 2008

एक ख्वाहिश

जिस्म ज़ख्मों की जीती जागती नुमाइश है
फ़िर भी जीने की दिल मैं दबी दबी ख़्वाहिश है

दर्द पीछा नही छोड़ेगा मौत आने तक
साँस के साथ साथ दर्द की पैदाइश है

टूट कर बिखर जाने के नही कायल हम भी
साँस बाकी है जब तक सुबह की गुंजाईश है

यूँ न मायूस हो कर होंसले का दम तोड़ो
अभी तो ज़िंदगी से गीत की फरमाइश है

कही घायल, कहीं भूखे कहीं पंछी कफ़स में
हर तरफ़ मौत से जीवन की आज़मईश है

16 टिप्‍पणियां:

  1. दर्द पीछा नही छोड़ेगा मौत आने तक
    साँस के साथ साथ दर्द की पैदाइश है

    टूट कर बिखर जाने के नही कायल हम भी
    साँस बाकी है जब तक सुबह की गुंजाईश है
    bahut hi acchi gazal

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  2. अच्छी रचना
    निरन्तरता निखार की जननी है
    याद रखिये
    शेष शुभ

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  3. यूँ न मायूस हो कर होंसले का दम तोड़ो
    अभी तो ज़िंदगी से गीत की फरमाइश है

    bhai wah. Likhate rahiye janaab.

    Omprakash

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  4. तुकबंदी अच्छी कर लेते हैं. क्या आपके लिए ग़ज़ल की शैली अपनाना ज़रूरी है ?

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  5. माना आपकी गजल में दम है लेकिन,
    और भी ऊँचे विचार आने की गुंजाईश है.

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  6. sach bahut achhi gazal padhne mili aaj,har sher waah waah

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  7. दर्द पीछा नही छोड़ेगा मौत आने तक
    साँस के साथ साथ दर्द की पैदाइश है


    --गजब महाराज!! आजकल तो अब मेला लगने लगा है पाठकों का. हो भी क्यूँ न..लिखते ही इतना कातिल हो!!१

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  8. समीर भाई
    आप तो मेरे गुरु हैं
    ऐसे ही कृपा बनाये रखें

    जवाब देंहटाएं
  9. sir ji, aap ki rachnain hamein bahut pasand aaiyein.
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  10. भाई जबरदस्त..... बहुत-बहुत-बहुत अच्छी लगी आपकी रचनाएँ...वाकई जिन्दगी भी एक आजमाईश है.... इस आजमाईश में हमारा स्थान कहाँ है...यह भी हम नहीं जानते.....

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  11. टूट कर बिखर जाने के नही कायल हम भी
    साँस बाकी है जब तक सुबह की गुंजाईश है

    Bhai kya khoob likhte ho, Lagta hai dil cheer ke rakh diya ho....
    Sadhubaad

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  12. दिगम्बर जी

    बहुत आनन्द आया आपके यहाँ.


    आपकी लेखनी हमें बार बार यहाँ लाएगी

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  13. द्विज जी
    आप मेरे ब्लॉग पर आए, ये मेरा सोभाग्य है
    आप को मेरी ग़ज़ल अच्छी लगी तो मैं मान सकता हूँ की मैं भी ठीक लिख सकता हूँ.
    आप का बहुत बहुत धन्यवाद

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