स्वप्न मेरे: शक्ति का अह्वान

बुधवार, 12 नवंबर 2008

शक्ति का अह्वान

दिव्यता का सूर्य फ़िर उगने लगा
मेघ अंधकार का छटने लगा

हो रहा है फ़िर ह्रदय में आज मंथन
तरुण फ़िर उठने लगे हैं तोड़ बंधन
देवता भी कर रहे हैं आज वंदन
गरल फ़िर शिव कंठ मैं दिखने लगा

दिग्भ्रमित हम हो गए थे राह मे
अर्थ, माया की अनोखी चाह मे
लौट कर हम आ गए संग्राम मे
थाल पूजा का पुनः सजने लगा

संस्कृति पर हम को अपनी गर्व है
जाग्रति का हर दिवस तो पर्व है
जाग अर्जुन समय के कुरुक्षेत्र में
तर्जनी पर चक्र फ़िर सधने लगा

समय के तो साथ चलना चाहिए
पर स्वयं को भूलना ना चाहिए
देख तेरे रास्ते का श्रंग भी
पुष्प बन कर राह में बिछने लगा

कौन सा परिचय है तुझको चाहिए
काहे तुझको मार्ग-दर्शन चाहिए
धवल यश है पूर्वजों का साथ तेरे
तिमिर तेरी राह का मिटने लगा

शक्ति का अह्वान कर तू सर्वदा
श्रृष्टि का निर्माण कर तू सर्वदा
लक्ष्य पर एकाग्र है जो दृष्टि तेरी
चिर विजय का रास्ता खुलने लगा

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर रचना है।बधाई स्वीकारें।

    दिग्भ्रमित हम हो गए थे राह मे
    अर्थ, माया की अनोखी चाह मे
    लौट कर हम आ गए संग्राम मे
    थाल पूजा का पुनः सजने लगा

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  2. संस्कृति पर हम को अपनी गर्व है
    जाग्रति का हर दिवस तो पर्व है
    जाग अर्जुन समय के कुरुक्षेत्र में
    तर्जनी पर चक्र फ़िर सधने लगा

    वाह ! अतिसुन्दर सारगर्भित मंत्रमुग्ध करती काव्यरस धारा सराबोर कर विभोर कर गई...........

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  3. चिर विजय का रास्ता खुलने लगा......
    वाह बंधु वाह... खूब कहा आपने.. बधाई..

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  4. शक्ति का अह्वान कर तू सर्वदा
    श्रृष्टि का निर्माण कर तू सर्वदा
    लक्ष्य पर एकाग्र है जो दृष्टि तेरी
    चिर विजय का रास्ता खुलने लगा
    बेहद सही सटीक और सार्थक ब्लॉग जगत से लंबे समय तक गायब रहने के लिए माफी चाहता हूँ अब वापिस उसी कलम के साथ मौजूद हूँ .

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  5. बहुत दिन बाद इस तरह की छंदबद्ध हिंदी कविता पढ़ी...बोल-बोलकर पढ़ी...मजा आ गया...

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