स्वप्न मेरे: ग़ज़ल

शनिवार, 6 दिसंबर 2008

ग़ज़ल

फ़िर कोई खण्डहर विराना ढूँढ़ते हो
मुझसे मिलने का बहाना ढूँढ़ते हो

पौंछ डाला शहर का इतिहास सारा
काहे अब पीपल पुराना ढूँढ़ते हो

इस शहर की बस्तियाँ वीरान हैं
तुम शहर में आबो-दाना ढूँढ़ते हो

गौर से क्यों देखते हो आसमां को
दोस्त या गुज़रा ज़माना ढूँढ़ते हो

मैं जड़ों को सींचता हुं, आब हूँ मैं
क्यूँ अब्र में मेरा ठिकाना ढूँढ़ते हो

रात की चादर लपेटे सोई हैं सड़कें
क्यूँ हादसे,किस्सा,फ़साना ढूँढ़ते हो

लहू से लिक्खा है हर अल्फाज़ मैंने
तुम ग़ज़ल का मुस्कुराना ढूँढ़ते हो

22 टिप्‍पणियां:

  1. वाह भाई वाह। सुन्दर। मेरी तरफ से भी दो त्वरित पँक्तयाँ -

    इन्सानियत की बस्ती है जल गयी यहाँ।
    न जाने फिर कहाँ तुम आशियाना ढ़ूँढ़ते हो।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  2. रात की चादर लपेटे सोई हैं सड़कें
    क्यूँ हादसे,किस्सा,फ़साना ढूँढ़ते हो

    लहू से लिक्खा है हर अल्फाज़ मैंने
    तुम ग़ज़ल का मुस्कुराना ढूँढ़ते हो ।
    बधाई। बहुत अच्छी गजल

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  3. रात की चादर लपेटे सोई हैं सड़कें
    क्यूँ हादसे,किस्सा,फ़साना ढूँढ़ते हो

    लहू से लिक्खा है हर अल्फाज़ मैंने
    तुम ग़ज़ल का मुस्कुराना ढूँढ़ते हो
    wwaaah sahi bahut khubsurat gazal teen teen baar padhi jiya bharta nahi,har sher sundar

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  4. dil mei utaarti hai sidhe.....
    desh ki yadon ko khub samete ho aap.....itni door hokar bhi, dil karib ho....

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  5. बहुत अच्छी गजल िलखी है आपने । कथ्य और िशल्प दोनों दृिष्ट से बेहतर है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है-उदूॆ की जमीन से फूटी िहंदी गजल की काव्य धारा-समय हो तो इस लेख को पढें और प्रतिकर्िया भी दें-

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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  6. पौंछ डाला शहर का इतिहास सारा
    काहे अब पीपल पुराना ढूँढ़ते हो

    bahut khoob.....

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  7. लहू से लिखा है हर अल्फाज़ मैंने
    तुम ग़ज़ल का मुस्कुराना ढूँढ़ते हो?
    ...वाह...वाह... वाह।

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  8. लहू से लिखा है हर अल्फाज़ मैंने
    तुम ग़ज़ल का मुस्कुराना ढूँढ़ते हो?
    ...वाह...वाह... वाह।

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  10. "लहू से लिक्खा है हर अल्फाज़ मैंने
    तुम ग़ज़ल का मुस्कुराना ढूँढ़ते हो "

    इन पंक्तियों ने समाँ बाँध दिया
    बहुत ख़ूब

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  11. बेहद खूबसूरत गजल. आभार...
    सादर,
    डोरोथी.

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  12. रात की चादर लपेटे सोई हैं सड़कें
    क्यूँ हादसे,किस्सा,फ़साना ढूँढ़ते हो

    खूबसूरत गज़ल

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  13. लहू से लिक्खा है हर अल्फाज़ मैंने
    तुम ग़ज़ल का मुस्कुराना ढूँढ़ते हो ...अच्छा शेर है!!

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है