स्वप्न मेरे: सिन्दूर बनके सजता हूँ

गुरुवार, 29 जनवरी 2009

सिन्दूर बनके सजता हूँ

खुशी या गम हो तेरे आंसुओं में ढलता हूँ
तुझे ख़बर है तेरी चश्मे-नम में रहता हूँ

क्या हुवा जो तेरा हाथ भी न छू सका
तेरे माथे की सुर्ख चांदनी में जलता हूँ

है और बात तेरे दिल से हूँ मैं दूर बहुत
तुम्हारी मांग में सिन्दूर बनके सजता हूँ

मैंने माना तेरी खुशियों पर इख्तियार नही
तेरे हिस्से का गम खुशी खुशी सहता हूँ


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तेरा ख्याल मेरे दिल से क्यों नही जाता
जब कभी सामने आती हो कह नही पाता

तमाम बातें यूँ तो दिल में मेरे रहती हैं
तुम्हारे सामने कुछ याद ही नही आता

23 टिप्‍पणियां:

  1. मैंने माना तेरी खुशियों पर इख्तियार नही
    तेरे हिस्से का गम खुशी खुशी सहता हूँ

    बहुत खूब लिखा है आपने

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  3. है और बात तेरे दिल से हूँ मैं दूर बहुत
    तुम्हारी मांग में सिन्दूर बनके सजता हूँ

    -ये कौन दिशा चले, बाबू?? :)

    वैसे अदरवाईज़ बेहतरीन है/ :)

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  4. तेरा ख्याल मेरे दिल से क्यों नही जाता
    जब कभी सामने आती हो कह नही पाता
    बहुत खूब

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  5. आपने बढ़िया कहा है.
    हर तजुर्बे को सहा है..

    इसलिये ब धा ई........

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  6. बेहतरीन भाई. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  7. बहुत ही बेहतरीन लिखा है ....उत्तम प्रस्तुति

    अनिल कान्त
    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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  8. दिगम्बर जी, आज ये कोन सी राह पकड ली.
    लगता है कि अभी बहुत से रूप देखने बाकी हैं आपके........

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  9. क्या हुवा जो तेरा हाथ भी न छू सका
    तेरे माथे की सुर्ख चांदनी में जलता हूँ
    bahut umda shabd rachana v bhavpurna

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  10. बहुत ही घटिया कविता है। स्‍त्री विरोधी भी है।

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  11. मन को छूती, बहुत बहुत बहुत ही सुंदर रचना.....
    मान लिया जाता है कि ,पुरूष स्त्री को नही समझ पाता और पीड़ा के साथ स्त्री का ही चोली दामन का साथ होता है,पर पुरूष पक्ष की उस मनोव्यथा को आपने इतनी खूबसूरती से उभारा है कि क्या कहूँ.....
    सिर्फ़ वाह,वाह और वाह...

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  12. क्या हुवा जो तेरा हाथ भी न छू सका
    तेरे माथे की सुर्ख चांदनी में जलता हूँ

    पुरूष के मन का एक नया पक्ष रखती हुई...
    बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल..

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  13. दिगंबर नासवा जी
    आपकी रचना में एक नयापन देखने को मिला इसके लिए साधुवाद.
    आर्यश्री पर आपका सुझाव उपयुक्त है.
    रत्नेश त्रिपाठी
    नई दिल्ली

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  14. आज आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ और आज मैं जान पाया कि अब तक कितना खो चुका हूँ...खैर जो मैंने खोया वो आपके पास सुरक्षित है और सब पाने कि कोशिश करूँगा.

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  15. मैंने माना तेरी खुशियों पर इख्तियार नही
    तेरे हिस्से का गम खुशी खुशी सहता हूँ
    एक शानदार ग़ज़ल. बधाई.

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