स्वप्न मेरे: साँस का बस खेल है जीवन मरन

सोमवार, 2 फ़रवरी 2009

साँस का बस खेल है जीवन मरन

सूर्य से पहले है जिसका आगमन
स्वयं को पाने का जो करता सृजन

छू वही सकता हैं ऊंचे शिखर को
कर गुज़रने की लगी हो जब लगन

कौन सी बाधाएं रस्ता रोक लेंगी
जल रही हो मुक्ति की दिल में अगन

स्वयं को बाती बना तिल तिल जले
जिंदगी बन जायेगी उसकी हवन

मुक्त कर दो, तोड़ दो बंधन पुनः
किस के रोके रुका है बहता पवन

काल की सीमाओं में बंधा हुवा
साँस का बस खेल है जीवन मरन

सत्य तो बस एक है "इदं न मम"
देह वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी गगन

28 टिप्‍पणियां:

  1. सत्य तो बस एक है "इदं न मम"
    देह वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी गगन
    वाह...वा...बहुत खूबसूरत प्रयोग...लाजवाब....शब्द आप के बोलते से लगते हैं...वाह...
    नीरज

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  2. कौन सी बाधाएं रस्ता रोक लेंगी
    जल रही हो मुक्ति की दिल में अगन

    स्वयं को बाती बना तिल तिल जले
    जिंदगी बन जायेगी उसकी हवन

    Waah! bahut hi sundar hindi gazal..
    ek khusurat sandesh liye hue yah rachna bahut achchee lagi.


    [Main al ain se bahar poetry meetings mein ab nahin jaati..is liye aap ki poetry gathering mein aa na sakungi..maafi chahungi.


    [Dubai.Jan 29th ki gathering ke liye invitation bhi aaya tha magar nahin ja saki--kya aap ne wah poetry gathering attend ki thi-[indian school auditorium ], mein??

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  3. प्रेरणा से ओत प्रोत यह रचना बहोत ही खूब सूरत है बहोत ही बढ़िया लिखा है आपने ढेरो बधाई आपको....

    अर्श

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  4. वाह ! क्या कहूँ..........थोड़े से शब्दों में आपने जीवन और जीवन जीने की कला को पूर्ण विवेचित कर दिया....बहुत बहुत सुंदर रचना....बहुत बहुत सुंदर.

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  5. छू वही सकता हैं ऊंचे शिखर को
    कर गुज़रने की लगी हो जब लगन

    बहुत खूब !

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  6. कौन सी बाधाएं रस्ता रोक लेंगी
    जल रही हो मुक्ति की दिल में अगन

    बहुत सुंदर ....जीवन के सच को बयान करती यह रचना बहुत मन भायी

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  7. हर शे'र जैसे चाँद की किरण को आकर्षित करता है!

    ----------
    ज़रूर पढ़ें:
    हिन्द-युग्म: आनन्द बक्षी पर विशेष लेख

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  8. digambar ji, bahut hi khoobsurat kavita, har sher lajawaab,dil se wah wah nikal rahi hai. dheron badhaian.

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  9. एक खूबसूरत और सार्थक रचना. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  10. छू वही सकता हैं ऊंचे शिखर को
    कर गुज़रने की लगी हो जब लगन
    bilkul sahi kaha hai is pankti mai aapane kar gujarne ki agar lagan hai to aap kuchhha bhi kar sakate hai

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  11. बहुत सुंदर....प्रेरणादायक रचना।

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  12. पता नहीं दिगम्बर जी,मैं कैसे अब तक अछूता था आपके इस ब्लौग से...खैर,अब तो लगातार रहूँगा

    आज आया हूँ तो बड़ी देर से जमा हुआ हूँ.खूब पढ़ा आपको
    बात है आपमें-सच
    और इस गज़ल के आखिरी शेर ने तो जैसे सब लूट लिया है
    नायब अंदाज

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  13. Aap mere blog par shyad pahli bar aaye aabhar vahi se aapka blog ka bhi pata chala bahut sundar,sarthak,sateek rachnayen padhi yahan aakar...bahut-bahut badhai..

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  14. बहुत ही सुंदर और सार्थक रचना है।

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  15. mera blog follow kijiye aur apni vishesh tippniyaan jari rakhiye taaki main aapse kuchh seekh saku...
    mere blog ka link hai
    http://merastitva.blogspot.com

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  16. 'काल की सीमाओं में बंधा हुवा
    साँस का बस खेल है जीवन मरन

    सत्य तो बस एक है "इदं न मम"
    देह वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी गगन'

    - जीवन को इतने सुंदर रूप से परिभाषित करने के लिए साधुवाद

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  17. छू वही सकता हैं ऊंचे शिखर को
    कर गुज़रने की लगी हो जब लगन
    ye to mujhe thik dushyant kumaarji ke us sher saa laga jisme unhone kaha tha-
    ek pathar to tabiyat se uchhalo yaaro, kese aakaash me sooraakh nahi hota.
    bahut khoob likha he aapne bhi.
    maza aagaya.

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  18. जीवन के करीब ले जाती एक सुन्दर गजल। बधाई।

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  19. छू वही सकता हैं ऊंचे शिखर को
    कर गुज़रने की लगी हो जब लगन

    कौन सी बाधाएं रस्ता रोक लेंगी
    जल रही हो मुक्ति की दिल में अगन

    स्वयं को बाती बना तिल तिल जले
    जिंदगी बन जायेगी उसकी हवन
    वाह्! क्या बात है. बहुत सी सुन्दर एवं प्रेरणादायक रचना.........

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  20. दिगंबर जी ,
    बहुत ही खूबसूरती के साथ आपने पूरे भारतीय जीवन दर्शन का निचोड़ इस कविता /गीत में प्रस्तुत कर दिया है .हार्दिक बधाई
    हेमंत कुमार

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  21. भई वाह बेहतर रचना के लिये साधुवाद...

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  22. bhai wah... kya kavita hai... saas ka bas khel hai jivan maran kya likha hai apane.dhero badhaiya.

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  23. सच...साँस का ही बस खेल है....बहुत ही भावपूर्ण कविता.

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  24. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  25. दीगम्बर जी,
    आपका लिखा अभी अभी पढा है और शब्द कौशल और भावोँ का साँमजस्य मन मोहक लगा..
    जीवन दर्शन से ओत प्रोत रचनाएँ बखूबी लिखीँ हैँ आपने -
    यूँ ही लिखते रहीयेगा -
    शुभकामना सहित,
    - लावण्या

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  26. खूब सूरत एवं प्रेरणादायक रचना है रचना ,शुभकामना सहित !

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  27. दिगम्बर जी.... सबने अपनी लेखनी की इतनी तारीफ लिख दी है.. के मेरे पास सब्द नहीं बचे या कहें शब्द दूंदे नहीं मिल रहे.. शुभकामनाएं....

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