स्वप्न मेरे: एहसास

गुरुवार, 5 मार्च 2009

एहसास

1

चाहता हूँ
मार कर पत्थर
सुराख कर दूं सूरज में
सज़ा लूँ फिर डिबिया भर कर
कतरा कतरा रिस्ती हुई रोशनी
जब ये कायनात अंधी हो जाएगी
मैं जीता रहूँगा
अपनी डिबिया देख कर

2

जलती हुई आग
अपनी हथेली पर सज़ा
अपना ही इम्तिहान लेने को मन करता है
ये मेरा आत्मविश्वास है
या अन्जाना सा दर्द
मचल रहा है
बाहर आने को

3

बहूत दिनों से
मन कुछ उदास है
ढूंड नही पाता
जब उदासी का कारण
और उदास हो जाता है मन
लगता है उदासी भी
गणित के खेल की तरह
जुड़ती नही गुना होती है

31 टिप्‍पणियां:

  1. अब आपका स्टाइल आस्कर वाला हो रहा है, बधाई हो। बिल्कुल गुल्ज़ारिश

    ---
    चाँद, बादल और शाम

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  2. शायद पहली बार आए है आपके ब्लोग पर। पर आकर अच्छा लगा। क्योंकि इतनी बेहतरीन रचनाएं जो मिल गई पढने को। बहुत उम्दा लिखा है आपने। पर ये वाली ना जानूँ दिल के पास से गुजर गई।

    बहूत दिनों से
    मन कुछ उदास है
    ढूंड नही पाता
    जब उदासी का कारण
    और उदास हो जाता है मन
    लगता है उदासी भी
    गणित के खेल की तरह
    जुड़ती नही गुना होती है

    गजब।

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  3. ये तो अबके अलग ही अदा है दिगम्बर जी....लेकिन क्या खूब अदा है

    दर असल आपकी हँसी देख लेने के बाद कमबख्त ये शब्दों की उदासी रास नहीं आ रही

    एक मलाल रह गया कि आपके साथ कोई तस्वीर न ले पाये...

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  4. भई वाह! बहुत खूब........आज किसी ओर ही मूड में दिखाई दे रहे हैं.

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  5. इस तरह से तो कहर ना बरपावो साहब... ये अदा भीखूब रही आपकी ... बहोत ही उम्दा लेखन.. प्रभावशाली हमेशा की तरह... ढेरो बधाई कुबूल करें...

    अर्श

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  6. दिगंबर जी ,
    वैसे तो तीनों ही कवितायेँ बहुत ही अच्छी हैं .मैंने दो -तीन बार इन्हें पढ़ा .हर बार अपने अन्दर इन कविताओं को धंसता हुआ महसूस किया .लेकिन पहली कविता ...बहुत गठी हुई ..और एक आग,दर्द ,विद्रोह बहुत कुछ समेटे हुए है .बधाई .
    हेमंत कुमार

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  7. बहूत दिनों से
    मन कुछ उदास है
    ढूंड नही पाता
    जब उदासी का कारण
    और उदास हो जाता है मन
    लगता है उदासी भी
    गणित के खेल की तरह
    जुड़ती नही गुना होती है
    आप की तीनो कविता ही बहुत सुंदर लगी, लेकिन यह जिदगी के करीब लगी, इस सुंदर कविताओ के लिये आप का धन्यवाद

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  8. तीन की तीनों जबरदस्त!! वाह!!

    यह हुई दिगम्बर स्टाईल!! :)

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  9. ये तो आपका एक नया ही रंग देखने को मिला है । आपकी और मेरी तो खूब जमेगी भई । आपको देख कर तो मुझे भी उत्‍साह आ रहा है कि अपनी लम्‍बी छंद मुक्‍त कविता ''मैं शर्मिंदा हूं अंतिम बाला'' किसी दिन पोस्‍ट में लगाऊं । आपकी तीसरी कविता तो अद्भुत है । एक बार किसी लेख में मैंने बहुत पहले लिखा था कि सुख एक ऐसी रेलगाड़ी है जिसमें अकेला इंजन होता है अर्थात सुख हमेशा अकेला ही आता है किन्‍तु दुख सौ डब्‍बों की मालगाड़ी है । आपकी तीनों कविताओं के लिये बधाई ।

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  10. तीनो लाजवाब. पर निजी रुप से तीसरी रचना का जिंदगी का गणित बहुत लाजवाब लगा.

    रामराम.

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  11. गुरु जी पंकज सुबीर जी
    आपकी लेखनी मेरे ब्लॉग पर.....मेरा सौभाग्य है ये तो, आपको रचनाएं अच्छी लगीं ये मेरा और भी सौभाग्य ........
    बस आपका आशीर्वाद बना रहना चहिये

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  12. चाहता हूँ
    मार कर पत्थर
    सुराख कर दूं सूरज में
    सज़ा लूँ फिर डिबिया भर कर
    कतरा कतरा रिस्ती हुई रोशनी
    जब ये कायनात अंधी हो जाएगी
    मैं जीता रहूँगा
    अपनी डिबिया देख कर
    वैसे तीनो लिखी कविताए लाजबाब है । दो तीन बार पढ़ना पड़ा । कविता को बार-बार पढ़ता गया और उसकी अंतरंग गहाराई को मापता गया । खासकर ऊपर वाली कविता अपने आप में अनोखी है । बहुत बढ़िया शुक्रिया

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  13. digambar ji ,
    sorry for late arrival , i was on tour ..

    aapki teeno kavitayen padhkar man prasaan ho gaya .. sach kahun , bahut dino baad kuch maza aaya kisi ki rachana ko padkar

    aapko dil se badhai ..

    aapka vijay

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  14. लगता है उदासी भी
    गणित के खेल की तरह
    जुड़ती नही गुना होती है
    wah...digambarji, bahut khoob likha he aapne..ek to kaafi dino baad aapki koi post padhne ko mili, par jo mili usme in dino ki saari pratiksha khtm ho gai, man taaza ho gaya..
    antim pankti ne man ko jeet liya..vakai in panktiyo ko mene apni khaas diary me utaar liya he.
    ek baat kahu,,,jee chahta he aap roz likhe aour me roz padhta rahu..halaki vystata ke dour me roz likhna sambhav bhi to nahi, kintu jo jee chahta he uska khyaal aap jarur rakhenge, mujhe esa lagta he,

    holi ki shubhkamnaye bhi aapko de du, kyoki me apne maa-babuji ke paas jaa raha hu, 17 ko loutunga..aane ke baad sabse pahle aapke blog par aaunga, aour mujhe kuch nai kavitaye padhne ko milengi, vishvaas he.

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  15. digambar ji aapne kavita men bhi holi ke mauke ke anusaar naya rang bhar diya. teenon rachnayen anupa. bahut-2, badhai. aur holi ki shubh kaamnayen.

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  16. लगता है उदासी भी
    गणित के खेल की तरह
    जुड़ती नही गुना होती है
    waah ka gazab ki baat keh di,teeno kavita bahut lajawab hai.oscarwali baat se hum bhi sehmat hai jo upar tippani mein likhi hai.

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  17. Digambar जी सभी kavitayen बहुत achchee हैं.
    ख़ास कर यह panktiyan behad sundar lagin-

    लगता है उदासी भी
    गणित के खेल की तरह
    जुड़ती नही गुना होती है

    -gazal से अलग आज आप ने kavitayen prastut ki हैं ..ये सभी pasand aayin.
    dhnywaad.

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  18. होली की आपको और आपके परिवार में समस्त स्वजनों को हार्दिक शुभकामनाएँ

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  19. दिगंबर जी आपकी उपस्तिथि मेरे ब्लोग्स पर लगी है पर मेरा दुर्भाग्य की आपके ब्लॉग पर इतनी देर बाद आना हुआ और इतनी बढ़िया रचनाओं को अब पढ़ा मैंने .तीनो कवितायेँ, लाजवाब है .खास तौर से
    जलती हुई आग
    अपनी हथेली पर सज़ा
    अपना ही इम्तिहान लेने को मन करता है
    पुनः आपको और आपके परिवार को होली की ढेर सारी शुभकामनायें

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  20. दिगंबर जी....आपका नया रूप बहुत भाया...बहुत संवेदनशील रचनाएँ हैं तीनो की तीनो...एक दम मन को छूती हुई और "उदासी भी गणित के खेल की तरह जुड़ती नहीं गुना होती है...." लाजवाब शब्दावली...वाह वा...
    होली की शुभकामनाएं
    नीरज

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  21. आपको और आपके परिवार को होली की रंग-बिरंगी ओर बहुत बधाई।

    regards

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  22. दिगम्बर जी.... सबने अपनी लेखनी की इतनी तारीफ लिख दी है.. के मेरे पास सब्द नहीं बचे या कहें शब्द दूंदे नहीं मिल रहे.. हरेक पंक्ति अपनी और खींच कर अपने आप में डूबने को मजबूर करती दिखी... होली की रंग-विरंगी शुभकामनाएं....

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  23. चाहता हूँ
    मार कर पत्थर
    सुराख कर दूं सूरज में
    सज़ा लूँ फिर डिबिया भर कर
    कतरा कतरा रिस्ती हुई रोशनी
    जब ये कायनात अंधी हो जाएगी
    मैं जीता रहूँगा
    अपनी डिबिया देख कर ......

    वाह वाह ...दिगम्बर जी इस बार तो कमाल का लिखा है आपने ...ग़ज़ल और कविता दोनों में जवाब नहीं आपका...
    आपको भी होली मुबारक हो ...!!

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  24. आपको व परिवार को होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं .

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  25. दिगम्बर जी, आपको सपरिवार होली की ढेरों शुभकामनाऎं.....

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  26. digambar ji namaskaar, dhamyawaad aapke comment ke liye, aur dheron shubhkaamnayen holi ke pavan parva par aapke aur aapke pariwaar ke liye. pinah dhanyawaad.

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  27. बहुत सुंदर रचना ...और होली की ढ़ेर सारी शुभकामनाएँ...

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  28. होली की हार्दिक शुभकामनाएँ .

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  29. ham aapke blog par pahli baar aaye hain, par asal mein aap bahut khoob likhte hain.....
    shukriya hamare blog par aakar hame prerna dene ki liye....
    teeno muktak bejod hain parantu doosra bahut khoob hai..usme ek kavi ki parikalpana, uski uljhan khoob saaf jhalakti hai.....

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  30. दिगम्बर जी.... सबने अपनी लेखनी की इतनी तारीफ लिख दी है.. के मेरे पास सब्द नहीं बचे या कहें शब्द दूंदे नहीं मिल रहे.. हरेक पंक्ति अपनी और खींच कर अपने आप में डूबने को मजबूर करती दिखी...शुभकामनाएं....

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है