स्वप्न मेरे: छोड़ जाते छाप

बुधवार, 8 अप्रैल 2009

छोड़ जाते छाप

पोंछ दो आंसू किसी के है जो पश्चाताप,
व्यर्थ ही गंगाजली से धो रहे हो पाप,

सामना कैसे करूँगा सोच कर जाता नहीं,
माँ मेरी रोती बहुत है थक चुका है बाप,

यहाँ की हर चीज़ में मीठी सी यादें है बसी,
वो भी माँ का ट्रंक है जो बेच रहे आप,

चाँद की तो दूरियों को नापना आसान है,
बात है दिल की अगर गहराइयों को नाप,

लोग जो निर्माण करते हैं पसीने से डगर,
वक़्त की बंज़र ज़मीं पर छोड़ जाते छाप,

31 टिप्‍पणियां:

  1. चाँद की तो दूरियों को नापना आसान है,
    बात है दिल की अगर गहराइयों को नाप,

    भई वाह्! दिगम्बर जी.......सचमुच बोहत ही बढिया..

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  2. यहाँ की हर चीज़ में मीठी सी यादें है बसी,
    वो भी माँ का ट्रंक है जो बेच रहे आप,

    गहरी बात कह दी आपने.....

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  3. Digambar ji aap dono ki khoob chan rahi hain, haan?

    aur main aur udan tashtari ji apke gaane aur khane dono ke liye taras rahein hain?

    Bahut nainsafi hai...

    waisi ghazal bahut hi acchi hai, khaskar ye line:
    सामना कैसे करूँगा सोच कर जाता नहीं,
    माँ मेरी रोती बहुत है थक चुका है बाप,

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  4. DIGAMBAR JI PRACHI KE PAAR PE PATA CHALAA KE AAP TO KALAAKAR INSAAN HAI LIKHTE TO HAI HI UMDA AB GAANE BHI GAATE HAI.. WAAH BHAEE WAAH... UPAR WAALE NE KABI CHAAHA TO AAPKE MADHUR SWAR HAMAARE KAANO ME BHI GUNJENGI...

    BADHAAYEE SAHIB..

    ARSH

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  5. आपकी कविता में बहुत गहराई होती है यह कविता भी इसी सत्य को उजागर करती है

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  6. पोंछ दो आंसू किसी के है जो पश्चाताप,
    व्यर्थ ही गंगाजली से धो रहे हो पाप,

    wah digambar ji sabhi sher lajawaab, bahut badhai.

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  7. bahut hi sunder abhivyakti,khas kar aakhari do sher bahut hi lajawab.jaha bhi chand ka jikar hota hai,wo dil ko chu jata hai.

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  8. चाँद की तो दूरियों को नापना आसान है,
    बात है दिल की अगर गहराइयों को नाप,
    बहुत खूब भाई...बेहतरीन बात कही है आपने...वाह.
    नीरज

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  9. चांद की दूरियों वाला शेर तो बस लाजवाब है दिगम्बर जी...बहुत खूब

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  10. यहाँ की हर चीज़ में मीठी सी यादें है बसी,
    वो भी माँ का ट्रंक है जो बेच रहे आप,


    nice poem...

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  11. यहाँ की हर चीज़ में मीठी सी यादें है बसी,
    वो भी माँ का ट्रंक है जो बेच रहे आप,

    चाँद की तो दूरियों को नापना आसान है,
    बात है दिल की अगर गहराइयों को नाप,
    " बेहद शानदार और मन को स्पर्श करती अभिव्यक्ति.."

    Regards

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  12. चाँद की तो दूरियों को नापना आसान है,
    बात है दिल की अगर गहराइयों को नाप,

    बहुत खूब!

    भावभरी सुन्दर रचना .

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  13. चाँद की तो दूरियों को नापना आसान है,
    बात है दिल की अगर गहराइयों को नाप,

    बहुत खूब बहुत बढ़िया लगा यह ..

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  14. सुंदर भावों के साथ खूबसूरत रचना।

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  15. कश्‍मोंकश की सुंदर प्रस्‍तुति‍।

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  16. बहुत सुन्दर रचना .
    पोंछ दो आंसू किसी के है जो पश्चाताप,
    व्यर्थ ही गंगाजली से धो रहे हो पाप,

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  17. वाह जी वाह दिगम्‍बर जी आपकी यह रचना बेमिसाल है सीधे ही दिल में उतर गई

    एक शेर याद आ रहा है अर्ज किया है

    गमों की आंच पर
    आंसू किसी के उबाल के देख

    बनेंगे रंग हजार
    किसी पे डाल के देख

    मिलेगा शुकून तुझे भी

    किसी से प्‍यार के दो मीठे बोल बोलके तो देख

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  18. यहाँ की हर चीज़ में मीठी सी यादें है बसी,
    वो भी माँ का ट्रंक है जो बेच रहे आप,

    WAAH, mujhe in panktiyo ne vaakai antartam tak bhigo diya..
    MAATA PITAA se jab bhi kuchh juda hota he mera man karta he duniya ke har maata pitaa ko unka poora samman de du...

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  19. लोग जो निर्माण करते हैं पसीने से डगर,
    वक़्त की बंज़र ज़मीं पर छोड़ जाते छाप,
    ... अत्यंत प्रभावशाली अभिव्यक्ति, प्रसंशनीय रचना है ।

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  20. चाँद की तो दूरियों को नापना आसान है,
    बात है दिल की अगर गहराइयों को नाप,

    लोग जो निर्माण करते हैं पसीने से डगर,
    वक़्त की बंज़र ज़मीं पर छोड़ जाते छाप,

    -सुन्दर.

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  21. चाँद की तो दूरियों को नापना आसान है,
    बात है दिल की अगर गहराइयों को नाप,

    वाह,बहुत ऊंची बात कह दी है आपने दिगंबर जी ....
    वैसे तो पूरी गजल ही बढ़िया है.
    हेमंत कुमार

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  22. यहाँ की हर चीज़ में मीठी सी यादें है बसी,
    वो भी माँ का ट्रंक है जो बेच रहे आप,

    माँ के ट्रंक पर शायद ही पहले किसी ने लिखा हो.....बहोत खूब.....!!

    चाँद की तो दूरियों को नापना आसान है,
    बात है दिल की अगर गहराइयों को नाप,

    बहुत सुन्दर ...!!

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  23. बहुत ही सुंदर शेर कहें हैं
    पर ये कुछ तो लाजवाब हैं



    चाँद की तो दूरियों को नापना आसान है,
    बाराम के आदर्श तो बस नाम के,


    मन में एक अंश भी बजरंग नही,
    त है दिल की अगर गहराइयों को नाप,


    बचपन को गिरवी रख के समय की दुकान पर,
    तुम पूछते हो शहर में उल्‍लास क्‍यों नहीं,

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