स्वप्न मेरे: हकीकत

गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

हकीकत

मुरझाये
जीर्ण शीर्ण विकृत
सहमे से चेहरे....
कुछ खोजती हुयी
बीमार पीली पीली आँखे.....
न जाने कब लड़खडा कर
"साईंलेंसर" लगे
गिर जाने वाले कदम........
अँधेरी संकरी गलियों में
छीना झपटी करते हाथ.......
सदियों से लावारिस फुटपाथ पर
धकेल दिए जाते हैं

जिस तरह..........

जन्य शाखाओं से अनभिग्य
सूखे जर्जर पत्ते
सारे शहर से सिमेट कर
अँधेरे घटाटोप कूंवे में
बेतरतीब फैंक दिए जाते हैं
उन्हें कोई गुलदान में
नहीं सजाता
"वनस्पति शास्त्र" की कोपी में
नहीं लगाता
वह केवल जलने की लिए होते हैं.......
मात्र जलने के लिए .......

27 टिप्‍पणियां:

  1. "साईंलेंसर" लगे
    biich mein ye shabd samajh se pare rahe...

    sundar or sarthak chintan ,naam ke anuroop haqiqat ka aaina

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  2. वनस्पति शास्त्र" की कोपी में
    नहीं लगाता
    वह केवल जलने की लिए होते हैं.......
    मात्र जलने के लिए .......
    haqiqat bahut alag hoti hai,har ek ka dekhne ka nazariya bhi bahut alag.sunder rachana badhai.

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  3. जन्य शाखाओं से अनभिग्य
    सूखे जर्जर पत्ते
    सारे शहर से सिमेट कर
    अँधेरे घटाटोप कूंवे में
    बेतरतीब फैंक दिए जाते हैं
    उन्हें कोई गुलदान में
    नहीं सजाता

    बिल्कुल सटीक रचना . शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  4. आपकी इस रचना के तारीफ़ के लिए शब्द नहीं हैं मेरे पास ....बहुत बेहतरीन लिखी है आपने

    जवाब देंहटाएं
  5. जन्य शाखाओं से अनभिग्य
    सूखे जर्जर पत्ते
    सारे शहर से सिमेट कर
    अँधेरे घटाटोप कूंवे में
    बेतरतीब फैंक दिए जाते हैं
    उन्हें कोई गुलदान में
    नहीं सजाता
    "वनस्पति शास्त्र" की कोपी में
    नहीं लगाता
    वह केवल जलने की लिए होते हैं.......
    मात्र जलने के लिए .......

    wah, sahi kaha, wah sirf jalne ke liye hain. digambar ji sunder kavita ke liye badhai.

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  6. वह केवल जलने की लिए होते हैं.......
    मात्र जलने के लिए ......

    हकीकत ब्यां करती एक बेहतरीन रचना.....

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  7. is kavita ne jivan ke kai saare aham pahluo ko khol diya...shbd hqiqt bayaan kar rahe he aour jindgi apni tamaam vednao ko samete pasri aoundhe muh leti he..uskaa asli chahra he "haqiqat"...bahut behtar andaaz me aapne jivan ke sach ko shbdo me dhaalaa he..sachmuch...behtar....

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  8. jeevan ke baaton ko kataksh ke roop me aapne bahot hi sundarta se lagaayaa hai ... antim shabd jalne ke liye matra ne is kavita ko purn kar diya... dhero badhaayee aapko..


    arsh

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  9. बहुत समझ कर आराम से आत्मसात करने वाली रचना!! बहुत बढ़िया/

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  10. यह तेजी से विकास कर रही मानव सभ्यता पर चिपका वह काला पैबंद है, जिससे सिर्फ अब कवि- मन ही विचलित होते हैं। जिन्हें हमने सबकी सोचने का जिम्मा दिया, वे तो चमड़ी के नीचे के आदम-पशु निकले। हे कवि, शोकाकुल न हो क्योंकि तुम्हारे इस शोक में मैं भी सरीक हूं।

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  11. digambhar ji ,

    aapki is kavita ne mujhe nishabd kar diya .. itni prabhavshaali rachana main bahut kam hi dekhi hai .. aaj ke samay ko chitrit karti hui rachana ..

    meri dil se badhai sweekar karen ..


    vijay
    http://poemsofvijay.blogspot.com

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  12. वह केवल जलने की लिए होते हैं.......
    मात्र जलने के लिए .......

    जल कर सब को प्रकाश देनेकेलिये होते हैं
    खुद जलकर ठंडा भस्म बननेकेलिये होते हैं॥

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  13. इस अद्‍भुत भावाव्य्क्ति पर सलाम दिगम्बर जी...

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  14. उन्हें कोई गुलदान में
    नहीं सजाता
    "वनस्पति शास्त्र" की कोपी में
    नहीं लगाता
    वह केवल जलने की लिए होते हैं.......
    मात्र जलने के लिए .....

    दिगंबर जी ,
    यही तो जीवन की सच्चाई है ...कविता में अपने बहुत गहरी बात कह दी .
    हेमंत कुमार

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  15. naswa ji aap jaise bade bade log mere blog par comment karte hain. is k lie main aapka bahut bahut abhari hun. main asha karta hun ke aapka sath aesi hi aage bhi milta rahega. dhanyavad

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  16. दिगम्बर जी,
    पहले आपकी कविता पढ़ी फिर टिप्पणियाँ........फिर कविता.....

    मुरझाये
    जीर्ण शीर्ण विकृत
    सहमे से चेहरे....
    कुछ खोजती हुयी
    बीमार पीली पीली आँखे.....

    आज की दौडती -भागती ज़िन्दगी का अच्छा चित्रण.....! कभी सड़क पर खडे होकर लोगों के चेहरों को पढने की कोशिश करें तो शायद ऐसा ही आभास होगा.......!

    वह केवल जलने की लिए होते हैं.......
    मात्र जलने के लिए ....... बहुत खूब........!!

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  17. hriday vidarak....

    khaskar ye upma...

    "साईंलेंसर" लगे
    गिर जाने वाले कदम........"

    apne aap main nai aur adbhoot hai....

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  18. apna comment post karne ke baad auron ke comment dekhe....


    @nirjhar ji....

    aaj kavya ko nayi aur samayik upmaon ki zarrorat hai...


    ...jisko "silencer" bakhubi nibhati hai...

    aur naye samay ke saath relate bhi kar paata hai ....

    main to is sooch ki taarif karoonga....

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  19. खूबसूरती से लिखे गए शब्द ,,,,
    मगर साइलेंसर का प्रयोग तो इस नज़्म में एक तरह का नया जादू पैदा कर रहा है,,,,,
    एक दम सही जगह पर पूरे असर दार तरीके से रखा है आपने ये अनूठा शब्द,,,
    कमाल है आपकी महसूस करने की ताकत ,,,,,

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  20. दिगंबर जी ,
    बेबस और लाचार निराश्रित उन पत्तों की नियति जलना ही है उन्हें न कोई गुलदान में सजाता है न वनस्पति शास्त्र की कापी मैं लगता है .बहुत मन को छूने वाली रचना है .बधाई

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  21. एक शब्द शिल्पी ही ऐसी रचना लिख सकता है बहुत खूबसू्रत शुभकामनायें

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  22. कल 24/08/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है