स्वप्न मेरे: इक नज़्म की इब्तदा

गुरुवार, 28 मई 2009

इक नज़्म की इब्तदा

१)

सूखे पत्तों से उठती सिसकियाँ,
मसले हुवे फूलूँ से रिसता दर्द,
बादलों का सीना चीर कर बरसते आंसू,
आज भारी है कुछ मौसम का मिजाज़,
लगता है इक नज़्म की इब्तदा होगी,
क्यों हूँ में इतना उदास.........

२)

सूखे होठों पर अटके लफ्ज़,
बिस्तर की सिलवटों पर सिसकती रात,
तेरी कलाई में खनकने को बेताब कंगन,
खामोशी भी करती है जैसे बात,
चिनाब का किनारा भी गाता है हीर,
लगता है इक नज़्म की इब्तदा होगी,
खाली निगाहों से,
तकता है मुझे कोई आज........

32 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
    दिल की गहराई से और बेहद खूबसूरती से लिखा गया आपका नज़्म तो काबिले तारीफ है!

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  2. अति खूबसूरत रचना. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  3. वाह क्या बात है ! बहुत ही सुंदर रचना धन्यवाद

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  4. digambarji, kamaal he aap//
    sookhe patto se uthati siskiya.., kyaa baat likhi he, aour masle fulo se.....//javaab nahi aapka/
    kuchh shbd hote he jo sarlta pradaan karte he, kuchh hote he jisme ras hota he, kuchh kathorta peda karte he,,,,aaki lekhni in dino shbdo ke saath poora poora nyaay karte hue..ras ki baarish kar rahe he//
    aour iske liye dil se aapki taareef karte nahi thakta/
    isiliye aap....mujhe hamesha behtreen lage/

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  5. kitne masoom se
    thahre hue jazbaat
    mere khayaal bhi karne lage baat
    bekaboo ho gaye haalaat
    lagta hai
    koi nazm ki ibtda hogi.

    digamber ji donon rachnaen n sirf dil ko chhoo gain balki gahre utar gain. wah. behatareen. badhai sweekaren.

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  6. सूखे पत्तों से उठती सिसकियाँ,
    मसले हुवे फूलूँ से रिसता दर्द,
    बादलों का सीना चीर कर बरसते आंसू,
    आज भारी है कुछ मौसम का मिजाज़,
    लगता है इक नज़्म की इब्तदा होगी,
    क्यों हूँ में इतना उदास.........

    बहुत बढिया.....भाव ऎसे कि मानों बहुत गहरे से निकले हों.....

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  7. सुंदर भावों युक्‍त अच्‍छी रचना।

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  8. खामोशी भी करती है जैसे बात,
    चिनाब का किनारा भी गाता है हीर,
    लगता है इक नज़्म की इब्तदा होगी,

    एक बहुत बडे कवि कह गए hain--[नाम याद नहीं आ रहा]
    'वियोगी होगा पहला कवि,आह से निकला होगा गान!'
    यही दर्द तो है जिस से इब्तदा होगी नज़्म की!

    दोनों रचनाएँ भाव पूर्ण हैं!

    साहित्य शिल्पी पर aaj आप की ग़ज़ल पढ़ी .अच्छी लगी.Congrates!

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  9. वाह भई वाह!! बहुत खूब कहते हो!! छा गये महाराज!!

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  10. आपकी रचनाओं का माधुर्य और शब्द चातुर्य मन को न बांधे ....ऐसा हो ही नहीं सकता...

    दोनों ही रचनाओं ने मुग्ध कर लिया...

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  11. कौन कौन से शब्द पर क्या क्या कहूं हर शब्द मुझे निशब्द कर जाता है........
    किस तसव्वुर में थे आप जब आपने कलम उठाई थी...
    बहुत ही गहेरी नज्म दिल में भी गहराई तक जाती है

    अक्षय-मन

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  12. ek baar, do baar aur teen baar padha, fir bhee dil nahi bhara... Aapkee kavita pahle bandhtee hai, fir pyas jagaatee hai aur antatah pyasee chhore deti hai...

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  13. WAAH SAHIB DONO HI RACHANAAYEN APNE AAP ME MUKAMMAL... KYA KHUBSURATI SE BAYAN KIYAA HAI AAPNE.. BEHAD UMDAA... DHERO BADHAAYEE


    ARSH

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  14. अहा...गज़ब ढ़ा रहे हैं सर अपने इन खूबसूरत नज़्मों से आप दिन-ब-दिन

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  15. ... वाह-वाह ... उम्दा-उम्दा रचनाएँ !!!!

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  16. दिगम्बर जी "आह से उपजा होगा गान" की तरह ही नज़्म आयेगी आपके इस दर्द को तभी दवा भी मिलेगी.

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  17. इब्तदा तो हो ही चुकी है......तभी तो ये नज़्म पढने को मिल पायी....
    बहुत ही उम्दा......मुबारकबाद.....और सच में सपनों के बिना जीवन बेमानी है...

    साभार
    हमसफ़र यादों का.......

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  18. dono rchnaye ek se badhkar ek... khas kar ye panktiya mujhe bahut achhi lagi
    बादलों का सीना चीर कर बरसते आंसू,
    आज भारी है कुछ मौसम का मिजाज़,
    लगता है इक नज़्म की इब्तदा होगी,
    क्यों हूँ में इतना उदास.........

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  19. dono rchnaye ek se badhkar ek... khas kar ye panktiya mujhe bahut achhi lagi
    बादलों का सीना चीर कर बरसते आंसू,
    आज भारी है कुछ मौसम का मिजाज़,
    लगता है इक नज़्म की इब्तदा होगी,
    क्यों हूँ में इतना उदास.........

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  20. Sir,aapke 2-3 post padhne par aapke lekhan ka ek khaas andaaz nazar aaya...ek shaili jo aapki apni hai,ye baat behad kabil-e-tareef hai...aur is vishisht shaili me jo bhi likha hai aapne,sab bas jadoo hai :)


    http://pyasasajal.blogspot.com/2009/05/50-first-posts.html

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  21. bahut badia nazam hai ek nazam ke liyeyahi sab to chahiye hota hai bahut bahut badhaai is sunder rachna ke liye

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  22. आज भारी है कुछ मौसम का मिजाज़,
    लगता है इक नज़्म की इब्तदा होगी,
    क्यों हूँ में इतना उदास....
    बहुत उम्दा नज्म .बहुत खुबसूरत अंदाज़ .
    शुभकामनाये |

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  23. बहुत खूब दिगंबर जी.....भावनाओं के सागर में मई तो एक पल के लिए ही सही ... भाव-बिभोर हो गया. खासकर के ये लेने बहुत ही अच्छी लगी...
    तेरी आँखों में उभरता
    आंसुओं का सैलाब
    हल्के हल्के से आती
    सिसकियों की आवाज़
    तू चुपके से
    मेरी बाहों में सो जाना
    धीरे धीरे
    मीठे सपनों में खो जाना....

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  24. लगता है इक नज़्म की इब्तदा होगी,
    क्यों हूँ में इतना उदास.........
    बहोत खुब!!! मानो समंदर की गहराइ से ख़िंचकर ले आये है ईस दर्दभरी नज़म।

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  25. बहुत सुन्दर रचना।बधाई स्वीकारें।

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है