स्वप्न मेरे: तुम

शनिवार, 6 जून 2009

तुम

१)

ख़ामोशी को
लग गयी ज़ुबां
बोलती रही
बीते लम्हों की दास्ताँ
कोहरे की चादर लपेटे
गुज़रता रहा कारवाँ

२)

काश मैं वक़्त को रोक पाता
घड़ी की सूइयों को मोड़ पाता
देखता रहता उम्र भर
पूजा की थाली लिए
पलकें झुकाये
गुलाबी साड़ी में लिपटा
सादगी भरा तेरा रूप........

३)

चाँद जब समुन्दर में उतरे
नूर तारों का
लहरों में बिखरे
तुम आसमाँ पर चली आना
रोक लूँगा यूँ ही इस रात को
तुम चाँद बन कर मुस्कुराना
मैंने सुना है इस धरती का
एक ही चाँद है

35 टिप्‍पणियां:

  1. rok loonga yoonhi is raat ko
    tum chaand ban k muskurana........
    WAAH WAAH
    badhai

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  2. दिगंबर जी, बेहतरीन रचनाएँ...तीनो एक से बढ़ कर एक...
    नीरज

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  3. sacha maaniye aapne jo likha hai usame prawah itana hai ki shabdad our bhaw dono ek dusare me ghule mile hai.....bahut badhiya

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  4. बहुत सुन्दर भावनामय कविता है विशेषत्य चाँ द जब समुन्दर मे उतरे नूर तारों का--------------बहुत सुन्दर शुभकामनायें

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  5. bhaav poorna kavita....shabdon ko bahut hi dhyaan se chuna hai aapne....

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. बहुत बेहतरीन रचनाएं. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  8. DIGAMBAR JI WESE TO TINO HI RACHANAA BEHAD UMDAA KAHI HAI AAPNE MAGAR DUSRE JANAAB BAAT HI KYA HAI... KIS SAADAGI SE AAPNE EK SAADAGI KA CHITRAN KIYAA HAI KAMAAL KI BAAT HAI YE... BAHOT KHUB... MAGAR HUZUR AAPKI GAZALEN BHI PADHANAA CHAHTAA HUN ... ???


    ARSH

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  9. teenon hi rachnayein shandaar....dil ko choo gayin....lajawaab

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  10. वाह जबाब नही तीनो एक से बढ कर एक, लाजबाब
    धन्यवाद

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  11. मैने सुना है इस ……….…………………,

    क्या बात है।एक से बढकर एक रचना।

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  12. ख़ामोशी को
    लग गयी ज़ुबां
    बोलती रही
    बीते लम्हों की दास्ताँ
    कोहरे की चादर लपेटे
    गुज़रता रहा कारवाँ

    वाह्! अति सुन्दर भाव......भई दिगम्बर जी, बहुत खूब लिखा है।

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  13. aapki kavitaaon par tippani karne ki kshamta hm me nahi hai..bss ye kahenge ki saari kavitaaein dil se likhi gayi aur dil ko sukoon dene waali hain..

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  14. तीनो रचनाएँ शानदार,,
    पर नम्बर दो को जाने कितनी ही बार पढ़ गया,,,,,

    देखता रहता उम्र भर
    पूजा की थाली लिए
    पलकें झुकाये
    गुलाबी साड़ी में लिपटा
    सादगी भरा तेरा रूप........

    हाय,,,,, कमाल लिखा है,,,

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  15. अन्तस से झरने की मानिन्द फ़ूटी अनन्यत्तम अनुभूति को शब्दों की पौशाक-वाह क्या बात है


    ख़ामोशी को
    लग गयी ज़ुबां
    बोलती रही
    बीते लम्हों की दास्ताँ
    कोहरे की चादर लपेटे
    गुज़रता रहा कारवाँ
    जिन्दगी
    भटकती रही कहां-कहां
    होती रही धुआं-धुआं

    २)

    काश मैं वक़्त को रोक पाता
    घड़ी की सूइयों को मोड़ पाता
    देखता रहता उम्र भर
    पूजा की थाली लिए
    पलकें झुकाये
    गुलाबी साड़ी में लिपटा
    सादगी भरा तेरा रूप....

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  16. 'कोहरे की चादर लपेटे
    गुज़रता रहा कारवाँ'

    वाह !क्या पंक्ति है!

    खूबसूरत भाव अभिव्यक्ति!
    सभी रचनाये अच्छी लगीं.

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  17. तुम्हारे पाँव के छाले,
    उभर आये हैं सीने में।
    हमारे पास आ जाओ,
    मजा आ जाये जीने में।।

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  18. तुम्हारे पाँव के छाले,
    उभर आये हैं सीने में।
    हमारे पास आ जाओ,
    मजा आ जाये जीने में।।

    जवाब देंहटाएं
  19. बहुत ही सुन्दर.बधाई.

    काश मैं वक़्त को रोक पाता
    घड़ी की सूइयों को मोड़ पाता
    देखता रहता उम्र भर
    पूजा की थाली लिए
    पलकें झुकाये
    गुलाबी साड़ी में लिपटा
    सादगी भरा तेरा रूप........

    जवाब देंहटाएं
  20. pehli wali to wakai kabile tarif hai..
    dusari bhi achchi hai ..lekin pehli ki tulna me kam..
    parntu .teesri wali to hme samjh hi nahi aayi.. :(

    by d way.. ek hi bhavon ki teen alag alag dang se prastut karna.. vakai nayi kala dekhi hmne.. :)

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  21. चाँद जब समुन्दर में उतरे
    नूर तारों का
    लहरों में बिखरे
    तुम आसमाँ पर चली आना
    रोक लूँगा यूँ ही इस रात को
    तुम चाँद बन कर मुस्कुराना
    मैंने सुना है इस धरती का
    एक ही चाँद है

    meri pratikriya bas yehi thi...mazaa aa gayaa :)

    www.pyasasajal.blogspot.com

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  22. थोड़ी-सी तुकबंदी...

    सारी रचनाएँ एक से एक बढ़कर एक
    ऐसी कविताएँ आप लिखें अनेक...

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  23. काश मैं वक़्त को रोक पाता
    घड़ी की सूइयों को मोड़ पाता
    देखता रहता उम्र भर
    पूजा की थाली लिए .....
    what a thinking.....!
    nice poem...

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  24. चाँद जब समुन्दर में उतरे
    नूर तारों का
    लहरों में बिखरे
    तुम आसमाँ पर चली आना
    रोक लूँगा यूँ ही इस रात को
    तुम चाँद बन कर मुस्कुराना
    मैंने सुना है इस धरती का
    एक ही चाँद है
    तीनो रचनायें बहुत बढ़िया.... इसका तो जवाब ही नहीं...इस धरती का
    एक ही चाँद है

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  25. काश मैं वक़्त को रोक पाता
    घड़ी की सूइयों को मोड़ पाता....
    बहुत ही सुन्दर भाव बन पडा है इन लाइनों में ... आप की कलम ऐसे ही चलती रहे...मेरी यही शुभकामना है.

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  26. इस अनूठे आशिक को नमन...
    पोस्ट-दर-पोस्ट ये प्र्म-कविताओं का रस जो चखा रहे हैं आप, कसम से आशिकी करने को जी चाह रहा है।

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  27. रोक लूँगा यूँ ही इस रात को
    तुम चाँद बन कर मुस्कुराना
    ...बहुत सुन्दर, सभी रचनाएँ एक-से-बढकर एक हैं !!!!!!

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  28. क्या खूब लिखें हैं अतिसुन्दर भावः........
    ये शब्द निकले आपकेर दिल से और पहुँच रहें हैं अब हमारे दिल में......बहुत ही अच्छी रचनाये......
    अक्षय-मन

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  29. कम शब्दों में बडी बात कहना दुष्कर कार्य है। और आपको इसमें महारत हासिल है।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  30. प्रीत की अनन्त बगिया में अनगिनत फूल है, आपकी यह कविता- "तुम' की तो महक ही कुछ और है। इस फूल को प्रेम-भाव के कोई समर्थ कवि ही चून सकते हैं । हम तो सिर्फ इसke आदिम-आकर्षण ko ही महसूस कर पाते हैं। आप लिखते रहें, हम महसूसते रहें....

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  31. sach me bahut hi shaandar hai .sabhi laazwaab hai mujhe padhne ke baad aanand ki anubhuti hui .

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  32. आपका बहुत सुन्दर रचना अत्यंत भावः पूर्ण

    प्रदीप मनोरिया
    09425132060

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है