स्वप्न मेरे: वक़्त से चुराए कुछ पल

गुरुवार, 11 जून 2009

वक़्त से चुराए कुछ पल

1)

काश मैं वक़्त को रोक लेता
तेरी खुश्बू
इन वादियों में बस जाती
इंद्रधनुष के रंगों में
तू झिलमिलाती
मैं इन रंगों को चुरा लेता
ता उम्र तेरे रंगों में रंगे
जीवन बिता देता
काश मैं वक़्त को रोक लेता

2)

सूरज के सो जाने पर
शाम के मुहाने पर
अँधेरे की चादर लपेटे
रात उतरी है तेरे सिरहाने पर
उठा कर रेशमी रजाई
तू मुखडा दिखा देना
सितारे भी बेताब हैं
तेरे पहलू में उतर आने को

3)

अचानक
नीले आकाश पर
काली बदली का छा जाना
मस्ती में झूमती
बूंदों की ताल पर
मयूर का थिरकना
तेज़ हवा के झौंकों में
तितलियों का लरजना
लगता है
दूर तक फैली इन वादियों ने
तेरे क़दमों की आहट सुन ली

44 टिप्‍पणियां:

  1. सूरज के सो जाने पर
    शाम के मुहाने पर
    अँधेरे की चादर लपेटे
    रात उतरी है तेरे सिरहाने पर
    उठा कर रेशमी रजाई
    तू मुखडा दिखा देना
    सितारे भी बेताब हैं
    तेरे पहलू में उतर आने को
    bahut hi badhiya likha hai.

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  2. जबाब नही जी, बहुत सुंदर
    धन्यवाद

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  3. इंद्रधनुष के रंगों में
    तू झिलमिलाती
    मैं इन रंगों को चुरा लेता
    ता उम्र तेरे रंगों में रंगे
    जीवन बिता देता -
    ***अनुपम भाव-अभिव्यक्ति!


    --बूंदों की ताल पर
    मयूर का थिरकना
    तेज़ हवा के झौंकों में
    तितलियों का लरजना
    लगता है
    दूर तक फैली इन वादियों ने
    तेरे क़दमों की आहट सुन ली

    Bahut hi sundar!
    ****आज प्रकृति के रंगों में रंगी हैं तीनो रचनाएँ..

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  4. मैं इन रंगों को चुरा लेता
    ता उम्र तेरे रंगों में रंगे
    जीवन बिता देता
    काश मैं वक़्त को रोक लेता

    bhut khubsurat bhav.

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  5. भई दिगम्बर जी, आप तो कमाल पे कमाल किए जा रहे हैं। ब्लाग पे नीम्बू-मिर्ची टांग लें, कहीं हमारी ही नजर न लग जाए..:)

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  6. काश मैं वक़्त को रोक लेता

    बहुत सुन्दर लिखी है आपने तीनी रचनाये ..हर रंग बढ़िया लगा ..वक़्त को रोक लेने की चाहत सहज मन की एक बात है जो दिल में अक्सर आ जाती है ..

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  7. आपने तीनो कविताओं में जीवन के अलग अलग रंगों को ढाला है...!काश वक़्त को रोका जा सकता...

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  8. ACCHI VICHAR DHARA KE SATH LIKHI SUNADAR RACHNA........
    AAPNE APNE EHESAASON KO KHUB ACCHE SE PIROYA HAI APNI RACHNA MAIN BADHAI........

    अक्षय-मन

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  9. सितारे भी बेताब हैं,
    तेरे पहलू में उतर आने को।
    तू है कहीं, हम हैं कहीं,
    बचा ही क्या है गुनगुनाने को।।

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  10. आपकी नज़्मो की एक खाशियत यह है कि वह इतनी सहज होती है कि शब्द अपने आप भावो मे गुथ जाती है, और इतना सपनिला कि किसी और दुनिया की सैर कुछ ही पलो मे आप करा देने की काब्लियत रखते है एक कवि की रचना की सफलता है .......भगवान आपकी सफलता बनाये रखे.

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  11. दूर तक फैली इन वादियों ने
    तेरे क़दमों की आहट सुन ली
    वाह दिगंबर जी वाह...बेहतरीन रचना...आज कल आप बहुत रोमांटिक मूड में हैं...नहीं?
    नीरज

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  12. बहुत बढिया रचनाएं हैं।बधाई स्वीकारें।

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  13. क्या बात है? आज तो घणे गजब की रचना है जी. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  14. सूरज के सो जाने पर
    शाम के मुहाने पर
    अँधेरे की चादर लपेटे
    रात उतरी है तेरे सिरहाने पर
    उठा कर रेशमी रजाई
    तू मुखडा दिखा देना
    सितारे भी बेताब हैं
    तेरे पहलू में उतर आने को
    aare waah resham si khubsurat rachana hai badhai,baaki dono bhi bahut sunder,jaise ke aasman mein chand ki roushani mein bhigta hua dil ka mausam,waah.

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  15. सूरज के सो जाने पर
    शाम के मुहाने पर
    अँधेरे की चादर लपेटे
    रात उतरी है तेरे सिरहाने पर

    kya baat hai hazoor.....

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  16. दूसरी कविता जिस पैटर्न पर है उसे शब्‍द चित्र कहते हैं और उसमें बहुत सावधानी से कलम को तूलिका बना कर काम करना होता है । आप उसमें सफल रहे हैं अच्‍छा शब्‍द चित्र है ।

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  17. वाह वाह जी बहुत ख़ूब आपका अंदाज़े-बयाँ निराला है

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  18. DUSARI KAVITAA KO JIS TARAH SE AAPNE SAJIV CHITRAN KIYA HAI WO KABILE TAARIF AUR KABILE GAUR HAI.... KITANI KHUBSURATI SE AAPNE US CHHOTE SE PAL KO LIKHAA HAI AUR USKE GAHARAYEE KO ABHAAR DILAAYA HAI AAPNE... UFFFFF KAMAAL KI BAAT KAHI HAI AAPNE...DHERO BADHAAYEE


    ARSH

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  19. अनुपम... अद्भुत

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  20. सूरज के सो जाने पर
    शाम के मुहाने पर
    अँधेरे की चादर लपेटे
    रात उतरी है तेरे सिरहाने पर
    उठा कर रेशमी रजाई
    तू मुखडा दिखा देना
    सितारे भी बेताब हैं
    तेरे पहलू में उतर आने को

    दिगंबर जी ,
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ...भावनात्मक अभिव्यक्ति ..सुन्दर शब्द संयोजन .
    हेमंत कुमार

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  21. भीषण गर्मी मे आज दिन भर की भागदौड़ के बाद रात साढे ग्यारह बज़े सुकून मिल रहा है आपको पढ कर्।

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  22. Komal bhav aur utni hi bhavuk abhivyakti...waah !!

    bahut bahut behtareen.

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  23. एक वक़्त ही तो है जो कभी दोबारा लौटकर नहीं आता. भावपूर्ण रचना.

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  24. shabdon mein na jaane kaun sa jadoo dala hai har shabd bol raha hai.

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  25. दिगंबर जी ,
    भावनात्मक अभिव्यक्ति .बहुत अच्छा लगा....

    जवाब देंहटाएं
  26. अचानक
    नीले आकाश पर
    काली बदली का छा जाना
    मस्ती में झूमती
    बूंदों की ताल पर
    मयूर का थिरकना
    तेज़ हवा के झौंकों में
    तितलियों का लरजना
    लगता है
    दूर तक फैली इन वादियों ने
    तेरे क़दमों की आहट सुन ली

    बहुत ही सुन्दर !!

    जवाब देंहटाएं
  27. मुझे तो तीनों रचनायें एक से के बढकर लगीं है बहुत ही संवेदना से हर लफ्ज़ को पिरोया है अच्चे शब्द शिल्पी हैन बधाई

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  28. बेहतरीन रचनाओं के लिये बधाई .

    अब लगा कि अफसाने रंगीन भी होते हैं और वो भी प्रकृति के रंग लिये हुए .

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  29. काश मैं वक़्त को रोक लेता
    तेरी खुश्बू
    इन वादियों में बस जाती
    इंद्रधनुष के रंगों में
    तू झिलमिलाती
    मैं इन रंगों को चुरा लेता
    ता उम्र तेरे रंगों में रंगे
    जीवन बिता देता

    बहुत बढिया कवितायेँ हैं आपकी ....खासकर ऊपर वाली कविता ..
    ब्लॉग पर आने का शुक्रिया .
    पूनम

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  30. बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! आपकी हर एक रचना एक से बढकर एक है जो काबिले तारीफ है!

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  31. सूरज के सो जाने पर
    शाम के मुहाने पर
    अँधेरे की चादर लपेटे
    रात उतरी है तेरे सिरहाने पर
    उठा कर रेशमी रजाई
    तू मुखडा दिखा देना
    सितारे भी बेताब हैं
    तेरे पहलू में उतर आने को
    क्या खूब लिखा है... गजब.......

    और इस लाइन का तो जबाव नहीं....
    काश मैं वक़्त को रोक लेता

    उसके आगमन पर क्या खूब लिखा है.....
    दूर तक फैली इन वादियों ने
    तेरे क़दमों की आहट सुन ली

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  32. raat utararti hai tere sirhane par......kaash hum sach me waqat ko rok pate....khubsurat lafjo me khobsurat ahsaas...

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  33. दूर तक फैली इन वादियों ने
    तेरे क़दमों की आहट सुन ली ....
    kya khub likha hai...inpanctiyon me to sara samander samaya hua hai...

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  34. कविताओं के सागर से उपजे तीन अनमोल मोती.......सचमुच ख़ास.....बधाई.....

    साभार
    हमसफ़र यादों का.......

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  35. सूरज के सो जाने पर
    शाम के मुहाने पर
    अँधेरे की चादर लपेटे
    रात उतरी है तेरे सिरहाने पर
    उठा कर रेशमी रजाई
    तू मुखडा दिखा देना
    सितारे भी बेताब हैं
    तेरे पहलू में उतर आने को

    वाह.....अद्भुत शब्द चित्र ......अब तो आप तारीफ से बाहर होते जा रहे हैं ........!!

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  36. aap bahut hi achchhaa likhate .sabhi rachana shandar hai har shabd tarife kabil mujhe to har line pasand hai .

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  37. bahut khoobsurat rachnayen.....dil ke jazbaat khoobsurati se likhe hain...blog bahut pasand aaya...

    badhai

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  38. सूरज के सो जाने पर
    शाम के मुहाने पर
    अँधेरे की चादर लपेटे
    रात उतरी है तेरे सिरहाने पर
    ....ye bhi khoobsurat rachnaa hai
    guljaar ke kareeb aa gyen hain aap ...

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है