स्वप्न मेरे: महकता एहसास

रविवार, 28 जून 2009

महकता एहसास

1)

शब्द जब गूंगे हो जाए
सांस कुछ कहने लगे
चाँद की ओटक से निकल
काली रात सरकने लगे
गुनगुनाती हवा नए साज़ छेड़े
तू चली आये
रात रानी की खुशबू का आँचल ओड़े
तेरी नर्म हथेली
अपने हाथों में लेकर
मैं मुंह छुपा लूँगा.....
तेरे हाथ की रेखाओं में
हमेशा के लिए बस जाऊँगा

2)

जब कभी
स्याह चादर लपेटे
ये कायनात सो जाएगी
दूर से आती
लालटेन की पीली रौशनी
जागते रहो का अलाप छेड़ेगी
दो मासूम आँखें
दरवाज़े की सांकल खोल
किसी के इंतज़ार में
अंधेरा चूम लेंगी
जैसे क्षितिज पर चूम लेते हैं
बादल ज़मीन को
वक़्त उस वक़्त ठहर जाएगा

58 टिप्‍पणियां:

  1. शब्द जब गूंगे हो जाए
    सांस कुछ कहने लगे
    चाँद की ओटक से निकल
    काली रात सरकने लगे
    गुनगुनाती हवा नए साज़ छेड़े
    तू चली आये
    रात रानी की खुशबू का आँचल ओड़े
    रात रानी के खुशबू भरे स्याह रात मे ,जब चाँद निकलकर प्यार की कहानी को परवान चढाये ............और उसपर से नर्म हथेली से चेहरे को छुपा लेना,जिस्म पर ठहरता हुआ ये छुअन जो आगे की कहानी बयान करती है ..........क्या कहे
    भाई साहब......... बिन पिये ही मदहोश किये जा रहे हो ............एक बार फिर आपके रोमांटिक
    जलवा.............. हमें तो होश भी नही है .

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  2. तेरी नर्म हथेली
    अपने हाथों में लेकर
    मैं मुंह छुपा लूँगा.....
    तेरे हाथ की रेखाओं में
    हमेशा के लिए बस जाऊँगा

    ...एक रोमांटिक अहसास

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  3. बहुत ख़ूब, ऐसे सुन्दर एहसास महसूस करके सच एक नया अनुभव हो रहा है।

    -----
    चर्चा । Discuss INDIA

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  4. बेहतरीन , न जाने कैसे लिख लेते है इतना बढ़िया आप

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  5. आज तो महकी महकी सी खुशबू आरही है जी. बहुत खूबसूरत.

    रामराम.

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  6. तेरी नर्म हथेली
    अपने हाथों में लेकर
    मैं मुंह छुपा लूँगा.....
    तेरे हाथ की रेखाओं में
    हमेशा के लिए बस जाऊँगा


    wah digambar ji in panktiyon ne to vastav men dil chura liya, kya khoob likha hai, haath ki rekhaon men bas jaaunga, teri kismat ban jaaunga. wah wah wah.

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  7. सुन्दर भावो से परिपूर्ण रचना बधाई.

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  8. चिलचिलाती गर्मी में आपकी रचना तो वसन्त आगमन का अहसास दे रही है.......बहुत बढिया

    दिगम्बर जी, लगता है कि आपने हमारी सलाह को गम्भीरता से नहीं लिया......भई! अभी भी समय है, जल्दी से ब्लाग पर नीम्बू मिर्ची टाँग लीजिए, वर्ना कहीं हमारी ही नजर न लग जाए।

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  9. wah digambar ji...

    waise to saari hi behteerin hai...
    ...par ye wali....

    शब्द जब गूंगे हो जाए
    सांस कुछ कहने लगे
    चाँद की ओटक से निकल
    काली रात सरकने लगे
    गुनगुनाती हवा नए साज़ छेड़े
    तू चली आये
    रात रानी की खुशबू का आँचल ओड़े
    तेरी नर्म हथेली
    अपने हाथों में लेकर
    मैं मुंह छुपा लूँगा.....
    तेरे हाथ की रेखाओं में
    हमेशा के लिए बस जाऊँगा.....



    .....aisa hi hum bhi soochte hain...
    ..."koi aaye !! koi aaiye !!!"

    dheere dheere "wo aaiye !! wo aaiye !!"
    main badal jaata hai aur anant main gum ho jaata hai...
    ...aata koi nahi ! koi bhi nahi !!

    ......
    .....
    .............

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  10. शब्द जब गूंगे हो जाए
    सांस कुछ कहने लगे

    बहुत सुन्दर शब्द संयोजन.

    सुन्दर अभिव्यक्ति पर बधाई.

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  11. आपको पढना बंद करना पड़ेगा वरना मै भी रोमांटिक कवि बन जाऊंगा।बजरंगबली भी नाराज़ हो जायेंगे।बहुत सुन्दर लिखा आपने,तारीफ़ के लिये शब्द ही नही मिल रहे हैं।

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  12. शब्द जब गूंगे हो जाए
    सांस कुछ कहने लगे
    चाँद की ओटक से निकल
    काली रात सरकने लगे
    गुनगुनाती हवा नए साज़ छेड़े
    सुन्दर लिखा आपने

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  13. जब कभी
    स्याह चादर लपेटे
    ये कायनात सो जाएगी
    दूर से आती
    लालटेन की पीली रौशनी
    जागते रहो का अलाप छेड़ेगी
    दो मासूम आँखें
    दरवाज़े की सांकल खोल
    किसी के इंतज़ार में
    अंधेरा चूम लेंगी
    जैसे क्षितिज पर चूम लेते हैं
    बादल ज़मीन को
    वक़्त उस वक़्त ठहर जाएगा

    बहुत सुन्दर कविता ...सरल शब्दों में ....खूबसूरत बिम्बों के साथ .
    हेमंत कुमार

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  14. दो मासूम आँखें
    दरवाज़े की सांकल खोल
    किसी के इंतज़ार में
    बहुत भावः पूर्ण रचना साधुवाद ऐसे सृजन के लिए

    जवाब देंहटाएं
  15. दो मासूम आँखें
    दरवाज़े की सांकल खोल
    किसी के इंतज़ार में
    बहुत भावः पूर्ण रचना साधुवाद ऐसे सृजन के लिए

    जवाब देंहटाएं
  16. जब कभी
    स्याह चादर लपेटे
    ये कायनात सो जाएगी...

    Atyant prabhavpurn.Badhai.

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  17. तेरी नर्म हथेली
    अपने हाथों में लेकर
    मैं मुंह छुपा लूँगा.....
    तेरे हाथ की रेखाओं में
    हमेशा के लिए बस जाऊँगा

    ji shukriyaa..khoobsurat..rachnaa

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  18. sabad aur Bhaw ka anokha mel. hoping lot more like this. Really this world need this kind of feelings.

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  19. भावनाओं का कितना सजीव चित्रण किया है इन लाइनों में.. सचमुच मजा आ गया...

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  20. शब्द जब गूंगे हो जाए
    सांस कुछ कहने लगे
    चाँद की ओटक से निकल
    काली रात सरकने लगे
    गुनगुनाती हवा नए साज़ छेड़े
    तू चली आये
    रात रानी की खुशबू का आँचल ओड़े

    सच कहूँ.....मुझे तो आपके shbdon से rat rani की khushboo आने लगी है .........!!

    lajwaab ......!!!!!!!

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  21. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  22. या यूँ लिखे तो और ज्यादा बेहतर लगता .......

    गुनगुनाती हवा नए साज़ छेड़े
    तुम चली आना
    मैं रातरानी की चादर ओढा दूंगा

    (bura n mane to ...)

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  23. तेरी नर्म हथेली
    अपने हाथों में लेकर
    मैं मुंह छुपा लूँगा.....
    तेरे हाथ की रेखाओं में
    हमेशा के लिए बस जाऊँगा

    -ओह्ह!! ये बात/ बहुत कोमल!!

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  24. जब शब्द गूंगे हो जाएं
    सांस कुछ कहने लगे...
    क्या खूब कहा आपने.
    सच कहें तो ये पढ़कर मुझे काफी अच्छी लगा।
    बहुत-बहुत शुक्रिया।

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  25. दो मासूम आँखें
    दरवाज़े की सांकल खोल
    किसी के इंतज़ार में
    अंधेरा चूम लेंगी
    जैसे क्षितिज पर चूम लेते हैं
    बादल ज़मीन को
    वक़्त उस वक़्त ठहर जाएगा

    आदरणीय दिगंबर जी ,
    बहुत खूबसूरत लगी आपकी यह कविता ..शुभकामनाएं .

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  26. आपकी रचनाएँ पढ़कर अभिभूत हो गया हूँ.......बधाई इस लेखन के लिए......

    साभार
    हमसफ़र यादों का.......

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  27. आपकी इस उम्दा कविता के लिए ढेर सारी बधाइयाँ! बहुत अच्छी लगी!

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  28. एक गम्‍भीर विषय पर पानी की तरह बहती हुई कविता।

    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  29. जब कभी
    स्याह चादर लपेटे
    ये कायनात सो जाएगी
    दूर से आती
    लालटेन की पीली रौशनी
    जागते रहो का अलाप छेड़ेगी
    दो मासूम आँखें
    दरवाज़े की सांकल खोल
    किसी के इंतज़ार में
    अंधेरा चूम लेंगी
    जैसे क्षितिज पर चूम लेते हैं
    बादल ज़मीन को
    वक़्त उस वक़्त ठहर जाएगा


    aapke bhav laajwab!

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  30. hamesha ki tarah laazavaab/
    chamtkrat karte hue, dil gudgudate hue se shbdo ki ye shrnkhalaa..mujh jese rasiko ke liye trapti pradaan karti he/
    तेरे हाथ की रेखाओं में
    हमेशा के लिए बस जाऊँगा
    kisi kavi ki esi kalpna usake athaah aseem kalpanaa lok ka parichaya kara deti he/
    दो मासूम आँखें
    दरवाज़े की सांकल खोल
    किसी के इंतज़ार में
    अंधेरा चूम लेंगी
    aour ye panktiya to sach maniye digambarji laazavaab he///
    kya behtreen sanyojan he// mujhe to mazaa aa gayaa/

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  31. तेरी नर्म हथेली
    अपने हाथों में लेकर
    मैं मुंह छुपा लूँगा.....
    तेरे हाथ की रेखाओं में
    हमेशा के लिए बस जाऊँगा
    वैसे तो दोनो रचनायों मे एक एक शब्द संवेदना संजोये है मगर इस अभ्व्यक्ति मे गहरे से छुपी एक मूक अभिव्यक्ति है बहुत सुन्दर और भाव मय रचना कवि की भावुक मन की उपज है बधाई

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  32. तेरी नर्म हथेली
    अपने हाथों में लेकर
    मैं मुंह छुपा लूँगा.....
    तेरे हाथ की रेखाओं में
    हमेशा के लिए बस जाऊँगा
    वैसे तो दोनो रचनायों मे एक एक शब्द संवेदना संजोये है मगर इस अभ्व्यक्ति मे गहरे से छुपी एक मूक अभिव्यक्ति है बहुत सुन्दर और भाव मय रचना कवि की भावुक मन की उपज है बधाई

    जवाब देंहटाएं
  33. सबने सब कुछ कह दिया बाकी अब कुछ नहीं रहा ,उन सभी बातो से मैं भी सहमत हूँ ,इतनी आछी रचना पे क्या कहूं ?

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  34. आपकी इस रचना पे एक गीत याद आ रहा है उसके बोल है ------
    है ये दुनिया कौन सी ये दिल तुझे क्या हो गया ,जैसे मंजिल पे आकर कोई मुसाफिर खो गया .

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  35. सबसे पहले तो आपका बहुत-बहुत आभार् व्‍यक्‍त करना चाहूंगी कि आपने हमेशा मेरे ब्‍लाग पर आकर मुझे प्रोत्‍साहित किया, आपकी रचना में इन शब्‍दों में दिल को छूने वाले भाव बहुत पसन्‍द आये

    तेरी नर्म हथेली
    अपने हाथों में लेकर
    मैं मुंह छुपा लूँगा.....
    तेरे हाथ की रेखाओं में
    हमेशा के लिए बस जाऊँगा

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  36. बेहतरीन रचना..रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....

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  37. Ek ek shabd moti ki tarah hai aapki nazm mein

    दो मासूम आँखें
    दरवाज़े की सांकल खोल
    किसी के इंतज़ार में

    kitna masoom hai kahan

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  38. जब कभी
    स्याह चादर लपेटे
    ये कायनात सो जाएगी
    दूर से आती
    लालटेन की पीली रौशनी
    जागते रहो का अलाप छेड़ेगी
    दो मासूम आँखें
    दरवाज़े की सांकल खोल
    किसी के इंतज़ार में
    अंधेरा चूम लेंगी
    अदभुत ,पढ़कर बहुत अच्छा लगा धन्यवाद

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  39. तू चली आये
    रात रानी की खुशबू का आँचल ओड़े
    तेरी नर्म हथेली
    अपने हाथों में लेकर
    मैं मुंह छुपा लूँगा.....
    तेरे हाथ की रेखाओं में
    हमेशा के लिए बस जाऊँगा

    काव्या के पूरे प्रारूप को प्रतिविम्बित करती हुई
    ये पंक्तियाँ अपने भाव हर पढने वाले तक पहुंचाने
    में सक्षम लग रही हैं ......
    रूमानियत का जज़्बा अपने यौवन पर है
    और .....
    वक़्त , उस वक़्त ठहर जाएगा ....बस ! लाजवाब !!!
    बधाई स्वीकारें . . .
    ---मुफलिस---

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  40. "शब्द जब गूंगे हो जाए
    सांस कुछ कहने लगे"
    ये पंक्तियां बहुत अच्छी लगी....
    इस सुन्दर रचना के लिये बहुत बहुत धन्यवाद...

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  41. kaaphi achchhi rachna....inspiration milta hai..aapki rachnaao se....

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  42. तेरी नर्म हथेली
    अपने हाथों में लेकर
    मैं मुंह छुपा लूँगा.....
    तेरे हाथ की रेखाओं में
    हमेशा के लिए बस जाऊँगा


    बहुत सुंदर लिखा है जी,,

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  43. itne sundar prem se sajaye bahv

    sach main samay thar sa gaya hoga !

    Mere blog par hauslafzaii ka bhee bhaut shukriya !!

    Abhaar !!

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  44. लाजवाब ! बहुत सुन्दर रचना धन्यवाद .

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  45. बहुत सुंदर और मनमोहक कल्‍पना-
    चाँद की ओटक से निकल
    काली रात सरकने लगे

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  46. "शब्द जब गूंगे हो जाए
    सांस कुछ कहने लगे"
    -----------और ---------
    जैसे क्षितिज पर चूम लेते हैं
    बादल ज़मीन को
    वक़्त उस वक़्त ठहर जाएगा!

    ये panktiyan vishesh pasand aayin...
    आप बहुत ही achcha लिखते हैं और ये दोनों kavitayen बहुत ही bhaavpoorn हैं.
    शुक्रिया..

    और देर से comment de pane के लिए maafi चाहती हूँ.

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  47. अभी-अभी हमने आपका एक एक शब्द जी लिया..
    कैसे ? यह तो आपके भावों का चमत्कार है और कुछ नहीं..

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  48. bhavon ki bahut sunder abhivyakti.meri kavitayon ko padne ke liye shukriya ----prem.

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  49. शब्द वाकई गूंगे हो जाते हैं आपकी रचना की बुनकरी देखकर

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है