स्वप्न मेरे: क्या ये प्रेम है.......

शनिवार, 1 अगस्त 2009

क्या ये प्रेम है.......

1)

लहरों की चाहत ..........
चाँद को पाने की अल्हड़ सी होड़
पल भर में जीवन जीने की प्यास
उश्रंखल प्रेम का उन्मुक्त उल्लास.......
अपने उन्माद में खो जाने का चाह
दूर क्षितिज पर डूबते चाँद के साथ
अपने वजूद को मिटा देने की जंग
कृष्न में समा कर
कृष्णमय हो जाने की उमंग........

प्रेम ही तो मुक्ति का मार्ग है.........

2)

समय की दराज से
छिटक कर गिर गए
कुछ लम्हे ........
बाकी है
अभी भी उन लम्हों में......
सांस लेती चिंगारियां
बुदबुदाते अस्फुट शब्द ......
अटकती साँसें
महकता एहसास ........
सादगी भरा
पलकें झुकाए
पूजा की थाली लिए
गुलाबी साड़ी में लिपटा
तेरा रूप...........
और भी बाकी है बहुत कुछ
उन जागते लम्हों में ........

वो कहानी फिर कभी ........

58 टिप्‍पणियां:

  1. समय की दराज से
    छिटक कर गिर गए
    कुछ लम्हे ........
    बाकी है
    अभी भी उन लम्हों में
    bahut sunder likha hai.....dil ko chu gaya

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रेम के सारे भाव का चित्रण किया कमाल।
    भला प्रेम कहते किसे शीर्षक करे सवाल।।

    सुन्दर भाव की रचना दिगम्बर भाई।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  3. बाकी है
    अभी भी उन लम्हों में......
    सांस लेती चिंगारियां
    अद्भुत है ये रचना

    जवाब देंहटाएं
  4. लहरों की चाहत ..........
    चाँद को पाने की अल्हड़ सी होड़
    पल भर में जीवन जीने की प्यास
    उश्रंखल प्रेम का उन्मुक्त उल्लास.......
    अपने उन्माद में खो जाने का चाह
    दूर क्षितिज पर डूबते चाँद के साथ
    अपने वजूद को मिटा देने की जंग
    कृष्न में समा कर
    कृष्णमय हो जाने की उमंग........

    प्रेम ही तो मुक्ति का मार्ग है.........
    पूरी तरह से इसी को प्रेम कहते है .......और यह बिल्कुल अब सत्य लगने लग है कि प्रेम ही मुक्ति का मार्ग है ........जो संसारिक नही परलौकिक होता है ........एक घुंट बिस का प्याला जो मीरा ने पिया था........अतिसुन्दर
    समय की दराज से
    छिटक कर गिर गए
    कुछ लम्हे ........
    -----------------
    गज़ब की रचना.....बधाई

    जवाब देंहटाएं
  5. समय की दराज से
    छिटक कर गिर गए
    कुछ लम्हे ........


    bahut hi sundar line hai.........




    kahani abhi baaki hai mere dost........

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  6. KYAA BAAT HAI AAPNE FIR SE PREM KI DARIYA BAHAA DI WAAH MAIN TO DUBKIYAAN LAGAANE ME LAGAA PADAA HUN MUJHE NIKALANE NAA DENAA AAP.. KAMAAL KI BAAT KAHI HAI AAPNE BAHOT BAHOT BADHAAYEE


    ARSH

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  7. बहुत अच्छा लिखा है आपने । भाव, विचार, शब्द चयन और प्रस्तुतिकरण के सुंदर समन्वय से रचना प्रभावशाली बन पड़ी है ।

    मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-इन देशभक्त महिलाओं के जज्बे को सलाम- समय हो तो पढें और कमेंट भी दें-

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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  8. बड़े अध्यात्मिक टाईप हुए जा रहे हो महाराज!!

    प्रेम ही तो मुक्ति का मार्ग है.........


    वाह!!

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  9. wah digamber ji,

    दूर क्षितिज पर डूबते चाँद के साथ
    अपने वजूद को मिटा देने की जंग
    कृष्न में समा कर
    कृष्णमय हो जाने की उमंग........

    प्रेम ही तो मुक्ति का मार्ग है...

    prem aur krishna ye do hi jiwan ka saar hain/uddeshya hain, bahut sunder panktiyon men ye saar sameta hai. badhai.

    जवाब देंहटाएं
  10. सादगी भरा
    पलकें झुकाए
    पूजा की थाली लिए
    गुलाबी साड़ी में लिपटा
    तेरा रूप...........
    और भी बाकी है बहुत कुछ
    उन जागते लम्हों में ........

    Bandhu,
    bahut doob gaye ho.badhai!

    वो कहानी फिर कभी ........

    जवाब देंहटाएं
  11. प्रेम ही मुक्ति का मार्ग है . सत्य है . लेकिन प्रेम को समय समय पर कसोटी पर परखा जाता है .
    बहुत सुंदर कविताये , धन्यवाद

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  12. समय की दराज से
    छिटक कर गिर गए
    कुछ लम्हे ........
    बहोत पसंद आइ। आपकी रचना में बहोत गहराइ है।

    अभिनंदन।

    जवाब देंहटाएं
  13. अपने उन्माद में खो जाने का चाह
    दूर क्षितिज पर डूबते चाँद के साथ
    अपने वजूद को मिटा देने की जंग
    कृष्न में समा कर
    कृष्णमय हो जाने की उमंग........

    प्रेम ही तो मुक्ति का मार्ग है.........


    वाह्! भई दिगम्बर जी, क्या भक्तिमय रचना प्रस्तुत की है!!! बहुत बढिया!!!!

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  14. prem ko janna hai to krishna ko jano aur krishn ko jisne jaan liya usne prem ko pa liya.........prem ka bahut hi utkrisht chitran kiya hai...........dono rachnayein apne aap mein sampoorna hain.

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  15. दिगम्बर नासवा जी, आपकी पोस्टें तो पढ़ता रहा हूँ लेकिन टिप्पणी पहली बार कर रहा हूँ।

    आपकी कविताएं जितना भाव व्यक्त करती हैं उससे कुछ ज्यादा ही छिपा ले जाती हैं। यह कविता भी अनूठी है। बधाई।

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  16. अदभुत शब्दश्रिंखला.....बहुत सुन्दर.

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  17. दोनों ही बहुत अच्छी हैं, मुझे दूसरी पढ़कर आनंद की अनुभूति हुई ....बेहतरीन

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  18. प्रेम ही तो मुक्ति का मार्ग है..

    बहुत खूबसूरत.

    रामराम.

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  19. Bahut sundar.

    पाखी के ब्लॉग पर इस बार देखें महाकालेश्वर, उज्जैन में पाखी !!

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  20. बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति ।

    सूक्ति ने लुभाया - " प्रेम ही तो मुक्ति का मार्ग है ।"

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  21. प्रेम की अनुभूति को सही उंचाई दी है आपने,आभार।

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  22. कृष्न में समा कर
    कृष्णमय हो जाने की उमंग........

    प्रेम ही तो मुक्ति का मार्ग है.........
    सुन्दर कहन. आपकी शैली बहुत अच्छी है.

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  23. 'प्रेम ही तो मुक्ति का मार्ग है......... '
    - प्रेम एक और परिभाषा.

    जवाब देंहटाएं
  24. समय की दराज से
    छिटक कर गिर गए
    कुछ लम्हे ........
    बाकी है
    अभी भी उन लम्हों में......
    सांस लेती चिंगारियां
    बुदबुदाते अस्फुट शब्द ......
    अटकती साँसें
    महकता एहसास ........
    सादगी भरा
    पलकें झुकाए
    पूजा की थाली लिए
    गुलाबी साड़ी में लिपटा
    तेरा रूप...........
    और भी बाकी है बहुत कुछ
    उन जागते लम्हों में ........

    वो कहानी फिर कभी .....

    बहुत सुन्दर!

    जवाब देंहटाएं
  25. आपका दार्शनिक पुट अच्छा लगा । कहने का अंदाज़ भी प्रशंसनीय है ।

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  26. अत्यन्त सुंदर रचना! मुझे बहुत पसंद आया!

    जवाब देंहटाएं
  27. अभी भी उन लम्हों में......
    सांस लेती चिंगारियां

    बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  28. ....दूर क्षितिज पर डूबते चाँद के साथ
    अपने वजूद को मिटा देने की जंग
    कृष्न में समा कर
    कृष्णमय हो जाने की उमंग........

    प्रेम ही तो मुक्ति का मार्ग है......... वाह !!! मज़ा आ गया.......मै तो डूब ही गया....

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  29. dear digamber ji , aasaan nahi hota, jazbaato ko alfaazo mei pirona..., aapne isme kamyaabi hasil ki hai , bahut-bahut mubaraqbaad aur aapne jazbaato mei hame bhi shamil karne ka shukriya...! khuda aapko bulandi tak pahuchaye... !

    Pratima Sinha from ''MERA AKASH''

    जवाब देंहटाएं
  30. बहुत अच्छा लिखा है आपने । भाव, विचार, शब्द चयन और प्रस्तुतिकरण के सुंदर समन्वय से रचना प्रभावशाली बन पड़ी है ।

    जवाब देंहटाएं
  31. प्रेम ही तो मुक्ति का मार्ग है.........
    बिल्कुल सही बात है।

    और भी बाकी है बहुत कुछ
    उन जागते लम्हों में ........

    सुन्दर शब्द, बढिया भाव।
    बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  32. पलकें झुकाए
    पूजा की थाली लिए
    गुलाबी साड़ी में लिपटा
    तेरा रूप...........
    और भी बाकी है बहुत कुछ
    उन जागते लम्हों में ........ीआपकी हर रचना मे इतनी गहरी बात होती है कि कभी कभी एक ही जगह पर वो दिल को बान्ध लेती है अगले शब्द तक जाने का मन नहीं होता कुछ भाव और शब्द ऐसे ही होते हैं बहुत खूब्सूरत प्रेमरस मे डूबी रचना आपको पढना बहुत अच्छा लगता है शुभकामनायें

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  33. भावात्मक अभिव्यक्ति... वाह.. साधुवाद स्वीकारें.

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  34. Aapki 'aajtakyahantak'pe comments ke liye tahe dilse shukr guzaar hun..jaantee,hun, aap kitne wyast rahte honge..bhibhee is nacheez kee hausla afzayee karte hain...ye zarranawazee hai...

    Aapkee rachnaon pe kuchh tippanee dene ke qabil mai nahee...!

    http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

    http://shamasnsmaran.blogspot.com

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  35. अति सुन्दर, बधाई
    और क्या लिखूं, सब कुछ तो कह दिया आपने
    ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होए................
    प्रेम ही तो मुक्ति का मार्ग है.........

    जवाब देंहटाएं
  36. prem hi mukti ka maarg he/ jaroor/ sach yah bhi he ki is mukti me tyag, samarpan, dard, pida aour milan ki dhadhakati agni se hokar hi gujarna hota he, tabhi vo svarn ki tarh chamak paataa he, mukti ka maarg banaataa he/
    fir ek baar sundar abhivyakti/
    VO KAHANI FIR KABHI....
    isaka bhi intjaar he/////

    जवाब देंहटाएं
  37. शीर्षक के अनुसार पहला छंद ही अच्छा लगा

    जवाब देंहटाएं
  38. aapke is rachana par jo tippani dali thi wo post nahi hui shayad ,aaj aane par pata laga aur afsos bhi hua ,aage ki kahi bate sabhi ne kah di ,use kya dohrau ,is title se judi baate kahungi ..
    chandrma ki chandni se bhi naram ,aur shashi ke bhal se jyada garam ,kuchh aur nahi ,kewal pyar hai ,kewal pyar hai .
    aur rachana lazwaab hai .

    जवाब देंहटाएं
  39. समय की दराज से
    छिटक कर गिर गए
    कुछ लम्हे ........
    बाकी है
    अभी भी उन लम्हों में......
    सांस लेती चिंगारियां

    ग़ज़ब की कल्पनाशीलता है आपकी | बहुत अच्छी लगी |

    एक spelling mistake है - " कृष्न में समा कर " ये कृष्ण होना चाहिए | समय मिले तो सुधार लीजिये |

    जवाब देंहटाएं
  40. समय की दराज से
    छिटक कर गिर गए
    कुछ लम्हे ........
    बाकी है
    अभी भी उन लम्हों में......
    सांस लेती चिंगारियां

    अति सुन्दर, बधाई

    जवाब देंहटाएं
  41. बहुत सुन्दर,मेरी शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  42. digambar ji

    main kya kahun , mere paas shabd nahi hai tareef ke liye .. aapne to prem ki itni shaandar vyakya ki hai ,, man me swapan jaag uthe hai ji .. aapko koti koti badhai..

    aabhar

    vijay

    pls read my new poem "झील" on my poem blog " http://poemsofvijay.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  43. दूर क्षितिज पर डूबते चाँद के साथ
    अपने वजूद को मिटा देने की जंग
    कृष्न में समा कर ......


    prem hi adhyatm ki pehli sidhi hai...

    koi samjhe ise.

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  44. कृष्न में समा कर
    कृष्णमय हो जाने की उमंग........
    meera bhi krishanmay ho gyee thi.magar har yug me use wish peeni padtee hai,...apni likhi ye pankatiya ekdum alag si hai or pata nahi mujhe kya kahna hai..boht khoobsurat rachna...

    जवाब देंहटाएं
  45. अपने उन्माद में खो जाने का चाह
    दूर क्षितिज पर डूबते चाँद के साथ
    अपने वजूद को मिटा देने की जंग
    कृष्न में समा कर
    कृष्णमय हो जाने की उमंग........


    अद्भुभुत अहसास : बधाइयाँ.

    जवाब देंहटाएं
  46. सादगी भरा
    पलकें झुकाए
    पूजा की थाली लिए
    गुलाबी साड़ी में लिपटा
    तेरा रूप...........
    और भी बाकी है बहुत कुछ
    उन जागते लम्हों में ........


    लाजवाब.....!!!

    जवाब देंहटाएं
  47. समय की दराज से
    छिटक कर गिर गए
    कुछ लम्हे ........
    बाकी है
    अभी भी उन लम्हों में......
    सांस लेती चिंगारियां
    ise kahte hain kalpana ki udaan..
    chakit kar dete hain aap apni kalpana ki udaan se hamesha..
    atisundar..

    जवाब देंहटाएं
  48. लहरों की चाहत ..........
    चाँद को पाने की अल्हड़ सी होड़
    पल भर में जीवन जीने की प्यास
    उश्रंखल प्रेम का उन्मुक्त उल्लास.......

    bahut hi sundar aur bhaav bhari rachna hai!

    समय की दराज से
    छिटक कर गिर गए
    कुछ लम्हे ........
    बाकी है
    --वो कहानी फिर कभी ........ ..
    adbhut!

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  49. बहुत सुन्दर लिखा है आप ने दिगंबर जी.

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  50. बेहद सही कहा आपने ..! हम "धर्म ' इस शब्द का अर्थ ,'जात पात' संलग्न करने लगे हैं ..जबकि सही अर्थ है ,'निसर्ग के नियम '.....' कुदरत के कानून'...जैसे ,' अग्नी का धर्म है जलना और जलाना ..ये जात पात ये भेद भाव तो मानव निर्मित हैं ..! निसर्ग के नियम दुनियामे कहीं भी जायें, सब के लिए एक समान हैं...कोई भेद भाव नही॥ इन नियमों का गर कोई भंग करता है तो, तुंरत सज़ा पता है...एक बार उच्च तम न्यायलय से बच निकले...यहाँ माफी नही...
    'रुषी' इस शब्द का शब्द कोष में अर्थ है,' जिसने रुत के नियमों को जाना..एक scientist! '
    Mai comment aapke aalekh pe dena chaah rahee thee..lekin post nahee ho paya..!

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  51. samay ki daraj se chhitak gaye kuchh lamahe..
    haan ji , baat main dam hai.
    renu

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है