स्वप्न मेरे: ये दर्द के हैं आँसू आ पलक में सजा लें

गुरुवार, 10 सितंबर 2009

ये दर्द के हैं आँसू आ पलक में सजा लें

ये प्रीत की है मेहँदी फिर हाथ में लगा लें
रूठे हुवे हैं सजाना चल प्यार से मना लें

इस दर्द से सिसकती खामोश ज़िंदगी को
लम्हा जो छू के आया आ जिंदगी बना लें

शबनम की बूँद है तो ये सूखती नही क्यों
ये दर्द के हैं आँसू आ पलक में सजा लें

इस गीत की उदासी कहती है इक कहानी
महफ़िल में है अंधेरा चल रोशनी जला लें

तुम अंजूरी में भर के खुशियाँ समेट लेना
हम दस्ते-नाज़ुकी से कंकड़ सभी उठा लें

56 टिप्‍पणियां:

  1. तुम अंजूरी में भर के खुशियाँ समेट लेना
    हम दस्ते-नाज़ुकी से कंकड़ सभी उठा लें

    बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति, आभार्

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  2. इस गीत की उदासी कहती है इक कहानी
    महफ़िल में है अंधेरा चल रोशनी जला लें

    Sundar, Laajabaab !!

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  3. इस दर्द से सिसकती खामोश ज़िंदगी को
    लम्हा जो छू के आया आ जिंदगी बना लें

    बहुत बहुत सुन्दर लिखा है हर शेर आपने .यह विशेष रूप से पसंद आया ..दर्द ही ज़िन्दगी जो जीने के नए अंदाज़ सिखा देता है

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  4. इस दर्द से सिसकती खामोश ज़िंदगी को
    लम्हा जो छू के आया आ जिंदगी बना लें

    प्यार और एहसास के चादर में लिपटी हुई बेहद भावपूर्ण कविता...
    बधाई..

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  5. बहुत खूबसूरती से लिखा है आपने....मुझे बहुत पसंद आई आपकी रचना

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  6. ये प्रीत की है मेहँदी फिर हाथ में लगा लें
    रूठे हुवे हैं सजाना चल प्यार से मना लें
    बेहद भावपुर्ण अभिव्यक्ति ........जिसमे सजना को मना लेने वाली बात बहुत ही सुन्दर है .......नाजुक भाव


    इस दर्द से सिसकती खामोश ज़िंदगी को
    लम्हा जो छू के आया आ जिंदगी बना लें

    यह शेर दिल की गहराईयो मे गोते लगा रही है .....इसमे जीवन दिखता है सुन्हरा .......
    बहुत ही सुन्दर रचना

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  7. शबनम की बूँद है तो ये सूखती नही क्यों
    ये दर्द के हैं आँसू आ पलक में सजा लें
    तुम अंजूरी में भर के खुशियाँ समेट लेना
    हम दस्ते-नाज़ुकी से कंकड़ सभी उठा लें

    ज़िन्दगी और दर्द का तो जन्मों का रिश्ता है ………………………और आपने उसे बखूबी समेटा है।

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  8. ये प्रीत की है मेहँदी फिर हाथ में लगा लें
    रूठे हुवे हैं सजाना चल प्यार से मना लें

    सजाना को साजन कर लें।
    बाकी सब ठीक है।
    गज़ल बहुत बढ़िया है।
    जिन्दाबाद!
    बहुत-बहुत बधाई!

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  9. तुम अंजूरी में भर के खुशियाँ समेट लेना
    हम दस्ते-नाज़ुकी से कंकड़ सभी उठा लें !!!

    वाह वाह वाह !!! लाजवाब !!! बहुत बहुत सुन्दर....सभी शेर एक से बढ़कर एक हैं,पर यह शेर वाह वाह वाह !!! भावः का खजाना भर है इसमें...

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  10. सच में बहुत उम्दा ग़ज़ल लिखते है आप . ऐसे ही हीरे चुनते रहे हम सहेजते रहेंगे

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  11. ये प्रीत की है मेहँदी फिर हाथ में लगा लें
    रूठे हुवे हैं सजाना चल प्यार से मना लें ...behad nazuk rachna....mehandi ki tarah mahkati huee....

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  12. शबनम की बूँद है तो ये सूखती नही क्यों
    ये दर्द के हैं आँसू आ पलक में सजा लें
    तुम अंजूरी में भर के खुशियाँ समेट लेना
    हम दस्ते-नाज़ुकी से कंकड़ सभी उठा लें
    बहुत सुन्दर ग़ज़ल

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  13. इस दर्द से सिसकती खामोश ज़िंदगी को
    लम्हा जो छू के आया आ जिंदगी बना लें

    wah , bahut khoob , digambar ji, behatareen rachna, badhai.

    vatan aagaman par swagat.

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  14. "ये प्रीत की है मेहँदी फिर हाथ में लगा लें
    रूठे हुवे हैं सजाना चल प्यार से मना लें

    इस दर्द से सिसकती खामोश ज़िंदगी को
    लम्हा जो छू के आया आ जिंदगी बना लें"

    aur

    "तुम अंजूरी में भर के खुशियाँ समेट लेना
    हम दस्ते-नाज़ुकी से कंकड़ सभी उठा लें"



    ye teen line to dil ko chu gayi bhai ,
    maanoge nahi ?
    na mil paane ki jo tees thi....
    ...use jeevit rakhna chahte ho?
    theek hai....
    ...hum intzeer kareinge.

    Ek baar fir badhiya rachna ke liye aabhar....

    ...aur shabdon ki kami ke liye kshama.

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  15. देरी के लिए मुआफी हजूर,रचना गहरा भाव लिए है ... बहुत ही खूबसूरती से अपना पक्ष आपने रखा है ... ढेरों बधाई ...


    अर्श

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  16. 'महफ़िल में है अंधेरा चल रोशनी जला लें'
    - समाज में ऐसे ही जज्बे वाले राह दिखाते हैं.

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  17. शबनम की बूँद है तो ये सूखती नही क्यों
    ये दर्द के हैं आँसू आ पलक में सजा लें

    तुम अंजूरी में भर के खुशियाँ समेट लेना
    हम दस्ते-नाज़ुकी से कंकड़ सभी उठा लें

    गज़ब .. गज़ब है भाई. बहुत उम्दा शेर कहे हैं ....

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  18. इस गीत की उदासी कहती है इक कहानी
    महफ़िल में है अंधेरा चल रोशनी जला लें

    आपके इस शेर ने मन के दिए जला कर रौशनी की... सुन्दर.

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  19. "तुम अंजूरी में भर के खुशियाँ समेट लेना,
    हम दस्ते-नाज़ुकी से कंकड़ सभी उठा लें"
    वाह...बहुत उम्दा शेर.....बहुत सुन्दर ग़ज़ल...

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  20. "तुम अंजूरी में भर के खुशियाँ समेट लेना,
    हम दस्ते-नाज़ुकी से कंकड़ सभी उठा लें"
    waah!

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  21. इस दर्द से सिसकती खामोश ज़िंदगी को
    लम्हा जो छू के आया आ जिंदगी बना लें |

    वाह भाई वाह..... सभी के सभी शेर जबरदस्त |...

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  22. इस दर्द से सिसकती खामोश ज़िंदगी को
    लम्हा जो छू के आया आ जिंदगी बना लें

    तुम अंजूरी में भर के खुशियाँ समेट लेना
    हम दस्ते-नाज़ुकी से कंकड़ सभी उठा लें

    zindagi ke mayne samjhate sundar sher !!

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  23. शबनम की बूँद है तो ये सूखती नही क्यों
    ये दर्द के हैं आँसू आ पलक में सजा लें


    bhai yeh bahut hi khoobsoorat lines hain.....

    poori kavita ne dil chhoo liya...

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  24. कितना सुन्दर लिखा है आपने…………………बधाई ।

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  25. तुम अंजूरी में भर के खुशियाँ समेट लेना
    हम दस्ते-नाज़ुकी से कंकड़ सभी उठा लें

    क्या खूब लिखा है!! लाजवाब गजल.....

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  26. वाह बहुत सुंदर भावाभियक्ति
    "ये दर्द के हैं आँसू आ पलक में सजा लें"
    शब्दों
    को इतने करीने से पिरोया गया है कि उम्दा ग़ज़ल बन गयी |

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  27. इस दर्द से सिसकती खामोश ज़िंदगी को
    लम्हा जो छू के आया आ जिंदगी बना लें


    --गजब महाराज! ऐसा न करो!!

    हम तो दंग ही रह जाते हैं कि कैसे इसके आस पास का भी लिखें.

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  28. नासवा जी नमस्कार
    अच्छी रचना के लिए बहूत बहूत बधाई

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  29. नासवा जी नमस्कार
    अच्छी रचना के लिए बहूत बहूत बधाई

    जवाब देंहटाएं
  30. इस दर्द से सिसकती खामोश ज़िंदगी को
    लम्हा जो छू के आया आ जिंदगी बना लें
    इस फलसफे के आशिक हम भी हैं। कोई चलकर तो देखे इस राह पर, फिर पूछे शायर से कि तूं ने इसे पाया कैसे ?
    आपको पढ़ना, अपने पसंदीदा एहसास में जीने जैसा है। बधाई।

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  31. दुआ करती हूँ, पलकों पे आँसू नहीं नूर की बूँदें बसें, सपनों की परियाँ सोयें, फूलोंकी सेज सजे...

    http://shamasansmaran.blogspot.com

    http://kavitasbyshama.blogspot.com

    http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

    http://baagwaanee.blogspot.com

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  32. ऐसा लगता है जिंदगी की हकीकत शब्दों में उतर आयी. बेहद लाजवाब भाव और उतनी ही सुंदर अभिव्यक्ति.

    रामराम.

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  33. बहुत ही ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! इतना अच्छा लगा कि तारीफ के लिए अल्फाज़ कम पर गए! इस बेहतरीन रचना के लिए बधाइयाँ!

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  34. सभी शेर लाजवाब हैं.
    'शबनम की बूँद है तो ये सूखती नही क्यों
    ये दर्द के हैं आँसू आ पलक में सजा लें
    -यह शेर कुछ ख़ास लगा.

    -ग़ज़ल बहुत ही भावपूर्ण है.


    'लम्हा जो छू के आया आ ज़िन्दगी बना लें'

    वाह ! वाह! !वाह!!!

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  35. शबनम की बूँद है तो ये सूखती नही क्यों
    ये दर्द के हैं आँसू आ पलक में सजा लें

    दिगंबर जी ,
    बहुत सुन्दर रचना .प्रकृति और संवेदनाओ का अच्छा संयोजन.
    हेमंत कुमार

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  36. "तुम अंजूरी में भर के खुशियाँ समेट लेना
    हम दस्ते-नाज़ुकी से कंकड़ सभी उठा लें"

    क्या बात कही है दिगम्बर जी...वाह!

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  37. इस गीत की उदासी कहती है इक कहानी
    महफ़िल में है अंधेरा चल रोशनी जला लें

    दिगंबर जी, सुंदर तरीके से आशावादिता को प्रकट किया है आपने। रोशनी की सचमुच सख्त जरूरत है।

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  38. इस गीत की उदासी कहती है इक कहानी
    महफ़िल में है अंधेरा चल रोशनी जला लें ।
    आभार ।

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  39. ये दर्द के आंसू..अंजुरी में खुशिया समेटने की वकालत..बहुत खूब..
    बहुत सुन्दर रचना..!!

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  40. इस गीत की उदासी कहती है इक कहानी
    महफ़िल में है अंधेरा चल रोशनी जला लें

    बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है...बधाई

    जवाब देंहटाएं
  41. ये प्रीत की है मेहँदी फिर हाथ में लगा लें
    रूठे हुवे हैं सजाना चल प्यार से मना लें

    "तुम अंजूरी में भर के खुशियाँ समेट लेना
    हम दस्ते-नाज़ुकी से कंकड़ सभी उठा लें"
    आपकी सभी रचनायें हमेशा ही दिल को छू लेती हैं मगर इस गज़ल ने तो जैसे कुछ कहने के लिये शब्द ही मूक कर दिये हैं। लाजवाब । दोल के तारों की धुनकी खूब सुरीली बजी है बहुत बहुत बधाई

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  42. दिगम्बर जी,

    आपकी रचनायें दिल छू ले जाती हैं। क्या कमाल किया है इस अशआर में:-

    इस दर्द से सिसकती खामोश ज़िंदगी को
    लम्हा जो छू के आया आ जिंदगी बना लें

    बहुत ही अच्छी गज़ल।

    सादर,


    मुकेश कुमार तिवारी

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  43. bas yahi to mazaa he/ yahi khaasiyat he aapki rachnao ki,..bhaav abhivyakt karne ki sundar kalaa/
    इस गीत की उदासी कहती है इक कहानी
    महफ़िल में है अंधेरा चल रोशनी जला लें
    har ek udaasi ke pichhe chhupi hoti he kahaani...aour ise door karne ki pahal karti aapki rachnaa..waah/ aour isame-
    तुम अंजूरी में भर के खुशियाँ समेट लेना
    हम दस्ते-नाज़ुकी से कंकड़ सभी उठा लें
    yahi prem ki paraakashthaa he/ tum mere saare sukh le lo, mujhe apane sab dukh de do..,//// digambarji..ye aansu palko me sazaane ke liye hi he/ laazavaab

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  44. बहुत ही अच्छा लिखा है। मैने पहली बार आपका ब्लाग पढ़ा है। एक...दो...तीन...चार...और फिर सभी रचानाएं एक एक कर पढ़ता चला गया। जिंदगी को बेहद करीब से जानकर लिखा है।

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  45. बे-अदबी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ,अंजुरी छोटी होती है उसमे खुशियाँ समेटने को कहा है और स्वं के हाथ को नाज़ुक शब्द प्रयोग किया है

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  46. इस दर्द से सिसकती खामोश ज़िंदगी को
    लम्हा जो छू के आया आ जिंदगी बना लें

    बहुत ही सकारात्मक अभिव्यक्ति.
    ग़ज़ल बहुत ही अच्छी बन पड़ी है. हार्दिक बधाई.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  47. तुम अंजूरी में भर के खुशियाँ समेट लेना
    हम दस्ते-नाज़ुकी से कंकड़ सभी उठा लें
    नाज़ुक ख्याली का एक निराला अंदाज़ ! बहुत खूब नासवा जी ! पूरी ग़ज़ल ही खूबसूरत बन पड़ी है !

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  48. कोई दर्द सुनाती रचना -गहरे भावों में डूबी सी ,अच्छी लगी ।

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  49. दस्ते नाज़ुकी से कंकड उठाने का ख्याल बेहतरीन है बधाई

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  50. इस गीत की उदासी कहती है इक कहानी
    महफ़िल में है अंधेरा चल रोशनी जला लें

    तुम अंजूरी में भर के खुशियाँ समेट लेना
    हम दस्ते-नाज़ुकी से कंकड़ सभी उठा लें .
    kya kahane bahut hi shandar .

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  51. इस गीत की उदासी कहती है इक कहानी
    महफ़िल में है अंधेरा चल रोशनी जला लें

    waah waah digambar ji

    kya kahne hai ... geet ki udasi kahti hai ek kahani .. chal roshni jala le.. bhai ,main kurbaan ho gaya ..

    ye do lines me jaise ek zindagi ka daastan chupi hui hai ..

    meri dil se badhai kabool kare..

    vijay

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