स्वप्न मेरे: आस्था आदर्श पर ...

मंगलवार, 24 नवंबर 2009

आस्था आदर्श पर ...

जगमगाती रौशनी और शहर के आकर्ष पर
बन गए कितने फ़साने जुस्तजू संघर्ष पर

छू लिया क्यों आसमान सड़क पर रहते हुवे
उठ रही हैं उंगलियाँ उस शख्स के उत्कर्ष पर

मर गया बेनाम ही जो उम्र भर जीता रहा
सत्य निष्ठां न्याय नियम आस्था आदर्श पर

बन गयीं हवेलियाँ टूटी थि कल बस्ती जहां
खून के धब्बे नज़र आयेंगे उनके फर्श पर

गर्दनें टूटी हुयी उन पंछियों की मिल गयीं
पंख को तोले बिना जो उड़ रहे थे अर्श पर

गावं क्या खाली हुवे, ग्रहण सा लगने लगा
बाजरा, मक्की, गेहूं की बालियों के हर्ष पर

59 टिप्‍पणियां:

  1. छू लिया क्यों आसमान सड़क पर रहते हुवे
    उठ रही हैं उंगलियाँ उस शख्स के उत्कर्ष पर ..

    wah! bahut hi sunder panktiyan.....in panktiyon ne man moh liya....

    bahut hi sunder kavita...

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  2. छू लिया क्यों आसमान सड़क पर रहते हुवे
    उठ रही हैं उंगलियाँ उस शख्स के उत्कर्ष पर

    मर गया बेनाम ही जो उम्र भर जीता रहा
    सत्य निष्ठां न्याय नियम आस्था आदर्श पर

    बहुत सुन्दर, नासवा साहब, पूरी गजल ही लाजबाब है !

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  3. बन गयीं हवेलियाँ टूटी थि कल बस्ती जहां
    खून के धब्बे नज़र आयेंगे उनके फर्श पर
    भाई साहब क्या बोलू, मैंने कोपी कर संजो लिया है आपने पास आपके नाम से इसे !

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  4. जगमगाती रौशनी और शहर के आकर्ष पर
    बन गए कितने फ़साने जुस्तजू संघर्ष पर

    छू लिया क्यों आसमान सड़क पर रहते हुवे
    उठ रही हैं उंगलियाँ उस शख्स के उत्कर्ष पर
    हर एक शेर काबिले तारीफ हैबिलकुल नये एहसास लिये । शायद अब तक की पढी लाजवाब गज़लों मे ये भी लाजवाब गज़ल है बहुत बहुत बधाई

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  5. मर गया बेनाम ही जो उम्र भर जीता रहा
    सत्य निष्ठां न्याय नियम आस्था आदर्श पर

    सटीक व्यंग

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  6. "छू लिया क्यों आसमान सड़क पर रहते हुवे
    उठ रही हैं उंगलियाँ उस शख्स के उत्कर्ष पर "



    वाह बहुत सुन्दर पंक्तियाँ है , बधाई !!

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  7. छू लिया क्यों आसमान सड़क पर रहते हुवे
    उठ रही हैं उंगलियाँ उस शख्स के उत्कर्ष पर

    हमेशा की तरह बहुत कुछ कहती हुई सार्थक पोस्‍ट ।

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  8. नास्वा जी
    गाँव ,खेत ,आम आदमी के दर्द को लेकर रचे छोटे छोटे चित्र बोलते हैं .

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  9. गर्दनें टूटी हुयी उन पंछियों की मिल गयीं
    पंख को तोले बिना जो उड़ रहे थे अर्श पर
    ---लाजवाब शेर है।

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  10. छू लिया क्यों आसमान सड़क पर रहते हुवे
    उठ रही हैं उंगलियाँ उस शख्स के उत्कर्ष पर

    मर गया बेनाम ही जो उम्र भर जीता रहा
    सत्य निष्ठां न्याय नियम आस्था आदर्श पर

    bahut khubsurat... hindi gazal aap bahut achcha likhte hain...

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  11. छू लिया क्यों आसमान सड़क पर रहते हुवे
    उठ रही हैं उंगलियाँ उस शख्स के उत्कर्ष पर
    the best lines.

    गावं क्या खाली हुवे, ग्रहण सा लगने लगा
    बाजरा, मक्की, गेहूं की बालियों के हर्ष पर

    bahut sunder abhivyakti
    bahut achhci lagi aapki ye rachna.

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  12. मर गया बेनाम ही जो उम्र भर जीता रहा
    सत्य निष्ठां न्याय नियम आस्था आदर्श पर
    वाह जी बहुत सुंदर रचना. धन्यवाद

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  13. अच्छी ग़ज़ल, जो दिल के साथ-साथ दिमाग़ में भी जगह बनाती है।

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  14. गर्दनें टूटी हुयी उन पंछियों की मिल गयीं
    पंख को तोले बिना जो उड़ रहे थे अर्श पर

    बात में गहराई है।
    अच्छे शेर, अच्छी ग़ज़ल।

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  15. बन गयीं हवेलियाँ टूटी थि कल बस्ती जहां
    खून के धब्बे नज़र आयेंगे उनके फर्श पर

    digamber ji kya khub sanghathit baat ki hai aapne is she'r ke jariya... kamaal kiyaa hai aapne puri rachanaa me ... saare hi ash'aar kamaal ke bane hain... badhaayee kubul karen sahib...


    arsh

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  16. काफी लम्बे समय बाद दिखाई पड़ते हैं आप

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  17. नासवां जी, आह निकल गयी जुबां सेऔर दिलो-दिमाग पिघलता चला गया । और सोचा कि इन पंक्तियों को शुमार कर लूं, अपनी स्थायी संस्मरणों में।
    हर पंक्ति जेहन में उतर गयी
    क्या शानदार रचना है। समाज के सीने से रिसते ये घाव ! पता नहीं कब भरेंगे। काश ! ये घाव भर जाते कभी...

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  18. मर गया बेनाम ही जो उम्र भर जीता रहा
    सत्य निष्ठां न्याय नियम आस्था आदर्श पर ।।

    वाह्! दिगम्बर जी...आज की ये रचना तो सजेह के रखने लायक है !
    बहुत ही शानदार एवं कमाल की रचना !

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  19. हर शेर खूबसूरती से लिखा है आपने बहुत पसंद आई आपकी यह गजल शुक्रिया

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  20. मर गया बेनाम ही जो उम्र भर जीता रहा
    सत्य निष्ठां न्याय नियम आस्था आदर्श पर ।।
    bahut hee sunder se bhavo kee abhivyaktee .

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  21. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  22. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  23. Harek pankti behad sundar hai...harek shabd maayne rakhta hai..napa tula, gehrayi se nikla hua!

    http://shamasansmaran.blogspot.com

    http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

    http://baagwaanee-thelightbyalonelypath.blogspot.com

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  24. बन गयीं हवेलियाँ टूटी थि कल बस्ती जहां
    खून के धब्बे नज़र आयेंगे उनके फर्श पर
    lajwaab rachna

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  25. कम शब्दों में बहुत सुन्दर कविता।
    बहुत सुन्दर रचना । आभार
    ढेर सारी शुभकामनायें.

    SANJAY KUMAR
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  26. मर गया बेनाम ही जो उम्र भर जीता रहा
    सत्य निष्ठां न्याय नियम आस्था आदर्श पर

    digambar ji iska matlab ye nahin ke aur sher pasand nahin, vastav men sabh sher behatareen hain. bahut bahut bahut badhaai.

    जवाब देंहटाएं
  27. मर गया बेनाम ही जो उम्र भर जीता रहा
    सत्य निष्ठां न्याय नियम आस्था आदर्श पर

    बहुत सुन्दर!
    सभी शेर काबिले तारीफ हैं।

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  28. मर गया बेनाम ही जो उम्र भर जीता रहा
    सत्य निष्ठां न्याय नियम आस्था आदर्श पर

    सच के बिल्कुल करीब से होकर जाती हुई एक बेहतरीन ग़ज़ल..पंक्ति पंक्ति लाजवाब..बहुत बहुत धन्यवाद दिगंबर जी इस सुंदर रचना के प्रस्तुति के लिए..

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  29. "गावं क्या खाली हुवे, ग्रहण सा लगने लगा
    बाजरा, मक्की, गेहूं की बालियों के हर्ष पर"

    कोट तो हर पंक्ति करनी थी पर सोचा कि एक चुन ही लें...दिगंबर जी...संवेदना बड़ी चीज है आज के शुष्क माहौल में...बधाई दरद लिखने के लिए..!

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  30. मर गया बेनाम ही जो उम्र भर जीता रहा
    सत्य निष्ठां न्याय नियम आस्था आदर्श पर

    बन गयीं हवेलियाँ टूटी थि कल बस्ती जहां
    खून के धब्बे नज़र आयेंगे उनके फर्श पर

    बहुत सुंदर!

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  31. गावं क्या खाली हुवे, ग्रहण सा लगने लगा
    बाजरा, मक्की, गेहूं की बालियों के हर्ष पर ....
    gaanw ki yaad aa gayi....

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  32. छू लिया क्यों आसमान सड़क पर रहते हुवे
    उठ रही हैं उंगलियाँ उस शख्स के उत्कर्ष पर ..


    शानदार और जानदार अभिव्यक्ति!!

    बेहतरीन!!!

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  33. दिगंबर जी, आपने मंत्रमुग्ध कर दिया...
    मैं फिर से दोहराना चाहूँगा..

    जगमगाती रौशनी और शहर के आकर्ष पर
    बन गए कितने फ़साने जुस्तजू संघर्ष पर

    छू लिया क्यों आसमान सड़क पर रहते हुवे
    उठ रही हैं उंगलियाँ उस शख्स के उत्कर्ष पर

    मर गया बेनाम ही जो उम्र भर जीता रहा
    सत्य निष्ठां न्याय नियम आस्था आदर्श पर

    बन गयीं हवेलियाँ टूटी थि कल बस्ती जहां
    खून के धब्बे नज़र आयेंगे उनके फर्श पर

    गर्दनें टूटी हुयी उन पंछियों की मिल गयीं
    पंख को तोले बिना जो उड़ रहे थे अर्श पर

    गावं क्या खाली हुवे, ग्रहण सा लगने लगा
    बाजरा, मक्की, गेहूं की बालियों के हर्ष पर

    ~~उत्कृष्ट रचना ~~ बेहतरीन ग़ज़ल

    -सुलभ

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  34. गर्दनें टूटी हुयी उन पंछियों की मिल गयीं
    पंख को तोले बिना जो उड़ रहे थे अर्श पर

    खूबसूरत हकीकतबयानी की है बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  35. मर गया बेनाम ही जो उम्र भर जीता रहा
    सत्य निष्ठां न्याय नियम आस्था आदर्श पर

    लाजवाब......आदर्शशील व्यक्ति का यही हाल होता है .....!!

    बन गयीं हवेलियाँ टूटी थि कल बस्ती जहां
    खून के धब्बे नज़र आयेंगे उनके फर्श पर

    ग़ज़ल हो या नज़्म दोनों पर आपकी पकड़ मज़बूत है .....!!


    वाह....बहुत खूब......!!

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  36. नासवा जी !
    आपकी कविताएँ सामयिक सरोकार को व्यक्त करती हैं |
    ब्लॉग की अंधेड़-धारा से अलग आप 'यथेष्ट' की पहचान
    कर , उसे वाणी देने का कार्य कर रहें है | आप उसको आवाज
    दे रहें हैं , जो ---
    '' मर गया बेनाम ही जो उम्र भर जीता रहा
    सत्य निष्ठां न्याय नियम आस्था आदर्श पर | ''

    ऐसे लोग संख्या में कम होते हैं लेकिन उतने ही महत्वपूर्ण |

    आपका फीड संजो लिया है , आपका यही तेवर रहा तो खूब जमेगी ...

    जवाब देंहटाएं
  37. "मर गया बेनाम ही जो उम्र भर जीता रहा
    सत्य निष्ठां न्याय नियम आस्था आदर्श पर

    " bahut hi badhiya rachana aapne to is rachana ke jariye dil hi jeet liya ."

    ----- eksacchai { AAWAZ }

    http://eksacchai.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  38. छू लिया क्यों आसमान सड़क पर रहते हुवे
    उठ रही हैं उंगलियाँ उस शख्स के उत्कर्ष पर ..
    bahut khoobsurat ghazal kahi hai....badhai

    जवाब देंहटाएं
  39. bikhare shbd,desh ka badla hua vatavaran aur ab aastha adarsh par..ye teen rachnaye mujhse chhoot gai thi, yaani apni vyastatao ke beech padhh nahi payaa tha, aaj padhh rahaa hu.
    aastha aadarsh par...kamaal he aap nasavaji, behatreen gazal/ sangharsh par chamchamati andhi roshaniyo ke bech fasaane hi to ban jaate he/ utkarsh par hamesha ungliyaa uthi he..khaas kar sadak ke aadmi ke utkarsh par.., aapki peni nigaaho ne is baat ko pakada aor bahut sundar tarike se pesh kiya he/ oh..kyaa baat likhi he..mar gayaa benaam hi jo umra bhar jeetaa raha..kitana bada sach he yah/ aapki is adbhut kalam chalan par chatkrat hu me...marm ko chhuti hui si gazal/ is tarah ki gazale mene dushyantji me dekhi he.../

    -Desh ka badala...
    desh samaz aour insaani fitrat ko ukerti rachna../
    -bikhare shbd..
    aapki is khoobi ka to deevanaa hu me/

    जवाब देंहटाएं
  40. छू लिया क्यों आसमान सड़क पर रहते हुवे
    उठ रही हैं उंगलियाँ उस शख्स के उत्कर्ष पर
    ...
    गर्दनें टूटी हुयी उन पंछियों की मिल गयीं
    पंख को तोले बिना जो उड़ रहे थे अर्श पर
    .... ये दोनों शेर लाजबाव हैं, बहुत-बहुत बधाईंया !!!

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  41. बन गयीं हवेलियाँ टूटी थि कल बस्ती जहां
    खून के धब्बे नज़र आयेंगे उनके फर्श पर
    Yatharth se bhari aapki rachnayen dil ko chhu jati hai ....Badhi

    जवाब देंहटाएं
  42. गर्दनें टूटी हुयी उन पंछियों की मिल गयीं
    पंख को तोले बिना जो उड़ रहे थे अर्श पर
    क्या खूब लिख डाला आपने...मेरी गर्दन मे भी काफ़ी दर्द रहता है आजकल..सो अब पर तोलने ही होंगे..वैसे पूरी ग़ज़ल माशाअल्लाह है !!!
    क्या बात है...

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  43. वाह बहुत सुंदर और शानदार रचना लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है!

    जवाब देंहटाएं
  44. मर गया बेनाम ही जो उम्र भर जीता रहा
    सत्य निष्ठां न्याय नियम आस्था आदर्श पर

    बहुत सुन्दर भावों को समेटे हुये ----खूबसूरत लफ़्जों में लिखी गयी रचना।
    पूनम

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  45. बिल्कुल सत्य है उडान भरने से पहले पंखों को तौल लेना चाहिये /जमीन पर रह्ते हुए यदि भाग्यवश, परिश्रम से ,मुश्किलों को आसान करता हुआ तरक्की करले तो उंग्लिया उठने लगती है ।आपकी गजल का ये शेर पढते हुए मुझे मुंशी प्रेमचन्द की नमक का दारोगा कहानी याद आगई ।दारोगा की नौकरी मिलने पर मुंशी जी के शब्द ""महाजन कुछ नरम पडे कलवार की आशालता लहर लाई । पडौसियों के ह्रदय में शूल उठने लगे ""हवेलियों मे खूंन के धव्वे नजर आना और आस्थावान का बेनाम मर जाना +बहुत उत्तम पढने को मिला आज ।

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  46. गर्दनें टूटी हुयी उन पंछियों की मिल गयीं
    पंख को तोले बिना जो उड़ रहे थे अर्श पर

    गावं क्या खाली हुवे, ग्रहण सा लगने लगा
    बाजरा, मक्की, गेहूं की बालियों के हर्ष पर

    दिगम्बर जी,
    लाजवाब पंक्तियां---इस गजल की जितनी तारीफ़ की जाय कम है।
    हेमन्त कुमार

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  47. बहुत बढ़िया रचना ....विलम्ब से आने के लिए क्षमाप्राथी हूँ .

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  48. गर्दनें टूटी हुयी उन पंछियों की मिल गयीं
    पंख को तोले बिना जो उड़ रहे थे अर्श पर

    गावं क्या खाली हुवे, ग्रहण सा लगने लगा
    बाजरा, मक्की, गेहूं की बालियों के हर्ष पर
    bahut shaandar panktiyaan ,pankh ko tole ...waah kya baat kahi hai man ko sparsh kar gayi

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  49. हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  50. छू लिया क्यों आसमान सड़क पर रहते हुवे
    उठ रही हैं उंगलियाँ उस शख्स के उत्कर्ष पर

    साला पता नहीं कितनो का खून निचोड़ा होगा, पता नहीं कहाँ कहाँ से इकठ्ठा किया होगा काला धन? ये जुमले, और फिर, 'राखी सावंत' , 'सद्दाम हुसैन' से लेकर 'अमृता प्रीतम', कई लोग एक साथ याद हो आये हैं.

    शायद बहुत दूर तक जाने वाला शे'र
    इस शे'र को पढ़कर पता नहीं क्यूँ दिली ख़ुशी हुई.

    गर्दनें टूटी हुयी उन पंछियों की मिल गयीं
    पंख को तोले बिना जो उड़ रहे थे अर्श पर.

    फिर घूम के 'जेते पाऊं पसारिये' पर पहुँच जाता हूँ.

    कभी लिखा था...
    'मन है एक पखेरू जिसको तर्क यही समझाता है,
    सात समुन्दर पार का सपना सपना ही रह जाता है'

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