स्वप्न मेरे: आपस में टकराना क्या

शनिवार, 9 जनवरी 2010

आपस में टकराना क्या

ध्यान रखो घर के बूढ़ों का, उनसे आँख चुराना क्या
दो बोलों के प्यासे हैं वो, प्यासों को तड़पाना क्या

हिंदू मंदिर, मस्जिद मुस्लिम, चर्च ढूँढते ईसाई
सब की मंज़िल एक है तो फिर, आपस में टकराना क्या

चप्पू छोटे, नाव पुरानी, लहरों का भीषण नर्तन
रोड़े आते हैं तो आएँ, साहिल पर सुस्ताना क्या


अपना दिल, अपनी करनी, फ़िक्र करें क्यों दुनिया की
थोड़े दिन तक चर्चा होगी, चर्चों से घबराना क्या

जलते जंगल, बर्फ पिघलती, कायनात क्यों खफा खफा
जैसी करनी वैसी भरनी, फल से अब कतराना क्या

67 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत उम्दा ।

    बधाई स्वीकारें ।

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  2. हिंदू मंदिर, मस्जिद मुस्लिम, चर्च ढूँढते ईसाई
    सब की मंज़िल एक है तो फिर, आपस में टकराना क्या ..

    बहुत गहरे एहसास वाली पंक्तियाँ.... सम्पूर्ण कविता दिल को छू गई....

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  3. हिंदू मंदिर, मस्जिद मुस्लिम, चर्च ढूँढते ईसाई
    सब की मंज़िल एक है तो फिर, आपस में टकराना क्या
    बहुत खूब कहा आपने, काश ये सब कोई मानते ।

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  4. उत्कृष्ट ।
    बहुत दिनों बाद सीधी सादी कविता में गहरे भाव पढने को मिले।
    बुजुर्गों की ओर ध्यान
    संघर्ष रत रहने का आह्वान
    बेफिकरी के समर्थन में बयान
    पर्यावरण का संज्ञान
    सब उत्कृष्ट।

    बधाई।

    हाँ, अलग अलग धर्मों की घोषित मंजिलें अलग अलग हैं। उनमें बस मानवता के आदर्श ही ग्राह्य हैं।

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  5. अपना दिल, अपनी करनी, फ़िक्र करें क्यों दुनिया की
    थोड़े दिन तक चर्चा होगी, चर्चों से घबराना क्या
    ,,,,,,,,,sach hai

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  6. जलते जंगल, बर्फ पिघलती, कायनात क्यों खफा खफा
    जैसी करनी वैसी भरनी, फल से अब कतराना क्या।।

    वाह्! क्या खूब लिखा है!! सच मानिए हमें तो बहुत पसन्द आई ये कविता......
    आभार्!

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  7. अटूट रिश्ता है चोटों से
    जख्मों को सहलाना क्या
    गहरे घाव ह्रदय में लेकर
    खिल खिल कर हँस पाना क्या
    मैं क्या जानू, जख्मीं होकर घाव भरे भी जाते हैं ,
    छेड़ छाड़ मीठी झिड़की,आलिंगन का सुख होता क्या
    बहुत पहले लिखी गयी अपनी लाइनें याद दिला दी !पूरी रचना यहाँ पढ़ें शायद आप पसंद करें !http://satish-saxena.blogspot.com/2008/06/blog-post.html

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  8. bahut sunder bhavo walee rachana . Bahut pasand aaee kai var pad chukee hoo har sher me vazan hai.

    aabhar

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  9. चप्पू छोटे, नाव पुरानी, लहरों का भीषण नर्तन
    रोड़े तो आएँगे कितने, साहिल पर सुस्ताना क्या..
    बहुत ही सुंदर.

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  10. हिंदू मंदिर, मस्जिद मुस्लिम, चर्च ढूँढते ईसाई
    सब की मंज़िल एक है तो फिर, आपस में टकराना क्या

    आपके इस शेर को देश के हर कोने कोने में लिख कर रखना चाहिए...एक नारा दिया है आपने जिसे हम अगर समझ लें तो सारे झगडे ख़तम हो जाएँ...
    नीरज

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  11. अपना दिल, अपनी करनी, फ़िक्र करें क्यों दुनिया की
    थोड़े दिन तक चर्चा होगी, चर्चों से घबराना क्या

    जलते जंगल, बर्फ पिघलती, कायनात क्यों खफा खफा
    जैसी करनी वैसी भरनी, फल से अब कतराना क्या
    वाह लाजवाब कविता हो या गज़ल आप अपनी के विशिष्टता बनाये हुये हैं कहीं से भी एक रिक्तता नहीं आने देते बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर गज़ल के लिये।

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  12. आपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनायें!
    बहुत बढ़िया रचना लिखा है आपने!

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  13. bahut hi sundar. badhai!!
    हिंदू मंदिर, मस्जिद मुस्लिम, चर्च ढूँढते ईसाई
    सब की मंज़िल एक है तो फिर,आपस में टकराना क्या ..

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  14. हिंदू मंदिर, मस्जिद मुस्लिम,चर्च ढूँढते ईसाई
    सबकी मंज़िल एक है फिर आपस में टकराना क्या

    यह बात समझ आ जाये तो फ़िर झगडा ही खत्म हो जाये . अच्छी कविता के लिये साधुवाद

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  15. जलते जंगल, बर्फ पिघलती, कायनात क्यों खफा खफा
    जैसी करनी वैसी भरनी, फल से अब कतराना क्या
    सुन्दर लगा आपका अंदाज ..

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  16. ध्यान रखो घर के बूढ़ों का, उनसे आँख चुराना क्या
    दो बोलों के प्यासे हैं वो, प्यासों को तड़पाना क्या

    हिंदू मंदिर, मस्जिद मुस्लिम, चर्च ढूँढते ईसाई
    सब की मंज़िल एक है तो फिर, आपस में टकराना क्या


    waah.........bahut hi umda aur sikh deti gazal............bas ye choti choti baatein logon ki samajh mein aa jayein to baat hi kya hai.

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  17. ध्यान रखो घर के बूढ़ों का, उनसे आँख चुराना क्या
    दो बोलों के प्यासे हैं वो, प्यासों को तड़पाना क्या

    वाह नासवा जी।
    आपने हमारे मन की बात कह दी।
    सुन्दर भाव लिए रचना।

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  18. अपना दिल, अपनी करनी, फ़िक्र करें क्यों दुनिया की
    थोड़े दिन तक चर्चा होगी, चर्चों से घबराना क्या
    बिलकुल सही है। ग़ज़ल क़ाबिले-तारीफ़ है।

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  19. "फल से अब कतराना क्या"
    वाह, बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय

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  20. ध्यान रखो घर के बूढ़ों का, उनसे आँख चुराना क्या
    दो बोलों के प्यासे हैं वो, प्यासों को तड़पाना क्या

    हिंदू मंदिर, मस्जिद मुस्लिम, चर्च ढूँढते ईसाई
    सब की मंज़िल एक है तो फिर, आपस में टकराना क्या

    SABH SHER LAJAWAAB. WAH WAH WAH.

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  21. ध्यान रखो घर के बूढ़ों का, उनसे आँख चुराना क्या
    दो बोलों के प्यासे हैं वो, प्यासों को तड़पाना क्या

    बहुत ही सुंदर लिखते हैं आप . हर शब्द नाप तौल में इतना सटीक होता है कि अभिव्यक्ति में सौ चाँद लग जाते हैं ..

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  22. हिंदू मंदिर, मस्जिद मुस्लिम, चर्च ढूँढते ईसाई
    सब की मंज़िल एक है तो फिर, आपस में टकराना क्या
    अति सुंदर रचना जी, गहरे भाव लिये.
    धन्यवाद

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  23. सादर चरण स्पर्श ! बहुत दिनों बाद हाज़िर हूँ अब से लाइन पर बना रहूगा .............

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  24. aap bahut accha sochate hai aur usase bhee jyada accha likhate hai .

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  25. अपना दिल, अपनी करनी, फ़िक्र करें क्यों दुनिया की
    थोड़े दिन तक चर्चा होगी, चर्चों से घबराना क्या

    sach hee to hai. hum log kitna kuchh jo sahi hota hai is dar se nahee karte ke uski charcha hogi..

    Aashu

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  26. क्या बात है खूब तेवर दिखे हैं आपके आज तो ... मजा आगया हस्र श'र कामयाब खयालातों से लबालब भरा हुआ ... बधाई कुबूल करें इस कडाके की ठण्ड में भी ये तेवर वाह आनंद आगये ..


    अर्श

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  27. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल .

    हिंदू मंदिर, मस्जिद मुस्लिम, चर्च ढूँढते ईसाई
    सब की मंज़िल एक है तो फिर, आपस में टकराना क्या

    चप्पू छोटे, नाव पुरानी, लहरों का भीषण नर्तन
    रोड़े आते हैं तो आएँ, साहिल पर सुस्ताना क्या

    जागरूकता पैदा करने वाली ग़ज़ल

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  28. एक एक शेर अपने आप में पूरा है...वाह!! हर शेर पर कई बार वाह!!


    ध्यान रखो घर के बूढ़ों का, उनसे आँख चुराना क्या
    दो बोलों के प्यासे हैं वो, प्यासों को तड़पाना क्या

    क्या बात कही है...बहुत खूब!! आज तो लूट लिया महाराज!!

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  29. वाह के अलावा कुछ और कहने की हिम्मत ही नहीं।

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  30. ध्यान रखो घर के बूढ़ों का, उनसे आँख चुराना क्या
    दो बोलों के प्यासे हैं वो, प्यासों को तड़पाना क्या
    itni c baat sab samajh jaye to ye vridhaashram na khule.

    हिंदू मंदिर, मस्जिद मुस्लिम, चर्च ढूँढते ईसाई
    सब की मंज़िल एक है तो फिर, आपस में टकराना क्या
    kash ye dharam k thekedaar samjhe aur us se pehle pulblic samjhe.

    चप्पू छोटे, नाव पुरानी, लहरों का भीषण नर्तन
    रोड़े आते हैं तो आएँ, साहिल पर सुस्ताना क्या

    -aisi hi spirit le kar har insaan chale to desh well developed country kab ka ban jata.

    अपना दिल, अपनी करनी, फ़िक्र करें क्यों दुनिया की
    थोड़े दिन तक चर्चा होगी, चर्चों से घबराना क्या
    --its also good

    जलते जंगल, बर्फ पिघलती, कायनात क्यों खफा खफा
    जैसी करनी वैसी भरनी, फल से अब कतराना क्या
    jagruk karti lines.

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  31. दिगम्बर जी...कितनी खूबसूरती से इतनी गंभीर बातें कह दी आपकी इस रचना ने..बेहद प्रभावशाली...
    घर-परिवार..धर्म-सम्प्रदायें..जीवन की पेचीदा राहें..सबको बांध लिया चंद पंक्तियों में...

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  32. @Anamika
    are wah anamika ji aap to interpritation specialist ban gyi ha...kabi hamari kavita ya nazm ka matlab bhi isi trha batayiye n..
    jst kidding...
    vaise maza aata ha apki tippani padne par bhi...

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  33. हिंदू मंदिर, मस्जिद मुस्लिम, चर्च ढूँढते ईसाई
    सब की मंज़िल एक है तो फिर, आपस में टकराना क्या

    laakh take ki baat ki hai aapne..bahut badhiya gazal.

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  34. आपस में टकराना क्या

    बहुत अच्छी भावना।

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  35. अपना दिल, अपनी करनी, फ़िक्र करें क्यों दुनिया की
    थोड़े दिन तक चर्चा होगी, चर्चों से घबराना क्या बहुत खूब ..बहुत पसंद आई यह ...वैसे सभी शेर अच्छे हैं ..शुक्रिया

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  36. नास्वा जी के कलम से निकली एक बेहतरीन रचना..

    दिल जीता है आपने हम सभी हिन्दुस्तानियो का.. आपको बहुत बधाई..

    - सुलभ

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  37. हिंदू मंदिर, मस्जिद मुस्लिम, चर्च ढूँढते ईसाई
    सब की मंज़िल एक है तो फिर, आपस में टकराना क्या .......
    aapki baaten logon ko samajh me aa jaay.....

    जवाब देंहटाएं
  38. 'चप्पू छोटे, नाव पुरानी, लहरों का भीषण नर्तन
    रोड़े आते हैं तो आएँ, साहिल पर सुस्ताना क्या'
    वाह ! क्या बात है!

    हर शेर अपने आप में एक कहानी सा लगा.
    बहुत ही बेहतरीन और प्रभावशाली ग़ज़ल है यह.
    बहुत ही बढ़िया!
    बधाई!

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  39. ध्यान रखो घर के बूढ़ों का, उनसे आँख चुराना क्या
    दो बोलों के प्यासे हैं वो, प्यासों को तड़पाना क्या

    आपकी इस ग़ज़ल के पहले शेर का संदेश दिल मे सहेज कर रख लिया है..और इसके लिये शुक्रिया भी कहना चाहता हूँ..
    इस बेमिसाल ग़ज़ल के बाकी शूबसूरत शेरों की तारईफ़ करने का दिल है मगर फिर मअतले की तासीर हलकी हो जाने का डर है..और यही किसी रचना की उपलब्धि भी है..जो सरल शब्दों मे सहेजने योग्य सूक्तों को दिमाग मे डाल दे..
    पुनश्च आभार

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  40. चप्पू छोटे, नाव पुरानी, लहरों का भीषण नर्तन
    रोड़े आते हैं तो आएँ, साहिल पर सुस्ताना क्या

    puri ki puri kavita apne aap me samrdh
    harek sher jholi bhar deta hai .
    dhnywad

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  41. चप्पू छोटे, नाव पुरानी, लहरों का भीषण नर्तन
    रोड़े आते हैं तो आएँ, साहिल पर सुस्ताना क्या

    दिगंबर जी ,
    खुशामदीद at http://merasamast.blogspot.com
    पूरी गजल ही तारीफ़ के काबिल है
    इससे आँख चुराना क्या
    साहिल से टकराना क्या !!!!

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  42. वाहवा.... बहुत सुंदर... वाह दिगंबर जी, साधुवाद...

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  43. चप्पू छोटे, नाव पुरानी, लहरों का भीषण नर्तन
    रोड़े आते हैं तो आएँ, साहिल पर सुस्ताना क्या
    बेहतरीन आह्वान है
    हर शेर सन्देश देते हुए --- सुन्दर

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  44. सार्थक संदेश देती सुंदर रचना

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  45. सभी शेर एक से बढ़कर एक, बहुत सुन्दर!

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  46. अपना दिल, अपनी करनी, फ़िक्र करें क्यों दुनिया की
    थोड़े दिन तक चर्चा होगी, चर्चों से घबराना क्या ।

    बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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  47. lajwaab rachnaa hai !!!!ध्यान रखो घर के बूढ़ों का, उनसे आँख चुराना क्या
    दो बोलों के प्यासे हैं वो, प्यासों को तड़पाना क्या
    kash in laaino ko sab aml me layein!!

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  48. नासवा साब
    चप्पू छोटे, नाव पुरानी, लहरों का भीषण नर्तन
    रोड़े आते हैं तो आएँ, साहिल पर सुस्ताना क्या
    ................
    क्या खूब अलफ़ाज़ और एहसासों का ताना बना बुना है आपने......!
    बस यही कहूँगा लाजवाब है हमेशा की तरह.

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  49. जलते जंगल, बर्फ पिघलती, कायनात क्यों खफा खफा
    जैसी करनी वैसी भरनी, फल से अब कतराना क्या

    बहुत सुन्‍दर नासवा साब !

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  50. हिंदू मंदिर, मस्जिद मुस्लिम, चर्च ढूँढते ईसाई
    सब की मंज़िल एक है तो फिर, आपस में टकराना क्या

    अपना दिल, अपनी करनी, फ़िक्र करें क्यों दुनिया की
    थोड़े दिन तक चर्चा होगी, चर्चों से घबराना क्या

    Solid hai lekin yahi satya to nahi samajhte log

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  51. नासवा जी, आदाब.
    ध्यान रखो घर के बूढ़ों का, उनसे आँख चुराना क्या
    दो बोलों के प्यासे हैं वो, प्यासों को तड़पाना क्या
    बस, यहीं ठहर कर रह गये हैं......
    बाकी के शेर इस अहसास से उबरने के बाद पढ़े जायेंगे...
    अल्लाह ये तौफीक सबको अता कर दे- आमीन
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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  52. यह ग़ज़ल के साथ साथ एक सार्थक संदेश भी है जो दिल में बस जाता है..बहुत सुंदर रचना ..जिंदगी में चर्चाएँ तो होती रहती है पर आदमी वहीं सफल होता है जो अड़ कर साहस से अपना कार्य करता जाता है बस नेक दिल से आगे बढ़ते रहे यही आदमी बनने की शुरुआत है...बहुत खूबसूरत संदेश और इससे परिपूर्ण ग़ज़ल....बधाई दिगंबर जी..

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  53. अपना दिल, अपनी करनी, फ़िक्र करें क्यों दुनिया की
    थोड़े दिन तक चर्चा होगी, चर्चों से घबराना क्या
    man ko bha gayi har baate ,laazwaab

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  54. दिगंबर जी बहुत खूब
    जिस तरह आपने सामाजिक परिद्रश्य को उभारा है
    वह निश्चित ही काबिले तारीफ है
    बहुत सुन्दर ग़ज़ल
    बहुत बहुत आभार...........

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  55. जलते जंगल, बर्फ पिघलती, कायनात क्यों खफा खफा
    जैसी करनी वैसी भरनी, फल से अब कतराना क्या

    बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल और साथ ही इतना गहरा सन्देश !!

    आशा है ये शेर कुछ दिलों को बदल डालें ....

    शुभकामनाएं !

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  56. आपस में टकराना क्या!!! बहुत ही प्यारी रचना हैं हर एक लाइन में जीवन का सार है!!

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  57. ध्यान रखो घर के बूढ़ों का, उनसे आँख चुराना क्या
    दो बोलों के प्यासे हैं वो, प्यासों को तड़पाना क्या

    वाह .....आज के बच्चों के लिए सही शे'र ......!!

    अपना दिल, अपनी करनी, फ़िक्र करें क्यों दुनिया की
    थोड़े दिन तक चर्चा होगी, चर्चों से घबराना क्या

    ब्लॉग जगत में हो रही चर्चाओं पर सही बैठता है ये शे'र ......!!

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  58. सही है यही हो रहा है बूढों का ध्यान नही रखा जा रहा ,लोग जमाने की फ़िक्र कर ही कहा रहे है जो मन मे आरहा है कर रहे है और बोये पेड़ बबूल का आम कहां से खाय

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  59. क्या तारीफ़ करूं मैं? बहुत ही सुन्दर रचना.

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  60. ध्यान रखो घर के बूढ़ों का, उनसे आँख चुराना क्या
    दो बोलों के प्यासे हैं वो, प्यासों को तड़पाना क्या ....
    पहली दो पंक्तियों ने ही दिल जीत लिया .... और दिल सिर्फ जीता ही नहीं दिल में घर कर लिया ....

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  61. बहुत बेहतरीन रचना हर एक शब्द अपने होने का और हर इक पंक्ति अपने वजूद की गवाही दे रहा है.अगर यही सोच है तो सेलूट है आप को

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  62. हिंदू मंदिर, मस्जिद मुस्लिम, चर्च ढूँढते ईसाई
    सब की मंज़िल एक है तो फिर, आपस में टकराना क्या
    Itni badi baat ko kitni sahuliat se aapne likh dia... waah ji.. yeh hai spirit of integration.. naya saal mubarak ho
    main kahin nahin gaya aap gardan jhuka kar dekh liya karein zara bas

    mera ek mashwara hai ke aap punjabi bhi seekh lo bahut asaan hai

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  63. अपना दिल, अपनी करनी, फ़िक्र करें क्यों दुनिया की
    थोड़े दिन तक चर्चा होगी, चर्चों से घबराना क्या ।

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है