स्वप्न मेरे: कुछ ऐसे सिरफिरों के चाहने वाले मिले हैं

सोमवार, 25 जनवरी 2010

कुछ ऐसे सिरफिरों के चाहने वाले मिले हैं

गुरुदेव के हाथों सँवरी ग़ज़ल .......

वो जिन के मन पे नफरत के सदा जाले मिले हैं
कुछ ऐसे सिरफिरों के चाहने वाले मिले हैं

समय के हाथ पर जो लिख गये फिर नाम अपना
उन्ही के पाँव में रिस्ते हुवे छाले मिले हैं

जो तन पर ओढ़ कर बैठे हैं खादी की दुशाला
उन्ही के मन हमेशा से घने काले मिले हैं

समय ने दी तो थी दस्‍तक मेरे भी घर पे लेकिन
मेरी किस्‍मत उसे घर पर मेरे ताले मिले हैं

वो जिन हाथों में रहती थी सदा क़ुरआन गीता
उन्‍हीं हाथों में मदिरा के हमें प्‍याले मिले हैं

अमन की बात करते थे जो कल संसद भवन में
उन्ही की आस्तीनों में छुरे भाले मिले हैं

54 टिप्‍पणियां:

  1. जो तन पर ओढ़ कर बैठे हैं खादी की दुशाला
    उन्ही के मन हमेशा से घने काले मिले हैं
    सटीक नासवा साहब , बहुत सुन्दर !

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  2. अमन की बात करते थे जो कल संसद भवन में
    उन्ही की आस्तीनों में छुरे भाले मिले हैं

    सटीक निशाना

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  3. वो जिनके हाथ में गीता क़ुरान थी अक्सर
    उन्ही के हाथ में फिर सुरा के प्याले मिले हैं
    kya baat kahi hai

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  4. अमन की बात करते थे जो कल संसद भवन में
    उन्ही की आस्तीनों में छुरे भाले मिले हैं
    हमेशा की तरह प्रभावी रचना । सामाजिक-राजनीति के अधोपतन को संवदेनात्मक स्तर पर ले जाकर अभिव्यक्त करने का सफल प्रयास।

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  5. वाह..... वाह............. बहुत खूब
    हर बार की तरह इस बार भी जोरदार ग़ज़ल
    बधाई

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  6. aapme kasak he, shbdo ke saath khelne ki vidha he,hindi me gazal ka roop dena vese bhi kathin he, yaani shbdo ki meethaas jyada nahi aa paati, kintu aapki rachnaao me vo meethaas bhi hoti he.
    वो जिनके हाथ में गीता क़ुरान थी अक्सर
    उन्ही के हाथ में फिर सुरा के प्याले मिले हैं
    is she'r ne bahut door tak sochane par mazboor kiya he., yathaarth haalat aur uska kadva sach/

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  7. दिगम्बर नासवा जी, आदाब
    ......समय के हाथ पर जो लिख गये फिर नाम अपना
    उन्ही के पाँव में रिस्ते हुवे छाले मिले हैं.....
    अच्छे शेर हैं-

    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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  8. जो तन पर ओढ़ कर बैठे हैं खादी की दुशाला
    उन्ही के मन हमेशा से घने काले मिले हैं !


    बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों में बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  9. नासवा साहब
    समय के हाथ पर जो लिख गये फिर नाम अपना
    उन्ही के पाँव में रिस्ते हुवे छाले मिले हैं

    हासिल ए ग़ज़ल शेर ......है ये
    ग़ज़ल निहायत खूबसूरत बन पड़ी है......

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  10. समय ने दी तो थी दस्तक मेरे घर पर लेकिन
    मेरा नसीब के घर पर मेरे ताले मिले हैं
    naswa sahab! in panktiyon ne dil ki satah tak ghuspeth kar li ..bahut badhiya ...

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  11. समय ने दी तो थी दस्‍तक मेरे भी घर पे लेकिन
    मेरी किस्‍मत उसे घर पर मेरे ताले मिले हैं
    वाह वाह यह शेर मैंने रख लिया .बहुत खूब बेहतरीन गजल लिखी है आपने शुक्रिया

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  12. अमन की बात करते थे जो कल संसद भवन में
    उन्ही की आस्तीनों में छुरे भाले मिले हैं


    बहुत सटीक, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  13. digambar ji
    gazal ka har sher nayab moti......kin shabdon mein tarif karoon.

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  14. SIR JI,is baar bhi BEHATARIN post ke liye bahai

    वो जिन हाथों में रहती थी सदा क़ुरआन गीता
    उन्‍हीं हाथों में मदिरा के हमें प्‍याले मिले हैं

    अमन की बात करते थे जो कल संसद भवन में
    उन्ही की आस्तीनों में छुरे भाले मिले हैं

    ye baat to ek dum fit baith ti hai sir

    ----- eksacchai { AAWAZ }

    http://eksacchai.blogspot.com

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  15. वो जिन हाथों में रहती थी सदा क़ुरआन गीता
    उन्‍हीं हाथों में मदिरा के हमें प्‍याले मिले हैं

    रात के अँधेरे में न जाने क्या क्या होता है।
    सही निशाने पर । सुन्दर।

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  16. पूरी गज़ल लाजवाब है मगर ये शेर वाह बहुत खूब
    वो जिन हाथों में रहती थी सदा क़ुरआन गीता
    उन्‍हीं हाथों में मदिरा के हमें प्‍याले मिले हैं

    अमन की बात करते थे जो कल संसद भवन में
    उन्ही की आस्तीनों में छुरे भाले मिले हैं
    इस सुन्दर गज़ल के लिये बधाई

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  17. समय ने दी तो थी दस्‍तक मेरे भी घर पे लेकिन
    मेरी किस्‍मत उसे घर पर मेरे ताले मिले हैं

    क्या कहू आपकी शब्द रचना को ! अद्भुद.

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  18. जो तन पर ओढ़ कर बैठे हैं खादी की दुशाला
    उन्ही के मन हमेशा से घने काले मिले हैं

    समय ने दी तो थी दस्‍तक मेरे भी घर पे लेकिन
    मेरी किस्‍मत उसे घर पर मेरे ताले मिले हैं
    Digambar jee,
    Bahut hee khoobasuurat gajal hai---hardika shubhakamnayen.
    Poonam

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  19. बहुत सुन्दर गजल ।कभी कभी आपकी इस गजल के विपरीत भी स्थिति हो जाती है "" उन हाथों पे इल्जाम गया आग जनी का /वो हाथ जो लोगों को बचाने मे जले है ।""

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  20. वो जिन हाथों में रहती थी सदा क़ुरआन गीता
    उन्‍हीं हाथों में मदिरा के हमें प्‍याले मिले हैं
    बहुत सुंदर रचना

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  21. बीत गये युग फिर भी जैसे कल ही तुमको देखा हो ,
    दिल में औ ;आँखों में तुम्हारी खुश्नजरी क्यूँ बाकी है ?

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  22. अमन की बात करते थे जो कल संसद भवन में
    उन्ही की आस्तीनों में छुरे भाले मिले हैं
    बहुत अच्छी ग़ज़ल।

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  23. समय के हाथ पर जो लिख गये फिर नाम अपना
    उन्ही के पाँव में रिस्ते हुवे छाले मिले हैं...

    बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ.... दिल को छू गई यह ग़ज़ल....

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  24. जो तन पर ओढ़ कर बैठे हैं खादी की दुशाला
    उन्ही के मन हमेशा से घने काले मिले हैं

    समय ने दी तो थी दस्‍तक मेरे भी घर पे लेकिन
    मेरी किस्‍मत उसे घर पर मेरे ताले मिले हैं

    वो जिन हाथों में रहती थी सदा क़ुरआन गीता
    उन्‍हीं हाथों में मदिरा के हमें प्‍याले मिले हैं

    अमन की बात करते थे जो कल संसद भवन में
    उन्ही की आस्तीनों में छुरे भाले मिले हैं
    Kya gazab rachana hai!
    Gantantr diwas kee dhero shubh kamnayen!

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  25. गणतंत्र दिवस की आपको बहुत शुभकामनाएं

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  26. जो तन पर ओढ़ कर बैठे हैं खादी की दुशाला
    उन्ही के मन हमेशा से घने काले मिले हैं !

    गजब्!!
    भई वाह्! दिगम्बर जी, एकदम बेहतरीन लगी ये रचना......

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  27. बहुत सुन्दर रचना!

    नया वर्ष स्वागत करता है , पहन नया परिधान ।
    सारे जग से न्यारा अपना , है गणतंत्र महान ॥

    गणतन्त्र-दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  28. sabhi behatareen/lajawaab , ek se badhkar ek.
    वो जिन हाथों में रहती थी सदा क़ुरआन गीता
    उन्‍हीं हाथों में मदिरा के हमें प्‍याले मिले हैं

    अमन की बात करते थे जो कल संसद भवन में
    उन्ही की आस्तीनों में छुरे भाले मिले हैं

    digambar ji , badhaai sweekaren.

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  29. दिगंबर जी सर्वप्रथम आपको गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ.


    आहा क्या शेर कहे हैं दिल के करीब...
    समय ने दी तो थी दस्‍तक मेरे भी घर पे लेकिन
    मेरी किस्‍मत उसे घर पर मेरे ताले मिले हैं

    और ये भी खूब कही आपने...

    अमन की बात करते थे जो कल संसद भवन में
    उन्ही की आस्तीनों में छुरे भाले मिले हैं

    ग़ज़ल शानदार है.

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  30. वो जिन हाथों में रहती थी सदा क़ुरआन गीता
    उन्‍हीं हाथों में मदिरा के हमें प्‍याले मिले हैं
    अमन की बात करते थे जो कल संसद भवन में
    उन्ही की आस्तीनों में छुरे भाले मिले हैं
    Sahi aina yahi hai...
    Gantantra diwas ki haardik shubhkanyen..

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  31. वो जिनके हाथ में गीता क़ुरान थी अक्सर
    उन्ही के हाथ में फिर सुरा के प्याले मिले हैं

    bahut khoob...!!

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  32. बहुत सुंदर भाव..बेहतरीन रचना...गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत हार्दिक बधाई!!!

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  33. Ek to aapki itni sundar, samvedansheel gazal oopar se guruji ka hath... sone pe suhaga hai ji..
    Ganatantra diwas par shubhkamnayen
    Jai Hind...

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  34. बहुत सुन्दर रचना! आपको और आपके परिवार को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!

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  35. जो तन पर ओढ़ कर बैठे हैं खादी की दुशाला
    उन्ही के मन हमेशा से घने काले मिले हैं

    अमन की बात करते थे जो कल संसद भवन में
    उन्ही की आस्तीनों में छुरे भाले मिले हैं

    सटीक बात कहती हुई आपकी ग़ज़ल बहुत खूब है ...

    गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें

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  36. जो तन पर ओढ़ कर बैठे हैं खादी की दुशाला
    उन्ही के मन हमेशा से घने काले मिले हैं
    कमाल की गज़ल.

    गणतंत्र दिवस मुबारक हो.

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  37. ... बहुत ही सुन्दर .... बहुत-बहुत बधाई !!!

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  38. समय के हाथ पर जो लिख गये फिर नाम अपना
    उन्ही के पाँव में रिस्ते हुवे छाले मिले हैं....
    बहुत दिनों म्बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ और सार्थक भी ...शब्द को तौल कर रखा है अपने बधाई-बधाई

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  39. गजब! गणतन्त्र की इतनी बढ़िया व्याख्या कम देखने-पढने को मिलती है. आपने इस गजल में कमाल कर दिखाया. एक तो इतनी मुश्किल बहर, ऊपर से इतने सुलगते हुए कंटेंट, कमाल है भाई. और गुरुदेव का भी आभार न प्रकट किया जाए तो शायद बदतहजीबी होगी. खुशी है, वतन से दूर भी कोई गजलों के चिराग रोशन किए हुए है.

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  40. वो जिन हाथों में रहती थी सदा क़ुरआन गीता
    उन्‍हीं हाथों में मदिरा के हमें प्‍याले मिले हैं
    बड़ी नाजुक स्थिति हो गई है !!!

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  41. समय ने दी तो थी दस्‍तक मेरे भी घर पे लेकिन
    मेरी किस्‍मत उसे घर पर मेरे ताले मिले हैं
    behtreen gjal ak ak sher sachhai byan karta mukhoto ko utarta prteet ho raha hai .

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  42. "समय ने दी तो थी दस्‍तक मेरे भी घर पे लेकिन
    मेरी किस्‍मत उसे घर पर मेरे ताले मिले हैं"

    बिलकुल सही कहा ऐसे समय पर ही ताले की हैसियत का अहसास होता है और वो भी देश भक्ति का हो तो कोई ताकत ना उसे खोल सकती है ना तोड़ सकती है
    "अमन की बात करते थे जो कल संसद भवन में
    उन्ही की आस्तीनों में छुरे भाले मिले हैं "

    छुरे भाले तो छोड़िए अगर अच्छी तरह से तलाशी लेंगें तो सारे ऐ के ४७, आर डी एक्स और नकली नोटों की खेप यहाँ मिल जायेगी
    बहुत सटीक और मार्मिक चित्रण किया है
    जय हिंद

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  43. दिगाम्बार जी ,
    एक और बेहतरीन ग़ज़ल !
    या यूँ कहिये ग़ज़ल की खान में से एक और बेहतरीन ग़ज़ल निकली .....

    आपकी हर ग़ज़ल में एक व्यंग...या यूँ कहिये की एक सटीक निशाना होता है ....समाज पर...बुराइयों पर ..
    .आखिर मन में जब कोफ़्त होती है इस सब से तो विचार तो पनपते ही हैं !
    लेकिन जादूगरी है आपकी की आप उनको ग़ज़ल के इन सुन्दर शेरों में ढाल लेते हैं !.......

    वो जिन हाथों में रहती थी सदा क़ुरआन गीता
    उन्‍हीं हाथों में मदिरा के हमें प्‍याले मिले हैं

    अमन की बात करते थे जो कल संसद भवन में
    उन्ही की आस्तीनों में छुरे भाले मिले हैं ....

    हर शेर एक सन्देश देता है ! व्यस्था पर सवाल उठाता दिखता है ............
    :):)
    आपको पढ़ कर कुछ मन कुछ पल सोचने पर मजबूर हो जाता है ......:)

    यूँ ही लिखते रहें ...और बेशकीमती ग़ज़लें सुनते जाएँ ....:):)

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  44. वो जिन हाथों में रहती थी सदा क़ुरआन गीता
    उन्‍हीं हाथों में मदिरा के हमें प्‍याले मिले हैं

    nasva ji aapki har gazel ek umda gazel hone k sath sath ek sandeshvahak bhi hoti hai

    ye gazel bhi desh ki vyavastha par teekha kataaksh kar rahi hai. u to sare hi sher bahut pasand aaye..lekin ye sher...bahut bahut khas laga.
    badhayi.

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  45. सादर वन्दे
    सच्चाईयां जानते तो हैं सभी लेकिन
    बहुत कम उनको कहने वाले मिले हैं
    रत्नेश त्रिपाठी

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  46. क्या बात है दिगम्बर भाई...एकदम कयामत पे कयामत बरसाये जा रहे हैं आप तो अपने अशआरों के जरिये...

    मतला जबरदस्त है। अपने ही आसपास देख रहा हूं इन सिरफिरों को...

    सारे के सारे शेर अच्छे बन पड़े हैं।

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  47. समय ने दी तो थी दस्‍तक मेरे भी घर पे लेकिन
    मेरी किस्‍मत उसे घर पर मेरे ताले मिले हैं'
    -वाह! वाह!!वाह!!!

    -बहुत बढ़िया ग़ज़ल!

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  48. निपुण पाण्डेय ji se sahmat hun .

    समय के हाथ पर जो लिख गये फिर नाम अपना
    उन्ही के पाँव में रिस्ते हुवे छाले मिले हैं.

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है