स्वप्न मेरे: जीवन

सोमवार, 29 मार्च 2010

जीवन

खोखले नियम
रिश्तों का बोझ

लड़के कि चाह
परंपरा का निर्वाह

जनम से मृत्यु तक
पुरुष की पनाह

ता-उम्र
टोका-टोकी का
सतत प्रवाह

जाने कब
लाल जोड़े का रंग
पिघल आता है
मासूम जिस्म पर

बदल जाता है
खामोश लिबास
शफ्फाक
सफेद कफ़न में

ग्रामोफ़ोने पर बजता है गीत
मैं तो भूल चली बाबुल का देस
पिया का घर प्यारा लगे ....

55 टिप्‍पणियां:

  1. खोखले नियम
    रिश्तों का बोझ
    लड़के कि चाह
    परंपरा का निर्वाह
    जनम से मृत्यु तक
    पुरुष की पनाह
    Aaj bhi hamare samaj ka yah kaduwa sach jahan kya shahar kya gaon.....
    Rishton ko aaj jeete nahi dhoya jaata hai....Samajik vywastha par sateek prahar.....
    bahut shubhkamnayen...

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  2. अति सुन्दर.
    दुरुस्त.
    निचोड़ प्रस्तुत किया है आपने.

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  3. मैं तो भूल चली बाबुल का देस
    पिया का घर प्यारा लगे ...


    बहुत खूब, लाजबाब !

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  4. किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

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  5. नासवा जी ,अत्यंत मार्मिक ,
    एक कन्या का पूरा जीवन चंद शब्दों में बांध दिया आपने ,

    जाने कब
    लाल जोड़े का रंग
    पिघल आता है
    मासूम जिस्म पर

    मन को छू गई आप की ये कविता
    बदल जाता है
    खामोश लिबास
    शफ़्फ़ाफ़
    सफेद कफ़न में

    बहुत बढ़िया प्रस्तुति

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  6. आपने तो हम औरतों का पूरा जीवन रच दिया .... इतने कम शब्दों मे इतनी बड़ी बात !!!!!!

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  7. उसे लोग नारी कहते है ! बढ़िया नाशवा साहब !

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  8. आज तो आपके ख्याल को नमन और कलम को भी.....ये रचना मन को छू गयी

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  9. जाने कब
    लाल जोड़े का रंग
    पिघल आता है
    मासूम जिस्म पर

    एक मुकम्मिल नज़्म
    एक-एक शब्द जैसे प्राणमयी हो उठा हो
    इतने कम वाक्यों में
    जीवन गाथा कह डाली आपने
    कन्या / लड़की / औरत /...
    और नियती
    सभी कुछ .......
    आपकी लेखनी और पावन सोच को नमन

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  10. अत्यंत मार्मिक! एक कन्या का पूरा जीवन चंद शब्दों में बांध दिया आपने| एक शे’र याद आ गया
    सारी शोखी, हंसी, शरारत, छोड़ कहां पर आई है,
    मुझे छोड़ सब समझ गए, बिटिया ससुराल से आई है।

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  11. नारी जीवन की मार्मिक प्रस्तुति

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  12. बदल जाता है
    खामोश लिबास
    शफ्फाक
    सफेद कफ़न में
    ...बहुत खूब,बधाई!!!!

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  13. मर्म स्पर्शी रचना.
    नारी के पूरे जीवन को समेट दिया कुछ ही पंक्तियों में !
    अद्भुत!

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  14. आदाब जनाब,
    बेहद मार्मिक रचना .... कुछ कहते नहीं बन रहा... शब्द जैसे छीन लिए हैं आपने ...

    बधाई कुबूल करें..

    अर्श

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  15. बदल जाता है
    खामोश लिबास
    शफ्फाक
    सफेद कफ़न में .nice

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  16. कम शब्दों में बड़ी बात!
    बहुत ही सटीक व्यंग्य रचना है!

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  17. खोखले नियम
    रिश्तों का बोझ
    लड़के कि चाह
    परंपरा का निर्वाह
    जनम से मृत्यु तक
    पुरुष की पनाह
    itna sundar likh diya ki soch me pad gayi kya kahoon ,ye samajik bandhan hai yahan insaan dhakosolo ko pahan hi mahfooj rahta hai .man kuchh aur hum kuchh .......ati sundar .

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  18. सादर वन्दे!
    शब्द अल्प अर्थ विशाल ! काफी दिनों बाद लगा कि मन को कुछ संतुष्टि मिली.
    सुन्दर रचना

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  19. जाने कब
    लाल जोड़े का रंग
    पिघल आता है
    मासूम जिस्म पर

    बदल जाता है
    खामोश लिबास
    शफ्फाक
    सफेद कफ़न में

    अच्छा दृश्यबंध, बेहतर शब्दों की खोज

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  20. बहुत सादगी से शुरू करके आपने तो दिल का हर कतरा आसुओं से सराबोर कर दिया . खूब मारक है "मैं तो भूल चली बाबुल का देस पिया का घर प्यारा लगे .."!!!

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  21. वाह वाह बहुत खूब लिखा है आपने! इस लाजवाब रचना के लिए बधाई!

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  22. behatareen abhivykti.......
    shiksha hee ye soch badal saktee hai..........

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  23. जाने कब
    लाल जोड़े का रंग
    पिघल आता है
    मासूम जिस्म पर
    aajkal aapki kalam kee dhaar paini ho chali hai......

    जवाब देंहटाएं
  24. खोखले नियम
    रिश्तों का बोझ

    लड़के कि चाह
    परंपरा का निर्वाह

    जनम से मृत्यु तक
    पुरुष की पनाह

    ता-उम्र
    टोका-टोकी का
    सतत प्रवाह

    जाने कब
    लाल जोड़े का रंग
    पिघल आता है
    मासूम जिस्म पर

    bahut hi marmikta se nari jeevan ka varnan kiya hai.

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  25. वाह नारी और उसकी भावनाओं से इतना करीबी नाता !!!!!!!!!!!मान गए. दिल को बहुत करीब से छू गए वो सारे भीगे हुए शब्दों के अहसास
    खोखले नियम
    रिश्तों का बोझ
    लड़के कि चाह
    परंपरा का निर्वाह
    जनम से मृत्यु तक
    पुरुष की पनाह

    जवाब देंहटाएं
  26. ग्रामोफोन पर तो बजेगा ही यह गीत ,ग्रामोफोन वाले को इसी बात के पैसे मिले है ।वो तो यह भी गायेगा मैके की कभी न याद आये ससुराल मे इतना प्यार मिले । मगर असलियत वही है तो ऊपर बयान की गई है |बदल जाता है लिवास कफ़न में क्या साहब बल्कि बदल दिया जाता है |लाल जोड़े का रंग पिघला दिया जाता है अगर अपेक्षाएं पूरी न हुई हों तो |बचपन में पिता ,युवावस्था में पति और बुढापे में बेटा |यह हमारा ही बनाया हुआ है |लड़की है लड़की को बड़ा मत होने दो /बड़ी हो जायेगी तो अपने पैरों पर खडी हो जायेगी| संविधान देखेगी अधिकार मांगेगी /पिता की पास बुक से कार मांगेगी /इसलिए उसे गुड़ियों से खिलाओ ,चूड़ियाँ और गहनों में उलझाओ |कच्ची उम्र में शादी करके गंगा नहा जाओ ।वाह रे हम और वाह हमारा समाज और रूढियां ।क्या किया जाये ।अब किसके सामने करे दस्ते तमन्ना दराज ।वो हाथ सो गया है सिरहाने रखे हुये ।

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  27. wah digambarji, bahut sundar likha aapne. yathaarth ko bakhoobi shbdo me utaar kar jis sach ko pesh kiya he..sach me gahre bhaav liye hue he..yahi aapki visheshataa he..

    जवाब देंहटाएं
  28. दिगंबर भाई, प्राचीन ही नहीं आधुनिक समय में भी वही नियम हिट कर रहे हैं, जो खोखले हैं। पता नहीं वह समय कभी आयेगा भी की नहीं जब आदमी की कसौटी पर आदमियत के कायदे बनेंगे।

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  29. "कविता में गाने का बेहतरीन उपयोग, मार्मिक..."
    आपकी टिप्पणी से हौसला मिला....कुंता से मेरा एक अभिन्न मित्र मिला था ,उसी ने मुझसे एक बार मिलवाया था । कुंता की अवर्णनीय जटिलता से ही कविता को रचा गया है शायद इसीलिए कुछ उलझन अपने आप आगई है......"

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  30. kya baat hai.....
    itni gehrayi bhari rachna ke liya badhai....
    meri rachnaon par bhi dhayan denge......
    aapke margdarshan ki jaroorat hogi.....
    http://i555.blogspot.com/

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  31. naswa ji plz visit...

    http://yuvatimes.blogspot.com/2010/03/blog-post_30.html


    its me

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  32. apki pichali rachanayen bhi padhi.
    kam sabdon me sansar ko samet leti hain apki rachnaye.

    behtreen rachana.

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  33. वाह्! दिगम्बर जी, आपने तो एक कविता में ही स्त्री के सम्पूर्ण जीवन का खाका खींच डाला.....
    लाजवाब रचना!

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  34. excellent poem
    खोखले नियम
    रिश्तों का बोझ
    लड़के कि चाह
    परंपरा का निर्वाह
    जनम से मृत्यु तक
    पुरुष की पनाह

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  35. आपने नारी जीवन का वास्तविक चित्रण किया है।मैथली शरणगुप्त की कविता की याद दिला गई। 'हाय अबला तेरी यही कहानी आंचल में है दुध आंखों में है पानी।'

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  36. नासवा जी, जब शायरी का फ़न अपने उरूज पर होता है, तो छोटी बहर में भी बात न केवल मुकम्मल हो जाती है, बल्कि एक एक शेर पर लंबा तज़करा किया जा सकता है....
    ये नज़्म की शक़्ल में पेश की गई आपकी कविता, ऐसे ही फ़न का मुज़ाहिरा कर रही है.
    आपको इस कामयाबी के लिये
    बस एक ही लफ़्ज़ कह पा रहा हूं...
    ...मुबारकबाद.

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  37. जाने कब
    लाल जोड़े का रंग
    पिघल आता है
    मासूम जिस्म पर

    क्यों रुलाने पर तुल गए आज ......??

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  38. स्त्री जीवन ! आप पारखी की तरह लिखते हैं !
    जब स्त्रियाँ मिलती हैं ! ये बाते जरुर उठती हैं !
    जो आपने कविता में पिरो दिया है !
    बहुत बहुत बधाई !

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  39. bahut gaharee samajh ko samete hai aapkee ye lajawab rachana...........
    isko mera naman..........

    जवाब देंहटाएं
  40. bahut gaharee samajh ko samete hai aapkee ye lajawab rachana...........
    isko mera naman..........

    जवाब देंहटाएं
  41. meri nayi rachna jaroor dekhein, aapki pratikriya ka intzaar rahega...

    जवाब देंहटाएं
  42. meri nayi rachna jaroor dekhein, aapki pratikriya ka intzaar rahega...

    जवाब देंहटाएं
  43. शब्द की सार्थकता साबित हो गई इस कविता मे

    जवाब देंहटाएं
  44. शुक्रिया ,
    आपकी किस रचना की तारीफ़ करूँ ; जीवन , ग़ुबार, सौदा ,याद या ग़ज़ल ?
    बस पढ़ती गयी ..पढ़ती गयी ..पढ़ती गयी !

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  45. क्या लिख दिया!!! इतने नन्हे-मुन्ने वाक्यों में इस छोटी सी रचना ने तो मुझे मेरी औकात बता दी. भाई, इतना अच्छा लिखेंगे तो हम जैसों को कौन पढ़ेगा? कुछ हल्का-फुल्का नहीं लिख सकते थे? जरूरी है हम लोगों को पाताल तक पहुँचाना? फिलहाल, अपना इस रचना ने जो भी हश्र किया हो लेकिन अपुन का दिल भी बड़ा है, इस सशक्त रचना के लिए दिल से ढेरों दुआएं.
    बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ, इसके लिए दुखी होने के सिवा कुछ और नहीं कर सकता.

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  46. बहुत ही गहरे भावों के साथ बेहतरीन रचना ।

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  47. जाने कब
    लाल जोड़े का रंग
    पिघल आता है
    मासूम जिस्म पर
    इतनी करूणा और त्रासद भर दी है आपने क्या कहूँ.
    शब्द नहीं ये तो अंगारे हैं

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  48. कौन कहता है कि बड़े दर्द को व्यक्त करने के लिये बड़े-बड़े शब्दों की भी जरूरत होती है..औरत की जीवन का पूरा सफ़र, सारा दर्द उकेर कर रख दिया चंद शब्दों मे आपने..
    बदल जाता है
    खामोश लिबास
    शफ्फाक
    सफेद कफ़न में

    कितनी लम्बी कहानी..मगर मुख्तसर!!
    हिंद-युग्म पर भी आपकी खूबसूरत कविता पढ़ने का मौका मिला....

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  49. कैसा भविष्य और
    जीवन
    दोनों कविताये चित उपराम सा करती है यही दुनिया है तो ऐसी दुनिया क्यूँ है..

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  50. antim line padhte he aaknho me paani aa gaya...bathut khoob..bahut dino baad aapko padha hai

    जवाब देंहटाएं

आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है