स्वप्न मेरे: बुढ़ापा

सोमवार, 19 अप्रैल 2010

बुढ़ापा

जिस्म पर रेंगती
चीटियाँ की सुगबुगाहट
वक़्त के हाथों लाहुलुहान शरीर
खोखले जिस्म को घसीटते
दीमक के काफिले

शारीरिक दर्द से परे
मुद्दतो की नींद से उठा
म्रत्प्राय जिस्म का जागृत मन

दिमाग़ के सन्नाटे में
चीखती आवाज़ों का शोर
उफन कर आती यादों का झंझावात
अचेतन शरीर की आँख से निकलते
पानी के बेरंग कतरे
साँसों का अनवरत सिलसिला
जीने की मजबूरी

हाथ भर दूरी पे पड़ा
इच्छा मृत्यु का वरदान
धीरे धीरे मुस्कुराता है ...

70 टिप्‍पणियां:

  1. "दिमाग़ के सन्नाटे में
    चीखती आवाज़ों का शोर
    उफन कर आती यादों का झंझावात
    अचेतन शरीर की आँख से निकलते
    पानी के बेरंग कतरे
    साँसों का अनवरत सिलसिला
    जीने की मजबूरी

    हाथ भर दूरी पे पड़ा
    इच्छा मृत्यु का वरदान
    धीरे धीरे मुस्कुराता है ... "

    kamaal ki lekhni hai ji,

    kunwar ji,

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  2. योगेश जी
    वृद्धावस्था के ऊपर आपकी संवेदनशील कविता बहुत अच्छी लगी......साधुवाद

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  3. शारीरिक दर्द से परे
    मुद्दतो की नींद से उठा
    म्रत्प्राय जिस्म का जागृत मन

    BHDHAPA BAHUT HI GHATAK HOTA HAI...

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  4. वृद्धावस्था के ऊपर आपकी संवेदनशील कविता

    जवाब देंहटाएं
  5. हाथ भर दूरी पे पड़ा
    इच्छा मृत्यु का वरदान
    धीरे धीरे मुस्कुराता है ... "
    बहुत कुछ अनकहा कह दिया………………………बहुत गहरे दर्द को शब्दों में बाँध दिया।

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  6. योगेश जी
    वृद्धावस्था के ऊपर आपकी संवेदनशील कविता बहुत अच्छी लगी......साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  7. दिमाग़ के सन्नाटे में
    चीखती आवाज़ों का शोर
    उफन कर आती यादों का झंझावात
    अचेतन शरीर की आँख से निकलते
    पानी के बेरंग कतरे
    साँसों का अनवरत सिलसिला
    जीने की मजबूरी .... waah

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  8. वृद्धावस्था कि करून चित्र प्रस्तुत किया है आपने ! बड़ी संबेदंशील रचना है ! आपके शब्दों में अद्भुत प्रभाव है !

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  9. क्यों डराते हो?
    घुघूती बासूती

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  10. ek main yahan hoon,tu hi nahi hai
    yahan roj aana yuin hi nahi hai..

    so touchy.!

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  11. बुढ़ापा तो अभी ५० ६० साल बाद आयेगा, अभी से क्यो डरा रहे हो जी ??

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  12. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  13. अहा!!

    क्या कहें..सीधे उतर गई दिल में..अति मार्मिक!

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  14. regarding oldage
    very beautiful and emotional poem

    म्रत्प्राय जिस्म का जागृत मन

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  15. कशमकश में कुछ ऐसे ही हालात होते हैं एक हाथ की दूरी पर चाहना होते हुए भी नहीं मिलती...फिर वो चाहे मृत्यु का वरदान हो!
    गहन भाव.बेहतरीन रचना.

    alpana

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  16. किसी को न मिले ऐसे दिन देखने को, कारुणिक दृश्य.

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  17. jaise yug ne hamen jiya ho, or ham koi mukdarshak ho ....

    sochta hai kavi aksar kuch aisa hee... kyonki kavi kee drishtee V kisee pidaa se kam nahin...

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  18. निहायत ही मर्मस्पर्षि रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  19. kya baat hai..
    bahut hi marmik kavita likhi hai aapne...
    budhape ka sahi chitran....
    bahut khub....
    regards
    shekhar
    http://i555.blogspot.com/

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  20. परिपक्वता के साथ प्रस्तुत शब्दों का सही स्वरूप...
    बहुत प्रभावशाली.

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  21. वृधावस्था की बड़ी करुणात्मक तस्वीर उतारी है नसवा जी ।
    लेकिन बुढ़ापा हमेशा ऐसा भी नहीं होता ।

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  22. "दिमाग़ के सन्नाटे में
    चीखती आवाज़ों का शोर
    उफन कर आती यादों का झंझावात
    अचेतन शरीर की आँख से निकलते
    पानी के बेरंग कतरे
    साँसों का अनवरत सिलसिला
    जीने की मजबूरी

    हाथ भर दूरी पे पड़ा
    इच्छा मृत्यु का वरदान
    धीरे धीरे मुस्कुराता है ...
    waah kamaal ka likh dala
    sachchai ko is kadar pesh kiya ki uski tasvir aankho ke saamne aa gayi .

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  23. बुढ़ापा अपने में स्वयं एक बीमारी है!
    मगर ये सबको आना है,
    यही तो विडम्बना है!

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  24. आपकी इस रचना ने मन - मस्तिष्क झनझना दिया है....ये भी जीने की मजबूरी है वरना मौत तो सबको ही आनी है....

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  25. हाथ भर दूरी पे पड़ा
    इच्छा मृत्यु का वरदान
    धीरे धीरे मुस्कुराता है ...
    Ek aah-si nikali seenese...

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  26. अचेतन शरीर की आँख से निकलते
    पानी के बेरंग कतरे
    साँसों का अनवरत सिलसिला
    जीने की मजबूरी
    गज़ब की अभिव्यक्ति!

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  27. " dil jeet liya in panktiyoan ne

    हाथ भर दूरी पे पड़ा
    इच्छा मृत्यु का वरदान
    धीरे धीरे मुस्कुराता है ... "

    badhai

    ----- eksacchai { AAWAZ }

    http://eksacchai.blogspot.com

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  28. इच्छा मृत्यु का वरदान एक छलावा है … यहाँ हर कोई अपने हिस्से की इच्छा मृत्यु लेकर आया है... किंतु बाध्य है भीष्म की तरह शर शय्या की वेदना झेलने को अथवा अश्वत्थामा की तरह मस्तक पर लिए बहते घाव की पीड़ा सहने को...

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  29. dil ko andar tak hila gai aapki yah post -------
    "दिमाग़ के सन्नाटे में
    चीखती आवाज़ों का शोर
    उफन कर आती यादों का झंझावात
    अचेतन शरीर की आँख से निकलते
    पानी के बेरंग कतरे
    साँसों का अनवरत सिलसिला
    जीने की मजबूरी

    हाथ भर दूरी पे पड़ा
    इच्छा मृत्यु का वरदान
    धीरे धीरे मुस्कुराता है
    poonam

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  30. वाह दिगंबर की क्या अभिव्यक्ति है मानना होगा हर विधा और हर अंदाज में फिट है....प्रस्तुति रचना के लिए दिल से बधाई

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  31. जिस्म पर रेंगती
    चीटियाँ की सुगबुगाहट
    वक़्त के हाथों लाहुलुहान शरीर
    खोखले जिस्म को घसीटते
    दीमक के काफिले
    ....गज़ब की अभिव्यक्ति!

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  32. सच में, ये कविता पढ़कर तो रोंगटे खड़े हो गये.

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  33. सर जी क्या आपकी रचना यह कहना चाहती है कि ’मांगने से जो मौत मिल जाती कौन जीता इस ज़माने मे(इच्छा म्रत्यु) ’क्या आपकी रचना फ़िल्म मदर इन्डिया का गाना दुनिया मे हम आये है तो जीना ही पडेगा (जीने की मजबूरी) कहना चाहती है ।यह तो सच है कि शरीर म्रतप्राय हो या दर्द से भरा हो मन तो जाग्रत रहता ही है उसकी थिंकिंग के कारण ही यादे (पुरानी ) आती रहती है और आंख से पानी भी निकलता है ।वक्त के हाथों लहूलुहान और खोखला जिस्म,जिसको वक्त की दीमक नित्यप्रति जर्जर कर रही है उसपर इच्छा म्रत्यु के बरदान का मुस्कराना स्वाभाविक है क्यों कि ""यूं तो घबरा के वो कह देते हैं कि मर जायेंगे /मर कर भी चैन न आया तो किधर जायेंगे ।

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  34. दिगंबर जी
    बहुत ही संवेदनशील रचना है, प्रत्येक शब्द जैसे नगीनों की तरह जड़ा हुआ है. आपकी
    सुन्दर रचना को पढ़ते हुए अपनी आयु पर दृष्टि डालने पर मजबूर हो गया लेकिन फिर भी
    बुढ़ापे के साथ इतनी परेशानियाँ, विपत्तियाँ, बीमारियाँ और मानसिक छटपटाहट और न जाने क्या-क्या
    इसके साथ लगे होते हुए भी इसका एक सकारात्मक पहलू भी है जिसके के कारण बुढ़ापा एक अमूल्य
    निधि बन जात है. लो, उस पहलू पर मैं नीचे अपनी एक ग़ज़ल दे रहा हूँ, शायद इसे पढ़कर कुछ इसी दौर
    में से गुजरने वालों को ढाढ़स भी मिलेगा:

    बुढ़ापा!
    जवाँ जब वक़्त की दहलीज़ पर आंसू बहाता है,
    बुढ़ापा थाम कर उसको सदा जीना सिखाता है

    पुराने ख़्वाब को फिर से नई इक ज़िंदगी देकर,
    बुढ़ापा हर अधूरा पल कहानी में सजाता है.

    तजुर्बा उम्र भर का चेहरे की झुर्रियां बन कर,
    किताबे-ज़िंदगी में इक नया अंदाज़ लाता है।

    किसी के चश्म पुर-नम दामने-शब में अंधेरा हो,
    बुझे दिल के अंधेरे में कोई दीपक जलाता है।

    क़दम जब भी किसी के बहक जाते हैं जवानी में,
    बुजुर्गों की दुआ से राह पर वो लौट आता है.

    महावीर शर्मा

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  35. दिगंबर जी
    शिवना प्रकाशन पर मेरे ७७वे जन्मदिन पर आपके बधाई-वचनों से अभिभूत हूँ.धन्यवाद.
    महावीर शर्मा

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  36. sajan re jhooth mat bolo
    khuda ke pas jana hai
    na hathi hai na ghoda hai
    vahan paidal hi jana hai
    isme darna kya?
    budhapa to ana hi hai ..
    are! are! vo to ahi gya ..........

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  37. दिगंबर जी,
    इतना बुरा भी नहीं होता बुढ़ापा...
    मैं अपने-माता-पिता को देखती हूँ...बहुत खुश है ..और उनका हमारे जीवन में होना कितना बड़ा वरदान है जिसका रोज़-रोज़ ईश्वर को धन्यवाद देते हैं हम बच्चे...
    बुढापे को सहजता से अगर कोई स्वीकार करे तो ऐसा भी नहीं होता.....
    आपने तो डरा ही दिया है...
    आदरणीय महावीर जी ने जो लिखा है बिलकुल सही लिखा है....उसे पढ़ कर सचमुच लोगों को तसल्ली हो जायेगी...
    धन्यवाद...

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  38. aapkee rachana ne janha khakjhora vahee Mahaveer jee kee rachana sukoon de gayee........
    aap bahut accha likhte hai.........

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  39. @ ... हाथ भर दूरी पे पड़ा
    इच्छा मृत्यु का वरदान
    धीरे धीरे मुस्कुराता है ...
    ----------- पितामह भीष्म की शर-शैय्या याद है ?

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  40. आपने बुढ़ापे पर कविता नहीं लिखी, चित्रकारी की है. कविता का एक एक शब्द इस का गवाह है की आपकी दृष्टि बहुत प्रखर है, उर्दू में इसे मुशाहिदा कहते हैं. मैं खुद इस बात को बा हलफ कहने को तैयार हूँ कि आपका मुशाहिदा बहुत तेज़ है.
    लेकिन भाई मेरे, बुढ़ापे में सबका हश्र ऐसा थोड़े होता है. एक शेर पेश करता हूँ-
    बहुत से लोग जवानी में झूल जाते हैं
    किसी किसी का बुढ़ापा कमाल होता है.

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  41. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  42. मै भी अपने अन्त की कल्पना इन पंक्तियो के माध्यम से कर रहा हू

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  43. आपका ब्लॉग बहुत अच्छा है. आशा है हमारे चर्चा स्तम्भ से आपका हौसला बढेगा.

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  44. Aaj phir ekbaar padhee yah rachana...raungate khade ho gaye..!
    Kitne qareeb se dekha hai zindagee ko..

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  45. इतनी प्रभावशाली है कविता कि पहले शब्द से ही उम्र की यह बेबसी चीटियों की तरह दिमाग पर रेंगने लगती है..और आगे बढ़ते-बढ़ते शब्द असहाय से हो जाते हैं..कविता मे कहीं कहीं पर कुछ ज्यादा नकारात्मक और दयनीय सा लगने लगता है वक्त का यह पड़ाव..जिंदगी से मात खाये किसी योद्धा की डूबती जाती पुकार की तरह..मगर यहां पर थोड़ा धीरज बँधता है..
    मुद्दतो की नींद से उठा
    म्रत्प्राय जिस्म का जागृत मन

    मन जाग्रत रहे तो जीवन अपनी राह पाता रहेगा..
    मगर कुल मिला कर बड़ा दुःख सा भर जाता है अंदर..कविता बार-बार पढ़ते हुए..

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  46. जीवन के अन्तिम पढाव का बखूबी से चित्रण किया है आपने।

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  47. हाथ भर दूरी पे पड़ा
    इच्छा मृत्यु का वरदान
    धीरे धीरे मुस्कुराता है ...

    लगता है आ गया है बुढापा
    देखते नहीं बच्चे कहने लगे आपा.
    बुढापा को आपने बखूबी चित्रित किया है.

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  48. कल जल्दबाजी में पढ़ नहीं पाया था...

    जैसा की सर्वत साहब ने फरमाया, आपका मुशाहिदा बहुत तेज़ है. काव्य में आपकी संवेदनशीलता बहुत प्रखर है. यही कारण है हम आपको पढ़े बिना रह नहीं पाते.

    करुण स्थिति तो है बुढापा.... मगर सबके लिए नहीं. "चलते फिरते गुजर गए हमारी दादी जी. हमारे नाना जी और दादा जी को देख कर लगता है शायद खाते पीते चलते बोलते वे चुपके से निकल जायेंगे."

    दिगंबर जी आपका चित्रण लाजवाब है.

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  49. क्या कहूँ...बोलती बंद हो गयी आपकी रचना पढ़ कर ...क्या बुढ़ापा सच में ऐसा भयानक होता है...उफ्फ्फ...कमाल की रचना..
    नीरज

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  50. हाथ भर दूरी पे पड़ा
    इच्छा मृत्यु का वरदान
    धीरे धीरे मुस्कुराता है ..

    wah kya ichha mrityu ka kataksh kiya hai...shabd sanyojan ati sudrad.samajhne k liye sir khujana pada. budhaapa itna kharab hota hai????ufff...
    bt fbd. se aane k baad kaha busy hai?

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  51. दिमाग़ के सन्नाटे में
    चीखती आवाज़ों का शोर
    उफन कर आती यादों का झंझावात
    अचेतन शरीर की आँख से निकलते
    पानी के बेरंग कतरे
    साँसों का अनवरत सिलसिला
    जीने की मजबूरी

    कितना बेबस हो जाता है न इंसान इस पड़ाव पर

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  52. इच्छा मृत्यु का वरदान
    धीरे धीरे मुस्कुराता है ...!!!
    आपकी सीधी सधी अभिव्यक्ति बेचैन कर देती है ! वास्तव में तकलीफों के आगे इच्छा मृत्यु का वरदान बेकार है ! हाँ यदि यह अंतिम हो तो !ये कविता अनंत गहरे भाव विचारों को उद्वेलित करती है ! बधाई स्वीकारें !

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  53. वाह बहुत बढ़िया और शानदार लगा! बुढापा को आपने बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! लाजवाब प्रस्तुती!

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  54. साँसों का अनवरत सिलसिला
    जीने की मजबूरी

    हाथ भर दूरी पे पड़ा
    इच्छा मृत्यु का वरदान
    धीरे धीरे मुस्कुराता है ...

    जीवन के संध्याकाल का बहुत बखूबी से चित्रण किया आपने....बेहतरीन्!!

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  55. हाथ भर दूरी पे पड़ा
    इच्छा मृत्यु का वरदान
    धीरे धीरे मुस्कुराता है ..
    --ऊफ!
    दर्दनाक अभिव्यक्ति।
    ..मुझे भी लगता है कि इच्छा मृत्यु का अधिकार मिल ही जाना चाहिए!
    वातावरण तैयार कर दिया है आबोहवा ने।

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  56. हाथ भर दूरी पे पड़ा
    इच्छा मृत्यु का वरदान
    धीरे धीरे मुस्कुराता है ...
    Kyaa baat hai, bahut khubsoorat shabdawalee istemaal kee aapne !

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  57. दिमाग़ के सन्नाटे में
    चीखती आवाज़ों का शोर
    उफन कर आती यादों का झंझावात
    अचेतन शरीर की आँख से निकलते
    पानी के बेरंग कतरे
    साँसों का अनवरत सिलसिला
    जीने की मजबूरी
    Digambar ji,vriddhavastha ko baht behatareen dhang se apne varnit kiya hai is kavita men.......sundar kavita.

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  58. हाथ भर दूरी पे पड़ा
    इच्छा मृत्यु का वरदान
    धीरे धीरे मुस्कुराता है ...
    .....क्या करें मुस्कराना ही पड़ता है .........
    दिगंबर जी आपने बुढ़ापे का सजीव चित्रण बहुत सधे और गहरे भावों के साथ बखूबी पिरोकर जीवंत बना दिया ...
    सुघड़ शब्द संयोजन .........
    हार्दिक शुभकामनाएं

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  59. Naswa Ji,

    Oh ! itni achchi kavita ke liye gale mil hi jaiye... comment karne ke liye bahut scrrol karna pada bhai :)

    bahtareen kavita... har shabd chun kar liye gaye hain ...

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  60. पता नहीं मैं कैसे चुक गया ...............बुड़ापे के इस रूप से नासवा जी शायद बिना पढ़े ही अवचेतन दर गया मेरा .............आपकी रचना को मैंने बहुत करीब से महसूस किया हैं .................और रोज़ बुड़ापे के ऐसे रूप से रूबरू होता हूँ

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  61. बुढापे की कहानी कहती एक बेहतरीन रचना।

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है