स्वप्न मेरे: बंधुआ भविष्य

सोमवार, 10 मई 2010

बंधुआ भविष्य

जिस्म ढकने को मुट्ठी भर शर्म
बंद आकाश का खुला गगन
साँस भर हवा
भूख का अधूरापन

नसों में दौड़ती
देसी महुए की वहशी गंध
दूर से आती
चंद सिक्कों की खनक

हाथ की खुरदरी रेखाओं से निकला
सुनहरा भविष्य

गूंगे झुनझुने की तरह
साम्यवादी शोर में बजता
बहरे समाजवाद को सुनाता
प्रजातंत्र की आँखों के सामने
पूंजीवाद की तिज़ोरी में बंद

या यूँ कहिए
सुरक्षित है

70 टिप्‍पणियां:

  1. हमेशा की तरह आपकी रचना जानदार और शानदार है।

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  2. हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  3. प्रजातंत्र की आँखों के सामने
    पूंजीवाद की तिज़ोरी में बंद

    या यूँ कहिए
    सुरक्षित है
    Aah..kya kahun?Pusht dar pusht, fixed deposit ki tarah surakshit hai...

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  4. गूंगे झुनझुने की तरह
    साम्यवादी शोर में बजता
    बहरे समाजवाद को सुनाता
    प्रजातंत्र की आँखों के सामने
    पूंजीवाद की तिज़ोरी में बंद

    या यूँ कहिए
    सुरक्षित है ...............................काम के सिलसिले में बाहर गए थे .................और उनकी आँखों ने बंधुआ साँसों को ...........खुले गगन में शुद्ध कविता कर दिया ............असल ब्लॉग्गिंग के लिए इस तुच्छ का प्रणाम ................
    जिस्म ढकने को मुट्ठी भर शर्म
    बंद आकाश का खुला गगन ,
    गूंगे झुनझुने की तरह ..................
    बहुत साधुवाद नासवा साहब ..................

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  5. रचना के भावों मैं काफी गहराई है

    http://sanjaykuamr.blogspot.com/

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  6. गूंगे झुनझुने की तरह
    साम्यवादी शोर में बजता
    बहरे समाजवाद को सुनाता
    प्रजातंत्र की आँखों के सामने
    पूंजीवाद की तिज़ोरी में बंद


    सभी वादो की सच्चाई उजागर कर दी आपने

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  7. गरीबो का भविष्य पूंजीवादियों के तिजोरियों में ही बंद रहता है और हमेशा रहेगा ....

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  8. 'गूंगे झुनझुने की तरह
    साम्यवादी शोर में बजता
    बहरे समाजवाद को सुनाता
    प्रजातंत्र की आँखों के सामने
    पूंजीवाद की तिज़ोरी में बंद

    या यूँ कहिए
    सुरक्षित है '

    - अच्छी सुरक्षा है.

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  9. सच ही भविष्य बंधुआ हो कर रह गया है...बहुत गहरी अभिव्यक्ति

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  10. आपके क्रांतिकारी विचारों को नमन!!

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  11. गूंगे झुनझुने की तरह
    साम्यवादी शोर में बजता
    बहरे समाजवाद को सुनाता
    प्रजातंत्र की आँखों के सामने
    पूंजीवाद की तिज़ोरी में बंद

    या यूँ कहिए
    सुरक्षित है

    लाजवाब है , उम्दा रचना

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  12. साम्यवादी शोर,बहरा समाजवाद और पूंजीवाद की तिजोरी बहुत अच्छी उपमा का प्रयोग किया गया है सुनहरे भविष्य को गूंगा झुनझुने की तरह बहुत ही उचित बतलाया गया है ,नशा और थोडे रुपयों की खनक ,भूंख का अधूरापन और मुट्ठी भर शर्म ,भाव प्रधान और अच्छे शब्दों की शानदार रचना

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  13. गूंगे झुनझुने की तरह
    साम्यवादी शोर में बजता
    बहरे समाजवाद को सुनाता
    प्रजातंत्र की आँखों के सामने
    पूंजीवाद की तिज़ोरी में बंद
    -------- यह हकीकत है एक मजदूर की !
    फैसन की तरह इसका नाम लिया जाता है , साम्यवादियों द्वारा !
    भारतीय प्रजातंत्र के नुस्खे की हकीकत को पिछले ६० साल अच्छे
    से बता दे रहे हैं ! मजदूर से मजबूर होता फिर ह्त्या ! वैसे
    अघोषित ह्त्या दिन-दिन हो ही रही है ---
    जिस्म ढकने को मुट्ठी भर शर्म
    बंद आकाश का खुला गगन
    साँस भर हवा
    भूख का अधूरापन
    ----------- सुन्दर !

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  14. रचना छोटी है और मारक-क्षमता बहुत अधिक है!
    यह तो सतसैया के दोहे जैसी है!

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  15. सुनहरा भविष्य
    पूंजीवाद की तिज़ोरी में बंद
    या यूँ कहिए
    सुरक्षित है

    बेहतरीन प्रस्तुति।

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  16. बहुत अच्छी लगी आज की आप की यह रचना धन्यवाद

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  17. जिस्म ढकने को मुट्ठी भर शर्म
    बंद आकाश का खुला गगन
    साँस भर हवा
    भूख का अधूरापन
    आपकी अभिव्यक्ति को सलाम!

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  18. आपकी रचना जानदार और शानदार है।

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  19. sir.bahut hi gahari aur sachchai ko aaina dikhati aapki kais kavita ne apna apratim prabhav dala hai.bahut kuchh khas laga is post me.
    poonam

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  20. aapki kalam aur हाथ की खुरदरी रेखाओं से निकला
    सुनहरा भविष्य
    bahut hi badhiyaa

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  21. बेहतरीन प्रस्तुती .....

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  22. Mehnatkash logo ka yatharth aur loktantra ka chalava bakhubi bayan kiya hai.shubkamnayen.

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  23. गूंगे झुनझुने की तरह
    साम्यवादी शोर में बजता
    बहरे समाजवाद को सुनाता
    प्रजातंत्र की आँखों के सामने
    पूंजीवाद की तिज़ोरी में बंद
    .........बेहतरीन प्रस्तुती

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  24. सच्चाई तो आपने बता ही दी है!अब हम और ज्यादा क्या कहे....

    बहुत बढ़िया जी!

    कुंवर जी,

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  25. सचाई को गिरफ्त में ले रही आपकी यह रचना काबिले गौर है.

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  26. सुंदरतम भावाभिव्यक्ति.... दिगंबर जी साधुवाद स्वीकारें..

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  27. नौजवान दोस्त
    आपकी रचना शानदार लगी। इसी तरह लिखते रहे।

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  28. दिगंबर जी ब्रेक के बाद बहुत ससक्त रचना ... छोटी सी कविता में अपने समाज के खोखले पन को पूरी शिद्दत से अभिव्यक्त किया है आपने...

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  29. हाथ की खुरदरी रेखाओं से निकला
    सुनहरा भविष्य
    सशक्त रचना।

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  30. प्रजातंत्र की आँखों के सामने
    पूंजीवाद की तिज़ोरी में बंद '

    यही भविष्य है उन खुरदरे हाथों का!

    -'गूंगा झुनझुना'...वाह! गरीब मजदूर के सुनहरे भविष्य की इस से बेहतर क्या उपमा हो सकती है!
    बहुत अच्छी कविता.

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  31. गूंगे झुनझुने की तरह
    साम्यवादी शोर में बजता
    बहरे समाजवाद को सुनाता
    प्रजातंत्र की आँखों के सामने
    पूंजीवाद की तिज़ोरी में बंद

    दिमाग की नसों और मन की भावनाओं को
    आंदोलित करते हुए ये कुछ शब्द ...
    इंसान को इंसान ही की तस्वीर दिखा पाने में
    कामयाब बन पड़े हैं
    किसी भी समाज और राष्ट्र के लिए
    ऐसा आह्वान महत्वपूर्ण है ...और आवश्यक भी .

    रचनाकार ..और उसकी लेखनी
    दोनों को नमन .

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  32. जिस्म ढकने को मुट्ठी भर शर्म
    बंद आकाश का खुला गगन
    साँस भर हवा
    भूख का अधूरापन
    ओह!! कटु यथार्थ बयाँ कर रही हैं ये पंक्तियाँ...मन को झकझोर देने वाली रचना

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  33. सादर वन्दे |
    तोड़ जंजीरों को निकले बहुत करता है मन
    मगर तोड़े कैसे जंजीर भी अपनी ही है !
    रत्नेश त्रिपाठी

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  34. हाथ की खुरदरी रेखाओं से निकला
    सुनहरा भविष्य
    गूंगे झुनझुने की तरह
    साम्यवादी शोर में बजता
    बहरे समाजवाद को सुनाता

    भई दिगम्बर जी..कविताओं की इतनी समझ न होने के बावजूद भी सच कहता हूँ कि आपकी ये रचना बेहद बेहद बेहद कमाल लगी....लाजवाब् तरीके से सच्चाई को उजागर करती!

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  35. नासवा जी ,
    आप एवरेज एक महीने में २ कवितायें लिखते हैं ...पढ़ कर जाना ...कविता हमारे दायरे की सोच का सहज , स्वाभाविक बहाव होता है ..जो बाहर घट रहा रहा होता है उसने किस सीमा तक हमें प्रभावित किया ...उसे शब्द देना हर किसी के बस की बात नहीं ...बहुत सुन्दर लिखा है , सुनहरा भविष्य तो बंधुआ है ।

    जवाब देंहटाएं
  36. नासवा जी आपकी रचनाएं तो हमेशा ही गहरी बात लिये होती है । यह भी
    गूंगे झुनझुने की तरह
    साम्यवादी शोर में बजता
    बहरे समाजवाद को सुनाता
    प्रजातंत्र की आँखों के सामने
    पूंजीवाद की तिज़ोरी में बंद

    या यूँ कहिए
    सुरक्षित है .............

    जवाब देंहटाएं
  37. जिस्म ढकने को मुट्ठी भर शर्म
    बंद आकाश का खुला गगन
    साँस भर हवा
    भूख का अधूरापन
    एक एक बात एक एक शब्द सीधे दिल पर वार कर गया. सच चंद सिक्कों के लिए इन्सान कितना मजबूर हो जाता है.समाज व्यवस्था पर सीधा व तीखा प्रहार मन को झकझोर देने वाली रचना

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  38. bahut khub likha hai aapne....
    हाथ की खुरदरी रेखाओं से निकला
    सुनहरा भविष्य
    waah...
    -----------------------------------
    mere blog mein is baar...
    जाने क्यूँ उदास है मन....
    jaroora aayein
    regards
    http://i555.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  39. अद्भुत...बेहतरीन नज़्म...वाह...दिगंबर जी...वाह...
    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  40. नासवा जी,
    फ़िक्रो-फ़न का उरूज हासिल कर चुके हैं आप...
    बहुत बहुत मुबारकबाद.

    जवाब देंहटाएं
  41. बहुत शानदार, दिगम्बर!!


    एक विनम्र अपील:

    कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें.

    शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.

    हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.

    -समीर लाल ’समीर’

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  42. digambarji..NAMSKAAR
    chhuttiyo par gayaa tha..aour blog jagat se thik vese hi door rahaa jese apni noukari se.., chhuttiyo me sab bhoolaa kar aanand lene ke mood me jyada rahataa hu..so..ab loutaa hu..., maa-baabuji ke paas thaa.../
    rachnaaye padhhni he aapki..itminaan se padhhungaa..

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  43. कविता के बारे मे क्या कहूँ. अव्वल तो न जाने कितनी हि देर बस उंवान को ही सोचता रहा. बंधुआ भविष्य.
    फिर जब कविता पर आया तो सोच गह्राई तक उतर गयी.
    बहुत उम्दा.
    सत्य

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  44. गूंगे झुनझुने की तरह
    साम्यवादी शोर में बजता
    बहरे समाजवाद को सुनाता
    प्रजातंत्र की आँखों के सामने
    पूंजीवाद की तिज़ोरी में बंद

    या यूँ कहिए
    सुरक्षित है

    speechless rachna as always

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  45. कविता प्रचिलित राजनैतिक स्थापनाओं पर कड़ा प्रहार करती है...
    ...इस बंधुआ भविष्य की यह विडम्बना है कि वह साहित्य का विषय होता है, राजनीति का विषय होता है, क्रांति का भी विषय होता है..मगर सारी चिंताओं और परिवर्तनों के बाद भी अंततः बंधुआ ही रह जाता है..
    गहरे तक उतरने वाली कविता..

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  46. kya zabardast punch hai aakhir me digambar ji...yun samjhiye band kamre ki khidki khul gayi achanak...raushni ka bhabhka laga andhere ke aadi ko....behad umda nazm

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  47. गूंगे झुनझुने की तरह
    साम्यवादी शोर में बजता
    बहरे समाजवाद को सुनाता
    प्रजातंत्र की आँखों के सामने
    पूंजीवाद की तिज़ोरी में बंद
    सूक्ष्म कवित्व शैली में बहुत कुछ कह दिया आपने नासवा साहब !

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  48. देशी महुए की वहशी गंध.. वाह सुन्दर बिम्ब..
    वैसे आजकल आप व्यस्त हैं या मुझसे नाराज़., कहिये तो जरा.. :)

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  49. गूंगे झुनझुने की तरह
    साम्यवादी शोर में बजता
    बहरे समाजवाद को सुनाता
    प्रजातंत्र की आँखों के सामने
    पूंजीवाद की तिज़ोरी में बंद
    .......Gahre bhavabhivykti...
    ..bahut kuch sochne par mujboor karti aapki rachna..

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है