स्वप्न मेरे: कहने को दिल वाले हैं ...

मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010

कहने को दिल वाले हैं ...

गुरुदेव पंकज जी के आशीर्वाद से इस ग़ज़ल में कुछ परिवर्तन किए हैं .... ग़ज़ल बहर में आ गयी है अब ... आशा है आपको पसंद आएगी .....

छीने हुवे निवाले हैं
कहने को दिल वाले हैं

जिसने दुर्गम पथ नापे
पग में उसके छाले हैं

अक्षर की सेवा करते
रोटी के फिर लाले हैं

खादी की चादर पीछे
बरछी चाकू भाले हैं

जितने उजले कपड़े हैं
मन के उतने काले हैं

न्‍योता जो दे आए थे
घर पर उनके ताले हैं

कौन दिशा से हवा चली
बस मदिरा के प्याले हैं

98 टिप्‍पणियां:

  1. दिगम्बर नासवा जी
    "ला-जवाब" जबर्दस्त!!

    ....बहुत बड़ी हकीकत -आज के दौर की।

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  2. तन पर जिनके उजले कपड़े
    मन से उतने काले हैं आज का इस से बड़ा सच क्या होगा ...बहुत खूब ...और यह तो विशेष रूप से पसंद आया ...कौन दिशा से हवा चली है
    बस मदिरा के प्याले हैं .........बेहतरीन शेर आज का

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  3. @ नासवा जी
    पसंद आया यह अंदाज़ ए बयान आपका. बहुत गहरी सोंच है

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  4. sabhee ek se bad kar ek......
    bahut acchee soch hee aisee abhivykti de saktee hai.......
    aapko padna sadaiv hee bahut accha lagta hai....
    Aabhar

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  5. छोटी बहर में खूबसूरत अश’आर...

    छीने हुवे निवाले हैं
    कहने को दिल वाले हैं
    बहुत उम्दा...
    जिसने दुर्गम पर्वत नापे
    पग में उन के छाले हैं
    बेहतरीन.

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  6. सच केवल सच और सच के सिवाय कुछ नहीं।

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  7. खादी की चादर के पीछे
    बरछी चाकू भाले हैं....

    बिलकुल ऐसा ही है!

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  8. छोटी बहर में बहुत शानदार ग़ज़ल...बधाई।

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  9. जिसने दुर्गम पर्वत नापे
    पग में उन के छाले हैं
    Kya gazab kee rachana hai!

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  10. सच को दर्शाती एक बेहतरीन रचना सोचने को मजबूर करती है ।

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  11. अक्षर की जो सेवा करते
    रोटी के फिर लाले हैं
    सीधी साधी भाषा में गंभीर बात कहने का ढंग , अच्छा लगा बधाई

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  12. आप्की इस की कविता से सहमत हे जी बहुत अच्छी रचना धन्यवाद

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  13. जवाब मांगो तो कह देतें,
    सब खुदा के हवाले है !

    बहुत उम्दा रचना... लिखते रहिये ....

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  14. तन पर जिनके उजले कपड़े
    मन से उतने काले हैं

    यथार्थ को दर्शाती रचना ।
    बहुत खूब ।

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  15. खादी की चादर के पीछे
    बरछी चाकू भाले हैं
    यही सब तो हो रहा है
    बेहतरीन अभिव्यक्ति.

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  16. 6/10

    छोटी बहर में लिखी गयी पठनीय रचना.
    कई पंक्तियाँ यथार्थ प्रस्तुत कर गहरा प्रभाव
    छोड़ने में सक्षम हैं

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  17. हर शेर स्वतः ही दाद का भण्डार बटोर गया.....

    क्या लिखा है आपने...वाह !!!

    विद्रूपताओं को उघारकर और तीक्षण बना दिया आपने...

    शब्दों के जादूगर हैं आप...

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  18. खादी की चादर के पीछे
    बरछी चाकू भाले हैं

    तन पर जिनके उजले कपड़े
    मन से उतने काले हैं
    --
    आज तो परोक्ष को प्रत्यक्ष कर दिया!
    --
    सत्य पर से परदा हटा दिया!
    --
    नज्म के सभी शेर दिल को छू गये!

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  19. हमारे विचार से आप डुबकी लगाकर ग़ायब होते हीइसलिए हैं कि अगली बार जब दिखाई पडें तो एक नायाब रचना हमारे लिए तैयार हो! और यह रचना तो लाजवाब है! छोटी बहर, गहरे मानी और सामयिक बिम्ब!

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  20. दिगंबर जी एक और लाजवाब रचना...आपकी व्यस्तता कभी कभी बोझिल लगती है....सोचता हूँ प्रतिदिन आपकी पोस्ट आती तो कितना अच्छा होता..

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  21. जब चलते बादल लहरा कर, उनको कौन सम्हाले।

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  22. दिगम्बर भाई! चुपचाप आकर निकल जाते हैं और शिकायत का मौका तक नहीं देते... मेरी पोस्ट पर किए गए कमेंट का जवाब भी लगे हाथों दे लूँ कि वो वाक़या दुबई का नहीं था. दुबई में तो फोन उठाते ही कोई पूछता, “ मलयाळियाणो?” और मैं जैसे ही कहता, “इल्ला.” उधर से आवाज़ आती, “मलयाळी को फोन दो.” बहुत इंसल्टिंग लगता...
    ख़ैर वो सब अपार्ट! आपकी इस रचना पर बस अपना एक शेर अर्ज़ करना चाहूँगाः
    अपनी खादी की सफ़ेदी देखो,
    ख़ून का इसपे इक निशान भी था.

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  23. यही तो हो रहा है.... हकीकत का सही चित्रण किया आपने....

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  24. अक्षर की जो सेवा करते
    रोटी के फिर लाले हैं

    वाह!!

    पूरी गज़ल सीधे दिल में उतर गई.

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  25. अक्षर की जो सेवा करते
    रोटी के फिर लाले हैं
    खादी की चादर के पीछे
    बरछी चाकू भाले हैं...

    अधिकांशतः सत्य तो यही है..
    एक -एक पंक्ति लाजवाब है ..

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  26. @दिन में जो न्योता दे आए
    घर पर उनके ताले हैं

    अभिनव अभिव्यक्ति! सुन्दर।

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  27. द्वैध को लक्ष्य कर बेहतर लिखा है आपने ! भला क्या किया जाये जो हम भी ऐसे ही हैं और हमारा समाज भी द्वैध की कोख से जाया लगता है :)

    बहरहाल बेहतरीन प्रस्तुति !

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  28. chhoti bahar men aise kamaal ke ash'aar ! waah!

    छीने हुवे निवाले हैं
    कहने को दिल वाले हैं

    अक्षर की जो सेवा करते
    रोटी के फिर लाले हैं

    bahut khoob!

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  29. क्यों नहीं जी,
    तबहिन तो दुल्हिन पाले हैं !
    दिल को हम रोयें क्यों,
    क्या दुल्हिन के लाले हैं ?
    हाँ नहीं तो...

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  30. अक्षर की जो सेवा करते
    रोटी के फिर लाले हैं .....
    बहुत ही बढियां ...आज के हालात का सटीक चित्रण

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  31. छीने हुवे निवाले हैं
    कहने को दिल वाले हैं
    --
    जिसने दुर्गम पर्वत नापे
    पग में उन के छाले हैं
    -- बहुत खूब !!
    अक्षर की जो सेवा करते
    रोटी के फिर लाले हैं ...

    सीधा सच !!

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  32. दिगम्बर जी,

    श्रेष्ठ सार्थक प्रस्तूति

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  33. अक्षर की सेवा करते
    रोटी के फिर लाले हैं

    जीवन का सच यही है.
    लाज़बाब ग़ज़ल...हर एक शेर बेहतरीन है...

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  34. दिगंबर जी, अच्छी कविता बन पड़ी है.


    अक्षर की सेवा करते
    रोटी के फिर लाले हैं


    कहने को दिलवाले हैं.

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  35. जितने उजले कपड़े हैं
    मन के उतने काले हैं
    न्‍योता जो दे आए थे
    घर पर उनके ताले हैं
    कौन दिशा से हवा चली
    बस मदिरा के प्याले हैं
    .....aaj ke daur ka sateek chitran... bahut achhi rachna...

    जवाब देंहटाएं
  36. अक्षर की सेवा करते
    रोटी के फिर लाले हैं

    खादी की चादर पीछे
    बरछी चाकू भाले हैं

    छोटी बहर में बेहद खूबसूरत और अर्थपूर्ण ग़ज़ल

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  37. छीने हुवे निवाले हैं
    कहने को दिल वाले हैं

    bahut hee ytharth line..pooree gazal seedhe dil me utar gayee

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  38. न्‍योता जो दे आए थे
    घर पर उनके ताले हैं

    लाजवाब शेर...बेहतरीन दिगंबर भैया किस-किस शेर की दाद दूँ..एक से बढ़ कर एक शेर बन पड़े है....सहज ही दिल में बस जाते है..सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई

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  39. बहुत खूब नासवाजी। आपके अन्दाज़ की बात ही निराली होती है।

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  40. मन को छूती लाजवाब अभिव्यक्ति ,शुभकामनायें ।

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  41. भावपूर्ण रचना के लिए बधाई
    आशा

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  42. न्‍योता जो दे आए थे
    घर पर उनके ताले हैं
    अरे नहीं .. क्या वाकई
    बहुत सुन्दर गज़ल .. लाजवाब

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  43. अक्षर की जो सेवा करते
    रोटी के फिर लाले हैं

    वाह...बहुत खूब...
    हर शेर में आपने गहरी बात कही है ....
    शुभकामनाएं...

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  44. लाजवाब अभिव्यक्ति !
    सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई !
    KABHI HAMARI GALI ME BHI AAYIYE -
    www.sudhirmahajan.blogspot.com

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  45. जिसने दुर्गम पथ नापे
    पग में उसके छाले हैं

    अक्षर की सेवा करते
    रोटी के फिर लाले हैं

    खादी की चादर पीछे
    बरछी चाकू भाले हैं

    पूरी गज़ल ही बहुत कुछ कहती सी है ..हर शेर एक नयी बात कह रहा है ..बहुत अच्छा लगा पढ़ना

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  46. छीने हुवे निवाले हैं
    कहने को दिल वाले हैं !!

    वाह! अत्योत्तम प्रस्तुति!

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  47. अक्षर की सेवा करते
    रोटी के फिर लाले हैं !


    बहुत ही सुन्‍दर एवं बेहतरीन शब्‍द रचना ।

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  48. खादी की चादर पीछे
    बरछी चाकू भाले हैं

    न्‍योता जो दे आए थे
    घर पर उनके ताले हैं

    बेहतरीन ग़ज़ल और ये डॉ शेर तो लाजवाब हैं !

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  49. भई वाह क्या बात है ...मेरे पास तो तारीफ़ के लिए भी शब्द नहीं है. आपकी ये पोस्ट दिल में उतर गई.

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  50. जीवन के अंतर्विरोधों को खूबसूरती से उकेरती सुंदर प्रस्तुति. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

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  51. Sorry for my bad english. Thank you so much for your good post. Your post helped me in my college assignment, If you can provide me more details please email me.

    जवाब देंहटाएं
  52. हम भी शाइर की मानिंद,
    ग़ज़लें कहने वाले हैं.

    please visit my blog.

    जवाब देंहटाएं
  53. जितने उजले कपड़े हैं
    मन के उतने काले हैं
    न्‍योता जो दे आए थे
    घर पर उनके ताले हैं
    कौन दिशा से हवा चली
    बस मदिरा के प्याले हैं

    दिगम्बर साहब बहुत ही सच्छी बात आप कहे है ....

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  54. इसके बाद कुछ नहीं रह जाता कहने को.

    सुंदर सटीक गज़ल.

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  55. बाऊ जी,
    नमस्ते!
    आनंद! आनंद! आनंद!
    आशीष
    --
    पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!

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  56. अक्षर की सेवा करते
    रोटी के फिर लाले हैं

    खादी की चादर पीछे
    बरछी चाकू भाले हैं

    जितने उजले कपड़े हैं
    मन के उतने काले हैं

    न्‍योता जो दे आए थे
    घर पर उनके ताले हैं
    हर एक शेर कमाल का है समझ नही आ रहा किसे कोट करूँ\ ये चारों शेर तो कमाल के हैं। पंकज जी का आशीर्वाद हो आपकी कलम हो फिर कमाल न दिखे ऐसा कैसे हो सकता है। बहुत बहुत बधाई। दीपावली की अपको व परिवार को हार्दिक शुभकामनायें।

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  57. ab kahne ko kya raha ...... gazal ki tareef me wo sabkuch hai jo aapki kamam ko maan deta hai

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  58. ab kahne ko kya raha ...... gazal ki tareef me wo sabkuch hai jo aapki kamam ko maan deta hai

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  59. सुंदर रचना, सुंदर प्रस्तुति...धन्यवाद! ...दिपावली की शुभ-कामनाएं!

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  60. वहां दीवाली मुस्‍काए
    अपने यहां दि‍वाले हैं

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  61. न्‍योता जो दे आए थे
    घर पर उनके ताले हैं

    कौन दिशा से हवा चली
    बस मदिरा के प्याले हैं

    Bahut Khoob kahaa

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  62. सुंदर प्रस्तुति !! दिपावली की शुभ-कामनाएं!

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  63. बहुत खूबसूरत ग़़ज़़लें अा रही हैं आजकल आपकी तरफ से, बधाई।

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  64. 100/100

    मेरे ख़याल से इस रचना को अंक दिए जाएँ तो इससे कम नहीं होने चाहिए

    सारा सच कह दिया
    वो भी कितने कम शब्दों
    अदभुद , लाजवाब

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  65. वाह दिगंबर जी! छोटी बहार मैं आपने बहुत असरदार ग़ज़ल कही है...............ये शेर विशेषकर पसंद आये

    अक्षर की सेवा करते
    रोटी के फिर लाले हैं

    खादी की चादर पीछे
    बरछी चाकू भाले हैं

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  66. क्या बात है दिगंबर जी बड़ी मार्मिक बात कह दी आपने

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  67. दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें !

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  68. गज्ज़ब की गज़ल है सर...बेहद उम्दा..लाजवाब. :)

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  69. सुन्दर रचना। बधाई।आपको व आपके परिवार को भी दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।

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  70. दिगम्बर जी शानदार रचना के लिए बधाई। हरेक शेर जबरदस्त।
    आपको और आपके परिवार को महापर्व दीपोत्सव की शुभकामनाएं।

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  71. आप को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
    मैं आपके -शारीरिक स्वास्थ्य तथा खुशहाली की कामना करता हूँ

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  72. खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.

    इस ज्योति पर्व का उजास
    जगमगाता रहे आप में जीवन भर
    दीपमालिका की अनगिन पांती
    आलोकित करे पथ आपका पल पल
    मंगलमय कल्याणकारी हो आगामी वर्ष
    सुख समृद्धि शांति उल्लास की
    आशीष वृष्टि करे आप पर, आपके प्रियजनों पर

    आपको सपरिवार दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं.
    सादर
    डोरोथी.

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  73. बहुत खूबसूरत रचना
    दीपावली की ढेर सारी शुभकामनायें ।

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  74. अरे ये क्या... आप तो शायद छूट ही गये थे मेरी पहुँच से...? मैं तो वंचित ही रह गया था इतनी अच्छी रचनाओं से...!

    इस रचना में व्यंग्य तो है ही, हास्य-रस भी यत्र-तत्र बहता देखा जा सकता है। जैसे यहीं देख लीजिए-

    न्‍योता जो दे आए थे
    घर पर उनके ताले हैं

    ...बधाई, मेरे भाई!

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  75. अरे ये क्या... आप तो शायद छूट ही गये थे मेरी पहुँच से...? मैं तो वंचित ही रह गया था इतनी अच्छी रचनाओं से...!

    इस रचना में व्यंग्य तो है ही, हास्य-रस भी यत्र-तत्र बहता देखा जा सकता है। जैसे यहीं देख लीजिए-

    न्‍योता जो दे आए थे
    घर पर उनके ताले हैं

    ...बधाई, मेरे भाई!

    जवाब देंहटाएं
  76. आपको एवं आपके परिवार को दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें!

    जवाब देंहटाएं
  77. छोटी बहर में अच्छी गज़ल।
    ..वाह ! यह तो छूट ही रहा था।

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  78. आपको पढ़ते हुए कितना आनंद आ रहा है...बता नहीं सकता...मैं इतने समय से कहाँ भटक रहा था पता नहीं...आज यहाँ पहुंचा हूँ...लगता है सुबह का भूला शाम पड़े घर लौट आया है...

    नीरज

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है