स्वप्न मेरे: गुलाबी ख्वाब

सोमवार, 13 दिसंबर 2010

गुलाबी ख्वाब

रात भर
उनिंदी सी रात ओढ़े
जागती आँखों ने
हसीन ख्वाब जोड़े

सुबह की आहट से पहले
छोड़ आया हूँ वो ख्वाब
तुम्हारे तकिये तले

अब जब कभी
कच्ची धूप की पहली किरण
तुम्हारी पलकों पे दस्तक देगी

तकिये के नीचे से सरक आये मेरे ख्वाब
तुम्हारी आँखों में उतर जाएँगे

तुम हौले से अपनी नज़रें उठाना
नाज़ुक हैं मेरे ख्वाब कहीं बिखर न जाएँ

100 टिप्‍पणियां:

  1. वाह साहब क्या खूब उकेरा है तकिये के नीचे वाले ख्वाबो को . पढ़ के मन हर्षित हुआ .

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  2. तकिये के नीचे से सरक आये मेरे ख्वाब
    तेरी आँखों में उतर जाएँगे
    बहुत सुंदर.....

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  3. अब जब कभी
    कच्ची धूप की पहली किरण
    तेरी पलकों पे दस्तक देगी

    तकिये के नीचे से सरक आये मेरे ख्वाब
    तेरी आँखों में उतर जाएँगे
    gazaaaaab

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  4. ख्‍याब की तरह ही नाजुक ख्‍याल की कविता।

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  5. उनींदी आँखों को भा गए ये ख्वाब

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  6. नाजुक कविता .. एक स्वप्न सी लग रही है..

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  7. वाह वाह वाह कितनी भीनी भीनी मदमस्त कर देने वाली है रचना…………क्या खूब ख्वाब संजोया है…………शानदार दिल को छू गया।
    तुम हौले से अपनी नज़रें उठाना
    नाज़ुक हैं मेरे ख्वाब कहीं बिखर न जाएँ

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  8. वाह दिगंबर जी...
    kahan se laaye hain ye gulabi khwab.. bahut hi sundar hai....
    मैंने अपना पुराना ब्लॉग खो दिया है..
    कृपया मेरे नए ब्लॉग को फोलो करें... मेरा नया बसेरा.......

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  9. दिगंबर जी,
    आपके सपनों के शब्द चित्र मन की आँखों में संभाल कर रखने लायक हैं !
    इतनी खूबसूरत अभिव्यक्ति के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  10. दिगम्बर भाई दिल खुश हो गया। आपका जो प्रयोग है तकिये के नीचे ख्वाब दिल को छूने वाला है। न जाने ऐसे कितने ख़ाब छुपाए रहते हैं हम।
    बहुत सुंदर!

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  11. नाजुक से ख्वाबों का ये नाजुक सा सफ़र बेहद हसीं लगा....
    regards

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  12. नाजुक से ख्वाबों का ये नाजुक सा सफ़र बेहद हसीं लगा....
    regards

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  13. अजी किसकी मजाल जो इतने नाज़ुक ख्वाबों को बिखेरे.वैसे आप की पहुँच तो वहां भी होगी. लम्हों में ही समेट लेंगे सब कुछ.

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  14. बहुत सुन्दर कोमल भावों को संजोये हुए शब्द ...
    लाजवाब कविता !

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  15. सुबह की आहट से पहले
    छोड़ आया हूँ वो ख्वाब
    तेरे तकिये तले
    ... bahut khoob ... behatreen !!!

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  16. कच्ची धूप की किरण और तकिये के नीचे से ख्वाओं का सरक आना ...बहुत कोमल सी नज़्म ...गज़ब लिखा है ...बिम्ब योजना तो कमाल की ...

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  17. तकिये के नीचे से सरक आये मेरे ख्वाब
    तेरी आँखों में उतर जाएँगे
    वाह बहुत खूब ..यह बहुत ही बेहतरीन लगी

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  18. आदरणीय नासवा जी
    नमस्कार !
    ..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

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  19. बहुत सुंदर रचना ... आपने शब्दों को बहुत ख़ूबसूरती से पिरोया है ... शुभकामनाएं

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  20. ख्वाब तो कांच से भी नाज़ुक हैं,
    टूटने से इन्हें बचाना है!
    .
    जी तो यही चाहता है कि बोलूं: आपके ख्वाब बहुत हसीं हैं, इन्हें तकिये से न हटाइएगा.. टूटने का खतरा है..

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  21. चला बिहारी ब्लागर बनने से सहमत.
    उत्तम रचना.

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  22. तकिये के नीचे से सरक आये मेरे ख्वाब
    तेरी आँखों में उतर जाएँगे ...


    ख्‍वाबों की तरह नाजुक से ख्‍यालों की बानगी खूबसूरत है .....।

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  23. वाह ..कितनी कोमल ,प्यारे अहसासों को समेटे है ये रचना ..
    बहुत बहुत अच्छी लगी.

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  24. बहुत सुन्दर और लाजवाब रचना ! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है! उम्दा प्रस्तुती! बधाई!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  25. वाह नासवा जी !
    बेहतरीन ख्वाब ....सहेजता कौन है ...?

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  26. कच्ची धूप की पहली किरण
    तेरी पलकों पे दस्तक देगी

    तकिये के नीचे से सरक आये मेरे ख्वाब
    तेरी आँखों में उतर जाएँगे

    तुम हौले से अपनी नज़रें उठाना
    नाज़ुक हैं मेरे ख्वाब कहीं बिखर न जाएँ

    उम्दा लेखन,खूबसूरत अभिव्यक्ति.
    कमाल की प्रस्तुति.वाह वाह, क्या बात है.

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  27. यह मुक्त छंद तो बहुत बढ़िया रहे!

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  28. आपने तकिये के पास ख़्वाबों को बीन दिया और वही हकीकत भी रह गयी है , स्वप्न - दिवा स्वप्न - और ख्वाब , तीनों में ज्यादा अंतर कहाँ रहा अब !

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  29. तुम हौले से अपनी नज़रें उठाना
    नाज़ुक हैं मेरे ख्वाब कहीं बिखर न जाएँ....

    सुन्दर, कोमल अभिव्यक्ति।

    .

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  30. तुम हौले से अपनी नज़रें उठाना
    नाज़ुक हैं मेरे ख्वाब कहीं बिखर न जाए
    बहुत ही सुन्दर पंक्ति लगी साथ ही आपकी कविता भी बेहतरीन लगी.
    आभार

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  31. अब जब कभी
    कच्ची धूप की पहली किरण
    तेरी पलकों पे दस्तक देगी

    तकिये के नीचे से सरक आये मेरे ख्वाब
    तेरी आँखों में उतर जाएँगे
    वाह बहुत खूब...
    नासवा जी, आपके शब्दों का चयन कमाल का है
    बिल्कुल आपकी कोमल भावनाओं जैसा.

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  32. तकिये के नीचे से सरक आये मेरे ख्वाब
    तेरी आँखों में उतर जाएँगे
    इस तकिये ने पता नही कितना कुछ अपने अन्दर समेट रखा होता है। अखिर तकिया बिस्तर -- ये कितने खाव खुद संजोते है तो आँखों मे तो उतर ही आते हैं। बहुत सुन्दर दिल को छू लेने वाली रचना। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  33. तकिये के नीचे से सरक आये मेरे ख्वाब
    तेरी आँखों में उतर जाएँगे
    इस तकिये ने पता नही कितना कुछ अपने अन्दर समेट रखा होता है। अखिर तकिया बिस्तर -- ये कितने खाव खुद संजोते है तो आँखों मे तो उतर ही आते हैं। बहुत सुन्दर दिल को छू लेने वाली रचना। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  34. शब्दों से कहर ढा रहे हैं नासवा जी ।
    ख्वाबों की बेहतरीन पेशकश ।

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  35. तकिये के नीचे से सरक आये मेरे ख्वाब
    तेरी आँखों में उतर जाएँगे

    तुम हौले से अपनी नज़रें उठाना
    नाज़ुक हैं मेरे ख्वाब कहीं बिखर न जाएँ

    खूबसूरत बिम्बों के प्रयोग ने कविता की संप्रेषणीयता को मोहक बना दिया है।
    ...बेहतरीन कविता।

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  36. गुलाबी ख्वाब
    रात भर
    उनिंदी सी रात ओढ़े
    जागती आँखों ने
    हसीन ख्वाब जोड़े

    वाह,बहुत ख़ूब !

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  37. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना कल मंगलवार 14 -12 -2010
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..


    http://charchamanch.uchcharan.com/

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  38. तकिये के नीचे से सरक आये मेरे ख्वाब
    तेरी आँखों में उतर जाएँगे

    तुम हौले से अपनी नज़रें उठाना
    नाज़ुक हैं मेरे ख्वाब कहीं बिखर न जाएँ
    bahut khoob!
    khwaab sheeshe se zyaada nazuk hote hain

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  39. बहुत सुन्दर ! कविता में ग़जब की नाज़ुकी है !

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  40. तुम हौले से अपनी नज़रें उठाना
    नाज़ुक हैं मेरे ख्वाब कहीं बिखर न जाएँ..

    लाजवाब...ख्वाबों से भी नाज़ुक भावों से परिपूर्ण बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..आभार

    जवाब देंहटाएं
  41. तुम हौले से अपनी नज़रें उठाना
    नाज़ुक हैं मेरे ख्वाब कहीं बिखर न जाएँ..

    लाजवाब...ख्वाबों से भी नाज़ुक भावों से परिपूर्ण बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..आभार

    जवाब देंहटाएं
  42. ये निर्मल वर्मा टाइप की फुसफुसाहट भरी रूमानी कवितायें कोई मुझे भी लिखना सिखा दे प्लीज ,,,,,

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  43. वाह लाजवाब, बहुत ही खूबसूरत रचना.

    रामराम.

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  44. @ अरविंद मिश्र जी

    लठ्ठफ़ाड कविता सीखनी हों तो ताऊ युनिवर्सिटी मे दाखिला लेलें. :)

    रामराम.

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  45. तुम हौले से अपनी नज़रें उठाना
    नाज़ुक हैं मेरे ख्वाब कहीं बिखर न जाएँ

    bahut khoob...............

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  46. ख्वाब तो उनकी नज़रों से भी नाजुक निकले।

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  47. वाह वाह जी बहुत सुंदर रुप मे पिरोया आप ने इन खवाबो को धन्यवाद

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  48. बहुत सुन्दर रचना दिगम्बर जी....मन आनन्दित हुआ.

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  49. तुम हौले से अपनी नज़रें उठाना
    नाज़ुक हैं मेरे ख्वाब कहीं बिखर न जाएँ
    क्या ख़ूबसूरत ख्याल है!

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  50. बहुत ही सुन्दर भाव लिए कविता |
    "नाजुक हैं मेरे ख़्वाब कहिई बिखर ना जाएँ "
    यह पंक्ति बहुत ही अच्छी लगी
    आशा

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  51. अब जब कभी
    कच्ची धूप की पहली किरण
    तेरी पलकों पे दस्तक देगी
    adbhut

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  52. कमाल कर दित्ता ...सारी कहानी हे उलटी कर दी आपने तो ... कहाँ लोग आँखों से खाब निकाल ले जाते हैं ..आप तो खुद ही रख आये ,...खूबसूरत नज़्म बन पड़ी है..

    सादर

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  53. कहते डर रहा हूँ कहीं नजाकत छूट ना जाए...सुन्दर रचना, साधुवाद स्वीकार करें.

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  54. दिगंबर भाई इस कविता को दूसरी बार पढ़ने पर भी लगा नहीं कि पहले पढ़ी हुई है ये| इस के शब्द जैसे रजिस्टर हो गये हैं दिमाग़ में|

    अन्य बातों के अलावा जो विशेषता मैने पाई इस कविता में, और जिसे पिछली बार टिप्पणी में नहीं लिख पाया था, वो है साधारण शब्दों की जादूगरी| आज ही एक विद्वान मित्र से इस विषय पर चर्चा हुई है मेरी|

    हम लोग अक्सर देखते हैं कोई कोई आदमी / औरत भारी भरकम मेक-अप करने के बाद भी भौंडे लगते हैं, और कोई कोई बिना मेक-अप किए भी कुदरत की खूबसूरती का दिलकश नमूना लगते हैं| आपकी ये कविता भी सचमुच जादूगरी है उसी कुदरत के लाजवाब शिल्प की| जय हो|

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  55. ओह....लाजवाब !!!!

    क्या कहूँ और ???

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  56. "नाजुक हैं मेरे ख़्वाब कहिई बिखर ना जाएँ "nazuk khvabon ko is najukata se sanjona...vakai bahut sunder....

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  57. आपका कलाम अच्छा है . नज़्म में आपका फ्लो अच्छा है. कसावट पे ध्यान दें .

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  58. मन को भा गये ये गुलाबी ख्‍वाब। सचमुच हैं ये लाजवाब।

    ---------
    दिल्‍ली के दिलवाले ब्‍लॉगर।

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  59. ओस की बूँद सी नाज़ुक रचना ! बेहद खूबसूरत और सपनीली ! बधाई एवं शुभकामनाएं !

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  60. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति.........मेरा ब्लाग"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ जिस पर हर गुरुवार को रचना प्रकाशित साथ ही मेरी कविता हर सोमवार और शुक्रवार "हिन्दी साहित्य मंच" at www.hindisahityamanch.com पर प्रकाशित..........आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे..धन्यवाद

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  61. गुलाबी ख्वाब नाजुक ख्वाब .........ख्वाब की इतनी नाज़ुकता आज ही जानी

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  62. बहुत ही सुन्दर और नाजुक भाव समेटे हुए
    ये खूबसूरत कविता
    दिल में अन्दर तक जादू कर गयी है ...
    लफ़्ज़ों का, बहुत सलीके से इस्तेमाल कर लेने के
    हुनर से वाकिफ हैं आप ... वाह !!
    अभिवादन स्वीकारें

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  63. तुम हौले से अपनी आंखें खोलना ,
    मेरे नाज़ुक ख़्वाब कहीं बिखर न जाये।
    नज़ाकत से लबरेज़ अभिव्यक्ति के लिये मुबारक बाद।

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  64. अजी आपके ख्‍वाबों को भला कौन बिखरने देगा। अच्‍छी कविता।

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  65. सुबह की आहट से पहले
    छोड़ आया हूँ वो ख्वाब
    तेरे तकिये तले

    bahut khoob bhai

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  66. ओह! मार ही डालोगे महाराज--इतना गज़ब न लिखा करो यार!!

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  67. दिगम्बर जी क्या कहें....
    हम तो फ़िदा हो गए बस..............

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  68. shavd kum padenge.bhavo ko abhivykt karne ke liya.......
    ek hee shavd uparyukt lag raha hai.......
    laajawab.............

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  69. ख्वाबों से भी नाज़ुक भावों से परिपूर्ण बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..आभार

    जवाब देंहटाएं
  70. अब जब कभी
    कच्ची धूप की पहली किरण
    तेरी पलकों पे दस्तक देगी

    तकिये के नीचे से सरक आये मेरे ख्वाब
    तेरी आँखों में उतर जाएँगे

    ....laajawab andaanj

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  71. रात भर
    उनिंदी सी रात ओढ़े
    जागती आँखों ने
    हसीन ख्वाब जोड़े !!! कितनी खुबसूरत होती है ,आँखे जो ख्वाब जोडती रहती हैं ! प्यारी है यह कविता !

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  72. bahut hi sundar aur hasin khwab ki tarah hi aapki najm bhi bahut hi komal aur khoobsurat man ki tarh komalta liye hue hai. aaj sobah subah hi man prafullit ho gaya.
    badhai,
    itni shandaar prastuti ke liye.
    poonam

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  73. ताऊ पहेली १०५ का सही जवाब :
    http://chorikablog.blogspot.com/2010/12/105.html

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  74. अब जब कभी
    कच्ची धूप की पहली किरण
    तुम्हारी पलकों पे दस्तक देगी

    तकिये के नीचे से सरक आये मेरे ख्वाब
    तुम्हारी आँखों में उतर जाएँगे
    ab kahne ko raha kya , bahut badhiyaa

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  75. वाह! बड़े ही मखमली अंदाज़ में लिखी है ये रचना.बहुत खूब!

    'सी.एम.ऑडियो क्विज़'
    रविवार प्रातः 10 बजे

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  76. रात भर
    उनिंदी सी रात ओढ़े
    जागती आँखों ने
    हसीन ख्वाब जोड़े

    सुबह की आहट से पहले
    छोड़ आया हूँ वो ख्वाब
    तुम्हारे तकिये तले
    Itne pyare shabd kya kahen .Laajawaab!

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  77. श्रीमान को सादर प्रणाम, मैंने एक और ब्लॉग बना लिया है......आपका मार्गदर्शन यदि यहाँ भी मिले तो मुझे सतत प्रेरणा मिलेगी....ब्लाग का पता निचे दिया है.

    http://padhiye.blogspot.com

    आपका धन्यवाद.

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  78. क्या लिखूं यार। इतने खुबसूरत अलफाज हैं कि पूछो नहीं। अपने बस की बात नहीं है सच में अलफाजों को सजाना इतनी नफासत से। गुलजार का एक गीत याद आ गया।

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  79. बड़ी ही खूबसूरती से आप ने भावों को शब्दों का जामा पहनाया है ..इसे पढ़कर फिल्म गुज़ारिश का वो गीत याद आया है...जाने किस के ख्वाब तकिये के नीचे रात रख जाती है...
    बहुत ही सुन्दर कविता ..देर से पहुंची इसके लिए माफ़ी चाहूंगी.

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  80. तकिये के नीचे से सरक आये मेरे ख्वाब
    तुम्हारी आँखों में उतर जाएँगे

    तारीफ़ के लिए लफ्ज़ कहाँ से लाऊं...क्या करूँ...पढता हूँ और आप के सामने अपना सर झुकता हूँ...आनंद आ गया...
    लीजिये टिप्पणियों का एक और शतक मेरी तरफ से.

    नीरज

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है