स्वप्न मेरे: गुस्से को सड़कों तक तो लाना होगा

सोमवार, 16 मई 2011

गुस्से को सड़कों तक तो लाना होगा

गुरुदेव पंकज सुबीर जी के आशीर्वाद से सजी ....

धीरे धीरे बर्फ पिघलना ठीक नही
दरिया का सैलाब में ढलना ठीक नही

पत्ते भी रो उठते है छू जाने से
पतझड़ के मौसम में चलना ठीक नही

इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
घर के रोशनदान बदलना ठीक नही

ख़ौफ़ यहाँ बेखौफ़ दिखाई देता है
रातों को यूँ घर से निकलना ठीक नही

अपने ही अब घात लगाए बैठे हैं
सपनों का आँखों में पलना ठीक नही

जब तक सुनने वाला ही बहरा न मिले
दिल के सारे राज़ उगलना ठीक नही

यादों का लावा फिर से बह निकलेगा
दिल के इस तंदूर का जलना ठीक नही

जिनके चेहरों के पीछे दस चेहरे हैं
ऐसे किरदारों से मिलना ठीक नही

गुस्से को सड़कों तक तो लाना होगा
बर्तन में ही दूध उबलना ठीक नही

88 टिप्‍पणियां:

  1. इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
    घर के रोशनदान बदलना ठीक नही


    जिनके चेहरों के पीछे दस चेहरे हैं
    ऐसे किरदारों से मिलना ठीक नही
    bahut hi achha laga bahut hi jyada

    जवाब देंहटाएं
  2. क्या शेर कहे है नासवा जी कोई शब्द नहीं है मेरे पास तारीफ के:

    इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
    घर के रोशनदान बदलना ठीक नही

    फिर

    जिनके चेहरों के पीछे दस चेहरे हैं
    ऐसे किरदारों से मिलना ठीक नही

    और अंत में एक सलाह...

    गुस्से को सड़कों तक तो लाना होगा
    बर्तन में ही दूध उबलना ठीक नही

    बस इतना ही कह सकती हूँ वाह! वाह!

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  3. गजब चमत्कृत गज़ल है।

    चिंतन को उद्देलित करती……… प्रभावशाली रचना!!

    इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
    घर के रोशनदान बदलना ठीक नही

    ख़ौफ़ यहाँ बेखौफ़ दिखाई देता है
    रातों को यूँ घर से निकलना ठीक नही

    अपने ही अब घात लगाए बैठे हैं
    सपनों का आँखों में पलना ठीक नही

    बहरा ना हो जब तक की सुनने वाला
    दिल के सारे राज़ उगलना ठीक नही

    एक एक शेर सार्थक!! गागर में सागर!!

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  4. किस शेर की तारीफ़ करूँ और किसे छोडूँ …………गज़ल का हर शेर दर्द की ताबीर है…………बेहतरीन्।

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  5. बहरा ना हो जब तक की सुनने वाला
    दिल के सारे राज़ उगलना ठीक नही

    यादों का लावा फिर से बह निकलेगा
    दिल के इस तंदूर का जलना ठीक नही

    गज़ल से खूबसूरत सन्देश दिया है ...बहुत सुन्दर गज़ल

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  6. "इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है

    घर के रोशनदान बदलना ठीक नहीं "

    ................कोमल भावों का सुन्दर शेर , हर शेर बेहतरीन

    ..............उम्दा ग़ज़ल

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  7. har sher ....behtreen hai is gazal kaa ...
    इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
    घर के रोशनदान बदलना ठीक नही

    waah

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  8. जिनके चेहरों के पीछे दस चेहरे हैं
    ऐसे किरदारों से मिलना ठीक नही

    गुस्से को सड़कों तक तो लाना होगा
    बर्तन में ही दूध उबलना ठीक नही

    बहुत ही प्रभावशाली रचना है एक एक पंक्ति दिल की तह तक जाती है.

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  9. वाह,
    ऐसा बहुत कम होता है कि किसी ग़ज़ल के सारे शेर अच्छे हों ! इस ग़ज़ल के सभी शेर एक से बढ़कर एक हैं !
    मुक्कमल ग़ज़ल !

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  10. खैाफ का बेकौफ होना आलंकारिक , अन्तिम शेर से मिलता शीर्षक, सब कहां ऐसा सोचते है कि चिडिया भाग जायेगी रौशनदान न बदलवायें। सुन्दर रचना । 'अक्ल से ज्यादा टिप्पणी देना ठीक नहीं ' इसलिये आज टिप्पणी शार्ट में

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  11. पंकज सुबीर जी के निर्देशन में बुनी गई उत्तम ग़ज़ल| बधाई दिगंबर भाई| इस ग़ज़ल के कई मिसरे चौंका देते हैं| आख़िरी मिसरा तो जैसे आप को यथावत अभिव्यक्त कर रहा है|

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  12. इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
    घर के रोशनदान बदलना ठीक नही

    बहुत ही प्रभावपूर्ण रचना...हर पंक्ति ही सोचने को मजबूर करती है.

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  13. ख़ौफ़ यहाँ बेखौफ़ दिखाई देता है
    रातों को यूँ घर से निकलना ठीक नही

    अपने ही अब घात लगाए बैठे हैं
    सपनों का आँखों में पलना ठीक नही

    बहुत ही सही की बात कह दी आपने अपनी इस ग़ज़ल में...

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  14. अजब और गजब ! आखिरी जूमला लाजबाब ! बहुत कुछ कह गई

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  15. इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
    घर के रोशनदान बदलना ठीक नही

    क्या बात है, लाजवाब ग़ज़ल !

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  16. इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
    घर के रोशनदान बदलना ठीक नही
    आपकी इन पंक्तियों ने तो नि:शब्‍द कर दिया ....

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  17. aadarniy sir
    vilamb se tippni daalne ke liye dil se xhma chahti hun .
    apke is umda gazal ki jitni bhi tarrif karun shabd kam pad jayenge .
    har shabd itni gahn abhivykti v yatharth ko prakat karte hain ki bas lagta hai ki yahi kahun ki
    WAH!wah ----
    bahut bahut hi shandar prastuti ke liye hardik badhai
    poonam

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  18. बाकी सब कुछ तो ठीक नहीं, पर गजल बि‍ल्‍कुल ठीक है।

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  19. बहुत ही प्रभावशाली रचना है| धन्यवाद|

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  20. भाई दिगम्बर जी बहुत ही उम्दा गज़ल पढ़ने को मिली बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं |

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  21. जब तक सुनने वाला ही बहरा न मिले
    दिल के सारे राज़ उगलना ठीक नही

    -हाय!! क्या गुढ़ बात कही...छा गये महाराज!!!!वाह वाह!!!

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  22. जब तक सुनने वाला ही बहरा न मिले
    दिल के सारे राज़ उगलना ठीक नही

    वाकई उम्दा प्रस्तुति...

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  23. वाह क्या बात है ज़नाब!
    ग़ज़ल के सभी मिसरे दिल को छैने वाते पेश किये हैं आपने!

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  24. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 17 - 05 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  25. बहुत खूब दिगंबर भाई!!एक एक शेर लाजवाब है..
    सारे शेर हैं एक से बढ़कर एक "सलिल"
    किसी एक को बेहतर कहना ठीक नहीं!!

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  26. एक एक शेर में गहराई है भाई ।
    अत्यंत आनंददायक ग़ज़ल ।

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  27. इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
    घर के रोशनदान बदलना ठीक नही

    बहुत सुंदर ग़ज़ल......

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  28. न हो ठीक, जमाना रहे यूँ ही,
    हमें अब आप में यूँ डूबना आने लगा।

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  29. गुस्से को सड़कों तक तो लाना होगा
    बर्तन में ही दूध उबलना ठीक नही
    kya khub hai baat
    इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
    घर के रोशनदान बदलना ठीक नही
    bahut sunder lajavab
    puri gazal behtarin hai
    saader
    rachana

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  30. इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
    घर के रोशनदान बदलना ठीक नही
    यह एक ऐसी संवेद्य ग़ज़ल है जिसमें हमारे यथार्थ का मूक पक्ष भी बिना शोर-शराबे के कुछ कह कर पाठक को स्पंदित कर जाता है।

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  31. इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
    घर के रोशनदान बदलना ठीक नही

    बहुत सुंदर
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  32. दिगंबर भाई कुछ कहने लायक छोड़ा ही नहीं आपने सिवा वाह के...मतले से मकते तक सरापा ग़ज़ल इतनी खूबसूरत है के बस...पढ़ते जाओ पढ़ते जाओ पढ़ते ही जाओ....कमाल किया है आपने...गुरुदेव के चमत्कारी प्रभाव से अविस्मरनीय ग़ज़ल हो गयी है ये...मेरी दिली दाद कबूल करो भाई...और लिखते रहो...बहुत सुकून मिलता है आपका कलाम पढ़ कर...
    नीरज

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  33. जब तक सुनने वाला ही बहरा न मिले
    दिल के सारे राज़ उगलना ठीक नही
    वाह जी बहुत खुब लगी आप की पुरी गजल, धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  34. इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
    घर के रोशनदान बदलना ठीक नही
    वाह क्या बात है, बहुत खूब

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  35. इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
    घर के रोशनदान बदलना ठीक नही

    गुस्से को सड़कों तक तो लाना होगा
    बर्तन में ही दूध उबलना ठीक नही

    हर पंक्ति गहन चिंतन की उपज है ! बहुत ही लाजवाब रचना ! बधाई स्वीकार करें !

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  36. इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
    घर के रोशनदान बदलना ठीक नही ...

    Very appealing lines .

    .

    जवाब देंहटाएं
  37. पत्ते भी रो उठते है छू जाने से
    पतझड़ के मौसम में चलना ठीक नही

    इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
    घर के रोशनदान बदलना ठीक नही

    aapke sher seedhe dil me utar gaye.adbhut ghazal prastut ki hai aapne.uparukt sher aapke hardya ki samvedan sheelta ko mahsoos karate hain.aapka aabhaar.

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  38. Behad khoobsurat aur behad sashakt gazal... Bahut dino baad aisi gazal padhne ko mili...

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  39. इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
    घर के रोशनदान बदलना ठीक नही

    क्या बात है इस शेर में,वाह नासवा जी वाह.

    सभी शेर प्यारे है.

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  40. बहुत सुन्दर, भावपूर्ण और शानदार ग़ज़ल लिखा है आपने ! बधाई!

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  41. इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
    घर के रोशनदान बदलना ठीक नही

    हमेशा जैसे, बहुत सुन्दर!

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  42. प्रभावशाली रचना के लिए आभार आपका ! शुभकामनायें नासवा जी !

    जवाब देंहटाएं
  43. बहरा ना हो जब तक की सुनने वाला
    दिल के सारे राज़ उगलना ठीक नही

    यादों का लावा फिर से बह निकलेगा
    दिल के इस तंदूर का जलना ठीक नही

    दिल को छू लेने वाली पंक्तियाँ. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति के लिए आभार!

    जवाब देंहटाएं
  44. इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
    घर के रोशनदान बदलना ठीक नही

    गुस्से को सड़कों तक तो लाना होगा
    बर्तन में ही दूध उबलना ठीक नही....

    बहुत ख़ूबसूरत गज़ल...हरेक शेर दिल को छू जाता है..

    जवाब देंहटाएं
  45. एक से बढ़कर एक शेर गढ़े हैं आपने....

    मन को छू जाने वाली बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल...

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  46. जब तक सुनने वाला ही बहरा न मिले
    दिल के सारे राज़ उगलना ठीक नही

    wah, wah,...aap kahi hui ek ek baat besh kimtee motee hai!..dhanyawaad!

    जवाब देंहटाएं
  47. बात तो आपने सही कहा है पर जीतने भी हमारे देश के नेता है सब एक से बढ़कर एक है! चूँकि मैं पांडिचेरी की हूँ इसलिए जयललिता मुख्यमंत्री बनी फिर से इस बात की ख़ुशी हुई!

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  48. बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति |

    जवाब देंहटाएं
  49. अपने ही अब घात लगाए बैठे हैं
    सपनों का आँखों में पलना ठीक नही

    जब तक सुनने वाला ही बहरा न मिले
    दिल के सारे राज़ उगलना ठीक नही

    बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  50. हर शेर बेहद संवेदनशील ....उम्दा अभिव्यक्ति ...सादर !

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  51. पत्ते भी रो उठते है छू जाने से
    पतझड़ के मौसम में चलना ठीक नही

    इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
    घर के रोशनदान बदलना ठीक नही

    संवेदनशीलता से भरी लाइनें
    और पंक्तियों में भी अनुभवों और सीख का निचोड़ है ।
    बहुत सुंदर रचना ।

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  52. गुस्से को सड़कों तक तो लाना ही होगा ,
    बर्तन में ही दूध उबलना ठीक नहीं .
    एक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है ,
    घर के रोशनदान बदलना ठीक नहीं.
    जैसा बोते हो वैसाही काटोगे ,
    धरती को यूं बाँझ बनाना ठीक नहीं .बेहतरीन प्रयोग आपके ,अलफ़ाज़ आपके .

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  53. बहुत सुंदर गजल ! प्रशंसनीय !

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  54. मन के भा्वों की सुन्दर अभिव्यक्ति है ।

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  55. जिनके चेहरों के पीछे दस चेहरे हैं
    ऐसे किरदारों से मिलना ठीक नही

    गुस्से को सड़कों तक तो लाना होगा
    बर्तन में ही दूध उबलना ठीक नही

    बोलचाल की ज़ुबान में मौजूदा दौर की तल्ख़ हकीकत की अक्कासी..बधाई!
    ---देवेंद्र गौतम

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  56. बधाई हो ..हम बहरों ने आपके दिल के राज़ को भली-भांति समझ लिए ..बहुत... बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल...

    जवाब देंहटाएं
  57. अपने ही अब घात लगाए बैठे हैं
    सपनों का आँखों में पलना ठीक नही

    लाजबाब !

    जवाब देंहटाएं
  58. Waah, digambar ji, ek ek sher kot karane layak..

    shilp ki sanrachan ne gazal ko bahut adhik sundar bana diya hai..

    sundar bhav se saji sundar gazal..badhai ho

    जवाब देंहटाएं
  59. अपने ही अब घात लगाए बैठे हैं
    सपनों का आँखों में पलना ठीक नही

    जिनके चेहरों के पीछे दस चेहरे हैं
    ऐसे किरदारों से मिलना ठीक नही


    yun to aapka likha har sher behatriin hai vo bhi pankaj subir ji ke ashirvad ke baad to kuch kahne ki jagah hi nahi bachti fir bhi mujhe ye do sher bahut hi dilkash lage bandhai swikaren

    जवाब देंहटाएं
  60. आदरणीय नासवा जी
    नमस्कार !
    जब तक सुनने वाला ही बहरा न मिले
    दिल के सारे राज़ उगलना ठीक नही

    ......बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  61. ग़ज़ल उम्दा है.....
    हर एक शेर तक जाते जाते वाह वाह का स्वर बढ़ता जाता है....

    इस नाज़ुक शेर का तो क्या कहना....
    इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
    घर के रोशनदान बदलना ठीक नही
    जिंदाबाद.....!!!

    बड़े पते की बात कह डाली मियां......
    जिनके चेहरों के पीछे दस चेहरे हैं
    ऐसे किरदारों से मिलना ठीक नही

    और ये हासिले ग़ज़ल शेर है
    गुस्से को सड़कों तक तो लाना होगा
    बर्तन में ही दूध उबलना ठीक नही

    जवाब देंहटाएं
  62. इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
    घर के रोशनदान बदलना ठीक नही

    ख़ौफ़ यहाँ बेखौफ़ दिखाई देता है
    रातों को यूँ घर से निकलना ठीक नही
    bahut hi khoobsurat ,badhai sweekaare

    जवाब देंहटाएं
  63. ये पंक्तियाँ छू गईं-

    इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
    घर के रोशनदान बदलना ठीक नही

    बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है.

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  64. जिनके चेहरों के पीछे दस चेहरे हैं
    ऐसे किरदारों से मिलना ठीक नही

    गुस्से को सड़कों तक तो लाना होगा
    बर्तन में ही दूध उबलना ठीक नही

    बहुत ही प्रभावशाली रचना है एक एक पंक्ति दिल की तह तक जाती है!!

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  65. जिनके चेहरों के पीछे दस चेहरे हैं
    ऐसे किरदारों से मिलना ठीक नही

    आजकल ऐसे चेहरे आस पास मिल ही जाते हैं।
    समय की चलन को शब्द देती बेहतरीन ग़ज़ल।

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  66. बेहतरीन गज़ल। हर शेर लाज़वाब। देर से पढ़ने का अफसोस है। ..वाह!

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  67. "अपने ही अब घात लगाए बैठे हैं
    सपनों का आँखों में पलना ठीक नही

    जब तक सुनने वाला ही बहरा न मिले
    दिल के सारे राज़ उगलना ठीक नही

    यादों का लावा फिर से बह निकलेगा
    दिल के इस तंदूर का जलना ठीक नही

    जिनके चेहरों के पीछे दस चेहरे हैं
    ऐसे किरदारों से मिलना ठीक नही

    गुस्से को सड़कों तक तो लाना होगा
    बर्तन में ही दूध उबलना ठीक नही"

    हर शेर काबिल-ए-तारीफ है...
    पूरी नज़्म ही उतारने देने को मन कर रहा है !!
    बहुत खूब कहूं..या कि...खूबसूरत..
    हर तरह से दाद दी जा सकती है.....!!

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  68. इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
    घर के रौशनदान बदलना ठीक नहीं !
    वाह बहुत सुंदर ! हर पंक्ति लाजवाब !

    जवाब देंहटाएं
  69. इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
    घर के रोशनदान बदलना ठीक नही
    संवेदनशील... लाजवाब प्रस्तुति.......

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  70. वाह हर शे'र लाजवाब! सब अच्छे लगे.
    इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
    घर के रोशनदान बदलना ठीक नही
    आपकी संवेदनशीलता को दर्शाते है एक नेक इंसान जिन्दा है भीतर.उसकी लम्बी उम्र हो.
    'जब तक सुनने वाला ही बहरा न मिले
    दिल के सारे राज़ उगलना ठीक नही'
    बस यहीं हम औरते जबर्दस्त भूल कर बैठती हैं.मैंने अब जा कर सीखा ये सब.

    'यादों का लावा फिर से बह निकलेगा
    दिल के इस तंदूर का जलना ठीक नही' नन् न् न् दिल के तंदूर में और लकड़ी कोयला डालते रहो भाई,ये यादोँ के उफनते लावे जिंदगी को ठडक देते है यही तो विशेषता है इस दिल के तंदूर की और उसमे से निकलते लावे की.

    जिनके चेहरों के पीछे दस चेहरे हैं
    ऐसे किरदारों से मिलना ठीक नही' हा हा हा
    किस किस को आजमाते जीवन में जिसको असली समझा वो हर चेहरा नकली निकला .

    'गुस्से को सड़कों तक तो लाना होगा
    बर्तन में ही दूध उबलना ठीक नही" लो जी ये तो अन्ना हजारे और रामदेवजी महाराज पर आज के सन्दर्भ में एकदम सटीक बैठ रहा है.अब तो मानोगे कि मैंने सीरियसली पढा है हर शब्द को? इसलिए मेरी दाद झूठी नही है. बहुत खूब ! जियो.

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  71. कितना सच दिगंबरर्जी, । बधाई, इस संवेदना के लिए।

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  72. सुन्दर रचना पढने को मिली ||
    श्रीमान जी का बहुत-बहुत आभार ||

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  73. baat dil ki hai to phir dil se hi kee jayegi.... euin to bahut si rachnayeom padhne ko roj milti rahti hain,,, acchi bhi hoti hain... per aisi rachnayein shayer bhi samay samay par likhte hain aur pathak bhi samay samay par padhte hain,,, mujhe behad acchi lagi.. hardik badhayiyi

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  74. बहुत व्यस्त हूँ इस वक़्त...सोचा एक दो नयी कवितायेँ पढ़ कर चली जाउंगी, पर आपके ब्लॉग ने हाथ थाम कर बैठा लिया...आपका ब्लॉग पढ़कर सोच रही हूँ ज़रा सा आशीर्वाद इस बेटी को भी दे दीजिये...:)

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है