स्वप्न मेरे: जिंदगी वो राग जिसका सम नही है

सोमवार, 6 जून 2011

जिंदगी वो राग जिसका सम नही है

जी लिया जो ज़िंदगी में कम नही है
लौट के आ जाऊं इतना दम नही है

एक पन्छी आसमाँ में उड़ रहा है
राह में जिसका कोई हमदम नही है

रोज़ की जद्दो-जहद पैदाइशी है
जिंदगी वो राग जिसका सम नही है

अनगिनत हैं लोग पीछे भी हमारे
बस हमारे हाथ में परचम नही है

किसके जीवन में कभी ऐसा हुवा है
साथ खुशियों के रुलाता गम नही है

बन गया मोती जो तेरा हाथ लग के
अश्क होगा वो कोई शबनम नही है

जिंदगी गुज़री है कुछ अपनी भी ऐसे
साज़ है आवाज़ है सरगम नही है

71 टिप्‍पणियां:

  1. इस छोटी सी कविता के कैनवास पर ज़िन्दगी की इतनी सही तस्वीर उतार दी...ज़िन्दगी का सच है यह...

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  2. अनगिनत हैं लोग पीछे भी हमारे
    बस हमारे हाथ में परचम नही है

    Samsaamyik hai ye panktiyaan

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  3. जी लिया जो ज़िंदगी में कम नही है
    लौट के आ जाऊं इतना दम नही है

    जो गुजर गया उसे सपना समझ
    सपना टूट भी जाए तो ग़म नहीं है ।

    हमेशा की तरह खूबसूरत ग़ज़ल।

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  4. सभी पंक्तियाँ ज़ोरदार हैं. ये बहुत अच्छी लगीं-


    बन गया मोती जो तेरा हाथ लग के
    अश्क होगा वो कोई शबनम नही है

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  5. किसके जीवन में कभी ऐसा हुवा है
    साथ खुशियों के रुलाता गम नही है
    Bahut khoob !
    vaise sabhee sher bahut acche hai hamesha kee bhanti.

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  6. ये पंक्तियाँ बहुत बहुत अच्छी लगीं.
    बन गया मोती जो तेरा हाथ लग के
    अश्क होगा वो कोई शबनम नही है
    Ultimate lines.

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  7. अनगिनत हैं लोग पीछे भी हमारे
    बस हमारे हाथ में परचम नही है
    ye pankti bahut achchhi lagi hai vaise sabhi panktiyan bahut shandar hain.

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  8. जी लिया जो ज़िंदगी में कम नही है
    लौट के आ जाऊं इतना दम नही है

    ....लाज़वाब..हरेक शेर बहुत उम्दा और ज़िंदगी की सची तस्वीर उकेरता हुआ...बहुत सुन्दर गज़ल

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  9. बहुत ही ख़ूबसूरत !
    अनगिनत हैं लोग पीछे भी हमारे
    बस हमारे हाथ में परचम नही है
    क्या बात है !वाह !

    बन गया मोती जो तेरा हाथ लग के
    अश्क होगा वो कोई शबनम नही है
    बेहद प्यारा और नाज़ुक शेर

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  10. "अनगिनत हैं लोग पीछे भी हमारे
    बस हमारे हाथ में परचम नही है"....बेहद खूबसूरत ग़ज़ल... बहुत सुन्दर...

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  11. एक पन्छी आसमाँ में उड़ रहा है
    राह में जिसका कोई हमदम नही है
    ... bahut hi badhiyaa

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  12. बेहद उम्दा गजल ! हर शेर आपने आप में मुकम्मल है...

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  13. किसके जीवन में कभी ऐसा हुवा है
    साथ खुशियों के रुलाता गम नही है

    बन गया मोती जो तेरा हाथ लग के
    अश्क होगा वो कोई शबनम नही है

    बहुत खूबसूरत गज़ल ...ज़िंदगी में गम और खुशी आते ही रहते हैं ...

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  14. रोज़ की जद्दो-जहद पैदाइशी है
    जिंदगी वो राग जिसका सम नही है

    अनगिनत हैं लोग पीछे भी हमारे
    बस हमारे हाथ में परचम नही है

    बन गया मोती जो तेरा हाथ लग के
    अश्क होगा वो कोई शबनम नही है

    दिगंबर भाई ये ऐसे शेर हैं जिन्हें कह कर बेख़ौफ़ फक्र से सर ऊंचा किया जा सकता है...वाह...ऐसे शेर किसी तारीफ़ के मोहताज़ नहीं क्यूँ के किसी भी तारीफ़ से बहुत ऊंचे हैं...कमाल कर दिया भाई...दिली दाद कबूल करो..

    नीरज

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  15. अनगिनत हैं लोग पीछे भी हमारे
    बस हमारे हाथ में परचम नही है

    waahhhhhhhhhhhhhh

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  16. aapne toh is gazal ke maadhyam se itanii uurja de dii ki lagataa hai ki jeewan asaan hai aur isako jii lena utana kathin nahin ..is samay yah kavita andhere men ujaale kii tarah damak rahi hai .
    aapko bahut badhaayi.

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  17. रोज़ की जद्दो जहद पैदायशी है,
    ज़िन्दगी वो राग है जिसका सम नहीं है।
    ख़ूबसूरत रचना , नासवा जी को मुबारकबाद।

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  18. जिंदगी गुज़री है कुछ अपनी भी ऐसे
    साज़ है आवाज़ है सरगम नही है
    Bahut khoob !

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  19. जिंदगी गुज़री है कुछ अपनी भी ऐसे
    साज़ है आवाज़ है सरगम नही है .........

    वाह बहुत खूब ..हर शेर बहुत अच्छा है

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  20. आज तो टिप्पणी मे यही कहूँगा कि बबहुत उम्दा ग़ज़ल है यह!
    एक मिसरा यह भी देख लें!

    दर्देदिल ग़ज़ल के मिसरों में उभर आया है
    खुश्क आँखों में समन्दर सा उतर आया है

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  21. waise tho puri ki puri gazal hi kamal hai........par khas kar ye 2 lines.......एक पन्छी आसमाँ में उड़ रहा है
    राह में जिसका कोई हमदम नही है...

    ye puri gazal ka saar hai...bahut khub

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  22. बेहतरीन शब्दों का उम्दा संयोजन... वाह..

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  23. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 07- 06 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    साप्ताहिक काव्य मंच --- चर्चामंच

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  24. जिंदगी गुज़री है कुछ अपनी भी ऐसे
    साज़ है आवाज़ है सरगम नही है
    बहुत बढ़िया, लाजवाब!

    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  25. रोज़ की ज़द्दो -ज़हद पैदायिशी है ,
    ज़िन्दगी वह राग जिसका सम नहीं है ।
    बेहद की सुन्दर ग़ज़ल .हरेक शैर ख़ास है इस गज़ले -ख़ास का .

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  26. बन गया मोती जो तेरा हाथ लग के
    अश्क होगा वो कोई शबनम नही है

    वाह!

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  27. अनगिनत हैं लोग पीछे भी हमारे
    बस हमारे हाथ में परचम नही है

    किसके जीवन में कभी ऐसा हुवा है
    साथ खुशियों के रुलाता गम नही है

    उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.... ....संवेदनशील पंक्तियाँ .

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  28. किसके जीवन में कभी ऐसा हुवा है
    साथ खुशियों के रुलाता गम नही है ..

    गम के साथ ख़ुशी ..जैसे धूप में खुद अपनी परछाई

    अनगिनत हैं लोग पीछे भी हमारे
    बस हमारे हाथ में परचम नही है ...

    आत्मगौरव की के इन पंक्तियों ने बहुत लुभाया ..
    शानदार अभिव्यक्ति !

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  29. जिंदगी गुज़री है कुछ अपनी भी ऐसे
    साज़ है आवाज़ है सरगम नही है

    आपने बढ़ी सादगी से बात कह दी .वाह.
    ग़ज़ल के सभी शेर लाजवाब.

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  30. जिंदगी गुज़री है कुछ अपनी भी ऐसे
    साज़ है आवाज़ है सरगम नही है

    -हाय!! ये गज़ब....वाह! क्या गज़ल कही है...

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  31. दिगंबर भाई आप की ये ग़ज़ल भी दिल और दिमाग दोनों को हिलाने में सक्षम है| खास कर ये वाला शेर और इस में कही गई बात कुछ विशेष ताज़गी लिए हुए है :-


    रोज़ की जद्दो-जहद पैदाइशी है
    जिंदगी वो राग जिसका सम नही है

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  32. जिन्दगी दमदार है,
    सुबह बस उस पार है।

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  33. जिंदगी गुज़री है कुछ अपनी भी ऐसे
    साज़ है आवाज़ है सरगम नही है

    क्या खूब कही है आपने जिन्दगी ...हर शेर लाजबाब ....!

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  34. वाह ! क्या बात है! बेहद ख़ूबसूरत, शानदार और ज़बरदस्त ग़ज़ल लिखा है आपने! आपकी लेखनी को सलाम!

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  35. जी लिया जो ज़िंदगी में कम नही है
    लौट के आ जाऊं इतना दम नही है
    ह्र्दय से निकली सुन्दर अभिव्यक्ति्…..….

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  36. किसके जीवन में कभी ऐसा हुवा है
    साथ खुशियों के रुलाता गम नही है

    क्या बात है?

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  37. हर शेर बेशकीमती ……………शानदार गज़ल्।

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  38. रोज़ की जद्दो-जहद पैदाइशी है
    जिंदगी वो राग जिसका सम नही है

    अनगिनत हैं लोग पीछे भी हमारे
    बस हमारे हाथ में परचम नही है
    लेकिन गज़ल मे आपका खूब परचम फहराता है। हमेशा की तरह लाजवाब।
    जिंदगी गुज़री है कुछ अपनी भी ऐसे
    साज़ है आवाज़ है सरगम नही है
    वाह क्या बात है। सुन्दर गज़ल बधाई।

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  39. रोज़ की जद्दो-जहद पैदाइशी है
    जिंदगी वो राग जिसका सम नही है...

    ओह...लाजवाब....

    एक से बढ़कर एक नायाब क्या शेर गढ़े हैं आपने ग़ज़ल में.....बस, वाह वाह वाह....

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  40. वाह ... बहुत खूब कहा है आपने ... ।

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  41. 'जिंदगी गुजरी है कुछ अपनी भी ऐसे

    साज़ है आवाज़ है सरगम नहीं है '

    .........................जानदार शेर .....उम्दा ग़ज़ल

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  42. ज़िंदगी वो राग जिसका सम नहीं....
    वाह... बेहद खूबसूरती से बयान ज़ज्बात....
    शेर दर शेर लाज़वाब...
    regards....

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  43. अनगिनत हैं लोग पीछे भी हमारे
    बस हमारे हाथ में परचम नही है
    चर्चा मंच के जरिये आप तक पहली बार पहुंचा हूँ.हर शेर एक से बढ़ कर एक है.संगीता जी का शुक्रिया.वर्ना इतनी सशक्त लेखनी से न जाने कब परिचय हो पता.

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  44. so true !!
    रोज़ की जद्दो-जहद पैदाइशी है
    जिंदगी वो राग जिसका सम नही है

    Nice read

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  45. भाई साहब!
    इंसानी ज़िंदगी का फलसफा बयान कर दिया है आपने.. और ये शेर तो पैबस्त हो गया दिल में:
    अनगिनत हैं लोग पीछे भी हमारे
    बस हमारे हाथ में परचम नही है!

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  46. एक पन्छी आसमाँ में उड़ रहा है
    राह में जिसका कोई हमदम नही है

    रोज़ की जद्दो-जहद पैदाइशी है
    जिंदगी वो राग जिसका सम नही है
    laazwaab ,chal akela chal akela geet yaad aa raha ise padhkar .

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  47. जिन्दगी फिर से जीने की इच्छा नहीं । वह जीवन भी वेकार है जिसका कोई साथी न हो। जिन्दगी बे सुरी है। खुशियाऔर गम साथ साथ चलते है । जिन्दगी बे राग रही । सभी शेर श्रेष्ठ
    "जिन्दगी से बडी सजा ही नहीं
    और क्या जुर्म है पता नहीं नहीं "

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  48. रोज़ की जद्दो-जहद पैदाइशी है
    जिंदगी वो राग जिसका सम नही है

    बिलकुल सच...

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  49. अनगिनत हैं लोग पीछे भी हमारे
    बस हमारे हाथ में परचम नही है

    किसके जीवन में कभी ऐसा हुवा है
    साथ खुशियों के रुलाता गम नही है
    एक से बढ़कर एक
    ...बहुत खूब कहा है आपने

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  50. कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका

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  51. जिंदगी गुज़री है कुछ अपनी भी ऐसे
    साज़ है आवाज़ है सरगम नही है
    कठिन रियाज से सरगम भी आ सकती है ! वश धनात्मक रियाज की कमी है ! बहुत सुन्दर !

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  52. बन गया मोती जो तेरा हाथ लग के
    अश्क होगा वो कोई शबनम नही है

    बहुत खूब दिगम्बर भाई - कमाल. इसी गोत्र की त्वरित पंक्तियाँ मेरी और से भी -

    अश्क और शबनम तो गौहर हैं सदा
    पा के दोनों खुश सुमन मातम नहीं है.

    सादर
    श्यामल सुमन
    +919955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  53. behtreen......aapka yah nikhra hua roop bahut pasand aaya.....aapki mehnat she'ron ke madhyam se bol rahi hai.....sadhuwad...

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  54. बढ़िया ग़ज़ल.. हर शेर बेहतरीन

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  55. अनगिनत हैं लोग पीछे भी हमारे
    बस हमारे हाथ में परचम नही है
    kamal bahut hi sunder
    रोज़ की जद्दो-जहद पैदाइशी है
    जिंदगी वो राग जिसका सम नही है
    bahut khub
    rachana

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  56. bahut hi khubsurat ek - ek shabd aawaj de raha ho jese :)aapka sach me koi jwab nahi :)
    sundar rachan

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  57. जी लिया जो ज़िंदगी में कम नही है
    लौट के आ जाऊं इतना दम नही है


    Vaah! kya baat hai. vaise to har sher laajavaab hai. lekin ye sher bahut pasand aaya.

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  58. अनगिनत हैं लोग पीछे भी हमारे
    बस हमारे हाथ में परचम नही है
    bahut khoob digambar ji.

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  59. रोज़ की जद्दो-जहद पैदाइशी है
    जिंदगी वो राग जिसका सम नही है ।

    हर शेर मोती है पर इसकी चमक कुछ और है ।
    बेहद खूबसूरत गजल ।

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  60. जिंदगी के सारे रंग और द्वन्द खूबसूरत शब्दों में पिरो दिये . आभार.

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  61. किसके जीवन में कभी ऐसा हुवा है
    साथ खुशियों के रुलाता गम नही है

    ख़ुशी और ग़म तो जीवन के अभिन्न अंग हैं।
    जिंदगी की हकीकत को आपने सुंदर शब्दों में पिरोया है।
    बढ़िया शेर...बढ़िया ग़ज़ल।

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  62. "बन गया मोती जो तेरा हाथ लग के
    अश्क होगा वो कोई शबनम नही है"

    just excellent...!

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  63. एक पन्छी आसमाँ में उड़ रहा है
    राह में जिसका कोई हमदम नही है

    रोज़ की जद्दो-जहद पैदाइशी है
    जिंदगी वो राग जिसका सम नही है

    अनगिनत हैं लोग पीछे भी हमारे
    बस हमारे हाथ में परचम नही है

    -----लाजवाब शेर..एक और बेहतरीन ग़ज़ल...बधाई!

    -----देवेंद्र गौतम

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  64. 'रोज की जद्दोजहद पैदाइशी है

    जिंदगी वो राग जिसका सम नहीं है '

    ..................बढ़िया शेर

    .................जानदार ग़ज़ल ,हर शेर उम्दा

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  65. 'जी लिया जो ज़िंदगी में कम नही है
    लौट के आ जाऊं इतना दम नही है
    एक पन्छी आसमाँ में उड़ रहा है
    राह में जिसका कोई हमदम नही है '
    और ...
    'जिंदगी गुज़री है कुछ अपनी भी ऐसे
    साज़ है आवाज़ है सरगम नही है'
    हम्म सोच रही हूँ क्या लिखूं?गुस्सा तो इतना आ रहा है ना कि बस.
    'बहुत सहे हमने भी गमे जिंदगी देखो
    हार गई हमसे हर परेशानी देखो
    गमों के गीत गाते हो मेरे नौजवां दोस्त!
    एक बार मुझे ओ' मेरी कहानी देखो
    रो रो कर नही गुजारे है रात दिन अपने
    हर ठहाके में दबा दिए अपने दर्द, देखो'
    धत्त दुष्ट लडके! नज्म लिखी अच्छी है पर...यदि ये आपके जीवन का फलसफ़ा है तो ...मैं दुखी हूँ .

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है