स्वप्न मेरे: मेरी जानी सी अंजान प्रेमिका ...

सोमवार, 13 जून 2011

मेरी जानी सी अंजान प्रेमिका ...

ग़ज़लों का दौर से अलग हट के प्रस्तुत है आज एक रचना ... आशा है आपको पसंद आएगी ...

मेरे तमाम जानने वालों के ख्यालों में पली
गुज़रे हुवे अनगिनत सालों की वेलेंटाइन
मेरी अंजान हसीना
समर्पित है गुलाब का वो सूखा फूल
जो बरसों क़ैद रहा
डायरी के बंद पन्नों में

न तुझसे मिला
न तुझे देखा
तू कायनात में तब आई
मुद्दतों बाद जब सूखा गुलाब
डायरी से मिला

मेरी तन्हाई की हमसफ़र
अंजान क़िस्सों की अंजान महबूबा
ख्यालों की आडी तिरछी रेखाओं में
जब कभी तेरा अक्स बनता हूँ
अनायास
तेरे माथे पे बिंदी
हाथों में पूजा की थाली दे देता हूँ
फिर पलकें झुकाए
सादगी भरे उस रूप को निहारता हूँ

ओ मेरी जानी सी अंजान प्रेमिका
तु बरसों पहले क्यों नही मिली

82 टिप्‍पणियां:

  1. अनजान प्रेम के प्रति इतना समर्पण... फिर अनजान कहाँ ! आपका ह्रदय तो जानता है उसे.. बहुत खूबसूरत कविता...

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  2. उसे याद कर न दिल दुखा जो गुजर गया सो गुजर गया

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  3. वाह ...बहुत खूब ...बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  4. आह यही प्रेमिका ही तो जीवन को महकाती है ……………बेहद उम्दा भाव सौन्दर्य्।

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  5. इतना सब कुछ फिर भी अनजानी ? कवि के हृदय में बसने वाली प्रेमिका के प्रति कवि के सुन्दर भावोद्दगार .

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  6. प्रेमिल भाव की इतनी खूबसूरत अभिव्यक्ति ..... बस नमन करने को जी चाह रहा है !

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  7. ओ मेरी जानी सी अंजान प्रेमिका
    तु बरसों पहले क्यों नही मिली
    agar vo barso pahle mil jati to ye abhivyakti kahan se aati digambar ji.bahut khoob.

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  8. ये जानी सी अंजान प्रेमिका ही हमेशा दिल के करीब रहेगी क्यूंकि वो कभी बदलेगी नहीं..

    प्यारी सी कविता

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  9. सच्ची प्रेमिका से हमेशा यह शिकायत रहती है कि वह देरी से जीवन में क्यों आई. बहुत सुंदर कहा है आपने.

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  10. ख्यालों की आडी तिरछी रेखाओं में
    जब कभी तेरा अक्स बनता हूँ
    अनायास
    तेरे माथे पे बिंदी
    हाथों में पूजा की थाली दे देता हूँ
    फिर पलकें झुकाए
    सादगी भरे उस रूप को निहारता हूँ ...

    वाह कितना सुन्दर लिखा है आपने, कितनी सादगी, कितना प्यार भरा समर्पण वो भी एक अंजान अनदेखी प्रेमिका के लिए जवाब नहीं इस रचना का........ बहुत खूबसूरत.......

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  11. प्रेम कि वो मूरत अमूर्त रहती तो अच्छा रहता .

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  12. दिगंबर भाई नज़्म हो या ग़ज़ल आपकी कलम से निकली हर रचना मोहक होती है.शब्द और भाव पाठक को अपने साथ बहा ले जाते हैं. प्रेम की कोमल तंतुओं से बुनी इस रचना के लिए बधाई स्वीकार करें.

    नीरज

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  13. न तुझसे मिला
    न तुझे देखा
    तू कायनात में तब आई
    मुद्दतों बाद जब सूखा गुलाब
    डायरी से मिला ... waah , kitne pyaare ehsaas hain dayree me

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  14. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी (कोई पुरानी या नयी ) प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    साप्ताहिक काव्य मंच- ५० ..चर्चामंच

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  15. नज़्म के लिहाज से...गज़ब के भाव और बहुत सुन्दर....

    अब नज़्म से बाहर...खैर, अभी जाने दो!!! :)

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  16. अमूर्त प्रेम का मूर्तन ,मानवीकरण ,प्रेमिकाकरण .वाह क्या बात है .दिल की बात जुबां पे आ ही जाती है .

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  17. बहुत सुंदर नज़्म।
    प्यारए भाव।

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  18. आपने हममें से कइयों की टीस को आवाज़ दी।

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  19. कौन मिली, कब मिली, कैसे मिली ... सुन्दर भावनात्मक कविता !

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  20. "न तुझसे मिला
    न तुझे देखा
    तू कायनात में तब आई
    मुद्दतों बाद जब सूखा गुलाब
    डायरी से मिला"

    और डायरी में दबा
    एक सूखा गुलाब
    कितनी यादें संजो गया ...!

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  21. सुंदर भाव लिए प्रभावित करती रचना .....

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  22. सच है सूखे हुए गुलाब कभी बहुत चुभन देते रहते हैं उम्र भर...बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..

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  23. अनजानी कहाँ .कवि मन तो देखिये पहचानता है उसे.
    भावपूर्ण कविता.

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  24. पहले ही मिल जाती तो इतनी सुन्दर कविता कहाँ से आती।

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  25. प्यारे अंदाज में अंजान प्रेमिका के लिये लिखी गई रचना कमाल की है,

    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  26. अब पछताये होत क्या ..............

    ग़ज़ल और गीत के बाद ये कविता भी काफी प्रभावशाली लगी| एक से अधिक विधाओं में लिखने का शौक़ आप के हित में है मित्र|

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  27. न तुझसे मिला
    न तुझे देखा
    तू कायनात में तब आई
    मुद्दतों बाद जब सूखा गुलाब
    डायरी से मिला

    बहुत खूब !!!!!!!
    कहीं ये अंजाना व्यक्तित्व आप की कविता ही तो नहीं ?????

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  28. जबरदस्त भाव ...
    चलो एक बार फिर से ...

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  29. हमारे एहसासों में साथ चलते हैं इसी तरह जाने अनजाने फिर भी पहचाने लोग !
    ये अंदाज़ भी जुदा है आपका !

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  30. अमूर्त रूप प्यार का .कविता के भाव अंजन प्रेमिका को मूर्त कर गए .

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  31. प्रेम को अभिव्यक्त करना तो कोई आपसे सीखे , गजब की अभिव्यक्ति।

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  32. न तुझसे मिला
    न तुझे देखा
    तू कायनात में तब आई
    मुद्दतों बाद जब सूखा गुलाब
    डायरी से मिला ..

    आपकी लेखनी में जादू है आपकी कविताएं मन को छूने में कामयाब रहती हैं | बधाई और शुभकामनाएं |

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  33. न तुझसे मिला
    न तुझे देखा
    तू कायनात में तब आई
    मुद्दतों बाद जब सूखा गुलाब
    डायरी से मिला
    .........अच्छी लगी ये नज़्म...सूक्ष्म जगत के सूक्ष्म अहसासात

    -----देवेंद्र गौतम

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  34. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने! बधाई!

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  35. कल्पनायें भी जीने का सहारा होती हैं। भावमय रचना। शुभकामनायें।

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  36. भाई दिगम्बर जी सुंदर और गहन अभिव्यक्ति बधाई

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  37. भाई दिगम्बर जी सुंदर और गहन अभिव्यक्ति बधाई

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  38. bhootkaal ki parchhaiyon se bani ye tasveer premika ki
    jeevant kar rahi hai vartmaan aur bhavishya bhi

    bahut hi sunder bhaav

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  39. अनायास
    तेरे माथे पे बिंदी
    हाथों में पूजा की थाली दे देता हूँ
    फिर पलकें झुकाए
    सादगी भरे उस रूप को निहारता हूँ


    बहुत ही प्यारी पंक्तियां...
    बहुत मासूम-सी रचना...
    बहुत खूब.

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  40. चाहत वही अब बदले हुए रुप में...

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  41. यह अन्दाज़ तो एकदम जुदा सा लगा...वैसे यही जानी अंजानी प्रेमिका ताउम्र दिल की किताब में सूखे फूल सी रहती है..

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  42. ये कविता बहू को सुनाई या पढवाई क्या...?

    पढवाना...अच्छी है...

    साधुवाद .......

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  43. उन तमाम गजलोंसे एकदम न्यारी -सी
    प्यारी रचना ! सुंदर .....

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  44. बहुत सुन्द..र दिल कोछूती पंक्तियां.....

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  45. न तुझसे मिला
    न तुझे देखा
    तू कायनात में तब आई
    मुद्दतों बाद जब सूखा गुलाब
    डायरी से मिला ...
    Wow these lines a so lovely and fun to read !!!


    just want to say
    Waah Excellent.

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  46. यह प्रेम तो गहरा जान पड़ता है.. अनजान नहीं.. सुन्दर प्रस्तुति...

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  47. बहुत अच्छा लिखा है जी ऐसे ही लिखते रहे
    हमारे कुटिया पर भी दर्शन दे श्री मान

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  48. मुझे इतनी अच्छी लगी आपकी ये नज़्म कि देखिये नासवा जी, मैं दुबारा आ गई इसे गुनगुनाने.....

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  49. बहुत ही भावपूर्ण रचना ! कभी कभी कल्पना में उकेरी गयी तस्वीर से ही इतना प्यार हो जाता है कि उसमे सामने यथाथ का प्यार भी बेमानी सा हो जाता है ! नाज़ुक सी कोमल सी बेहद प्यारी रचना ! अति सुन्दर !

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  50. जानबूझकर अंजान तो नहीं बना जा रहा है ?

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  51. अब देखिये इसमें एक वाक्यांश आया है "जानी सी अन्जान "
    जानी सी --अर्थात वो खयालों में पली है, डायरी से जब फूल मिला तब आभास हुआ । तनहाइयों की साथी भी रही । तेरा चित्र भी बनाया , तेरे माथे पर चांद जैसे मुखडे पर बिंदिया सितारा भी लगाया । और गाया भी ओ हो तेरी बिंदिया रे । पूजा का थाल भी तुझे दिया और तुझे निहारा भी।
    अब अनजान -- भले ही खयालो में पली मगर थी तो अन्जान ही । जिससे मिले नहीं देखा नहीं अन्जान तो होगी ही । भलेही हमसफर रहीे हो मगर थी तो अंजान किस्सों की अंजान ही । जो चित्र बनाया वह भी काल्पनिक ही था।

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  52. कल्पना में यह रूप तो शायद हर कोई गढ़ता है..पर उसे ऐसे कोमल भावांजलि हर कोई नहीं दे पाता...

    मोहक भावपूर्ण बहुत बहुत सुन्दर...

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  53. 'पूजा की थाली..माथे पर बिंदी'... आप की कविताओं की नायिका की पहचान है इसलिए यह जानी -अनजानी ..पहचानी सी ही लगी .

    ग़ज़लों से हटकर अभिव्यक्ति का यह रूप भी अच्छा लगा..

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  54. "न तुझसे मिला
    न तुझे देखा
    तू कायनात में तब आई
    मुद्दतों बाद जब सूखा गुलाब
    डायरी से मिला"

    और डायरी में दबा
    एक सूखा गुलाब
    कितनी यादें संजो गया ...!

    एक शब्द में अद्भुत. ऐसा लगा कि हवा का एक झोंका दिल के तारों को झनझना के चला गया.

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  55. बहुत प्यारी नज़्म रची है सर!
    --------------------------
    कल 17/06/2011 को आपकी कोई पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है.
    आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत है .

    धन्यवाद!
    नयी-पुरानी हलचल

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  56. प्रेम निहायत ह्रदय से होती है,हम करते हैं,करते रहना चाहते है चाहे मूरत जैसी भी हो ..बहुत अच्छा लगा ये प्रयास .

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  57. मोहक भावपूर्ण बहुत बहुत सुन्दर|

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  58. aadarniy sir
    kya likhun ,sabne to sab kuchh kah diya.
    itni-itni pyari vo bhi anjaani premika ke liye itna samrpan ---bahut khoob.
    bahut hi sundarta ke saath hriday ke mano bhavo ko atyant hikhoob surat shbdon se sanjoya hai aapne ---Wah
    bahut bahut badhai
    vivek ji ki bhi hardik badhai itni sundar rachna ko padhvane ke liye
    dhanyvaad sahit--------
    poonam

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  59. आज दुबारा पढी कविता, और फिर जी चाहा कि कमेंट लिखूं। लेकिन क्‍या लिखूं, यह समझ नहीं आ रहा। बस इतना कहूंगा कि मन को छू गये भाव।

    ---------
    ब्‍लॉग समीक्षा की 20वीं कड़ी...
    आई साइबोर्ग, नैतिकता की धज्जियाँ...

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  60. बड़ी अच्छी नज़्म है..मेरे एक मित्र की सुधांशू फिरदौस की "महानायिका" श्रृंखला की रचनाएँ याद आ गयीं..जल्दी ही कोना एक रुबाई का पर पोस्ट करूँगा...

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  61. अपनी स्वप्न सुंदरी की अद्भुत और प्रेमपूरित तस्वीर खींची है ......आपने अपनी प्यारी रचना में

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  62. बहुत सुन्दर, बहुत खूबसूरत....
    ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है

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  63. दिगम्बर जी,

    खूबसूरत अहसास को किसी खूबसूरती से एक नज़्म में ढाला है......

    लेकिन समीरलाल जी ने जो कहा है कि "फिर....." उस बारे में फिर कभी कहियेगा हो सकता है कि कोई बेहतरीन गज़ल बने या कोई नज़्म।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  64. अभिव्यक्ति का आपका यह अंदाज़ बहुत खूबसूरत है।
    शुभकामनाएं।

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  65. कविता से सलवार तक का यह व्यंगात्मक सफ़र रोचक रहा |

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  66. आप के एहसास महसूस कर सकता हूँ ! पर बयाँ नही ...

    खुश रहिये!

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  67. कोमल और सुन्दर अहसास वाली कविता बहुत पसंद आई !
    इसीलिए आपको बधाई !

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  68. यादे-माज़ी अज़ाब है यारब ...
    गुज़रे हुए यादगार पलों की सुहानी यादों को
    बरबस ही याद दिलाती
    यादगार रचना ... वाह !

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  69. ह्म्म्म खतरनाक खयालात नही है ये ?
    'ओ मेरी जानी सी अंजान प्रेमिका
    तु बरसों पहले क्यों नही मिली'
    अरे ! हमारी बहु से भी ज्यादा हसीन थी क्या 'वो' हा हा हा इस अजानी को उतार लो 'इनमे' फिर कोई शिकायत नही रहेगी जिंदगी से और 'उसे' खो देने का दुःख भी न् होगा.

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  70. सर , इस नज़्म के लिये मेरे पास कोई शब्द नहीं है .. क्या कहूँ , पढकर अपनी सी लगी ,,, कुछ भीगी हुई सी आँखे है .. मन में बस गए है आपके शब्द ,, कुछ तलाशने लगा है ह्रदय.....बस भाई. अब और नहीं लिखा जायेंगा

    आभार
    विजय
    -----------
    कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है