स्वप्न मेरे: अहम या इमानदारी ...

मंगलवार, 17 जनवरी 2012

अहम या इमानदारी ...

जबकि मुझे लगता है
हमारी मंजिल एक थी
मैं आज भी नही जान सका
क्यों हमारा संवाद
वाद विवाद की सीमाएं लांघ कर
मौन में तब्दील हो गया

अतीत का कौन सा लम्हा
अँधेरा बन के तुम्हारी आँखों में पसर गया
प्रेम की बलखाती नदी
कब नाले में तब्दील हुयी
जान नहीं सका

जूते में लगी कील की तरह
आते जाते तुम पैरों में चुभने लगीं
हलकी सी चुभन जहर बन के नसों में दौड़ने लगी

रिश्तों के बादल
बरसे पर भिगो न सके

अब जबकि मैं
और शायद तुम भी
उसी चिंगारी की तलाश में हो
मैं चाहता हूँ की अतीत के तमाम लम्हे
जिस्म से उखड़ जाएं

पर क्या करूं
साए की तरह चिपकी यादें
जिस्म का साथ नहीं छोड़ रहीं

और सच कहूँ तो .... मुझे तो ये भी नहीं पता
ऐसी सोच मेरा अहम है या इमानदारी

71 टिप्‍पणियां:

  1. रिश्तों के बादल
    बरसे पर भिगो न सके

    बेहद सुन्दर रचना.
    सादर.

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  2. अतीत का कौन सा लम्हा
    अँधेरा बन के तुम्हारी आँखों में पसर गया
    प्रेम की बलखाती नदी
    कब नाले में तब्दील हुयी
    जान नहीं सका
    Atleast नाला तो बचा, सरस्वती नहीं हुई :)

    बढ़िया रचना , ख़ूबसूरत भाव !

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  3. अतीत की यादे कभी पीछा नहीं छोडती

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  4. सच्चा प्रेम बचा रहे तो समय उसे कभी न कभी प्लावित कर देता है।

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  5. प्रेम के रिश्तों में ख़ामोशी सही नहीं .
    वाद विवाद भूलकर संवाद कायम किया जाए तो बात बने .

    बेहतरीन रचना .

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  6. साए की तरह चिपकी यादें
    जिस्म का साथ नहीं छोड़ रहीं
    Yaaden aisee hee to hotee hain!

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  7. और सच कहूँ तो .... मुझे तो ये भी नहीं पता
    ऐसी सोच मेरा अहम है या इमानदारी... शुरुआत तो इमानदारी ही होती है , फिर ज़िद फिर अहम्

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  8. साए की तरह चिपकी यादें
    जिस्म का साथ नहीं छोड़ रहीं
    यादें न हों तो हमारी सोच बेमानी हो जाएगी..

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  9. क्या कहूँ ३ बार पढ़ गई हूँ.बस सोच में हूँ.

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  10. और सच कहूँ तो .... मुझे तो ये भी नहीं पता
    ऐसी सोच मेरा अहम है या इमानदारी
    सुँदर भाव और इमानदार सत्य .

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  11. तुम और मै


    माना कि तुम आज

    बहुत ऊँचे पहुंच गये हो

    बहुत बडे बन गए हो

    नहीं

    उस ऊँचाई पर मै

    कभी नहीं होना चाहती थी

    जहाँ ,

    इंसान आदमी बन कर रह जाता हैं

    तुम्हे तुम्हारी प्रसिद्धता मुबारक

    मै अपनी इंसानियत मे

    खुश हूँ


    ek jawaab yae bhi ho saktaa haen

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  12. जूते में लगी कील की तरह
    आते जाते तुम पैरों में चुभने लगीं
    हलकी सी चुभन जहर बन के नसों में दौड़ने लगी

    और सच कहूँ तो .... मुझे तो ये भी नहीं पता
    ऐसी सोच मेरा अहम है या इमानदारी

    Badhiya prastuti...

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  13. जो पीछा छोड़ दे वो यादें कैसी.

    सुंदर रचना.

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  14. बनते बिगड़ते रिश्तों की टीस को आपने सार्थक शब्द दिए हैं...आपकी लेखनी यक़ीनन कमाल की है दिगंबर भाई...मेरा नमन स्वीकार करें

    नीरज

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  15. कुछ यादें ऐसी ही होती हैं ,उनसे कभी पीछा नहीं छुडाया जा सकता है ...

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  16. यादों तो हमारी जिंदगी का एक हिस्सा है ...जो साथ ही रहती हैं

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  17. बहुत सार्थक बिम्‍बों के माध्‍यम से रचना को गढा है।

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  18. अपनी सुविधा से लिए, चर्चा के दो वार।
    चर्चा मंच सजाउँगा, मंगल और बुधवार।।
    घूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच
    लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी होगी!

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  19. बहुत ही खूबसूरती से आप ने अतीत की यादो को शांदो में ढाला है.....

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  20. अहम् की ईमानदारी भी घातक होती है अक्सर ..

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  21. जबकि मुझे लगता है
    हमारी मंजिल एक थी
    मैं आज भी नही जान सका
    क्यों हमारा संवाद
    वाद विवाद की सीमाएं लांघ कर
    मौन में तब्दील हो गया

    क्या बात है !!!
    प्रशंसा के लिये शब्दों का चयन मुश्किल है
    बधाई !!

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  22. प्रेम के मार्ग में अहम ही रोड़ा है
    जहां इमानदारी है
    उस घर से प्रेम नहीं जाता।
    ...अच्छा चिंतन।

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  23. सही कहा आपने, यादें ही तो पीछा नहीं छोड़ती हैं.

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  24. अब जबकि मैं
    और शायद तुम भी
    उसी चिंगारी की तलाश में हो
    मैं चाहता हूँ की अतीत के तमाम लम्हे
    जिस्म से उखाड जाएं
    यहाँ अतीत के तमाम लम्हें जिस्म से 'उखड़' जाएं होना चाहिए शायद लेकिन रचनाकार को छूत होती है वर्तनी की .आप बेहतर जानतें हैं .बहर सूरत रचना में बिम्ब विधान एक दम से नया है जूते में चुभती कील से सम्बन्ध प्रयोग बड़ा सार्थक है .चुभन इससे कहीं ज्यादा ही होती है .

    जवाब देंहटाएं
  25. अब जबकि मैं
    और शायद तुम भी
    उसी चिंगारी की तलाश में हो
    मैं चाहता हूँ की अतीत के तमाम लम्हे
    जिस्म से उखाड जाएं
    यहाँ अतीत के तमाम लम्हें जिस्म से 'उखड़' जाएं होना चाहिए शायद लेकिन रचनाकार को छूत होती है वर्तनी की .आप बेहतर जानतें हैं .बहर सूरत रचना में बिम्ब विधान एक दम से नया है जूते में चुभती कील से सम्बन्ध प्रयोग बड़ा सार्थक है .चुभन इससे कहीं ज्यादा ही होती है .

    जवाब देंहटाएं
  26. अब जबकि मैं
    और शायद तुम भी
    उसी चिंगारी की तलाश में हो
    मैं चाहता हूँ की अतीत के तमाम लम्हे
    जिस्म से उखाड जाएं
    यहाँ अतीत के तमाम लम्हें जिस्म से 'उखड़' जाएं होना चाहिए शायद लेकिन रचनाकार को छूत होती है वर्तनी की .आप बेहतर जानतें हैं .बहर सूरत रचना में बिम्ब विधान एक दम से नया है जूते में चुभती कील से सम्बन्ध प्रयोग बड़ा सार्थक है .चुभन इससे कहीं ज्यादा ही होती है .

    जवाब देंहटाएं
  27. कभी बातों में खुद का जिक्र ..
    कभी खुद से की बातें..

    जवाब देंहटाएं
  28. यादे पीछा नही छोडती वक्त - बेवक्त आकर
    मन को व्यथित करती है. पिढीत करती है , जिंदगी का अहं हिस्सा बन जाती है ये यादे
    बहूत बेहतरीन रचना है ..

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  29. जबकि मुझे लगता है
    हमारी मंजिल एक थी
    मैं आज भी नही जान सका
    क्यों हमारा संवाद
    वाद विवाद की सीमाएं लांघ कर
    मौन में तब्दील हो गया
    ......बेहद ईमानदार अभिव्यक्ति !!!

    जवाब देंहटाएं
  30. जूते में लगी कील की तरह
    आते जाते तुम पैरों में चुभने लगीं
    हलकी सी चुभन जहर बन के नसों में दौड़ने लगी

    कभी कभी ऐसा अनुभव होता है ... इमानदारी से रची रचना

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  31. प्रेम के भरोसे रहो, अच्छा समय जल्द आएगा !

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  32. नही मालूम किसके सच के नासूर का ज़िक्र है ?शायद परकाया प्रवेश कर गये हो. रिश्तों मे यह स्थिति कभी ना आए........पर सच है कि आते हैं..............आ जाते हैं.
    'जिंदगी के मोड़ पर हम तुम मिले और खो गये,...कहाँ साज़ के तार टूट जाते हैं कि सुर निकलने बंद हो जाते हैं.
    उसके पांवों मे भी चुभी होगी ऐसी कांच की किरचें?
    आपकी याद रही ......उसकी?
    उसका दर्द आपसे अलग कैसे हो सकता था.
    फर्क कम ज्यादा का रहा होगा बस.
    यह ईमानदारी अब है पहले तो बस अहम रहा होगा.
    ................रिश्तों की टूटन को बचाया जा सकता है इसी ईमानदारी के साथ.
    बाबु! ईश्वर ना करे यह आपका सच हो.आप लोग कवि है दूसरों को जी लेते हो.......मैं नही.
    पर.......इसे पढकर उदास हूँ.यह इस रचना का विषय का असर है या तुम्हारी लेखनी का...........पर उदास हूँ.और 'उस' दर्द को भीतर तक महसूस कर रही हूँ.
    गोस्वामीजी एक सप्ताह के लिए बाहर गये हुए थे.
    मुझे नींद नही आई....... एक सप्ताह बाद सोई.
    जाने कैसे जीते हैं 'वो' लोग!
    मेरे आंसू नही रुक रहे दिग!

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  33. जहाँ वाद-विवाद हो वहाँ प्रेम टिक भी कैसे सकता है...वाद-विवाद दिमाग की चीज है और प्रेम तो खालिस दिल का मामला है न...

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  34. अतीत के लम्हे...ऐसा सोचने पर मजबूर कर देते हैं..
    सुन्दर भाव

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  35. अतीत का कौन सा लम्हा
    अँधेरा बन के तुम्हारी आँखों में पसर गया
    प्रेम की बलखाती नदी
    कब नाले में तब्दील हुयी
    जान नहीं सका
    ....sach ek raah jab dorahe par jaakar khadi ho jaati hai to fir jaane kitne hi sawal umad-ghumadne lagte hai..

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  36. "अतीत का कौन सा लम्हा
    अँधेरा बन के तुम्हारी आँखों में पसर गया "- bahut khub,likhte rahiye!!
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  37. जबकि मुझे लगता है
    हमारी मंजिल एक थी
    मैं आज भी नही जान सका
    क्यों हमारा संवाद
    वाद विवाद की सीमाएं लांघ कर
    मौन में तब्दील हो गया

    shuruaat hi galat ho to fir aage yahi hona hai........

    bahut bhaavuk aur achchhi prastuti...

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  38. बहुत मुश्किल है इसे निर्धारित करना कि अहम है या ईमानदारी।
    पर प्रेम के होने के बीच में अहम का होना प्रेम नहीं हो सकत?
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, आभार।

    जवाब देंहटाएं
  39. बहुत मर्मस्पर्शी...जीवन के व्यथा की बहुत सार्थक प्रस्तुति..बहुत सुन्दर

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  40. नासवा जी ,
    इमानदारी से कहूँगा ,ये ही है अतीत की दुनियादारी !
    शुभकामनाएँ!

    जवाब देंहटाएं
  41. मैं चाहता हूँ की अतीत के तमाम लम्हे ,
    जिस्म से उखड़ जाएं .... काश चाहत पूरा हो पाना संभव हो पाता.... ?
    और सच कहूँ तो .... मुझे तो ये भी नहीं पता ,
    ऐसी सोच मेरा अहम है या इमानदारी ,
    इमानदारी सच्ची हो तो , अहम् के लिए जगह नहीं बचती.... !!

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  42. वाह क्या बात है क्या खूब लिखा है आपने वाह॥सारा खेल ही वक्त है आदमी वक्त का मोहताज है तो जब यही वक्त साथ दे टी कुछ बात बने :-) समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका सवागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/ और हो सके तो दूसरे ब्लॉग आपकी पसंद पर भी आपका स्वागत है

    जवाब देंहटाएं
  43. सच मुझे भी नहीं पता चलता सोच अहम है या इमानदारी...ये प्रश्न अक्सर मथता था

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  44. और सच कहूँ तो .... मुझे तो ये भी नहीं पता
    ऐसी सोच मेरा अहम है या इमानदारी
    निश्चित ही इमानदार सोच है ....
    रिश्तों की बारिश बरसती तो है किन्तु ,मन अहंकार की
    छतरी तान लेता है !और प्रेम भीगनेसे हमेशा वंचित रह जाता है !

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  45. रिश्तों के बादल
    बरसे पर भिगो न सके

    अब जबकि मैं
    और शायद तुम भी
    उसी चिंगारी की तलाश में हो
    मैं चाहता हूँ की अतीत के तमाम लम्हे
    जिस्म से उखड़ जाएं

    पर क्या करूं
    साए की तरह चिपकी यादें
    जिस्म का साथ नहीं छोड़ रहीं ..............bahut sunder prastuti ..yeh prash sadaiv man me aate hai kudh hi naya jabab de jate hai .......sahi soch hai ya imandari yeh to khud hi jyada samajh pate hai . badhai swikaren bahut sarthak post .
    anand aa gaya aapki post par aakar .naya sawal mil gaya kavi man ko .........:)

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  46. अतीत की यादों के अभिभूत रह कर वर्तमान को सुलझाना कठिन है. वर्तमान को वर्तमान की भाँति देखना बेहतर है. बहुत सुंदर कविता.

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  47. दिगम्बर जी, रचना में आपकी सूक्ष्म-दृष्टि स्पष्ट परिलक्षित है.वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

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  48. आपकी प्रस्तुति गहन चिंतन कराती है.
    अंतर्मन का द्वंद खूबसूरती से उकेरते हैं आप.
    ऐसा लगता है जैसे आंतरिक अनुसंधान
    हो रहा हो.

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  49. आपकी कविता अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट धर्मवीर भारती पर आपका सादर आमंत्रण है । धन्यवाद ।

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  50. रिश्ते कभी न टूटें...यही शुभकामना है|
    रचना सुंदर है!

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  51. रिश्तों के बादल
    बरसे पर भिगो न सके......
    क्या भाव हैं.... अंतस तक छू गए....!!!! अच्छी सार्थक रचना के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  52. अतीत कभी अतीत नहीं होता। वह वर्तमान रहता है यादों के रूप में। कई बार तो भविष्य की दिशा भी अतीत ही तय करता है।
    गहन अर्थों वाली सशक्त कविता।

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  53. ओशो सिद्धार्थ कहते हैं-
    यदि थोड़ा भी हो रस बाकी
    कर पहल दोस्ती कर लेना
    सौ तीरथ जाने से बढ़कर
    इक रूठा यार मना लेना

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  54. क्या कहूँ!!! इतनी लाजवाब... प्रस्तुति. रिश्तों
    और यादें जैसे जीवन का अभिन्न अंग पर हाँ रिश्तों में ईमानदारी हो तो मन में इतना तो लगता है कि हमने तो इमानदारी बरती रिश्ते में

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  55. kuch rishte asa hi hote hai...achchi aur buri yaaden liye ..hum samaj nhi pate unka banna sahi tha ya nhi...kyonki yaaden kabhi sath nhi chodti..

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  56. मेरा अहम है या इमानदारी
    रचना सुंदर है

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  57. ▬● बहुत खूबसूरती से लिखा है आपने... शुभकामनायें...

    दोस्त अगर समय मिले तो मेरी पोस्ट पर भ्रमन्तु हो जाइयेगा...
    Meri Lekhani, Mere Vichar..
    .

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  58. रिश्तों के बादल
    बरसे पर भिगो न सके..बहुत सुन्दर भाव..

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  59. रिश्तों के बादल
    बरसे पर भिगो न सके

    ....लाज़वाब अहसास...दिल को छूती बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

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  60. अब जबकि मैं
    और शायद तुम भी
    उसी चिंगारी की तलाश में हो
    मैं चाहता हूँ की अतीत के तमाम लम्हे
    जिस्म से उखड़ जाएं
    परन्तु भाई साहब अतीत बन जाता है कभी कभार हिमोग्लोबिन का हिस्सा .

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  61. सोच का तो हो नहीं सकता अहम यह,
    मानता हूँ मैं इसे ईमानदारी।
    अतीत को खुद से अलग करना कठिन,
    हर किसी को यह लगी शायद बिमारी।
    मानवाय भावों का सुन्दर प्रकृतिकरण,
    निश्चित ही सराहनीय.......
    कृपया इसे भी पढ़े-
    क्या यही गणतंत्र है

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