स्वप्न मेरे: न ज़ख्मों को हवा दो ...

बुधवार, 14 मार्च 2012

न ज़ख्मों को हवा दो ...

न ज़ख्मों को हवा दो
कोई मरहम लगा दो

हवा देती है दस्तक
चरागों को बुझा दो

लदे हैं फूल से जो
शजर नीचे झुका दो

पडोसी अजनबी हैं
दिवारों को उठा दो

मुहब्बत मर्ज़ जिनका
उन्हें तो बस दुआ दो

मेरी नाकामियों को
सिरे से तुम भुला दो

जुनूने इश्क में तो
फकत उनसे मिला दो

80 टिप्‍पणियां:

  1. अभिनव भाव अभिव्यंजन सुन्दर मनोहर रचना .छोटी बहर की बड़ी शानदार ग़ज़ल .आधुनिक जीवन स्थितियों को समेटे -


    पडोसी अजनबी हैं
    दिवारों को उठा दो

    मुहब्बत मर्ज़ जिनका
    उन्हें तो बस दुआ दो

    क्या कहने हैं भाईसाहब .आदाब ,सलाम आपकी कलम को आपके कलाम को .

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  2. न ज़ख्मों को हवा दो
    कोई मरहम लगा दो
    ......क्या कह दिया जनाब आपने.... बहुत ही बेहतरीन पंक्तियाँ बेहतरीन गजल ....नसवा जी

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  3. पढ़ कर मज़ा आ गया...नासवा जी
    ...बधाई कुबूल करें !

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  4. वाह!!!
    बहुत खूबसूरत गज़ल.....
    वाकई छोटे बहर की गज़ल का अपना सौंदर्य है...

    सादर.

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  5. हमेशा कि तरह खूबसूरत गज़ल.

    सादर.

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  6. अफ़सोस----

    नहीं सीख पा रहा हूँ ऐसी खूबसूरत
    भावों से भरी गजल रचना ।
    वैसे खूब मन लगाकर पढता हूँ --


    जख्म जिसने थे दिये वो आ रही है ।

    बुझ दिये, सुन हवा अस्तुति गा रही है ।

    वह फूल लादे डाल जब सजदा करे--

    वो मुहब्बत की बड़ी मलिका रही है ।।

    दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
    dineshkidillagi.blogspot.com

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  7. कम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया .
    शानदार ग़ज़ल .

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  8. मुहब्बत मर्ज़ जिनका
    उन्हें तो बस दुआ दो

    मेरी नाकामियों को
    सिरे से तुम भुला दो
    Kya gazab kee gazal kahee hai!

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  9. जख्मों पे मरहम का काम करती ...गज़ल !
    खुश रहिये !

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  10. मेरी नाकामियों को
    सिरे से तुम भुला दो प्रस्तुति,

    बहुत बढ़िया गजब की सुंदर रचना,.....

    RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...

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  11. नाकामियों को भुलाने नहीं याद रखने की जरूरत होती है।

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  12. लाजवाब ग़ज़ल !, शब्दों , भावो और कल्पनाओ का सुन्दर चित्रण . मैं तो कायल हो गया जनाब .

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  13. लाजवाब ग़ज़ल !, शब्दों , भावो और कल्पनाओ का सुन्दर चित्रण . मैं तो कायल हो गया जनाब .

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  14. पडोसी अजनबी हैं
    दिवारों को उठा दो
    यही ठीक रहेगा आज के ज़माने में .
    बढ़िया सटीक रचना.

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  15. वाह ...बहुत ही बढि़या प्रस्‍तुति ।

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  16. जुनूने इश्क में तो
    फकत उनसे मिला दो

    waah

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  17. बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
    आभार !

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  18. शब्द नहीं प्रसंशा के लिए.... बहुत सुन्दर रचना

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  19. मुहब्बत मर्ज़ जिनका
    उन्हें तो बस दुआ दो
    bahut sundar prastuti.badhai.ये वंशवाद नहीं है क्या?

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  20. कल 15/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  21. क्या हो गया मान्यवर,कुछ परेशान से लग रहे हैं!

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  22. बहुत सुन्दर गजल!...उम्दा अभिव्यक्ति!

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  23. जख्मों को सूखने का समय मिले..बहुत ही सुन्दर रचना..

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  24. पडोसी अजनबी हैं
    दिवारों को उठा दो

    मुहब्बत मर्ज़ जिनका
    उन्हें तो बस दुआ दो
    ..सच जिनको रोग मोहब्बत का लग जाता है उनका तो ऊपर वाला ही मालिक होता है
    ..बहुत सार्थक, सटीक प्रस्तुति ..

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  25. इस बहर में लिखी हर गज़ल मुझे बहुत प्यारी लगती हैं..और ये तो लाजवाब है!!

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  26. इस बहर में लिखी हर गज़ल मुझे बहुत प्यारी लगती हैं..और ये तो लाजवाब है!!

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  27. बहुत खुबसूरत ग़ज़ल हर शेर लाजबाब , मुबारक हो

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  28. जुनूने इश्क में तो
    फकत उनसे मिला दो .waah....

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  29. खूबसूरत ग़ज़ल...देखन में छोटे लगे...पर घाव बहुत गहरे लगे...

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  30. पडोसी अजनबी हैं
    दिवारों को उठा दो

    ....बेहतरीन गज़ल...

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  31. छोटे बहर गहरी बात ,बहुत खूब

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  32. इसे पढ़कर लगता है आप विस्‍तृत जीवानुभाव के कवि हैं ।

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  33. हम तो फकत पढ़े जाते है , गूढ़ भाव को गुने जाते है . सुन्दर

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  34. न ज़ख्मों को हवा दो
    कोई मरहम लगा दो

    बहुत ख़ूबसूरत शेर है और बड़ी मुनासिब ख़्वाहिश का इज़हार भी क्योंकि अक्सर मरहम की जगह नमक का इस्तेमाल होता है ज़ख़्मों पर

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  35. मुहब्बत मर्ज़ जिनका
    उन्हें तो बस दुआ दो

    बहुत खूब...सच..बस उन्हें दुआ की ही जरूरत होती है.

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  36. बहुत बहुत खुबसूरत लिखी है यह गजल ...हर शेर बधाई के लायक है ....

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  37. पडोसी अजनबी हैं
    दिवारों को उठा दो
    bahut sundar ghazal har ashshaar ek se badhkar ek.

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  38. मुहब्बत मर्ज जिनका उन्हें तो बस दुआ दो
    मेरी नाकामियों को सिरे से तुम भुला दो.

    गर हो सके तो तुम मुझे बाँहों में सुला दो
    फिर चाहे जिंदगी भर ले लिए मुझको रुला दो.

    सुंदर गज़ल........

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  39. बहुत सुन्दर गज़ल शेयर करने के लिये बहुत बहुत आभार,
    " सवाई सिंह "

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  40. मुहब्बत मर्ज़ जिनका , उन्हें बस दुआ दो!
    बहुत बढ़िया !

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  41. पडोसी अजनबी हैं
    दिवारों को उठा दो...
    बहुत खूबसूरत गज़ल.

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  42. न ज़ख्मों को हवा दो
    कोई मरहम लगा दो
    lazabab.....wah.

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  43. मुहब्बत मर्ज़ जिनका
    उन्हें तो बस दुआ दो

    शायद दुआ काम कर जाए....!!

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  44. न ज़ख्मों को हवा दो
    कोई मरहम लगा दो

    हवा देती है दस्तक
    चरागों को बुझा दो

    लदे हैं फूल से जो
    शजर नीचे झुका दो
    ....waah bahut umda behatarin , anand aa gaya digambar ji , aapko hardik badhai

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  45. ये शेर बहुत पसन्द आये...
    "न ज़ख्मों को हवा दो
    कोई मरहम लगा दो
    मुहब्बत मर्ज़ जिनका
    उन्हें तो बस दुआ दो"
    वाह...वाह...वाह...

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  46. पडोसी अजनबी हैं
    दिवारों को उठा दो

    मुहब्बत मर्ज़ जिनका
    उन्हें तो बस दुआ दो

    ग़ज़ल की ताजगी कम याब्दों में बहुत-कुछ कह रही है।

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  47. मनभावन ....
    शुभकामनायें आपको !

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  48. पडोसी अजनबी हैं
    दिवारों को उठा दो

    बहुत खूबसूरत ग़जल है...सभी पंक्तियाँ लाज़वाब!

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  49. मुहब्बत मर्ज़ जिनका
    उन्हें तो बस दुआ दो
    वाह, क्या बात कह दी आपने। मरीजे इश्क को दुआ ही काम आ सकती है। खूबसूरत ग़ज़ल।

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  50. बहुत उम्दा शायरी है ....सीधे मर्म तक पहुंचती हुई ....!बहुत सुंदर ....!!

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  51. उन्हें तो बस दुआ दो । वाह क्या बात है ।

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  52. बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति,

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  53. MUJHE GAJALON /KAVITAON KI JYADA SAMAJH NAHIN PAR JO DIL DIMAAG PAR ASAR KARE USE PADHATI HO ..AAPKI RACHANA BAHUT ACHHI LAGI.

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  54. छोटी बहर में यह कमाल तो ब्लॉग जगत में आप ही कर सकते हैं।

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  55. "न ज़ख्मों को हवा दो
    कोई मरहम लगा दो"
    बहुत ही सुन्दर भाव ! बधाई !

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  56. वाह बहुत ही खूब....

    जिंदगी के रंगों से सजी एक छोटी गज़ल

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  57. जुनूने इश्क में तो
    फकत उनसे मिला दो
    Beautiful lines sir...

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