स्वप्न मेरे: खत ...

सोमवार, 11 जून 2012

खत ...


तेरी यादों से पीछा छुड़ाने के बाद
और नींद की आगोश में जाने से पहले
न जाने रात के कौन से पहर
तेरे हाथों लिखे खत  
खुदबखुद दराज से निकलने लगते हैं  

कागज़ के परे  
एहसास की चासनी में लिपटे शब्द
और धूल में तब्दील होते उनके अर्थ
चिपक जाते हैं बीमार बिस्तर से

लगातार खांसने के बावजूद तेरे अस्तित्व की धसक
सासें रोकने लगती है   
लंबी होती तेरी परछाई
वजूद पे अँधेरे की चादर तान देती है  

यहां वहां बिखरे कागज़
सच या सपने का फर्क ढूँढने नहीं देते
सुबह दिवार से लटकी मजबूरियां और तेरे खतों के साथ  
बिस्तर से लिपटी धूल  
गली के नुक्कड़ पे झाड़ आता हूं
उन कोरे कागजों में रोज आग लगाता हूं

पर कमबख्त तेरे ये खत
खत्म होने का नाम नहीं लेते ...

89 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात है! बहुत भावुक कविता है..

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  2. ये ख़त साँसे हैं... ताउम्र साथ रहेंगी...

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  3. भावमय करते शब्‍दों के साथ अनुपम प्रस्‍तुति।

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  4. खतों में कैद है अनुभूतियों की दास्ताँ, सपने , ख्बाब जिन्हें कभी प्रेम से सजाया गया था ....!

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  5. उफ़ ……………क्या अन्दाज़ है

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  6. सिलसिला है साहेब. कैसे खत्म होगा.

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  7. ये ख़त नहीं रहे अब जिंदगी का हिस्सा बन गए हैं, इन्हें जीना होगा साँसों की तरह हर पल...यादों के दस्तावेज़ हैं, कमबख्त न कहिये... :)

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  8. ख़त यादो से साथ हैं ,एक एक लफ्ज़ याद रहता है इनका :) सुन्दर रचना .बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  9. बिस्तर से लिपटी धूल
    गली के नुक्कड़ पे झाड़ आता हूं
    उन कोरे कागजों में रोज आग लगाता हूं

    पर कमबख्त तेरे ये खत
    खत्म होने का नाम नहीं लेते ...
    ये खत कभी कम नहीं होते. यादों की धुल जितनी झाडी जाये उड़ कर फिर उतनी ही जम जाती है.
    बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति.

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  10. पर कमबख्त तेरे ये खत
    खत्म होने का नाम नहीं लेते ...
    सुन्दर और भावुक रचना !

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  11. यादें रह जाती है, जो जीने का सबब बन जाती है...हृदयस्पर्शी रचना...आभार!

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  12. बहुत सुन्दर और शानदार।

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  13. धुल में तब्दील होते अर्थ...
    बीमार बिस्तर में चिपकना... वाह!

    बड़े खुबसूरत प्रयोग होते हैं आपकी नज्मों में सर....
    सादर बधाई स्वीकारें.

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  14. ख़त संजोये रहतें हैं वायुवीय प्रेम की मासूम सौगातें एक उम्र से ज्यादा की धरोहर .बहुत समय के बाद बहुत बढ़िया रचना .

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  15. दुआ करो ना ख़त्म हो ये सिलसिले कभी

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  16. sir
    yaaden itni aasani se peechha nahi chodti hain chahe lakh koshish kar len.antim saans tak saath nibhati hain .
    bahut bahut hibehatreen post
    poonam

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  17. सुबह दिवार से लटकी मजबूरियां और तेरे खतों के साथ

    बिस्तर से लिपटी धूल par kahan peecha chuta hae,

    गली के नुक्कड़ पे झाड़ आता हूं

    उन कोरे कागजों में रोज आग लगाता हूं
    par

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  18. बहुत ही खूबसूरत प्रयोग । दिल से निकली कविता ।

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  19. बहुत सुन्दर अंदाज में लिखा खुबसूरत नज्म.....

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  20. बड़े सुन्दा ढंग से भवनाओं को शब्दों में पिरोया है बधाई

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  21. ईमेल और एसएमएस के ज़माने में भी ख़त का अपना अलग ही मजा है... आज भी कभी कभी दोस्तों की याद आती है तो उनके पुराने ख़त निकल कर बैठ जाता हूँ....
    बेहद खूबसूरत रचना....

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  22. ख़त संभाले रखो
    यादें बनी रहेंगी :-)

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  23. खतों में स्मृतियों को ठहराव मिल जाता है..

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  24. यादों के सिलसिले को खत का नाम दे दिया

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  25. कुछ पुरानी यादों को खुद में समेटे हुए .....

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  26. बिस्तर से लिपटी धूल
    गली के नुक्कड़ पे झाड़ आता हूं
    उन कोरे कागजों में रोज आग लगाता हूं

    मूक संवाद ज्यादा सशक्त होता है....

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  27. लगातार खांसने के बावजूद तेरे अस्तित्व की धसक
    सासें रोकने लगती है
    लंबी होती तेरी परछाई
    वजूद पे अँधेरे की चादर तान देती है
    wah bhai digambar ji .....bilkul lajabab rachana ...sadar badhai sweekaren .

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  28. मोहब्बत का सिलसिला इतना लंबा चला...........सो खत भी ढेरों होने ही हुए.......

    सुन्दर...बहुत सुन्दर....

    अनु

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  29. यादे तो हमेशा साथ रहती है...
    और उसकी निशानी कभी ख़त्म
    नहीं होती..बहुत ही कोमल भाव से लिखी
    भावुक करती रचना....
    सुन्दर....

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  30. bahut achchi rachna hai sir. jab yaadein zindagi se itne gahre judi to unki nishaani ban chuke khato ko mitaana itna aasaan nahi hota...

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  31. यादों के सिलसिले को जोड़ते खत!
    भावपूर्ण प्रस्तुति.

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  32. जो अपना है, अपने साथ ही रहता है ...

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  33. तेरी यादों से पीछा छुड़ाने के बाद
    और नींद की आगोश में जाने से पहले
    न जाने रात के कौन से पहर
    तेरे हाथों लिखे खत
    खुदबखुद दराज से निकलने लगते हैं
    bahut badhiya rachna .....

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  34. वाह! बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ लिखी हैं....

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  35. स्मृतियाँ सहेजे ख़त .....संवेदनशील भाव

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  36. कागज़ के परे
    एहसास की चासनी में लिपटे शब्द
    और धूल में तब्दील होते उनके अर्थ
    चिपक जाते हैं बीमार बिस्तर से

    kya baat hai bhai naswa ji! bahut doobkar kahi hai aapne ye nazm

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  37. तेरे हाथों लिखे खत
    खुदबखुद दराज से निकलने लगते हैं...

    लंबी होती तेरी परछाई
    वजूद पे अँधेरे की चादर तान देती है ...

    कमबख्त तेरे ये खत
    खत्म होने का नाम नहीं लेते ... धूल झाड़ देने से , अग्नि में डाल देने से शब्द नहीं खोते

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  38. सुबह दिवार से लटकी मजबूरियां और तेरे खतों के साथ
    बिस्तर से लिपटी धूल
    गली के नुक्कड़ पे झाड़ आता हूं
    उन कोरे कागजों में रोज आग लगाता हूं
    Bahut Badiyaa shabd Samavesh kiyaa hai Naswa sahaab !

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  39. पर कमबख्त तेरे ये खत
    खत्म होने का नाम नहीं लेते ...

    बड़े गहरे अहसास उतर आए हैं,..इस कविता में...

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  40. यादों के ख़त वाह आज तो कामल ही कर दिया आपने मज़ा गया दिल छु गयी आज आपकी यह रचना बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति....वाकई यादों की धूल जितनी भी झाड़ो उड़कर वापस उतनी ही ज्यादा दुबारा जम जाती है।

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  41. ख़त में यादें या यादों के ख़त -- कभी ख़त्म नहीं हो सकते !
    बहुत सही बयाँ किया है , खूबसूरत अंदाज़ में .

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  42. सहेज कर रखे खतों को न फेंक पाने का इल्जाम भी उसी के सर। वाह ! बहुत खूब कही आपने।

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  43. आपकी रचना पढता हूँ लेकिन कमेन्ट नहीं कर पाता...क्या कहूँ? समझ ही नहीं आता...स्तब्ध हो जाता हूँ पढ़ कर...सोचता हूँ संवेदनाओं को आप इतने शशक्त शब्दों में कैसे व्यक्त कर देते हैं...अद्भुत...वाकई अद्भुत...आप और आपकी रचनाएँ बेजोड़ हैं...इनका कोई सानी नहीं...लिखते रहें

    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  44. आपकी रचना पढता हूँ लेकिन कमेन्ट नहीं कर पाता...क्या कहूँ? समझ ही नहीं आता...स्तब्ध हो जाता हूँ पढ़ कर...सोचता हूँ संवेदनाओं को आप इतने शशक्त शब्दों में कैसे व्यक्त कर देते हैं...अद्भुत...वाकई अद्भुत...आप और आपकी रचनाएँ बेजोड़ हैं...इनका कोई सानी नहीं...लिखते रहें

    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  45. तू ही तू है ...
    तेरी यदों का घना साया है ...
    बेसाख़्ता तेरी यदों मे खोया मैं ...

    वाह बहुत सुंदर भाव ...

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  46. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  47. प्रेम के ऐसे अहसास के साथ यह कविता सीधे दिल तक पहुँचती है. ताज़ा बिंब बहुत प्रभावशाली हैं. बहुत सुंदर.

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  48. खूबसूरत खतों का सिलसिला जारी रहे...
    अद्भुत एहसास !!!

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  49. ’पर कमबख्त तेरे ये खत
    खत्म होने का नाम नहीं लेते’
    कुछ यादें चलती हैं ,उम्र तलक, बहुत. सुंदर.

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  50. ’पर कमबख्त तेरे ये खत
    खत्म होने का नाम नहीं लेते’
    कुछ यादें चलती हैं ,उम्र तलक, बहुत. सुंदर.

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  51. ’पर कमबख्त तेरे ये खत
    खत्म होने का नाम नहीं लेते’
    कुछ यादें चलती हैं ,उम्र तलक, बहुत. सुंदर.

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  52. ’पर कमबख्त तेरे ये खत
    खत्म होने का नाम नहीं लेते’
    कुछ यादें चलती हैं ,उम्र तलक, बहुत. सुंदर.

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  53. खतो किताबत का सिलसिला जेहन से स्वप्न तक . अप्रतिम

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  54. सर जी ......क्या बात है...खतों का दास्तां पसंद आई। हर पंक्ति बेहद उम्दा है। आपको शुभकामनाएं..!

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  55. यादों का सिलसिला चलता रहता है .... बहुत भावपूर्ण नज़्म

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  56. शब्द कागज़ पर नहीं स्मृति में अंकित हैं , नष्ट कैसे होंगे !
    खूबसूरत एहसास !

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  57. पर कमबख्त तेरे ये खत
    खत्म होने का नाम नहीं लेते ...
    खतों में अभिव्यक्त भावनाएं व्यक्ति का अक्श होता है और अक्श रोज़ बदलता रहता है लेकिन ख़त उसी अक्श को संजोएँ रहतें हैं और ज़िंदा रखतें हैं उन एहसासों को जो कभी उस वक्त का सच भी था .बहुत बढ़िया लिखते हैं आप भाई साहब .

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  58. पर कमबख्त तेरे ये खत
    खत्म होने का नाम नहीं लेते ...
    खतों में अभिव्यक्त भावनाएं व्यक्ति का अक्श होता है और अक्श रोज़ बदलता रहता है लेकिन ख़त उसी अक्श को संजोएँ रहतें हैं और ज़िंदा रखतें हैं उन एहसासों को जो कभी उस वक्त का सच भी था .बहुत बढ़िया लिखते हैं आप भाई साहब .

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  59. यहां वहां बिखरे कागज़
    सच या सपने का फर्क ढूँढने नहीं देते
    सुबह दिवार से लटकी मजबूरियां और तेरे खतों के साथ
    बिस्तर से लिपटी धूल
    गली के नुक्कड़ पे झाड़ आता हूं
    उन कोरे कागजों में रोज आग लगाता हूं


    bahut sunder.. tazaagi k chheente..

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  60. यहां वहां बिखरे कागज़
    सच या सपने का फर्क ढूँढने नहीं देते
    .......शब्द कुछ ज्यादा ही अर्थवान हो रहे हैं !

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  61. ये यादें और ख़त बड़ा ही डेडली कम्बीनेशन है।

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  62. बहुत सुन्दर ...ख़त से बचने के लिए पता बदल लें पर जलाएं नहीं !

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  63. खत की खता नहीं है
    इसमें
    दूसरा कोई पता नहीं है।

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  64. सुबह दिवार से लटकी मजबूरियां और तेरे खतों के साथ
    बिस्तर से लिपटी धूल
    गली के नुक्कड़ पे झाड़ आता हूं
    उन कोरे कागजों में रोज आग लगाता हूं

    पर कमबख्त तेरे ये खत
    खत्म होने का नाम नहीं लेते ...

    .....बहुत मर्मस्पर्शी अहसास...यादों के खत कहाँ उम्र भर पीछा छोडते हैं...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  65. बिस्तर से लिपटी धूल
    गली के नुक्कड़ पे झाड़ आता हूं
    उन कोरे कागजों में रोज आग लगाता हूं

    पर कमबख्त तेरे ये खत
    खत्म होने का नाम नहीं लेते ...
    bahut khub sunder bhav
    rachana

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  66. बहुत बेहतरीन रचना....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  67. कागज पर लिखे खत भले ही जल जाएं लेकिन मन में अंकित खत कभी नष्ट नहीं हो सकेंगे।
    ठिठक कर सोचने को बाध्य करती कविता।

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  68. AAPKEE KAVITA NE MAN PAR AJEEB SAA
    NASHAA TAAREE KAR DIYA HAI . BAHUT
    KHOOB !

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  69. कमाल की भावमय प्रस्तुति है.
    खतों की कहानी भी हैरान करने वाली होती थी.

    अफ़सोस अब खतों की कहानी बीते वक़्त की बातें बनती जा रहीं हैं.

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  70. प्यार कभी मरता नहीं है ,भले कभी मर भी जाए और ख़त /खतों में व्यक्त भावनाएं बड़ी निर्दोष होतीं हैं उस वक्त का सच भी .भावना नहीं मरती प्यार भले ही मर जाए .
    और कविता उस काल खंड का जीवित दस्तावेज़ होती है .अक्षुण्य बनाए रहती है उस भावना को .

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  71. यादों का अस्तित्व केवल खतों तक ही सीमित नहीं रहता...!
    किसी की याद को झुठला देने से....
    खतों को जला देने से उनसे निजात पाना और भी मुश्किल हो जाता है...!
    और फिर उसके लिए तो और मुश्किल होता है.....
    जिसके लिए ये यादें ही जिंदगी बन गयी हों...!

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  72. अक्षरों को मिटाया जा सकता है...उसकी छाप को नहीं...

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  73. ओह...बेहतरीन...सो वैरी रोमांटिक...मज़ा आ गया कविता पढ़ के!!

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  74. उम्र निकल जाती है.. ख़त ताज़े रहते हैं.. बहुत खूब...

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  75. कितनी खूबसूरत होती है ये खतों की दुनिया । खत फाडने या जलाने से यादें कहां जाती हैं ।

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  76. यादों की दुनिया बड़ी खूबसूरत होती है .............

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  77. haan khat khatm nahi hote.....
    jane kitne likhe padhe khat aaye aapke akshar khat padh kar

    sunder

    naaz

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है