स्वप्न मेरे: माँ तो माँ है ...

रविवार, 9 दिसंबर 2012

माँ तो माँ है ...


मैंने देखा तुम मुस्कुरा रही हो 
देख रही हो हर वो रस्म 
जो तुम्हारी सांसों के जाने के साथ ही शुरू हो गयी थी 

समझ तो तुम भी गयीं थीं 
अब ज्यादा देर तुम्हें इस घर में नहीं टिका सकेंगे हम 
अंतिम संस्कार के बहाने 
बरसों से जुड़ा ये नाता 
कुछ पल से ज्यादा नहीं सहा जाएगा  

कुछ देर तक 
दूर से आने वालों का इंतज़ार 
अंतिम दर्शन 
फिर चार कन्धों की सवारी 

समय के बंधन में बंधे 
सौंप आएंगे तुझे अग्नि के हवाले 
तेरे शरीर के पूर्णत: चले जाने का 
इंतज़ार भी न कर सकेंगे  

जिंदगी लौट आएगी धीरे धीरे पुरानी रफ़्तार पे 

मुझे पता है 
तुम तब भी मुस्कुरा रही होगी ...    

65 टिप्‍पणियां:

  1. माँ के जाने पर सोच ऐसे ही अटक जाती है .... माँ की मुस्कान में सत्य छिपा है ... मार्मिक रचना

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  2. माँ की मुस्कान एक शाश्वत सत्य...बहुत मर्मस्पर्शी रचना..

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  3. उसे तो बच्चों की हर बात अच्छी लगती है।

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  4. जीवन का एक बहुत ही दुखद क्षण ....:(

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  5. माँ तो माँ है मगर वो भी एक अंतिम सच है !

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  6. बहुत ही मर्म स्पर्शी लिखे हैं सर!



    सादर

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  7. आपके दुःख में भागीदार हैं हम.....
    विनर्म श्रद्धांजलि!

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  8. आपकी प्रस्तुति का भाव पक्ष बेहद उम्दा लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।

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  9. माँ एक सतत प्रक्रिया है जो ग़मगीन लम्हों को जल्द ही सामान्य जीवन की ओर लौटा आती है. वह माँ ही तो है.

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  10. माँ को हम सभी का नमन.

    यह तो आपने सही कहा कि जिंदगी धीरे धीरे अपनी रफ्त्तार भी पकड़ लेती है लेकिन जब तक यह रफ़्तार आये, समय बहुत मुश्किल रहता है.

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  11. ओ माँ ...तुम्हारा ऋण संभव ही कहाँ हैं , चुका पाना ...........प्रणाम सर

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  12. प्रणाम सर .........माँ को विनम्र श्रदांजलि ......................

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  13. मुझे पता है
    तुम तब भी मुस्कुरा रही होगी ...

    बस यही तो माँ होती है

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  14. मन फूला फूला फिरे ,जगत में झूठा नाता रे ,

    जब तक जीवे ,माता रोवे ,बहन रोये दस मासा रे ,

    तेरह दिन तक तिरिया ,रोवे फेर करे घर वासा रे -कबीर दास

    सांत्वना देती हैं कबीर की ये पंक्तियाँ ,लेकिन माँ तो हमारे अन्दर रहती है साए की तरह पीछे पीछे आती है .

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  15. maa ka jana kitana kuchh choot jana hai hathon se .par maa ki yaden aapko sada sakriy banae rakhengi .dhairy rakhen .

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  16. माँ से दूर होने की पीड़ा बहुत दुखदायी होती है....
    माँ को विनम्र श्रद्धांजली ...

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  17. दिल को छू गई
    मार्मिक रचना
    abhaar !

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  18. शरीर तो नश्वर ही है। विलीन हो जाता है।
    यादें हमेशा मन में वास करती है।

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  19. भीगी आँखों से पढ़ लिया सर ...
    ईश्वर आपको धीरज दें.

    सादर
    अनु

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  20. इस नज़्म पर सही टिप्पणी तो यही होती कि सिर झुकाकर श्रद्धांजलि अर्पित करूँ. लेकिन एक बात अवश्य कहना चाहूँगा (जो मैं अक्सर अपने करीबी दोस्तों से कहता हूँ) कि अब वो सदा आपके साथ हैं!! मेरा प्रणाम उनके श्री चरणों में!!

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  21. बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना .......

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  22. समय के बंधन में बंधे
    सौंप आएंगे तुझे अग्नि के हवाले
    तेरे शरीर के पूर्णत: चले जाने का
    इंतज़ार भी न कर सकेंगे

    यही जीवन का सत्य क्रम है

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  23. ..सार्थक भावपूर्ण अभिव्यक्ति माँ को विनम्र श्रद्धांजली ... भारत पाक एकीकरण -नहीं कभी नहीं

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  24. क्या कहें दिगम्बर...गुजरा हूँ इन्हीं राहों से...

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  25. माँ की मुस्कान, स्नेहसिक्त हाथ सदा सिर पर रहता है माँ भले ही सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाएँ! श्रद्धांजलि!

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  26. घूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच
    । लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज सोमवार के चर्चा मंच पर भी है!
    सूचनार्थ!

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  27. उन पलों से गुजरते लगता है अब समय नहीं गुजरेगा ...मगर समय गुजरता ही है अपनी रफ़्तार से !

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  28. माँ का जाना प्रत्‍येक व्‍यक्ति के लिए दुखद प्रसंग होता है।

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  29. समय के बंधन में बंधे
    सौंप आएंगे तुझे अग्नि के हवाले
    तेरे शरीर के पूर्णत: चले जाने का
    इंतज़ार भी न कर सकेंगे

    जीव आत्मा शरीर छोड़ जाता है .शेष रह जाता है मिट्टी का तन .कबीरा कुछ न बन जाना ,तज के मान गुमान .

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  30. साथ ही माथे को सहला भी रही होगी..

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  31. दिगम्बर सर माता जी को विनम्र श्रधांजलि आपकी यह रचना सीधे ह्रदय में घाव कर गई
    अरुन शर्मा
    RECENT POST शीत डाले ठंडी बोरियाँ

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  32. कितना भी बड़ा दुख क्यूँ न आजाए आपके जीवन में, लेकिन उसको मुस्कुरा कर सहने की शक्ति देने वाली भी तो स्वयं माँ ही होती है। मगर अफसोस की हर कीमती चीज़ का एहसास उसके दूर चले जाने के बाद या उसे खो देने के बाद ही होता है कि क्या मायने थे उसके हमारी ज़िंदगी में.... मार्मिक रचना...

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  33. मुझे पता है
    तुम तब भी मुस्कुरा रही होगी ...
    बस आंख नम हो जाती है इन पंक्तियों को पढ़कर

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  34. बहुत ही प्यारी और भावो को संजोये रचना......

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  35. माँ की मुस्कान ही चिर शाश्वत है...वही धैर्य भी बंधाती रहेगी|

    एक बार इस लिंक पर आएँ
    http://madhurgunjan.blogspot.in/2012/09/blog-post_29.html

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  36. समय के बंधन में बंधे
    सौंप आएंगे तुझे अग्नि के हवाले
    तेरे शरीर के पूर्णत: चले जाने का
    इंतज़ार भी न कर सकेंगे

    अतयंत मार्मिक रचना.

    रामराम

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  37. नहीं भूल पाई हूँ आज भी तुम्हारी वो मुस्कराहट, तुमने तो मेरा इंतजार भी नहीं किया था माँ... आज भी आँखें बंद करती हूँ तो तुम्हे उसी तरह लेटे हुए मुस्कुराते देखती हूँ , हाँ जिन्दगी को लौटना ही होता है अपनी पुरानी रफ़्तार में...

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  38. सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  41. आँखें नाम कर गयी. माँ को विनम्र नमन.

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  42. इश्वर ने मां का वरदान दिया मनुष्यता को . उनसे जुदाई मर्म को अघात पहुचती है .

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  43. yade sadaiv saath detee hai aur har beete haseen lamhe ko jeevant kartee rahtee hai tabhee to aage badna sahaj ho jata hai.........inke sahare.......

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  44. yade sadaiv saath detee hai aur har beete haseen lamhe ko jeevant kartee rahtee hai tabhee to aage badna sahaj ho jata hai.........inke sahare.......

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  45. कुछ देर तक
    दूर से आने वालों का इंतज़ार
    अंतिम दर्शन
    फिर चार कन्धों की सवारी

    दिगंबर जी कई बेहतरीन भावनाओं का सुंदर चित्रण. कुछ खास बात है आपके लेखनी में तभी तो ब्लॉग से दूर रह कर भी आपकी रचनाएँ दिल के करीब रहती है....सुंदर कविता के लिए बधाई हो ..धन्यवाद



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  46. जान कर दुःख हुआ की आपकी माता जी का स्वर्वास हो गया.........ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति दे..........बहुत ही मर्मस्पर्शी पोस्ट है ।

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  47. समय के बंधन में बंधे
    सौंप आएंगे तुझे अग्नि के हवाले
    तेरे शरीर के पूर्णत: चले जाने का
    इंतज़ार भी न कर सकेंगे

    जन विश्वास है कि आत्मा तेरह दिन तक शरीर के गिर्द मंडराती है इसीलिए तेरह दिन तक दीया जलातें हैं जिसकी लौ स्वयं आत्मा के प्रतीक है -

    कबीर कहतें हैं -काया कैसे रोई ताज दिए प्राण ......पर शरीर तो मिट्टी होता पंछी जिसे छोड़ उड़ जाता है उससे मोह भी कैसा ....मिट्टी से खेलते हो बार बार किसलिए .

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  48. कोई कितना ही ढाढस बंधाए,आदमी टूटता ही है ऐसे मौकों पर। उनकी स्मृतियां ही आगे का संबल होंगी।

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  49. कितना मुश्किल होता है इस सब से उबरना .पर माँ सब समझती है, अपने बच्चों की हर भावना से अवगत होती है .

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  50. एक गजल हो जाए नासवा साहब -ऐसा होता है माँ का आंचल ,उसकी छाँव ,जैसे ढकता चन्दा सूरज की आंच बस ऐसा ही थीम रहे शब्दों के तो आप रथी हैं ,सारथी हैं .आपकी स्नेहमय दस्तक लेखन

    को नै ऊर्जा दे जाती है .

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  51. सादर आमंत्रण,
    आपका ब्लॉग 'हिंदी चिट्ठा संकलक' पर नहीं है,
    कृपया इसे शामिल कीजिए - http://goo.gl/7mRhq

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  52. bhavpurn rachna...like it
    बरसों से जुड़ा ये नाता
    कुछ पल से ज्यादा नहीं सहा जाएगा

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  53. जिंदगी लौट आएगी धीरे धीरे पुरानी रफ़्तार पे

    मुझे पता है
    तुम तब भी मुस्कुरा रही होगी ..

    गहन अभिव्यक्ति ,बहुत शानदार

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  54. आखिरी वक्त में भी हल्दी बहुत काम आती है शव की चौहद्दी हल्दी से खींची जाती है .चींटी से बचाने के लिए .परिरक्षण के लिए शव के शमशान ले जाने से पहले .

    main soch rahaa thaa samvednaaon kaa virechan saadhaaranikarn karti ke aur rchnaa padhne ko milegee maa par ..

    likhi likhye likhiye ....

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है