स्वप्न मेरे: एक साल माँ के बिना ...

सोमवार, 30 सितंबर 2013

एक साल माँ के बिना ...

अजीब सा भारीपन लिए ये महीना भी बीत गया. इसी महीने पिछले साल माँ हमको छोड़ गई थी हालांकि दिन ओर रात तो आज भी वैसे ही चल रहे हैं. जिस मंदिर में अक्सर माँ के साथ जाता था इस बार वहीं एक कोने में उसकी फोटो भी थी. अजीब लगा माँ को फ्रेम की चारदीवारी में देख के इस बार ...

है तो बहुत कुछ जो लिख सकता हूं, लिखना चाहता भी हूं ओर लिखूंगा भी ओर सच कहूं तो मैं ही क्यों, माँ के लिए तो कोई भी संतान जितना चाहे लिख सकती है ... पर शायद एक ही विषय पे लगातार सभी मेरी भावनाओं को पढ़ें, ये कुछ अधिक चाहना हो गया. अगली रचनाएं सबकी रुचि-अनुसार लिखने का प्रयास करूँगा.    

आज की कविता दरअसल कोई कविता न हो के एक ऐसा अनुभव है जो मैंने महसूस किया था अबसे ठीक एक साल पहले जो आज साझा कर रहा हूं ...
    

एहसास तो मुझे भी हो रहा था 
पर मन मानने को तैयार नहीं था 

शांत चित तू ज़मींन पे लेटी थी   

मुंह से बस इतना निकला 
“मुझे पहले क्यों नहीं बताया” 

सब रो रह थे 
आंसू तो मेरे भी बह रहे थे 
तेरे पैरों को लगातार हिला रहा था   

अचानक तू मुस्कुरा के बोली 
“बताती तो क्या कर लेता” 

जब तक आँख उठा के तुझे देख पाता 
तू फिर से चिरनिंद्रा में लीन हो गयी 

सच बताना माँ ... 
तू मेरा इन्तार कर रही थी न    
वो तेरी ही आवाज़ थी न ... 

68 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी पंक्तियाँ हर बार हृदय नम कर जाती हैं।

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  2. सर्प्रथम माँ जी के श्री चरणों में सादर प्रणाम उन्हें सादर नमन एवं विन्रम श्रधांजलि. आदरणीय आप जब भी माँ के लिए लिखते हैं मेरी आँखें नम हो जाती हैं ऐसा लगता है ये सब कुछ मेरे साथ हुआ है ठीक ऐसा ही कुछ भी अलग नहीं. आदरणीय सत्य कहा आपने माँ के जितना चाहे लिख सकता हैं फिर भी कम ही पड़ेगा, आप लिखते रहें यह मेरी रूचि है दूसरों का तो पता नहीं. सादर नमन आपको

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  3. बहुत सुन्दर पंक्तियाँ.मन को छू गई..

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  4. आपकी हर रचना पढ़कर ऐसा लगता है जैसे मेरे अपने शब्द और अहसास हैं। माँ के लिए हम जितना भी लिखें कम है, माँ को सादर नमन

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  5. सच बताना माँ ...
    तू मेरा इन्तार कर रही थी न
    वो तेरी ही आवाज़ थी न ...

    बहुत ही सुंदर एहसास.

    रामराम.

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  6. इस प्रेम को व्यक्त करने के लिए शब्द भी छोटे पड़ जाते हैं........माता जी को श्रद्धांजलि |

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  7. सच बताना मां वो तेरी ही आवाज थी ना.......पढ़ते ही दाएं कन्‍धे से होते हुए झिरझिरी पेट के बाएं हिस्‍से तक फैल गई।

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  8. इन एहसास को शब्द में पिरोना वाकई कठिन है ....माता जी को नमन ...

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  9. दिल को छूने वाली रचना .
    चंद पंक्तियाँ ...........
    आगे बढ़े जा रहा हूँ कैसे नहीं मुझको कुछ खबर है
    सब कहते हैं ये तेरी माँ की दुआओं का असर है

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  10. इस पोस्ट की चर्चा, मंगलवार, दिनांक :-01/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -14पर.
    आप भी पधारें, सादर ....राजीव कुमार झा

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  11. माँ महता के बारे में पूरा लिखा ही नही जा सकता,माँ के बिना जीवन भी एक दुखद अहसास है। हर पल माँ की याद में हम भी तीन साल गुजार चुके है इस परदेस में। आपकी भावमयी पंक्तियाँ दिल को छू गयी।

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  12. ग्रन्थ का आकार लेती पुस्तिका में
    एक और बढ़िया प्रस्तुति-
    शुभकामनायें आदरणीय-

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  13. ma ke bina ....jeena ....bahut dukhi karta hai par yahi prakriti ka niyam hai .....dard ko darshaati ..ma ke viyog ki paati .....

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  14. माँ के अहसास कभी ख़त्म नहीं होते..
    शब्द कम पड़ जाते है...
    माँ को बयां करते -करते...
    हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ...

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  15. सही कह रहे हैं . बेशक अब विषय परिवर्तन करना सही रहेगा .

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  16. बहुत सुन्दर पंक्तियाँ.मन को छू गई.

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  17. नए जन्म में मग्न उन्हें अब रहने दो ,
    मन को निर्मल करो भाव सब बहने दो।

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  18. आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १/१० /१३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है।

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  19. हृदयस्पर्शी भाव ...मन नाम कर गया ...
    माँ को नमन ....!!

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  20. समय कितनी जल्दी बीतता है...एक साल गुज़र गया...वक्त का मरहम ही इस जख्म को भर पाए...शायद वो आज भी आपके साथ है और रहेंगी जीवन पर्यंत...

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  21. “बताती तो क्या कर लेता”

    digambar bhai I am feeling very religiously that you are back on the track............


    फ़िक्र का नामोनिशां तक था नहीं
    क्या मज़े थे माँ तुम्हारी गोद में

    माता जी को नमन करते हुये नियति के निर्णय को सम्मान देते हुये अपने रचनाधर्म की डगर पर आगे बढ़ें भाई

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  22. लभग इसी समय पिछले साल आपके ब्लॉग पर पहली बार आया था. एक साल हो गए आपके ह्रदय से निकले हुए शब्द पढ़ते हुए. आपने अपनी भावना को जितनी सहजता से रचना का रूप दिया है और मेरे जैसे कितने ही पाठकों की बारम्बार अन्तर्हृदय तक भिंगाया है, बस इतना कहूँगा कि माँ की अमरता और बढ़ गयी है. एक बार फिर से उन्हें मेरा नमन.

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  23. माँ की कही बात को पूरी तरह समझ पाना कठिन होता है. सच यही है कि जो कहा था माँ ने स्वयं कहा था.
    उनको नमन.

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  24. बहुत ही मर्म स्पर्शी रचना ...
    कैसे भूल जाऊ वो दिन जब तुम सदा के लिए सो गयी थी ...

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  25. जब भी माँ पर आपके भाव पढ़े हर बार आँखें नम हुयीं ..... हृदयस्पर्शी भाव

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  26. “बताती तो क्या कर लेता”

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  27. मुनव्वर राणा जी का एक शेर याद आ रहा है कि
    चलती फिरती हुई आंखो से अजां देखी है
    मैंने जन्नत तो नहीं देखी मां देखी है

    बचपन

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  28. क्या कहूँ माँ को समर्पित और एक मर्मस्पर्शी रचना हमेशा की तरह मन को छू गई !

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  29. बहुत मर्मस्पर्शी...आँखें नम कर गयी...

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  30. कभी कभी शब्द साथ नहीं देते... श्रद्धांजलि

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  31. आदरणीय माँ और मन एक दूसरे के पूरक हैं आपकी इस दिल को छूती रचना के लिए आपको बहुत बहुत बधाईयां

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  32. अक्सर कुछ यादें हमें हमारे मौजूदा वक्त से बहुत पीछे ले जाती हैं..और हम आज में होते हुए भी आज में नहीं होते...आपकी प्रस्तुतियों से ये नज़र आता है कि आपका अपनी माँ से कितना अटैचमेंट था..और ये वियोग आप पे कितना भारी पड़ा ये जाहिर होता है..माँ पे लिखी आपकी हर एक रचना बेहद भावुक और संवेदनशील है...

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  33. मां के लिए जितना लिखें कम है भाई !!
    मंगल कामनाएं !!

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  34. when the emotions are attached internally, it is hard for the mortal eyes to believe in. nice lines.

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  35. माँ तेरा एहसास मन मे सदा हरा रहे
    स्मृतियों से तेरी जीवन ये भरा रहे
    जन्नत से कम नहीं है आँचल तेरा
    बिना तेरे साये के बेनूर ये धरा रहे
    सुरेश राय

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  36. दिल को छूने वाली प्रस्तुति ..
    माँ को याद कर आंख भर आयी

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  37. पहला साल माँ के बिना इस एहसास के साथ ही बीतता है अब माँ नहीं हैं। हमारे साथ भी यही हुआ था लेकिन दोस्त जिसे मैं और आप माँ समझ रहे थे उसे तो हमने जला दिया। वह जो अविनाशी तत्व है वह अनेक बार नए शरीर में आता है जाता है कितनी बार कौन किस भूमिका में आता है सबके अपने अपने स्थाई स्टेशन हैं ट्रेन में बैठे यात्रियों की तरह। हम उसे सच मान लेते हैं। सबके गंतव्य स्थान हर जन्म में अलग अ लग हैं लेकिन जीव (आत्मा )का ब्रह्म (परमात्मा )से रिश्ता अविनाशी है।स्थाई भी वही है।जो यहाँ अभी सुख दे रहा है वही उसी अनुपात में दुःख का कारण भी बनता है।

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  38. अब उन यादों के गुलदस्ता बना...खुशबू लो मुस्कराओतुम.....माँ खुश होगी..सच में..उबर मेरे भाई...आ जा कुछ दिन मेरे पास...देख कि कैसे जिया हूँ मैं!! चल...साथ मुस्करायेंगे माँ को याद कर..मेरी भी और तेरी भी..एक ही तो है..है न!!

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  39. दिल को छू लेने वाली कविता। माँ तो बस माँ होती है.
    नमन।

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  40. जब भी माँ पर आपके भाव पढ़े हर बार आँखें नम हुयीं ..... हृदयस्पर्शी भावदिल को छूने वाली प्रस्तुति ..

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  41. दिल को स्पर्श करनेवाली रचना

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  42. आँखें भर आईं जब जब माँ को याद किया।

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  43. बधाई ब्लॉगर मित्र ..सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगों की सूची में आपका ब्लॉग भी शामिल है |
    http://www.indiantopblogs.com/p/hindi-blog-directory.html

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  44. दिगम्बर जी मां को जितना भी लिखोगे उतना पढ़ा जायेगा...
    आपकी मां को मेरी और से पुष्पांजलि अर्पित

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  45. बहुत ही सुंदर एहसास !
    आँखों को नम करती रचना

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  46. अचानक तू मुस्कुरा के बोली
    “बताती तो क्या कर लेता”

    सच है, बहुत सी चीजों में इंसान का बस नहीं चलता।
    मगर माँ के आदर्श उनकी कही एक एक बात यादें बन साथ चलती है, इसीलिये वो हमेशा हमारे साथ होती है।

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  47. प्रवीण पाण्डेय ने कहा…
    आपकी पंक्तियाँ हर बार हृदय नम कर जाती हैं।

    अरुन शर्मा अनन्त ने कहा…
    सर्प्रथम माँ जी के श्री चरणों में सादर प्रणाम उन्हें सादर नमन एवं विन्रम श्रधांजलि. आदरणीय आप जब भी माँ के लिए लिखते हैं मेरी आँखें नम हो जाती हैं ऐसा लगता है ये सब कुछ मेरे साथ हुआ है ठीक ऐसा ही कुछ भी अलग नहीं. आदरणीय सत्य कहा आपने माँ के जितना चाहे लिख सकता हैं फिर भी कम ही पड़ेगा, आप लिखते रहें यह मेरी रूचि है दूसरों का तो पता नहीं. सादर नमन आपको

    Udan Tashtari ने कहा…
    अब उन यादों के गुलदस्ता बना...खुशबू लो मुस्कराओतुम.....माँ खुश होगी..सच में..उबर मेरे भाई...आ जा कुछ दिन मेरे पास...देख कि कैसे जिया हूँ मैं!! चल...साथ मुस्करायेंगे माँ को याद कर..मेरी भी और तेरी भी..एक ही तो है..है न!!

    और मैं चौतीस साल से हर पल महसूस करती हूँ जैसे कल की बात हो
    हर कदम पे उनकी कमी खली है
    हार्दिक शुभकामनायें

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  48. यह रचना मी दिल के बहुत करीब हैं |

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  49. अपनी माँ की याद दिला दी आपने ...१९ साल हो गये उनको इस दुनिया से रुखसत हुए पर लगता हैं आज भी हैं साथ में हमारे ....

    खबर आई थी कि तू आस्पताल में हैं
    सास घर पर थी दातों को निकवा कर
    दोनों को समान आदर देने के चक्कर में
    कल पर छोड़ दिया था तुझसे मिलना
    पर कल जब आया मनहूस खबर लाया
    भागें थे अस्पताल पर तू ना मिली
    घर आये तो तुझसे नहीं तेरे शरीर से मिले
    विशवास ही ना कर पाए थे कि तू नहीं रही
    आंसू बस बरबस ढूलक-ढूलक जा रहे थे
    जब तुझे ले जाने लगे थे तो भी समझ नहीं आया ... लगा कि सच में अब नहीं रही हैं इस दुनिया में
    सब तैयारी में लगे थे नहाने धोने और बाद की क्रिया में..और हम सोच रहे थे कि तू चिता से उठ आएगी
    सब को आश्चर्य में डाल लौट आएगी घर
    रास्ता तकते रहे थे जब तक सब ना आये
    अब कोई आ खुशखबरी देगा तब देगा इसी इन्तजार में थे पर ऐसा ना हुआ फिर भी विशवास था कि टूट ही नहीं रहा था
    जब जब बेटी का जन्म होता हैं घर में
    सोचते हैं शायद तू उनमे रूप धर आ जाएगी
    पर यह भ्रम भी एक दो साल का होने पर टूट जाता हैं क्योकि तुझ सा उनमे कुछ नहीं दीखता ...ओ माँ तू सशरीर इस दुनिया में भले ना हो पर मेरे रूह में तू अब भी बसती हैं....सविता

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  50. दिगम्बर जी सच में दिल को छु गयी आपकी यह कविता.

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  51. आदरणीया माता जी को हार्दिक श्रद्धांजलि।


    सादर

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  52. साल भर आप की लिखी माँ को समर्पित हर कविता मन को छू लेने वाली थी .
    इन सभी भावपूर्ण रचनाओं में अपने भाव पिरोये आप ने.

    यह श्रद्धा सुमन भी उनकी यादों में महक रहा है.
    उनकी बरसी पर उन्हें भावभिन हार्दिक श्रद्धांजलि।

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  53. मां, मुझे सब है पता,तू सब जानती है---
    जाने वाले को,क्या दे सकते हैं---कुछ संवेदनायें,
    कुछ आंसू---हम भाग्यशालीए हैं—हमारे पास
    देने को कुछ तो है—सवाल देने ना देने का है?

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  54. मां, मुझे सब है पता,तू सब जानती है---
    जाने वाले को,क्या दे सकते हैं---कुछ संवेदनायें,
    कुछ आंसू---हम भाग्यशालीए हैं—हमारे पास
    देने को कुछ तो है—सवाल देने ना देने का है?

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  55. आपकी भावभरी पंक्तियाँ मन को द्रवित कर गईं ...सादर नमन..श्रद्धांजलि आदरणीया माता जी को ..और ..नमन आपकी लेखनी को !!

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  56. आपने पूरे वर्ष केवल माँ की याद में कविताएं लिखीं यह भी कम मार्मिक प्रसंग नही है । आपकी मातृभक्ति को नमन । और उस वन्दनीया माँ को भी शतशः प्रणाम ।

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है