स्वप्न मेरे: जेब में खंजर छुपा के लाएगा ...

मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

जेब में खंजर छुपा के लाएगा ...

जब सुलह की बात करने आएगा 
जेब में खंजर छुपा के लाएगा 

क्यों बना मजनू जो वो लैला नहीं   
उठ विरह के गीत कब तक गाएगा 

एक पत्थर मार उसमें छेद कर 
उड़ गया बादल तो क्या बरसाएगा 

चंद खुशियाँ तू भी भर ले हाथ में 
रह गया तो बाद में पछताएगा 

छीन ले शमशीर उसके हाथ से 
मार कब तक बेवजह फिर खाएगा 

दर्द पर मरहम लगा दे गैर के 
देख फिर ये आसमां झुक जाएगा 

तू बिना मांगे ही देना सीख ले 
देख बिन मांगे ही सबकुछ पाएगा 
  

66 टिप्‍पणियां:

  1. दर्द पर मरहम लगा दे गैर के
    देख फिर ये आसमां झुक जाएगा

    तू बिना मांगे ही देना सीख ले
    देख बिन मांगे ही सबकुछ पाएगा
    बहुत सुंदर भाव .....सुंदर रचना ....!!

    जवाब देंहटाएं
  2. जब सुलह की बात करने आएगा
    जेब में खंजर छुपा के लाएगा ....दुखद |

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह वाह - बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  4. तू बिना मांगे ही देना सीख ले
    देख बिन मांगे ही सबकुछ पाएगा ....बहुत खूब.....

    जवाब देंहटाएं
  5. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवारीय चर्चा मंच पर ।।

    जवाब देंहटाएं
  6. हर पंक्ति एक संदेश देती हुई
    उम्दा रचना
    हार्दिक शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  7. क्यों बना मजनू जो वो लैला नहीं
    उठ विरह के गीत कब तक गाएगा

    आनंद आ गया महाराज !!
    :)

    जवाब देंहटाएं
  8. एक पत्थर मार उसमें छेद कर
    उड़ गया बादल तो क्या बरसाएगा

    बहुत सुन्दर गहरे भाव .... आभार

    जवाब देंहटाएं
  9. दर्द पर मरहम लगा दे गैर के
    देख फिर ये आसमां झुक जाएगा

    तू बिना मांगे ही देना सीख ले
    देख बिन मांगे ही सबकुछ पाएगा

    तू अपनी दरिया दिली से जग को जीत लेगा
    latest post: कुछ एह्सासें !

    जवाब देंहटाएं
  10. सोये हुओं को जगाती ..ये आपकी रचना ...
    शुभकामनायें!

    जवाब देंहटाएं
  11. हर पंक्ति जीने की सीख दे रही है मानो...... बहुत ही उम्दा

    जवाब देंहटाएं
  12. दर्द पर मरहम लगा दे गैर के
    देख फिर ये आसमां झुक जाएगा

    तू बिना मांगे ही देना सीख ले
    देख बिन मांगे ही सबकुछ पाएगा
    क्या खूब ! पंक्तियाँ हैं. वाह !

    जवाब देंहटाएं
  13. तू बिना मांगे ही देना सीख ले
    देख बिन मांगे ही सबकुछ पाएगा
    वाह क्या बात है सभी लाजवाब शेर है !

    जवाब देंहटाएं
  14. छीन ले शमशीर उसके हाथ से
    मार कब तक बेवजह फिर खाएगा

    आज इसी की ज़रूरत है.
    बढिया रचना .

    जवाब देंहटाएं
  15. वाह...बहुत बढ़िया....

    हर शेर सटीक बात कहता हुआ.

    सादर
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  16. उम्दा भाव .. स्वागत है आपका पुन: गजल की दुनिया में..

    जवाब देंहटाएं
  17. बहुत ही सटीक और सार्थक रचना.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  18. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - बुधवार - 09/10/2013 को कहानी: माँ की शक्ति - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः32 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra


    जवाब देंहटाएं
  19. दर्द पर मरहम लगा दे गैर के
    देख फिर ये आसमां झुक जाएगा
    sahi kaha aapne bahut khoob
    rachana

    जवाब देंहटाएं
  20. वाह वाह की प्रशंसा से परे है यह ग़ज़ल. हर शेर सीधे ह्रदय में उतरा है. व्यंग्य भी, शिक्षा भी, सन्देश भी और उतनी ही सरलता. उत्कृष्ट कोटि की रचना.

    जवाब देंहटाएं
  21. एक पत्थर मार उसमें छेद कर
    उड़ गया बादल तो क्या बरसाएगा

    चंद खुशियाँ तू भी भर ले हाथ में
    रह गया तो बाद में पछताएगा

    छीन ले शमशीर उसके हाथ से
    मार कब तक बेवजह फिर खाएगा

    दर्द पर मरहम लगा दे गैर के
    देख फिर ये आसमां झुक जाएगा

    तू बिना मांगे ही देना सीख ले
    देख बिन मांगे ही सबकुछ पाएगा

    एक से बढ़के एक अशआर :

    वोट को भुगताना अब तू सीख ले ,

    जवाब देंहटाएं
  22. एक पत्थर मार उसमें छेद कर
    उड़ गया बादल तो क्या बरसाएगा

    चंद खुशियाँ तू भी भर ले हाथ में
    रह गया तो बाद में पछताएगा

    छीन ले शमशीर उसके हाथ से
    मार कब तक बेवजह फिर खाएगा

    दर्द पर मरहम लगा दे गैर के
    देख फिर ये आसमां झुक जाएगा

    तू बिना मांगे ही देना सीख ले
    देख बिन मांगे ही सबकुछ पाएगा

    एक से बढ़के एक अशआर :

    वोट को भुगताना अब तू सीख ले ,

    सेकुलर बढ़ आगे तेरे पाँव पे गिर जाएगा।

    जेल भुगताके वो फिर से चारा खाने आयेगा।

    जवाब देंहटाएं
  23. छीन ले शमशीर उसके हाथ से
    मार कब तक बेवजह फिर खाएगा
    सारी ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी. यह शे'र बहुत सामयिक रहा.

    जवाब देंहटाएं
  24. वाह बहुत खुबसूरत । "माँ" विषय से इतर बहुत अरसे बाद लिखा है आपने कुछ । पहला और आखिरी शेर बहुत ही बढ़िया लगा |

    जवाब देंहटाएं
  25. दिगम्बर भाई जी , इस सुन्दर रचना पे मैं क्या बोलू , बोलता हूँ तो बस इतना ही कि , तारीफ करूं क्या उसकी जिसने आपको बनाया

    जवाब देंहटाएं
  26. दें अगर सब बिना मांगे तो पाएंगे सब बिना मांगे जैसी ऊंची बातें करती पंक्तियां सीधे दिल में उतर रही हैं।

    जवाब देंहटाएं
  27. बहुत सुंदर भाव .....सुंदर रचना ....!!
    सुरेश राय

    जवाब देंहटाएं
  28. इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :-10/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -21 पर.
    आप भी पधारें, सादर ....
    नवरात्रि की शुभकामनाएँ.

    जवाब देंहटाएं
  29. हर पंक्ति विश्वास और उर्जा से भरी हुई...
    नए विषय के साथ सुन्दर रचना का स्वागत है.शुभकामनाएँ...

    जवाब देंहटाएं
  30. तू बिना मांगे ही देना सीख ले
    देख बिन मांगे ही सबकुछ पाएगा

    सुंदर बोध देती पंक्तियाँ !

    जवाब देंहटाएं
  31. छीन ले शमशीर उसके हाथ से
    मार कब तक बेवजह फिर खाएगा
    वाह बहुत सुन्दर!

    जवाब देंहटाएं
  32. बहुत सशक्त गजल -

    छीन ले ब्रह्मास्त्र उसके हाथसे ,

    वो इसे भी सेकुलर बतलायेगा।

    वोट का भक्षक खड़ा है घात में ,

    एक तेलांगना यहाँ बनवाएगा।

    जवाब देंहटाएं
  33. बड़ी ही सटीक बातें गुँथी हैं आपकी रचना में।

    जवाब देंहटाएं
  34. दर्द पर मरहम लगा दे गैर के
    देख फिर ये आसमां झुक जाएगा

    बहुत खूबसूरत गज़ल

    जवाब देंहटाएं
  35. क्यों बना मजनू जो वो लैला नहीं
    उठ विरह के गीत कब तक गाएगा

    एक पत्थर मार उसमें छेद कर
    उड़ गया बादल तो क्या बरसाएगा

    वाह सर बहुत गज़ब ग़ज़ल !!

    जवाब देंहटाएं
  36. एक पत्थर मार उसमें छेद कर
    उड़ गया बादल तो क्या बरसाएगा

    चंद खुशियाँ तू भी भर ले हाथ में
    रह गया तो बाद में पछताएगा

    बेहतरीन पंक्तियाँ...

    जवाब देंहटाएं
  37. कल 13/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  38. आपको सपरिवार विजय दशमी की हार्दिक शुभ कामनाएँ।

    सादर

    जवाब देंहटाएं

  39. दर्द पर मरहम लगा दे गैर के
    देख फिर ये आसमां झुक जाएगा-----

    मन में कुछ अच्छा करने की ललक तो होती है,पर
    कर नही पाते--

    आपने सकारात्मक सोच को हवा दे दी है
    बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना
    उत्कृष्ट

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  40. दर्द पर मरहम लगा दे गैर के
    देख फिर ये आसमां झुक जाएगा

    सुन्दर। दर्द तेरा भी ,यकीन मिट जाएगा।

    हौसले पे हौसला फिर आयेगा।

    जवाब देंहटाएं
  41. वाह बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल .. बधाई आपको

    जवाब देंहटाएं
  42. दर्द पर मरहम लगा दे गैर के
    देख फिर ये आसमां झुक जाएगा

    यह शेर बहुत ख़ास लगा.

    बहुत अच्छी ग़ज़ल लिखी है.

    जवाब देंहटाएं
  43. माँ को भी पढ़ा और महसूस किया ,फिर ये गज़ल पढ़ी,ज़रा दूसरे शेर को आप भी दुबारा पढ़ लीजिए ,मेहरबानी होगी.

    जवाब देंहटाएं

  44. दर्द पर मरहम लगा दे गैर के
    देख फिर ये आसमां झुक जायेगा
    सत्य वचन.

    जवाब देंहटाएं
  45. जब सुलह की बात करने आएगा
    जेब में खंजर छुपा के लाएगा behtarin sher!

    जवाब देंहटाएं
  46. दर्द पर मरहम लगा दे गैर के
    देख फिर ये आसमां झुक जाएगा

    ...बहुत खूब! हरेक शेर बहुत उम्दा..

    जवाब देंहटाएं
  47. दर्द पर मरहम लगा दे गैर के
    देख फिर ये आसमां झुक जाएगा

    तू बिना मांगे ही देना सीख ले
    देख बिन मांगे ही सबकुछ पाएगा


    waah, man bhaya

    shubhkamnayen

    जवाब देंहटाएं
  48. दर्द पर मरहम लगा दे गैर के
    देख फिर ये आसमां झुक जाएगा

    तू बिना मांगे ही देना सीख ले
    देख बिन मांगे ही सबकुछ पाएगा
    बहुत सुंदर भाव .....

    जवाब देंहटाएं
  49. दर्द पर मरहम लगा दे गैर के
    देख फिर ये आसमां झुक जाएगा

    तू बिना मांगे ही देना सीख ले
    देख बिन मांगे ही सबकुछ पाएगा
    बहुत सुंदर भाव .....

    जवाब देंहटाएं
  50. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  51. गजब...शब्दों को गुथने की कला अद्भुत है आपमें...बधाई सुन्दर गजल के लिए...!!

    जवाब देंहटाएं
  52. तू बिना मांगे ही देना सीख ले
    देख बिन मांगे ही सबकुछ पाएगा
    ---------- nc sr

    जवाब देंहटाएं

आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है