स्वप्न मेरे: क्यों खड़े कर दिए मकाँ इतने ...

सोमवार, 12 सितंबर 2016

क्यों खड़े कर दिए मकाँ इतने ...

दिख रहे ज़ुल्म के निशाँ इतने
लोग फिर भी हैं बे-जुबां इतने

एक प्याऊ है बूढ़े बाबा का
लोग झुकते हैं क्यों वहाँ इतने

सुख का साया न दुःख के बादल हैं
पार कर आए हैं जहाँ इतने

घूम के लौटती हैं ये सडकें
जा रहे फिर भी कारवाँ इतने

माँ मेरे साथ साथ रहती है
किसको मिलते हैं आसमाँ इतने

दिल किसी का धड़क नहीं पाया
पत्थरों के थे आशियाँ इतने

ख़ाक तो ख़ाक में ही मिलनी है
क्यों खड़े कर दिए मकाँ इतने


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