स्वप्न मेरे: जून 2018

सोमवार, 25 जून 2018

हवा ने दिन को सजा दिया है ...


ये दाव खुद पे लगा दिया है
तुम्हारे ख़त को जला दिया है

तुम्हारी यादों की ईंट चुन कर 
मकान पक्का करा दिया है

जहाँ पे टूटा था एक सपना
वहीँ पे पौधा उगा दिया है

शहर में लौटे थे जिसकी खातिर
उसी ने हमको भुला दिया है

समझ रहा था “का” खुद को अब तक 
“ख” आईने ने बता दिया है

गुज़रते लम्हों को हंस के जीना 
हमें किसी ने सिखा दिया है

उड़ा के काले घने से बादल 
हवा ने दिन को सजा दिया है

सोमवार, 18 जून 2018

बच्चे ज़मीन कैश सभी कुछ निगल गए ...


सूरज खिला तो धूप के साए मचल गए
कुछ बर्फ के पहाड़ भी झट-पट पिघल गए

तहजीब मिट गयी है नया दौर आ गया
इन आँधियों के रुख तो कभी के बदल गए

जोशो जुनून साथ था किस्मत अटक गई
हम साहिलों के पास ही आ कर फिसल गए

झूठे परों के साथ कहाँ तक उड़ोगे तुम
मंज़िल अभी है दूर ये सूरज भी ढल गए

निकले तो कितने लोग थे अपने मुकाम पर
पहुंचे वही जो वक़्त के रहते संभल गए

मजबूरियों की आड़ में सब कुछ लिखा लिया 
बच्चे ज़मीन कैश सभी कुछ निगल गए

सोमवार, 11 जून 2018

साथ गर मेरा तुम्हे स्वीकार हो ...


जीत मेरी हो न तेरी हार हो
जो सही है बस वही हरबार हो

रात ने बादल के कानों में कहा
हट जरा सा चाँद का दीदार हो

नाव उतरेगी सफीनों से तभी
हाथ में लहरों के जब पतवार हो

है मुझे मंज़ूर हर व्योपार पर
पाँच ना हो दो जमा दो, चार हो

मौत है फिर भी नदी का ख्वाब है
बस समुन्दर ही मेरा घरबार हो

इक नया इतिहास लिख दूंगा सनम
साथ गर मेरा तुम्हे स्वीकार हो

सोमवार, 4 जून 2018

सुबह की चाय में बिस्कुट डुबा कर ...


नहीं जाता है ये इक बार आ कर
बुढ़ापा जाएगा साँसें छुड़ा कर

फकत इस बात पे सोई नहीं वो
अभी सो जायेगी मुझको सुला कर

तुम्हारे हाथ भी तो कांपते हैं
में रख देता हूँ ये बर्तन उठा कर

“शुगर” है गुड़ नहीं खाऊंगा जाना
न रक्खो यूँ मेरा “डेन्चर” छुपा कर

तुझे भी “वाइरल”, मैं भी पड़ा हूँ
दिखा आयें चलो “ओला” बुला कर

सुनो वो आसमानी शाल ले लो
निकल जाएँ कहीं सब कुछ भुला कर

सुबह उठना बहुत भारी है फिर भी
चलो योगा करें हम मुस्कुरा कर

असर इस उम्र का दोनों पे है अब
हैं ऐनक ढूंढते ऐनक लगा कर

मज़ा था तब जरूरी अब है खाना 
सुबह की चाय में बिस्कुट डुबा कर