स्वप्न मेरे: सुबह की चाय में बिस्कुट डुबा कर ...

सोमवार, 4 जून 2018

सुबह की चाय में बिस्कुट डुबा कर ...


नहीं जाता है ये इक बार आ कर
बुढ़ापा जाएगा साँसें छुड़ा कर

फकत इस बात पे सोई नहीं वो
अभी सो जायेगी मुझको सुला कर

तुम्हारे हाथ भी तो कांपते हैं
में रख देता हूँ ये बर्तन उठा कर

“शुगर” है गुड़ नहीं खाऊंगा जाना
न रक्खो यूँ मेरा “डेन्चर” छुपा कर

तुझे भी “वाइरल”, मैं भी पड़ा हूँ
दिखा आयें चलो “ओला” बुला कर

सुनो वो आसमानी शाल ले लो
निकल जाएँ कहीं सब कुछ भुला कर

सुबह उठना बहुत भारी है फिर भी
चलो योगा करें हम मुस्कुरा कर

असर इस उम्र का दोनों पे है अब
हैं ऐनक ढूंढते ऐनक लगा कर

मज़ा था तब जरूरी अब है खाना 
सुबह की चाय में बिस्कुट डुबा कर

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