स्वप्न मेरे: फ़रवरी 2019

बुधवार, 20 फ़रवरी 2019

सबको बच कर रहना है जय चन्दों से ...


बस इतना कहना है देश के बन्दों से
सबको बच कर रहना है जय चन्दों से

राजनीति जो करते हैं बलिदानों पर
ढूंढ के उनको घर के बाहर कर देना
गद्दारों का साथ सदा जो देते हैं 
कान खोल कर मेरी बातें सुन लेना 
और नहीं कुछ और नहीं अब सहना है
सबको बच कर रहना है ...  

सीमाओं पे देश की सैनिक डटे हुए
कफ़न बाँध कर मुस्तैदी से खड़े हुए  
घर के भीतर सजग रहे हम सब इतना
थर थर कांपे शत्रु सारे डरे हुए
नहीं जरूरी संग धार के बहना है
सबको बच कर रहना है ...
 
प्रेम, अहिंसा, ज्ञान हमारी पूँजी है
जो भी हमसे मांगोगे हम दे देंगे
मगर तोड़ने वालों इतना सुन लेना
अपने माथे का चंदन हम ले लेंगे
काश्मीर तो देश का सुन्दर गहना है
सबको बच कर रहना है ...

सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

झपकियों ही झपकियों में रात कब की हो गई ...

इस नज़र से उस नज़र की बात लम्बी हो गई
मेज़ पे रक्खी हुई ये चाय ठंडी हो गई

आसमानी शाल ने जब उड़ के सूरज को ढका
गर्मियों की दो-पहर भी कुछ उनींदी हो गई

कुछ अधूरे लफ्ज़ टूटे और भटके राह में     
अधलिखे ख़त की कहानी और गहरी हो गई

रात के तूफ़ान से हम डर गए थे इस कदर
दिन सलीके से उगा दिल को तसल्ली हो गई

माह दो हफ्ते निरंतर, हाज़री देता रहा
पन्द्रहवें दिन आसमाँ से यूँ ही कुट्टी हो गई

कुछ दिनों का बोल कर अरसा हुआ लौटीं न तुम 
इश्क की मंडी में जानाँ तबसे मंदी हो गई

बादलों की बर्फबारी ने पहाड़ों पर लिखा   
रात जब सो कर उठी शहरों में सर्दी हो गई

कान दरवाज़े की कुंडी में ही अटके रह गए
झपकियों ही झपकियों में रात कब की हो गई

सोमवार, 4 फ़रवरी 2019

हया किसी के निगाहों का कह रही सच है ...


यही ज़मीन, यही आसमां, यही सच है 
यहीं है स्वर्ग, यहीं नर्क, ज़िन्दगी सच है

हसीन शाम के बादल का सुरमई मंज़र 
हथेलियों पे सजी रात की कली सच है

उदास रात की स्याही से मत लिखो नगमें  
प्रभात की जो मधुर रागिनी वही सच है  

ये तू है, मैं हूँ, नदी, पत्तियों का यूँ हिलना
ये कायनात, परिंदे, हवा सभी सच है

अभी जो पास है वो एक पल ही है जीवन
किसी के इश्क में डूबी हुई ख़ुशी सच है

कभी है गम तो ख़ुशी, धूप, छाँव, के किस्से
झुकी झुकी सी नज़र सादगी हंसी सच है

नज़र नज़र से मिली एक हो गयीं नज़रें
हया किसी के निगाहों का कह रही सच है