स्वप्न मेरे: झपकियों ही झपकियों में रात कब की हो गई ...

सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

झपकियों ही झपकियों में रात कब की हो गई ...

इस नज़र से उस नज़र की बात लम्बी हो गई
मेज़ पे रक्खी हुई ये चाय ठंडी हो गई

आसमानी शाल ने जब उड़ के सूरज को ढका
गर्मियों की दो-पहर भी कुछ उनींदी हो गई

कुछ अधूरे लफ्ज़ टूटे और भटके राह में     
अधलिखे ख़त की कहानी और गहरी हो गई

रात के तूफ़ान से हम डर गए थे इस कदर
दिन सलीके से उगा दिल को तसल्ली हो गई

माह दो हफ्ते निरंतर, हाज़री देता रहा
पन्द्रहवें दिन आसमाँ से यूँ ही कुट्टी हो गई

कुछ दिनों का बोल कर अरसा हुआ लौटीं न तुम 
इश्क की मंडी में जानाँ तबसे मंदी हो गई

बादलों की बर्फबारी ने पहाड़ों पर लिखा   
रात जब सो कर उठी शहरों में सर्दी हो गई

कान दरवाज़े की कुंडी में ही अटके रह गए
झपकियों ही झपकियों में रात कब की हो गई

54 टिप्‍पणियां:

  1. रात के तूफ़ान से हम डर गए थे इस कदर
    दिन सलीके से उगा दिल को तसल्ली हो गई

    वाह बहुत खूब,थोड़ी नटखट थोड़ी संजीदा रचना,मज़ा आ गया।आभार

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  2. माह दो हफ्ते निरंतर, हाज़री देता रहा
    पन्द्रहवें दिन आसमाँ से यूँ ही कुट्टी हो गई
    Awesome....., बस ..., शब्द नही मिल रहे तारीफ के लिए ..., फिर से कहूँगी awesome.....,

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  3. कुछ अधूरे लफ्ज़ टूटे और भटके राह में
    अधलिखे ख़त की कहानी और गहरी हो गई
    वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब हमेशा की तरह...

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  4. बादलों की बर्फबारी ने पहाड़ों पर लिखा
    रात जब सो कर उठी शहरों में सर्दी हो गई

    कान दरवाज़े की कुंडी में ही अटके रह गए
    झपकियों ही झपकियों में रात कब की हो गई

    बहुत सुन्दर लाजवाब

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  5. नमस्ते,

    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    मंगलवार 12 फरवरी 2019 को प्रकाशनार्थ 1306 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

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  6. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 51वीं पुण्यतिथि - पंडित दीनदयाल उपाध्याय और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  7. गज़ब..बेहद लाज़वाब.. वाह्ह्ह.. और सिर्फ़ वाह्ह्ह नासवा जी..शानदार ग़ज़ल👌👌

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  8. आसमानी शाल ने जब उड़ के सूरज को ढका
    गर्मियों की दो-पहर भी कुछ उनींदी हो गई
    ...वाह... लाज़वाब

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  9. वाह ! नीला आसमान, बर्फबारी, धूप और पर्वतों के साथ प्रकृति का हर रंग यहाँ मौजूद है, साथ ही जंगली गुलाब की खुशबू भी है जो ठंडी चाय से आ रही है..

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    1. बहुत आभार ख़ुशबू का अहसास मुझे भी करा दिया आपने ...

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  10. शानदार प्रस्तुति सर ..आनंद आ जाता है आपके शब्द पढ़कर ...सुन्दर अलफ़ाज़

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  11. निःसंदेह एक लाज़वाब रचना

    बादलों को न यूँ ही निहारा करो
    पास आकर तो बाहें पसरा करो
    धूल जाएगी मैल सारे हृदय की
    पाँवों के हिमजल से पखारा करो

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    1. बहुत समय बाद आपको देख के अच्छा लगा ... आपका आभार है ...

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  12. बेहद खूबसूरत बिंबों के साथ रची गई रचना-
    कुछ अधूरे लफ्ज़ टूटे और भटके राह में
    अधलिखे ख़त की कहानी और गहरी हो गई
    भई वाह.

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    1. बहुत अच्छा लगा आपको देख कर ... आशा है स्वस्थ ठीक होगा आपका ... मेरी शुभकामनाएं है ...

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    2. कुल मिला कर स्वास्थ्य ठीक है. आपका आभार.

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  13. कान दरवाज़े की कुंडी में ही अटके रह गए
    झपकियों ही झपकियों में रात कब की हो गई...
    वाह ! सरलता कितनी प्रभावशाली होती है, इसका उदाहरण हैं सारे अशआर...
    यह तो बहुत सादा और बहुत खास बात हो गई....

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  14. कान दरवाजे की कुण्डी में ही अटके रह गए ...वाह वाह आपका जबाब नही ..

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  15. मनोरम चित्र - प्रकृति और कवि का मन !

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  16. कान दरवाज़े की कुंडी में ही अटके रह गए
    झपकियों ही झपकियों में रात कब की हो गई... बहुत खूब

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