स्वप्न मेरे: आसमानी पंछियों को भूल जा ...

सोमवार, 17 जून 2019

आसमानी पंछियों को भूल जा ...


धूप की बैसाखियों को भूल जा  
दिल में हिम्मत रख दियों को भूल जा

व्यर्थ की नौटंकियों को भूल जा
मीडिया की सुर्ख़ियों को भूल जा

उस तरफ जाती हैं तो आती नहीं
इस नदी की कश्तियों को भूल जा

टिमटिमा कर फिर नज़र आते नहीं
रास्ते के जुगनुओं को भूल जा

हो गईं तो हो गईं ले ले सबक
जिंदगी की गलतियों को भूल जा

याद रख्खोगे तो मांगोगे सबब
कर के सारी नेकियों को भूल जा

रंग फूलों के चुरा लेती हैं ये
इस चमन की तितलियों को भूल जा

टूट कर आवाज़ करती हैं बहुत
तू खिजाँ की पत्तियों को भूल जा

इस शहर से उस शहर कितने शहर 
आसमानी पंछियों को भूल जा 

37 टिप्‍पणियां:

  1. सच में बड़ते शहरी विकास और उद्योगीकरण
    से अब आसमानी पंछी प्राकृतिक वातावरण प्रदूषण के धुएं में सब खो गया है ।

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  2. हो गईं तो हो गईं ले ले सबक
    जिंदगी की गलतियों को भूल जा।
    लाजवाब /बहुत उम्दा प्रस्तुति भुलना ही बेहतर इलाज है हर हयात ए मर्ज का

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 17/06/2019 की बुलेटिन, " नाम में क्या रखा है - ब्लॉग बुलेटिन“ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. वाह..सर..लाज़वाब गज़ल हमेशा की तरह..👌

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  5. आपकी रचना पढ़कर बुद्ध का संदेश याद आ गया, 'अप दीपो भव', अपना दीपक स्वयं बनना है, अपना नाविक भी. साथ ही अच्छे व बुरे दोनों तरह के अतीत को भुलाकर, बसंत और पतझड़ दोनों को आने-जाने वाला समझकर मन के पंछी को विश्राम देना है...बधाई और शुभकामनायें..

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    1. जी इंसान इसी सोच को अमल में ला सके तो जीवन का अर्थ समझ जाता है ...
      बहुत आभार अपना .. 🙏🙏🙏

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  6. याद रख्खोगे तो मांगोगे सबब
    कर के सारी नेकियों को भूल जा
    खूबसूरत ग़ज़लों के संग्रह में एक और बेहतरीन और लाजवाब ग़ज़ल ।

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  7. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (19-06-2019) को "सहेगी और कब तक" (चर्चा अंक- 3371) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  8. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना 19 जून 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  9. वाह ! हर शेर लाजवाब ! अंदाज़ हमेशा की तरह बेहद दिलकश ! बहुत प्यारी ग़ज़ल है नासवा जी ! हार्दिक शुभकामनाएं !

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  10. बहुत उम्दा , बेहतरीन ग़ज़ल।

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  11. हो गईं तो हो गईं ले ले सबक
    जिंदगी की गलतियों को भूल जा
    याद रख्खोगे तो मांगोगे सबब
    कर के सारी नेकियों को भूल जा
    वाह !!! सर बहुत खूब एक एक शेर लाज़बाब ....

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  12. नासवा जी,इसलिए ही तो कहते हैं न कि बीती ताही बिसार दे आगे की सोच... बहुत सुंदर।

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  13. सच में जीवन में बहुत कुछ भूलना भी पड़ता है। बहुत खूबसूरत गज़ल ।

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  14. बहुत खूब ...पर टूटी पत्तियों की आवाज को कोई कैसे भूले ! भूलना इतना आसान कहाँ है !

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    1. जी बिलकुल आसन नहीं होता ... दूर तक पीछा करती हैं ये आवाजें ... बहुत आभार आपका ...

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  15. याद रख्खोगे तो मांगोगे सबब
    कर के सारी नेकियों को भूल जा
    बेहतरीन है सर !!!

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  16. वाह!!दिगंबर जी ,लाजवाब रचना । हर एक पंक्ति बहुत कुछ कह गई ।

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  17. रंग फूलों के चुरा लेती हैं ये
    इस चमन की तितलियों को भूल जा....वाह .. बेहद खूबसूरत अल्फ़ाज़ लिखे हैं सर आपने

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है