स्वप्न मेरे: माँ - यादों की चासनी से ...

सोमवार, 18 नवंबर 2019

माँ - यादों की चासनी से ...

आने वाली किताब “कोशिश ... माँ को समेटने की” का एक अन्श ... 

अक्सर जब बेटियाँ बड़ी होती हैं, धीरे धीरे हर अच्छे बुरे को समझने लगती हैं ... गुज़रते समय के साथ जाने अनजाने ही, पिता के लिए वो उसकी माँ का रूप बन कर सामने आ जाती हैं ... 

ऐसे ही कुछ लम्हे, कुछ किस्से रोज़-मर्रा के जीवन में भी आते हैं जो किसी भी अपने की यादों को ताज़ा कर जाते हैं .... कुछ तो निहित है इस प्राकृति में, इस कायनात में ...  


पुराने गीत बेटी जब कभी भी गुनगुनाती है
बड़ी शिद्दत से अम्मा फिर तुम्हारी याद आती है

दबा कर होठ वो दाँतों तले जब बात है करती
तेरी आँखें तेरा ही रूप तेरी छाँव है लगती 
मैं तुझसे क्या कहूँ होता है मेरे साथ ये अक्सर
बड़ी बेटी किसी भी बात पर जब डाँट जाती है
बड़ी शिद्दत से अम्मा ...

#कोशिश_माँ_को_समेटने_की 

29 टिप्‍पणियां:

  1. पुराने गीत बेटी जब कभी भी गुनगुनाती है
    बड़ी शिद्दत से अम्मा फिर तुम्हारी याद आती है
    मैं तुझसे क्या कहूँ होता है मेरे साथ ये अक्सर
    बड़ी बेटी किसी भी बात पर जब डाँट जाती है
    -- वाह! जीवंत चित्र उपस्थित कर दिया आपने, लगा जैसे अपनी ही बात हो
    आने वाली किताब “कोशिश ... माँ को समेटने की” के प्रकाशन हेतु हार्दिक शुभकामनाएं!

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  2. मैं तुझसे क्या कहूँ होता है मेरे साथ ये अक्सर
    बड़ी बेटी किसी भी बात पर जब डाँट जाती है
    बड़ी शिद्दत से अम्मा ...
    स्वभाव ही कुदरत ऐसा देती है लड़कियों को ..., देखभाल करना ..फिक्र जताना ..उनकी आदत में शुमार होता है ।बहुत प्रभावी और सशक्त लेखन ।

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  3. अक्सर जब बेटियाँ बड़ी होती हैं, गुज़रते समय के साथ जाने अनजाने ही, पिता के लिए वो उसकी माँ का रूप बन कर सामने आ जाती हैं ... बिल्कुल वास्तविक चित्रण किया हैं आपने, दिगम्बर भाई।

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    1. जी एक सत्य जिसका अनुभव किया है मैंने ...
      आभार आपका ...

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (१९ -११ -२०१९ ) को "फूटनीति का रंग" (चर्चा अंक-३५२४) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….

    अनीता सैनी

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  6. बहुत सुन्दर मित्र ! घर-घर की कहनी कह दी आपने !
    मेरी माँ तो नहीं रहीं अब मेरी दोनों बेटियां मुझ से बहुत दूर बैठकर मुझ पर हुक्म चलाती हैं - 'पापा ये कीजिए और पापा ये मत कीजिए के अलावा उनकी बातों में कम ही शब्द होते हैं. पर न जाने क्यों, उनके ऐसे अत्याचार मुझे अच्छे लगते हैं.

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    1. सही कह रहे हैं आप ... मेरा भी कुछ ऐसा ही हाल है ...
      पर अब दिल भी चाहता है ऐसा हो...
      बहुत आभर आपका ...

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  7. बेटी बचपन से ही लाड़ लड़ाना सीख जाती है ,कभी गोद में लिटाल कर कभी थपक कर ....

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    1. जी बिलकुल ...
      मेरी बेटियों का ऐसा ही हाल है अब ...
      बहुत आभार आपका ...

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  8. पुराने गीत बेटी जब कभी भी गुनगुनाती है
    बड़ी शिद्दत से अम्मा फिर तुम्हारी याद आती है
    .......बहुत खूब कहा है इन पंक्तियों में

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  9. बहुत बढ़िया! किताब के लिए बहुत शुभकामनायें I

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  10. पुराने गीत बेटी जब कभी भी गुनगुनाती है...
    बहुत बढ़िया. शुभकामनाएँ.

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  11. बेटियां माँ का ही प्रतिरूप होती हैं .

    पुस्तक के प्रकाशन पर शुभकामानाएँ .

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  12. "दबा कर होठ वो दाँतों तले जब बात है करती
    तेरी आँखें तेरा ही रूप तेरी छाँव है लगती
    मैं तुझसे क्या कहूँ होता है मेरे साथ ये अक्सर
    बड़ी बेटी किसी भी बात पर जब डाँट जाती है
    बड़ी शिद्दत से अम्मा ..."

    क्या बात है साहब, जबरदस्त

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  13. अरे वाह ! आपकी किताब आ रही है .. बहुत बहुत बधाई और अनंत शुभकामनायें

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  14. आदरणीय दिगम्बर जी , सनातन धर्म में पुनर्जन्म को बहुत महत्व दिया गया है साथ में आम तौर पर कहा जाता है , हर इंसान अपने परिवार के गुणों को मूर्त या अमूर्त रूप में अपने भीतर समाहित किये रहता है | माँ के गुण यदि बिटिया में दिखाई पड़ें तो इससे बढ़कर जीवन का अवलंबन क्या ? यही है अनन्य आत्मीयता की पराकाष्ठा !अत्यंत सुंदर , सुघढ़ और नितांत अपनी तरह की एक रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें और बिटिया जो दादी के गुणों से भरी को ढेरों स्नेह और शुभकामनायें ||

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है